बुधवार, 8 अप्रैल 2009

पिता...तुम हो आस-पास हमारे....


पिता...तुम हो हमारे आस-पास
महाबोधि वृक्ष थे तुम
जिसकी छाया में पनपी ये साधारण काया
हमारी हथेलियों की रेखाओं में बसी है ,
तुम्हारी कर्मठ ऊर्जा की गर्माहट,
महकता है तुम्हारा चेहरा अब भी
केया गंध सा हमारे बचपन की सौंधी शरारतों में
मीठी मुस्कराहटों में..अनगिन सच-झूट में
ताउम्र उगते रहे जो सूरज तुम्हारी आंखों में
हमें रौशनी देने की खातिर,रौशनी के उस मुकाम में
हमारी छोटी उपलब्धियों पर चकित होने वाले ,
तुम्हारे वैभव शाली लाड-दुलार में,डांट-फटकार,निषेध आज्ञाओं में ,
सख्ती-नरमी और तुम्हारे निश्चल प्रेम की सौगातों में ,
कठिन लक्ष्यों के प्रति ,धैर्य से साधे गए संधानो की सीख में ,
पिता शब्द की सनातन अनगूंज में,
शिराओं में घुले रक्त के प्रवाह में ,
स्तब्ध सन्नाटे के खिलाफ बन आवाज में
कठिनाई में सचेत हो दौड़ पड़ने वाले आत्मबल में,
हमारी अबोध चाहतों के विस्तार में
बचपन से युवा होते समय के अनंत में ,
तुम्हारे पसंदीदा महकते चम्पा के फूलों में ,
माँ के प्रति सदैव तुम्हारी अछूती ताजगी भरी धडकनों में
हमारे बच्चों और उनकी संतानोकी किलकारियों और पवित्र स्पर्शों में ,
आगत उत्सवों के नाद में,और रक्त से रक्त संबंधों के बनते पर्व में,
अप्रत्याशित बिछोह के दुःख में ,शिव की शक्ति में,
इस ब्रह्मांड-जड़ चेतन में चिरंतन दर्ज तुम्हारी उपस्थितियों में,
तुम्हारे लिए फिर भी बहुत कुछ ना कर पाने के स्वीकार में ,
हमारी अगाध,असीम ,अनंत भावनाओं के अभिमंत्रित अर्ध्य में ,
अंजुरी से बहते जल में ,गति शील कर्तव्यों की सक्रियता में ,
हमारी भूलों और तुम्हारी भोली क्षमा में ,
निशेष सपनो,हँसी आंसुओं,के साथ उस रिश्ते में ,
जो मिटटी ,पानी, आकाश, हवा और आग संग गुंथा है ,
वही तुम्हारे होते रहने की मूर्तता है ..तुम हो आस-पास हमारे .....
पिता की एक उजली छवि अब तक मन में है....जिन्होंने ना कभी डांटा,ना कान उमेठे..बिना कहे हमारी मुश्किलों को समझने वाले.....कहते थे जमीन पर पड़ी कोई चीज कभी नही उठाना...सितारें तोड़ने का होंसला हमेशा दिल में बनाय रखना...