गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

गीत को उसके ही माध्यम से जानना और नमित हो जाना... विरक्ति के बाद अनुरक्त होना, फिर जीवन खपाना... जहाँ से हम फिर देखना शुरू करते हैं, तसल्ली से किसी इल्ली द्वारा खाया गया टेड़ा-मेढ़ा आधा -अधुरा पत्ता पूरे जीवन की मानिंद


कुछ गीतों के पास हम जाते हेँ ,और कुछ हमें बुलातें हेँ ,जिनकी आद्रता हमारे मन प्राण और आँखों में बस जाती है उन गीतों की सच्चाई और संवेदना हमारी चेतना को छूती ही नहीं, हमारी आत्मा को थाम भी लेती है. दुःख जैसे शाश्वत सच को सुख में तब्दील करने वाला संगीत, ऐसे गीतों में किसी दुनिया को, उसके इंसान को, और इस दुनिया के अभिशप्त चरित्रों को बदलने का कोई दावा नहीं होता, एक गुज़ारिश होती है... एक धीमी दस्तक... और आहिस्ता से किसी गीत का बन जाना. इन गीतों के द्वारा न ज़िन्दगी के कोई नियम टूटते हैं, ना क्रांतियाँ होती हैं... बस कुछ स्वर लहरियां होती हैं, जिसमे बहुत कुछ हमारा भी घुला-मिला होता है. इन गीतों का सूनसान चाहे जितना हमें बोझिल करे, लेकिन कुछ अनसुनी पदचापें कई नए आयामों को रचती आहटें हमारे करीब होती हैं. देश काल से परे जहाँ कुछ भी हो सकता है, एक सम्मोहन; छूटे हुए प्रिय; प्रिय चीज़ों; घटनाओं; प्रिय शब्दों;प्रिय कविताओं; और इत्मीनान से की गयी, अचाही विदा के बाद लौटते - लौटाते कुछ सुर, कुछ गीले बिम्ब, दूसरों के द्वारा नहीं... गीत को उसके ही माध्यम से जानना और नमित हो जाना... विरक्ति के बाद अनुरक्त होना, फिर जीवन खपाना... जहाँ से हम फिर देखना शुरू करते हैं, तसल्ली से किसी इल्ली द्वारा खाया गया टेड़ा-मेढ़ा आधा -अधुरा पत्ता पूरे जीवन की मानिंद .

फिल्म "बेनजीर" - १७ जून १९६४ को रिलीज़ हुई थी, इसके प्रोडूसर- "विमल रॉय" और संगीतकार - "एस .डी.बर्मन", गीतकार - "शकील ब्दायुनी" जी हैं. फिल्म के मुख्या किरदार - मीना कुमारी, अशोक कुमार, शशि कपूर, तनूजा इत्यादि थे... इसमें एक गीत तनूजा पे फिल्माया गया था. ब्लैक एंड व्हाइट में बनी इस फिल्म में खासकर इस गीत में तनूजा ने कशिश्भरी अदाकारी की है... लता मंगेशकर द्वारा गाया ये गीत, राग तिलक कामोद केदार पर आधारित है... गीत के पहले अंतरे में "तू" पर जोर देकर, लय को तोड़कर आगे बढता स्वर और अंत में "आ sss मेरी राहों को जगमगा दे sss " (अवग्र के साथ). गीत के पैरा का अंत एक विनम्र गुज़ारिश के साथ आपको सम्मोहित किये बिना नहीं रहता.
इसी तरह दूसरे अंतरे में "जी चाहता है तुझपर सदके बहार कर दूँ " और अंत तक आते - आते एक आर्त चीत्कार.. एक ऐसा उदास भाव हठात आपमें घर करता है बावजूद एक अतिरिक्त उर्जा वातावरण में अनायास पनप उठती है... इस गीत में ऐसा ज़रूर है जो मंत्र मुग्ध करता है, सुख और दुःख को एकाकार भी... शास्त्रीय संगीत में थोड़ी भी रूचि रखने वालों ने तो इसे सुना होगा लेकिन जिन्होंने नहीं सुना उन्हें इसे सुनना चाहिए... लता जी के अद्भूत स्वर में इस गीत को सुनने के बाद. आप अपनी आत्मा; देह;और स्वर को एकसाथ चमत्कृत कर अनंत और शाश्वत को छूकर लौटते हैं...

"मिल जा रे, जाने जाना... मिल जा रे...
आँखों का नूर तू है, दिल का करार तू है...
अपमा तुझे बना लूँ, मेरी ये आरजू है...
आ मेरी ज़िन्दगी की राहों को जगमग दे,
वल्लाह कदम-कदम पर, तेरी ही जुस्तजू है...
मिल जा रे..."
"जी चाहता है तुझपर, सदके बहार कर दूँ...
तेरी खुशी पे अपनी, दुनिया निसार कर दूँ...
वो प्यार की घडी जो, तेरे हुज़ूर गुज़रे,
उसको कसम खुदा की, में याद गार कर दूँ...
मिल जा रे ...."