tag:blogger.com,1999:blog-53924881042106458022024-03-15T18:13:06.611-07:00ताना-बाना------ कई बार जो मन कहता है ,कहना चाहता है --उसके लिए शब्द दुर्लभ हो जाते हैं भाषा नहीं मिलती सिफर होकर भाव गुम हो जाते हैं,जो लिखा होता है,उस हर लिखे शब्द के चेहरे पर सफेदी पुत जाती है-साक्षी भी कोई नहीं होता सिवाय अपने,कुछ --मनश्चेतना की गहराई से नए सिरे से सोचती हूँ जतन से फिर लिखे को सोचती, छूती और जीती हूँ अपने लिखे को जीना ही मेरे लिए सार्थक लिखना होता है
'ताना-बाना' इसी रूप में रूबरू होता रहेगा...विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.comBlogger129125tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-15502106237657475892023-07-17T23:30:00.001-07:002023-07-17T23:30:34.618-07:00<p> अपना एमपी गज्जब है..91</p><p>मिर्च का नाम जलेबी रखा</p><p>पर न हुई वो मीठी...</p><p>अरुण दीक्षित</p><p>अक्सर कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है!आप तो काम देखो!काम से ही पहचान बनती है!फिर वो चाहे व्यक्ति हो या कोई संस्था! इन दिनों इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए एमपी में एक ऐसा उदाहरण देखने को मिल रहा है जो यह साबित कर रहा है कि नाम चाहे जो रख लो पर काम नही बदलेगा!</p><p> आप सही समझे!मैं व्यापम (व्यवसायिक परीक्षा मंडल) से कचबो (कर्मचारी चयन बोर्ड) तक सफर कर चुके सरकारी संस्थान की ही बात कर रहा हूं।पिछले एक दशक से अपने "कुकर्मों" की वजह से पूरी दुनियां में चर्चित इस संस्थान के नाम तो बदल रहे हैं पर चरित्र जस का तस है! दस साल पहले मेडिकल भर्ती परीक्षा में बड़े घोटाले की वजह से चर्चा में आया यह संस्थान अब पटवारी भर्ती में घोटाले को लेकर चर्चा में है।इसकी वजह से सरकार बैकफुट पर आ गई।मजे की बात यह है कि इस बार भी घोटाले के तार सत्तारूढ़ दल से ही जुड़े हैं!</p><p> पटवारी भर्ती घोटाले पर बात करने से पहले एक नजर इस संस्थान पर डालते हैं।1970 की बात है।तब पंडित श्यामाचरण शुक्ल मुख्यमंत्री थे।उन्होंने मेडिकल कालेजों में भर्ती के लिए होने वाली परीक्षाओं को कराने के लिए एक बोर्ड बनाया।नाम रखा गया प्री मेडिकल टेस्ट बोर्ड।यह नाम करीब 12 साल तक चला।</p><p> लगभग एक दशक बाद 1981में इसी तरह का एक बोर्ड इंजीनियरिंग परीक्षा के लिए बनाया गया।उस समय अर्जुन सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे।एक साल बाद दोनों बोर्ड का आपस में विलय करके एक नया बोर्ड बनाया गया।उसका नाम रखा गया - प्रोफेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड!हिंदी में नाम हुआ - व्यावसायिक परीक्षा मंडल।जो व्यापम नाम से मशहूर हुआ।</p><p> गठन के करीब 30 साल तक व्यापम आम सरकारी संस्थान की तरह चलता रहा।उसके भीतर क्या चल रहा है,इसके बारे में कभी कोई खास चर्चा नही हुई।इस दौरान कई सरकारें आई और गईं।किसी का ध्यान व्यापम के "चरित्र" पर नही गया।</p><p> साल 2013 ! मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान।बीजेपी की दस साल पुरानी सरकार!दस साल की कांग्रेस सरकार की कमियों के भरोसे राज्य के लोगों का भरोसा जीतती आ रही बीजेपी सरकार को व्यापम ने बड़ा झटका दिया।अचानक यह राज खुला कि व्यापम में बैठे अफसरों ने सरकार के इशारे पर बड़ा खेल किया है।एक नेटवर्क के जरिए अयोग्य छात्रों को परीक्षा में पास कराया गया।इसके लिए मोटी कीमत ली गई। इस "कीमत" में दलाल,नकली छात्र,बोर्ड के अफसर - कर्मचारी,सरकार </p><p>,निजी मेडिकल कालेजों के मालिक,बीजेपी के नेता और उनके मातृ संगठन के माननीय भी हिस्सेदार बने।</p><p> व्यापम का यह घोटाला जब खुला तो देश भर में हंगामा हुआ।राज्य सरकार कटघरे में आई।खुद मुख्यमंत्री पर कांग्रेस ने गंभीर आरोप लगाए।पहले राज्य सरकार की एटीएस ने जांच की।उसने शिवराज सरकार के मंत्री स्वर्गीय लक्ष्मीकांत शर्मा के साथ साथ व्यापम के अधिकारी पंकज त्रिवेदी,नितिन महेंद्र,अजय सेन और सी के मिश्रा को भी गिरफ्तार किया।निजी मेडिकल कालेजों के मालिक और अधिकारी भी पकड़े गए।</p><p> मामला स्थानीय अदालत से होते हुए देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंचा।उसके आदेश पर सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू की जो आज भी जारी है।</p><p> इस मामले में सैकड़ों लोग गिरफ्तार हुए।दर्जनों लोगों की संदिग्ध मौतें हुईं।आरोपों की जद में सीएम हाउस भी आया।लंबे समय तक यह मामला पूरे देश में छाया रहा।</p><p> मेडिकल भर्ती परीक्षा की जांच के दौरान यह भी पता चला कि व्यापम ने इसके अलावा और जो परीक्षाएं कराई हैं,उन सभी में घपला हुआ है।