शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

मर्दों की इस तानाशाह दुनिया मैं,


मर्दों की इस तानाशाह दुनिया मैं
मर्दों की इस तानाशाह दुनिया मैं,
दरवाजे खोलो और
दूर तक देखो खुली हवा मैं ,औरतें
जहाँ भी हैं ,जैसी भी हैं
पुरी शिद्दत के साथ मौजूद हैं
-वे हमारे बीच अन्धेरें मैं रौशनी की तरह हैं
औरतें हंसती हैं खिलखिलाती हैं
खुशियाँ बरसाती .....छोटे-छोटे उत्सव बन जाती हैं औरतें
औरतें रोती हैं सिसक-सिसक कर जब कभी,
अज्ञात दारुण दुःख मैं भीग जाती है ये धरती,
औरतें हमारा सुख है-औरतें हमारा दुःख हैं
हमारे दुःख-सुख की गहरी अनुभूति हैं
ये औरतें,जड़ से फल तक,
-डाल से छाल तक
वृक्षों -सी परमार्थ मैं लगी हैं -ये औरतें,
युगों से कूटी,पीसी,छीली-सूखी और सहेजी जा रही हैं
असाध्य रोगों की दवाओं की तरह
सौ-सौ खटरागों मैं खटती हुई,
रसोईघरों की हदों मैं
औरतें गम गमाती हैं मीट-मसलों -की तरह
सिलबत्तों पर खुशी-खुशी पोदीना प्याज सी
पिस जाती है औरतें
चूल्हे पर रोटी होती है औरतें
यह क्या कम बड़ी बात है
लाखों-करोड़ों की भूख-प्यास हैं औरतें
प्रथ्वी सी बिछी हैं औरतें
आकाश सी तनी हैं औरतें,
जरूरी चिठियों की तरह रोज पढ़ी जाती हैं औरतें,
तार मैं पिरो दी जाती हैं आज भी औरतें,
वक्त जरूरत इस तरह,बहुत काम आती हैं औरतें,
शोर होता हैं जब
औरतें चुपचाप सहती हैं ताप को
औरतें चिल्लातीं हैं जब कभी
बहुत कुछ कहती हैं आपको,
औरतों को समझने के लिए ताना शाहों
पहले दरवाजें खोलों
और दूर तक देखो खुली हवा मैं,
.अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर ....थोडा देर से ...किंतु शुभकामनाओं के साथ...भाई अजामिल की कविता ...जो बानगी की सरलता के कारण मेरी पसंदीदा है ....इम्फाल- शिलोंग से लौटकर....

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

वसंत के इन दिनों मैं,


वसंत के इन दिनों में

कभी तो मिलो ,कहीं तो मिलो /कुछ बातें हों गिले शिकवें दूर हों /तुम्हे भी तो पता लगे /कितना अच्छा होता है /कभी-कभी पुल पार करना.....

अपनी डायरी से ----कवि अनाम