वो अपनी चुप्पी में मगन है,
अपने दुःख में सुखी, -गर्वोंमुक्त,
अपनी जीत में हार की ख़ुशी लिए ,
अपने सच के झूट से चमत्कृत ...
वक्त से आगे जाना चाहता है ,
सितारों के पार ,
ना जाने किस-किस में व्यक्त होना चाहता है ,
उसका सुख....
इन दिनों सेमल के पेड़ पर ,
लाल सुर्ख फूलों की नियति में ,..
टंका हुआ ,
अकेला अलग -थलग.
दैनिक भास्कर समूह की पत्रिका के अक्तूबर २००७ के ''अहा जिन्दगी'' में प्रकाशित
9 टिप्पणियां:
बेहद सुन्दर शब्दों से रची भावमयी कविता जिसे पढ़कर मन कभी खुश तो कभी निराश हुआ........"
प्रणव सक्सैना
amitraghat.blogspot.com
aapki har rachna khaas aur alag hoti hai...
सुंदर रचना के संग सुंदर चित्र भी वाह वाह जी
उम्दा रचना!!
इतनी खूबसूरत कविता में दो स्थानों पर ’की’ के स्थान पर ’कि’ होना खटक रहा है । प्लीज़ उसे सुधार दीजिये ! यह ट्रांसलिटरेशन की दिक्कत है ।
प्रविष्टि का आभार ।
अपने सच के झूट से चमत्कृत ...
पूरी कविता में जैसे अंडरलाइन किया हुआ अलग दिख रहा है ....अद्भुत....
wah. bahut khoob.
बहुत ही सुन्दर कल्पना. आभार.
जितनी सुंदर कविता,
उससे सुंदर चित्र!
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मेरे मन को भाई : ख़ुशियों की बरसात!
मिलने का मौसम आया है!
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संपादक : सरस पायस
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