खूब हंगामा हुआ।विधानसभा में जमकर आरोप प्रत्यारोप हुए।इस दौरान कई लोगों ने अपना मुंह बंद करने की भरपूर "कीमत" वसूली तो कुछ को मुंह बंद रखने के लिए "समर्थन मूल्य" दिया गया।यह बात भी उसी दौरान सामने आई।</p><p> भारी बदनामी और हंगामे के बीच राज्य सरकार ने तमाम फसाद की जड़ बने व्यापम का नाम बदलने का ऐलान कर दिया। हिंदी की हिमायती बीजेपी की सरकार ने व्यापम के मूल अंग्रेजी नाम को ही प्रचलन में लाने का आदेश दिया।इस आदेश के बाद सरकारी अमले ने व्यापम का नाम मिटा कर हर जगह पीईबी (प्रोफेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड) लिखवा दिया।सरकारी रिकॉर्ड में व्यापम पीईबी हो गया।लेकिन लोगों की जुबान पर यह नाम नहीं चढ़ा। चढ़ता भी कैसे? खुद भोपाल नगर निगम ने अपने बस अड्डे पर बड़ा बड़ा लिखवाया - व्यापम चौराहा।</p><p> इस बीच 2018 आ गया।लोग जेल आते जाते रहे।एक लक्ष्मीकांत शर्मा को छोड़ कोई दूसरा सत्ताधारी नेता नही पकड़ा गया।अन्य दलों के भी कुछ नेता पकड़े गए।लेकिन धीरे धीरे सब छूटते रहे।जांच चालू है साथ ही वसूली भी।</p><p> 2018 में बीजेपी की सरकार चली गई।लेकिन 15 महीने बाद ही,जैसा कि आरोप कांग्रेस लगाती है, उसके कुछ विधायकों और एक बड़े नेता को मुंहमांगा "समर्थन मूल्य" बीजेपी ने फिर अपनी सरकार बना ली।शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बने।इसके बाद उन्होंने एक बार फिर व्यापम का नाम बदला।व्यापम से पीईबी बना यह संस्थान अचानक कचबो (कर्मचारी चयन बोर्ड) हो गया।2022 में व्यापम ने कचबो तक का सफर पूरा किया।</p><p> नाम तो बदल गया पर संस्थान का डीएनए नही बदला।आजकल वह फिर चर्चा में है।इस बार उस पर रेवेन्यू सिस्टम की जान माने जाने वाले पटवारियों की भर्ती में घोटाला करने का आरोप लगा है।इस घोटाले में कचबो के साथ एक बीजेपी विधायक के कालेज का भी नाम आया है।</p><p> विपक्ष ने विधानसभा में मामला उठाना चाहा तो अध्यक्ष ने अनुमति नहीं दी। 5 दिन चलने वाला विधान सभा का मानसून सत्र मात्र दो दिन में ही खत्म हो गया।इन दो दिनों में भी सिर्फ करीब ढाई घंटे ही सदन का कामकाज हुआ।सरकार के प्रवक्ता ने इस मुद्दे पर विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।उन्होंने अपनी सरकार का इतनी ताकत से बचाव किया कि ऐसा लगा जैसे विपक्ष ने ही पटवारी परीक्षा कराई हो।</p><p> लेकिन अगले ही दिन जब पूरे प्रदेश में बड़ी संख्या में बेरोजगार युवा इस घोटाले के खिलाफ सड़कों पर उतरे तो खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पटवारी भर्ती परीक्षा की जांच कराने की घोषणा की।जांच कैसे होगी और कौन करेगा यह बाद में बताया जाएगा।</p><p> कांग्रेस हमलावर है।वह सीबीआई से जांच की मांग कर रही है।उसके शीर्ष नेतृत्व ने भी पटवारी भर्ती घोटाले को उठाया है।उधर भर्ती परीक्षा में बैठे 12 लाख से भी ज्यादा युवा खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।जो चुन लिए गए हैं अब वे भी परेशान हैं। शुरुआती दौर में जो तथ्य सामने आ रहे हैं वे यह बता रहे हैं कि पटवारी भर्ती में भी जम कर लेन देन हुआ है।एक बस्ते में कालेज चलाने वालों ने मात्र कुछ लाख रुपयों की एवज में उन लोगों को "पटवारी का बस्ता"(रेवेन्यू रिकॉर्ड) थमाने की व्यवस्था कर दी जिन्हें यह भी नही मालूम कि एमपी में कितने जिले और संभाग हैं।चुनाव सिर पर हैं! इसलिए हंगामा चल रहा है।</p><p> इस हंगामे के बीच यह बात तो समझ में आई कि नाम से कुछ नही होता!जो जैसा होता है वैसा ही रहता है।व्यापम ने ही 41 साल में तीन नाम पा लिए लेकिन उसका काम वही रहा।हमारे गांव में कहावत है - मिर्च का नाम जलेबी रक्खा..पर न हुई वो मीठी! ऐसा ही कुछ व्यापम के साथ हो रहा है।अब कुछ भी हो पर एक बात पक्की है !अपना एमपी है तो गज्ज़ब!है कि नहीं!?</p><p> 18 जुलाई 2023</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-87337183588854758262023-07-10T07:40:00.000-07:002023-07-10T07:40:17.969-07:00उस दिन कितने पत्ते झड़े थे<p> #एक धुकधुकी कलेजे से उतर अक्सर उसकी हथेलियां थाम लेती है आधी रात,</p><p>फिर उसके बरअक्स रखकर खुद को सोचना</p><p>मैंने सुना है कि उसके आँगन में एक नीम का बड़ा सा पेड़ है, ठीक वैसा ही जैसा मेरे घर के आँगन में और मोड़ पे है ,जब तेज हवाएँ और आंधी चलती है, बरसात होती हैं बिजली चमकती है तो वो नींद से जाग दूर तक -------- अंधेरों में झांकता है कभी कभार -बदली से निकलते छुपते चाँद की हल्की रौशनी में नीम की पत्तियों पे पड़ी बूंदें फिसलती है ,और वो टकटक उन्हें देखा करता है ,तब उसके अंदर का वैभव चेहरे पर दमकता है ,यहाँ भी नीम की टहनियां झूमती है तब मन बेहद पीछे चला जाता है </p><p>देर रात किताबों को समेटना --मोबाईल ऑफ करना -- ठंडे पानी के घूंट भी कलेजे को नही राहत देती ,पैरों को सिकोड़ लेना फिर लिहाफ में ढँक लेना -हाथों को मोड़कर गर्दन को सिर को मुड़ी हुई बाँहों में धंसा देने के बावजूद नींद आने की कोशिशें भी कभार बेकार हो जाती है तो फिर परदों को सरका कर बाहर देखने लगना यही होता रहता है, जब तुमसे बात हुए बगैर दिन और आधी रात बीती जाती है</p><p>अक्सर बैचनियों में ऐसा होता है अपनी असहायता से तकलीफ भी होती है लेकिन फिर भी--रात गुजर जाती है---</p><p>सुबह नीम के हरे -पीले पड़े गीले पत्तों से आँगन</p><p>पट जाता है फिर नए सिरे से दिन को शुरू होना होता है</p><p>(उस दिन कितने पत्ते झड़े थे जब उस मोड़ से मुड़ते हुए देखा था तुम्हे अपने घर से--और जो</p><p> कहने से बच गया याद रह गया</p><p> जो सच में सच से ज्यादा था </p><p>नीम के मोड़ पे "-</p><p>(कुछ फुटकर नोट्स)</p><p>री पोस्ट -</p>विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-11445623486982742702023-07-10T06:27:00.000-07:002023-07-10T06:27:20.431-07:00क्या हम पशु हैं ?<p> #एक अखबार ने लिखा है ,"क्या हम पशु हैं" </p><p>घटना यूं है कि एक कार्यक्रम के दौरान सीधी जिला जनपद (मध्यप्रदेश ) में भाजपा के विधयाक प्रतिनिधि आरोपी प्रवेश शुक्ला ने फुटपाथ पर बैठे कोल आदिवासी युवक पर पेशाब कर दी ,इस घटना का वीडियो वायरल होने पर मुख्यमंत्री ने आरोपी को एन एस ए के तहत कार्रवाई के निर्देश दिए हैं ,हालांकि आरोपी भारतीय जनता युवा मोर्चे का प्रतिनिधि रह चुका है </p><p>अब आते हैं इस वाक्य पर कि "क्या हम पशु हैं" जवाब होगा नही ,लेकिन हम पशु से बद्दतर है क्योंकि किसी राह चलते या बैठे व्यक्ति पर कभी कोई पशु पेशाब नही करता, ना करी होगी </p><p> 9 अगस्त को हम विश्व आदिवासी दिवस मनाते हैं 9 अगस्त 1982 को UNO ने इसकी घोषणा की थी जिसके अंतर्गत आदिवासियों के मानवाधिकारों को लागू करने उनके संरक्षण के लिए आदिवासी दिवस मनाने की अपील की गई थी उस समय संयुक्त राष्ट्र महासभा के घोषणापत्र में अदिवासियों के अधिकारों के विषय में घोषणा की गई </p><p>इसके अनुच्छेद 7 के पैरा 2 में कहा गया है</p><p>आदिवासियों को विशिष्ट व्यक्तियों की तरह ही स्वतंत्रता शांति सुरक्षा के साथ जीने का सामूहिक / एकल अधिकार होगा और उनके प्रति किसी भी तरह का नरसंहार या हिंसक कार्यवाही नही की जा सकेगी, यह एक ऐसी घटना है जिसने सभ्य कहलाने वाले हमारे समाज पर कस कर तमाचा जड़ा है</p><p>मनोविज्ञान कहता है ऐसे व्यक्ति किसी विकृति के कारण ऐसे आचरण करते हैं ,तो सवाल है ऐसे तथाकथित सभ्य समाज में पैदा कैसे हो जाते हैं , और जनता के प्रतिनिधि तक बन जाते हैं,यदि होते हैं तो उनकी परवरिश में क्या कमी रह जाती है बहुत सारे सवाल उठ खड़े हुए हैं,क्या हम 16 वी सदी में आ खड़े हुए हैं - क्या आज़ादी के बाद हम रोटी कपड़ा मकान के आगे नही बढ़ पाये शिक्षा या उच्च शिक्षा के साथ बुनियादी शिक्षा में पिछड़ गए ,क्या कानून के लिए कानून बनाकर अपने समाज के पिछड़े दलित,गरीब कमजोर को हमने बेसहारा नही छोड़ दिया, कोई पावर फुल नेता / आदमी है क्या इन लोगों के लिए, लचर कानून और न्याय व्यवस्था के बीच लंबी खाई है,इस घटना ने साबित कर दिया है गरीबों के लिए मान सम्मान के कोई मायने नही --आप उनके लिए योजनाएँ बनायें ,उन्हें पैसा बांटे उन्हें रोटी कपड़ा और मकान दे दें ,फिर उन पर यह अमानवीय कुकृत्य करें ,शर्मनाक है यह</p><p>इस घटना के बाद में उस वीडियो को यहाँ शो करना असभ्यता समझती हूँ , आप तय करिये ऐसे नारकीय लोगों की सज़ा क्या हो, क्या उन्हें आदिवासी अधिकारों के तहत सज़ा देकर आपका कर्त्तव्य पूरा हो जायेगा ? या कोई और सज़ा होनी चाहिए ?</p>विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-17214965092428275292022-08-10T21:15:00.002-07:002022-08-10T21:20:14.564-07:00नीतीश कुमार कोई राजनीतिक त्यागी पुरुष नही है - एक विश्लेषण<p> बिहार में कंधा बदल: क्या यह मोदी बनाम नीतीश की कच्ची पटकथा है? </p><p><br /></p><p><br /></p><p>बिहार में मुख्यपमंत्री नीतीश कुमार द्वारा तीसरी बार पाला बदलने और 17 साल में छठी बार सीएम पद की शपथ लेने के पैंतरे को राजनीतिक प्रेक्षक अलग अलग नजरिए से देखने समझने की कोशिश कर रहे हैं। लालू प्रसाद यादव के जिस ‘जंगल राज’ के खिलाफ उन्होंने भाजपा से हाथ मिलाकर लड़ाई लड़ी, उन्हीं लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ दूसरी बार सरकार बनाकर वो बिहार में ‘मंगल राज’ लाने की बात