मंगलवार, 16 नवंबर 2010

प्रार्थना में ...वो शब्द ,और वो रास्ते जो गढे थे हमने//-

वो शब्द ,वो प्रार्थना ,और वो रास्ते जो गढे थे हमने,
अपने लिए व्यर्थ है ,निरर्थक है ,
अनुभव और स्मृतियाँ चाहे जितनी बार गुजारे ,
उन रास्तों से हमें ,वे शब्द बेआवाज हें ,
सारी प्रार्थनाएं धंस गई है पाताल में ..
हमारी यात्राएं स्थगित हें 
विस्मृति  के किसी क्षण में,
पूरे होते-होते किसी अधूरे स्पंदित समय में ,
ठिठके हुए किसी शब्द -क्षण  या सहमी हुई कोई प्रार्थना ,
भूले से........
किसी रास्ते का पुनर्जन्म संभव हो ---वो लौटे ,
पर हम कहाँ होंगें ,
हम मिले शायद नहीं?शायद हाँ 
उन रास्तों शब्दों ,और प्रार्थनाओं के मौन अस्तित्व में ,

 [में जो देखता हूँ और कहता हूँ -के बीच ,में जो कहता हूँ और मौन रहता हूँ -के बीच ,में जो मौन रहता हूँ और सपने देखता हूँ के बीच, में जो सपने देखता हूँ और भूलता  हूँ के बीच कविता सरकती है - ओक्टावियो पाज ]
ये कविता अहा जिन्दगी ! में प्रकाशित ....बहुत दिनों से ब्लॉग पर कुछ नया लिखना था कई प्रारूप तय्यार भी किये ..लेकिन अंतिम तौर पर फिर  भी कुछ नहीं लिख पाई ....आप सभी को दीपावली की असीम शुभ कामनाएं ...