कह रहे हैं। इस मायने में नीतीश ‘पलटूराम पालिटिक्स’ के यकीनन बाजीगर हैं। लेकिन बात केवल अपनी सत्ता की पालकी का कंधा बदलने तक सीमित नहीं है। कहा जा रहा है कि नीतीश अब राष्ट्रीय फलक पर किस्मत आजमाना चाहते हैं, वो उस आसमान में उड़ना चाहते हैं, जिसे उन्होंने बिहार में 2015 में भाजपा के कंधे पर बैठकर सरकार बनाकर गंवा दिया था। वरना 2013 में जिन नरेन्द्र मोदी को ‘साम्प्रदायिक’ बताकर नीतीश ने साम्प्रदायिक राजनीति के खिलाफ मोर्चा खोला था और जिसके कारण उन्हें विपक्ष का सर्वसम्मत चेहरा माना जाने लगा था, उन्हीं मोदी का नेतृत्व स्वीकार कर एक नैतिक लड़ाई वो हार गए थे। अब सात साल बाद नीतीश फिर उसी अखाड़े में खम ठोंकने की तैयारी में हैं। भले ही वो ऊपर से ना करते रहें, लेकिन भीतरी तमन्ना वही है। यहां सवाल यह है कि यदि सचमुच नीतीश 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी नेता के रूप में प्रोजेक्ट हुए तो क्या वो मोदी और भाजपा को सत्ता से बाहर कर पाएंगे? क्या इतनी ताकत, आभामंडल और जनअपील उनके पास है? क्या यह समूचा घटनाक्रम 2024 के लोकसभा चुनाव में खेले जाने वाले मोदी बनाम नीतीश कुमार नाटक की कच्ची पटकथा है? </p><p>तथ्यों और तर्कों के आईने में देखें तो ऐसा कर पाना असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल जरूर है। यहां लोकसभा चुनाव की बात इसलिए क्योंकि भाजपा के लिए बिहार का विधानसभा चुनाव जीतने से ज्यादा अहम वहां लोकसभा की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना है। बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं। विजयी सीटों की संख्या के िहसाब से देखें तो जब नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) 2014 में कांग्रेस नीत यूपीए का हिस्सा थी, उस वक्त भाजपा ने 40 में से 22 सीटें जीती थीं। उसका वोट शेयर 29.40 फीसदी था। तब भाजपानीत एनडीए में लोक जनशक्ति पार्टी और उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी शामिल थी ( अब यह पार्टी जेडीयू में शामिल हो गई है)। और इन दोनो पार्टियों ने भी क्रमश: 6 और 3 सीटें जीती थी। तीनो पार्टियों को अगर मिला लिया जाए यह वोट शेयर 38 फीसदी होता है। दूसरी तरफ आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस यूपीए के सहयोगी के रूप में लड़े थे। उन्हें क्रमश: 4 और 2, 2 सीटें मिली थीं। एक सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस ने जीती थी। इस सबका वोट शेयर 44 फीसदी होता है। यानी कुल वोट ज्यादा मिलने के बाद भी सीटें एनडीए ने चार गुना ज्यादा जीतीं। तब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे। एनडीए की जीत को मोदी लहर के रूप में पारिभाषित किया गया। </p><p>2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू साथ थे। इनके अलावा एनडीए में रामविलास पासवान की लोक जनशक्तिपार्टी भी थी। इस गठबंधन ने बिहार में विपक्ष का लगभग सफाया कर दिया था। तीनो ने कुल 39 सीटें जीत लीं। केवल एक सीट कांग्रेस को मिली। तीनो का सम्मिलित वोट शेयर 52.45 फीसदी रहा। जबकि राजद 15 फीसदी वोट लेकर भी कोई सीट नहीं जीत पाई। हालांकि सीटों और वोट शेयर के हिसाब से भाजपा को घाटा ही हुआ। उसकी पांच सीटें कम हो गईं और वोट शेयर भी 6 फीसदी घट गया। इस चुनाव की जीत भी मोदी लहर का नतीजा ही मानी गई। </p><p>अब 2024 में भाजपा अपने दम पर लड़ी तो उसे कितनी सीटें मिलेंगी, यह देखने की बात है। एनडीए में भी उसके साथ लोजपा ही रह सकती है। ऐसे में जीती हुई सीटो का आंकड़ा 20 तक पहुंचाना भी आसान नहीं है, केवल उस स्थिति को छोड़कर कि जब मोदी और भाजपा के पक्ष में कोई सुनामी चल जाए। देश के अंदरूनी हालात इसकी गवाही नहीं देते। भाजपा की चिंता यह है कि बिहार से होने वाले घाटे की पूर्ति कहां से की जाए। बंगाल में तो अब 2019 का परिणाम दोहराना भी मुश्किल है। बाकी हिंदी पट्टी में वो अधिकतम सीटें जीत ही रही है। इसमें और इजाफे की गुंजाइश नहीं है। पूर्वोत्तर में सीटें ही बहुत कम हैं। दूसरी समस्या यह है कि भाजपानीत एनडीए से तीन बड़े सहयोगी दलों के बाहर जाने के बाद गठबंधन में कहने को 18 दल बचे हैं, लेकिन इन शेष दलों की राजनीतिक हैसियत गौण है। इसलिए एनडीए व्यवहार में अब केवल भाजपा ही है। </p><p>तो क्या भाजपा और मोदी के लिए 2024 का चुनाव बिहार के ताजा घटनाक्रम के बाद ज्यादा कठिन होने वाला है? इसमें शक नहीं कि आज मोदी देश में लोकप्रियता के अपने सर्वोच्च शिखर पर हैं। अगले चुनाव में भी उनके नाम पर ही वोट पड़ेंगे। उसकी तुलना में नीतीश की लोकप्रियता का दायरा बिहार तक सीमित है। जहां तक जन नेता होने की बात है तो नीतीश लोकसभा तो दूर बिहार विधानसभा का चुनाव भी कभी अपने दम पर नहीं जीत सके हैं। हर वक्त उन्हें कोई न कोई सहारा चाहिए होता है। ऐसे में विपक्ष ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें प्रोजेक्ट कर भी िदया तो वो अपने दम पर कितने वोट खींच पाएंगे,यह बड़ा सवाल है। यूं नीतीश ने अपनी छवि समन्वयवादी जरूर बना रखी है, लेकिन वो कोई धुरंधर वक्ता भी नहीं हैं। बिहार के बाहर उन्हें लोग कितना स्वीकार करेंगे, कहना मुश्किल है। </p><p>तो फिर वो यह बात किस भरोसे से कह रहे हैं जो 2014 में आए, वो 2024 में न आ पाएं। यह केवल उनका सपना है या हकीकत का पूर्वाभास? ऐसा केवल एक ही स्थिति में संभव है कि देश का समूचा विपक्ष अपने मतभेदों और अहम को भुलाकर लोकसभा चुनाव में एक हो जाए, उनमें सीट शेयरिंग भी सहजता हो जाए, देश तथा लोकतंत्र को बचाने का एकमात्र एजेंडा बन जाए और जनता के गले यह बात उतारने में कामयाबी मिल जाए कि मोदी-शाह के नेतृत्व में देश सुरक्षित नहीं है, तब ही बड़ी सफलता की उम्मीद है। इस तर्क में दम इसलिए भी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने 303 सीटें जीत कर अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था, तब भी उसे 37.36 प्रतिशत वोट ही मिले थे, यानी बाकी 62.64 फीसदी वोट विपक्षी दलों में बंट गए थे। अगर विपक्षी वोट नहीं बंटे तो भाजपा को सत्ता में आने के लिए अपना वोट प्रतिशत 50 प्रतिशत तक ले जाना होगा। यह आसान नहीं है। हालांकि यह कागजी गणित है। व्यवहार में ऐसा ही हो जरूरी नहीं है। </p><p>इस देश में विपक्षी एकता का एक महाप्रयोग इमर्जेंसी के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में हुआ था, जब तकरीबन समूचा विपक्ष एक हो गया था और तबकी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस और श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव में वन-टू- वन लड़ाई हुई थी। उसमें कांग्रेस पश्चिमोत्तर भारत में साफ हो गई थी। फिर भी दक्षिण में वो पूरी ताकत से जिंदा रही थी। यानी देश का मन तब भी विभाजित था। आने वाले चुनाव में विपक्ष भी नीतीश के नेतृत्व में अपने वजूद को बचाने एक हो सकता है, लेकिन भाजपा के खिलाफ वन-टू-वन मुकाबला बनाने के लिए राजनीतिक जिगरा और त्याग चाहिए। अभी तो यह भी तय नहीं है कि विपक्ष में नेतृत्व का ध्वजदंड किसके हाथ में होगा। राहुल गांधी, नीतीश कुमार या ममता बनर्जी या फिर और कोई। </p><p>जहां तक गठबंधन राजनीति की बात है तो भाजपा अब उस दौर में पहुंच गई हैं, जहां कभी कांग्रेस हुआ करती थी। वह अब सत्ता में शेयरिंग नहीं चाहती। इसके फायदे और नुकसान दोनो हैं। भाजपा यह चाहे कि देश का हर दल और हर व्यक्ति और दल राष्ट्रवादी हो जाए और उसी की तरह सोचने लगे तो यह संभव नहीं है। लेकिन विपक्षी दल अपने राजनीतिक आग्रहों और सुविधा के अनुसार कट्टी-बट्टी करते रहें तो इससे भी उन्हें कुछ ज्यादा हासिल नहीं होने वाला। जाहिर है कि राष्ट्रीय फलक पर नीतीश के लिए चमकना बेहद कठिन है। अगर वो प्रधानमंत्री बन सके तो यह चमत्कार ही होगा। </p><p>जहां तक बिहार की बात है तो भाजपा वहां अब लगभग अकेली है। अपनी ताकत बढ़ाने के लिए वो अब साम्प्रदायिक कार्ड खुलकर खेलेगी। हालांकि बिहार में इस कार्ड का चलना कठिन इसलिए है, क्योंकि बिहार का राजनीतिक चरित्र अलग तरह का है, ठीक वैसे ही कि जैसे बंगाल का है। बिहार में राष्ट्रीय मुद्दे भी जातिवाद के रैपर में ही चलते हैं। जातीय और क्षेत्रीय अस्मिता के आग्रह के आगे राष्ट्रवाद और हिंदू एकतावाद पानी भरने लगता है। दरअसल बिहार में सत्ता पार्टी या व्यक्ति के हाथ में नहीं आती, परोक्ष रूप से वह जाति या जातियों के हाथों में आती है। इस जातीय गोलबंदी को तोड़ना भाजपा के लिए अभी भी आसान नहीं है, क्योंकि उसके पास राज्य में नीतीश के कद का कोई नेता भी नहीं है। ऐसा नेता तैयार करने में भी वक्त लगेगा। </p><p>कुछ नीतीश कुमार के ताजा फैसले को देश में विपक्ष के पुनर्जन्म के रूप में देख रहे हैं। यह अति आशावाद भी हो सकता है। भाजपा गठबंधन में अपनी सहयोगी पार्टियों की जड़े खोदने का काम करती है, यह आरोप सही हो तो भी भाजपा और आरएसएस एक साथ कई मोर्चों पर काम करते हैं, यह भी समझना होगा। सारी विपक्षी पार्टियां अपने राजनीतिक हितों को दांव पर लगाकर नीतीश के पीछे बिना शर्त खड़ी हो जाएं, तो भी यह काफी मुश्किल है। यह तभी संभव है जब देश की बहुसंख्यक जनता मोदी-शाह की रणनीति और भाजपा की राजनीति से ऊब जाए। इसके कोई आसार अभी तो नहीं दिख रहे। अलबत्ता नीतीश का यूपीए में लौटना अल्पसंख्यक वोटों में राहत का सबब जरूर होगा। </p><p>यूं नीतीश कुमार के लिए भी अब बिहार में सात पहियों वाली सरकार चलाना आसान नहीं होगा। क्योंकि महाराष्ट्र में तीन पहियों वाली सरकार ही ढाई साल मुश्किल से चल पाई। क्योंकि नीतीश समाजवादी भले हों, लेकिन राजनीतिक त्यागी पुरूष कदापि नहीं है। उनका मन कब किस से ऊब जाए, कहा नहीं जा सकता। मोदी के खिलाफ भी वो उसी स्थिति में खम ठोकेंगे, जब उन्हे पक्का यकीन हो जाएगा कि प्रधानमंत्री की कुर्सी उनका ही इंतजार कर रही है, वरना पटना में मुख्यमंत्री की धुनी रमी हुई है ही, वक्त जरूरत के हिसाब से कंधा बदलने में कोई दिक्कत नहीं है न नैतिक और न ही राजनीतिक। </p><p>वरिष्ठ संपादक अजय बोकिल की कलम से</p><p>‘राइट क्लिक’</p><p><br /></p>विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-83870118486342887302022-04-30T21:17:00.003-07:002022-04-30T21:17:36.304-07:00संघ का एजेंडा, मध्यप्रदेश सरकार के लिए<p> *सरकार और संगठन के काम से नाखुश संघ, MP BJP को दी चेतावनी, गलतियां नहीं सुधारी तो सत्ता से हाथ धोना पड़ सकता है*</p><p><br /></p><p>भोपाल। भाजपा के साथ आरएसएस भी चुनावी मोड में आ गया है. मिशन 2023 की रणनीति को लेकर मप्र की भाजपा सरकार से संघ ने दो टूक कह दिया है कि नहीं सुधरे तो सत्ता से हाथ धो दोगे. संघ ने यह चेतावनी सरकार और संगठन के काम से नाखुश होकर दी है. संघ ने कहा है कि गलतियां नहीं सुधारी तो हाल 2018 की तरह हो सकता है. </p><p><br /></p><p>संघ की बैठक में निकला निचोड़ : संघ की नजर में एमपी में फिलहाल प्रभावी ट्राइबल नेतृत्व की कमी है. खिसकते जनाधार का यह एक प्रमुख कारण माना गया है. जिस पर चिंता भी जताई गई है आदिवासियों को लुभाने की योजना के क्रियान्वयन का खाका सरकार ने संघ को दिया, लेकिन संघ की रिपोर्ट में देखा गया कि सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं. संगठन के मुताबिक आदिवासी बाहुल्य इलाके में नेता रुचि नहीं दिखा रहे हैं. इसे देखते हुए संघ ने साफ कहा है कि बीजेपी के नेता 2018 जैसी गलतियां फिर न दोहराएं. </p><p><br /></p><p>सीएम शिवराज और वीडी शर्मा ने पेश किया था रिपोर्ट कार्ड: </p><p><br /></p><p>दिल्ली में हुई बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने सत्ता-संगठन का रिपोर्ट कार्ड पेश किया. प्रेजेंटेशन के बाद संघ ने यह भी प्लान मांगा कि सरकार आने वाले दिनों क्या करने जा रही है. इसके अलावा संगठन से भी उसकी तैयारियों को लेकर पूछताछ की गई.</p><p><br /></p><p>संघ ने बताया अपना एजेंडा: संघ ने सरकार को एजेंडा बताकर काम पर फोकस करने की सलाह दी है. संघ ने प्रदेश के नेताओं को युवाओं पर फोकस करने के लिए कहा है. संघ के मुताबिक ढाई करोड़ युवाओं पर फोकस करने के साथ सोशल मीडिया और आईटी का काम सुधारने की भी बात कही है. संघ कि चिंता इस बात को लेकर भी है कि सत्ता और संगठन के बीच समन्वय की कमी है. जिस तरह से मंत्रियों की आपसी खींचतान और मुख्यमंत्री के साथ कई मंत्रियों का आपसी मनमुटाव की बातें सीधे तौर पर जनता के बीच जा रही हैं, विपक्ष इसका फायदा उठा सकता है</p>विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-35199091888850013902020-06-08T10:01:00.000-07:002020-06-08T10:03:25.966-07:00पहले से अधिक संपन्नता से छिपते हैं तुम्हारे मौन के शब्द<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjF-hAwl-wwAm-iXmBkewIeAdfi-zetPuKaiKdZ4a3ci3iu4YM3gvdaHD19LjuzUpK0_-rRQuVhAJ1-EjbLCSJxLAtcsLtukjeGYmTVze9zJVo0MtjGVo2438nxNdIyzzmWbBaigC3U0Nc/s1600/FB_IMG_1591621092710.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1063" data-original-width="1080" height="314" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjF-hAwl-wwAm-iXmBkewIeAdfi-zetPuKaiKdZ4a3ci3iu4YM3gvdaHD19LjuzUpK0_-rRQuVhAJ1-EjbLCSJxLAtcsLtukjeGYmTVze9zJVo0MtjGVo2438nxNdIyzzmWbBaigC3U0Nc/s320/FB_IMG_1591621092710.jpg" width="320" /></a></div>
<br /></div>
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<div class="mail-message-content collapsible zoom-normal mail-show-images " style="margin: 16px 0px; overflow-wrap: break-word; width: 328px;">
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#पहले से अधिक शब्दों के बीच,</div>
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संपन्नता से छुपते हैं ,</div>
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केसरिया धब्बों की तरह तुम्हारे मौन के शब्द</div>
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मेरे मौन में--लेकिन</div>
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देर तक रहते हैं देह में,देह की धमनियों में बजते से</div>
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देर से अँधेरा है,यहाँ </div>
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दूर तक बिजली/रौशनी नही</div>
<div dir="auto">
जिसने यकायक पहुंचा दिया है,</div>
<div dir="auto">
इस गोपन आत्मा को, तुम तक </div>
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और मैंने अभी अभी रोना स्थगित कर </div>
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दौड़ के अंतिम लक्ष्य तक,</div>
<div dir="auto">
बूँद भर से राफ्फू गिराई की महा समुद्र की</div>
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मुठ्ठी में भर लिया ब्रह्मांड,को</div>
<div dir="auto">
सोचा --</div>
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कब से मिलना नही हुआ तुमसे,</div>
<div dir="auto">
कितने लंबे समय से,नही देखा तुम्हे</div>
<div dir="auto">
इस लेखे को भी फाड़ दिया आज रत्ती रत्ती,</div>
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बहुत तपने के बाद हुई आज बारिश में</div>
<div dir="auto">
मौलश्री के वृक्षों का रंग गहरा हरा है आज </div>
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सड़के काली नदी सी, जिन पर</div>
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मेरी राह ठुमकती है ,तुम तक आने को</div>
<div dir="auto">
रक रसता की ऊब से उठकर</div>
<div dir="auto">
एक मौलश्री का पेड़ उग आता है मेरी नाभि तक</div>
<div dir="auto">
कालसर्प योग से छीजती देह में -</div>
<div dir="auto">
एक फूल धंसता है नाभि तक </div>
<div dir="auto">
और सारी देह आहिस्ता से मौलश्री के गोल छोटे तेज फूलों की खुशबू से भर उठती है</div>
<div dir="auto">
जानते हो बिछुड़ कर जीने का संघर्ष कैसा होता है</div>
<div dir="auto">
इसे लिखकर नही बताया जा सकता</div>
<div dir="auto">
बस दौड़कर आतुरता में </div>
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जीती हूँ ,ठहरकर</div>
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खुश्बू से तरबतर,तुम्हारे लिए</div>
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सोचने से ना बचते हुए</div>
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अनंत तक ,इस अँधेरे में रात -बिरात</div>
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जानते हो ना मौलश्री का एक बोन्साई भी तो है मेरे पास</div>
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इस बार सहेज लूंगी कुछ फूल तुम्हारे लिए</div>
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( बुकुल की याद में *बकुल मौलश्री के फूल का नाम )</div>
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विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-43399941287249905382018-06-15T03:47:00.000-07:002018-06-15T03:47:21.021-07:00 ,हर स्त्री के भीतर उपजा एक नायक होता है ,मन का साथी,वो आपकी काबलियत और इच्छानुसार ही व्यवहार करता है मेरा सनातन अमर नायक है ,मेरे ब्लॉग की हर पोस्ट का जो मुझे अज्ञात सुख देता है और इस भौतिक दुनिया का कोई सशरीर मनुष्य किसी स्त्री के मन का साथी नही हो सकता ,शरीर से एक स्त्री को गुलाम बना लेने वाला नायक कैसे हो सकता है, में स्वप्नजीवी हूँ और मेरी खुशी इस दुनियावी लोगों से बिलकुल अलग है ,तुम ध्यान से पढ़ोगी तो पहाड़ से मेरा नाता प्रेम का है --आत्मिक प्रेम दैहिक से कितना अलग है, जिसमे इस दुनिया का कोई प्रपंच नही, जब करोगी तो जानोगी, बाकि सब झूट है ---तो पुरूष पति किस चिड़िया का नाम है,तुम्हे इस प्रेम में पति /साथी का ना होना अखर रहा है ,तो जान लो पति को दोस्त बना लेना आसान नहीं है ,और हद्द दर्ज़े तक में ऐसा कर भी पाई हूँ फिर भी मेरे सपनो से छेड़ छाड़ का अधिकार मैंने नहीं दिया उन्हें --मेरा अपना स्पेस है स्त्री होने के नाते ,मुझे पत्नी या जीवन साथी की फ्रेम से बाहर निकाल कर देखो --तुम कहती हो तुमने प्रेम किया ,इस दुनिया में एकाध ही अभागा मनुष्य हुआ होगा जिसे प्रेम नहीं मिला होगा मानती हूँ पर प्रेम को आत्मिक और मानसिक स्तर जीना ये ताक़त सबको नहीं मिलती -मेरे घर में हम दो स्वतंत्र प्राणी है में पति को अपने दोस्तों पर नहीं लादती ना वो ऐसा करते हैं समय समय पर परिवार के फोटो शेयर करना अच्छा होता है ,हाँ में स्वतंत्र हूँ अपनी बात अपनी फोटो शेयर करने को ---और कौनसा पति होगा जो हफ्ते भर जब बाहर आफिस बाजार को निकलो तो बड़े प्यार से पत्नी की फोटो खींच दे --वरना कितनी सेल्फियों वाली दोस्त हैं यहाँ -मेरे तो पासवर्ड भी साझा हैं --सही पत्नी के क्या मायने --मेरा ए टी एम् हसबेंड के पास है --मुझे कभी किसी चीज के लिए मन नहीं मारना पड़ता जब जो चाहिए मिल जाता है और ये स्वतंत्रता मैंने कमाई है --स्वतंत्रता कामना हंसी खेल नहीं है कोई किसी को चाहे --और पति प्राणी के लिए कितने रात और दिन उसके परिवार के लिए तन मन से झोंके होंगे तुम जान नहीं सकती -गृहस्थी का पहाड़ अटल रखते हुए --तो अब आकर इस मुकाम पर हूँ जिंदगी क्या इतने लेखक लेखिकाएं हैं जिनके दर्ज़नो उपन्यास कहानियां होती हैं सबके वो नायक नायिका होते हैं ,अजब है तुम्हारी बात में फिर कहती हूँ किसी स्त्री का पति उसके भीतर का नायक नहीं हो सकता जो ऐसा कहती हैं वो झूटी हैं --हाँ साथी आपकी प्रेरणा हो सकता है मेरे ब्लॉग में ,ज़ेब्रा क्रॉसिंग ,एक लम्बी कहानी है 5 किश्तों में--उसका नायक सनातन दुनियावी प्रेमी है ---मेरी जन्म कुंडली में लिखा है एक दिन में सन्यासिनी हो जाउंगी ---शायद पहाड़ की ये दूसरी यात्रा ,पहली उत्तराखंड की थी --तीसरी बार उस संन्यास की शायद लौ जग जाए मेरे प्रिय लेखक नरेश मेहता कहते हैं --मनुष्य भोगता व्यक्ति की भांति है मगर अभिव्यक्ति कलाकार की भांति करता है , और लेखक को हर हाल अपने इसी अच्युत पद की रक्षा करना पढ़ता है, मुझे नही समझ आता , पति को कैसे अपने लेखन में ले आऊं प्रेम और कर्तव्य एक ही मुहाने पर है जिसे लिखती हूँ उसे जीती हूँ, और जिसे नही लिखती उसके लिए दिन रात बरस दर बरस जिए हैं ,वो तो भीतर है उसके लिए भीतर क्या है ये बताना लिखना छिछलापन है ,उसके दुख सुख के लिए भीतर माँ बहन बेटी दोस्त प्रेमिका एक साथ है, और मेरे ड्रीम नायक सनातन के लिए में अकेली पिछले साल पति को डेथ बेड से बचा लाई जब डॉ जवाब दे चुके थे तब मेरे भीतर के सनातन ने ही मुझे स्ट्रेंथ दी --मैंने उससे कहाथा क्या ईश्वर मुझसे मेरे साथी को छीन कर मुझे भिखारी बना देगा --तब सनातन ने ही कहा नहीं, मेरे पेड़ पौधों ने कहा नहीं -दिल ने कहा नहीं और आज में धनवान हूँ - तो डियर असल जिंदगी से अलग स्वप्न सनातन है ,कहीं ज़िंदा भी तो क्या में उससे मिल पाऊँगी नहीं जानती अगर मिली तो मेरा प्रेम दुगुना ही होगा जानती हूँ इस भीतरी प्रेम के बदौलत ही मेरे साथ ,मेरे आस पास इतनी ख़ूबसूरती है ,एक इनर ताक़त है जो मुझे झूट बोलने से हमेशा रोकती रही है --तो मेरा प्रेम गलत दिशा में कहाँ ---में रास्ते चलते जमीन पर पड़े पत्ते में भी ख़ूबसूरती देख लेती हूँ --लोग भोपाल आते हैं मुझसे मिलना चाहते हैं --जो मिलकर गए उनसे पूछो -मैंने कभी नहीं कहा मेरे पास समय नहीं --मुझे जो ईश्वर ने दिया है ,मुझे गर्व है और माँ की कुछ सीखें सौगाते हैं क्या में खूबसूरत हूँ नहीं ,बहुत नहीं साधारण स्त्री हूँ लेकिन में खूबसूरत होने के मायने जानती हूँ -ख़ूबसूरती से जीती हूँ मेरा मूलस्वर प्रेम है जिसके भीतर दुःख है और दुःख ही मेरी दूसरी ताक़त है जिससे में इस फरेबी दुनिया को जान पाती हूँ -उनसे निबटने उपाय जानती हूँ -किसी का मोहताज़ नहीं रक्खा मुझे ईश्वर ने -मेरी हर बात हर दुआ कबूल की लेकिन उसके पहले मेरी परीक्षा भी ली --क्या में कम उम्र युवती हूँ ,जो छल कपट नहीं जानती होंगी --पर बात यही है कि पास आकर झूट कपट भी मुझसे दूर भाग जाते हैं। तो शुक्रगुजार हूँ नेचर की जो मुझे बुरे लोगों से बचाय रखता है -मेरी दिशा को प्रेम की और बढ़ाये रखता है जब में दुबई गई थी तो जो पॉयलट उड़ाकर कर ले गया था उसका नाम मुस्तफा था , मैंने उस पर एक पोस्ट लिखी थी जिससे में ना तब ना आज तक मिली, तब भी वो मेरा नायक था, भीतर बुद्धत्व का उपजना क्या होता है नही जानती मगर अभिनेता गुरुदत्त मेरे ड्रीम नायक हैं ,तो जंगल भी तो पहाड़ भी तो--- पत्रकारिता में संघर्ष गृहस्थी बच्ची लेखन परिवार माँ पिता के बिना का जीवन क्या आसान होगा - स्त्री का व्यवहार ही उसका हथियार होता है --जिस आधार पर वो जीतती या हारती है --- ये लिखना क्या यूं ही है , मेरे पति की क्वालिटी 10 %पुरुष में भी ना होगी, और उन जैसी जिद्द भी नही ,एक जिंदगी बतौर मेरे मानवीय मनुष्य होने के नाते इन सबसे परे हैं ----मेरा स्त्री होना ही शुभ है सार्थक है --हर नजरिये से ,समझती हूँ --जिनमें अधिसंख्य पुरुष मित्र पति और मेरे साझे हैं जिन्होंने हमेशा मुझे आदर सम्मान प्रेम दिया --- मेरे प्रेम को में खिचड़ी बनाने से परहेज रखती हूं ,और उसकी नजर उतारती हूँ इतवार की शुभकामनाएं तुम्हे इस पोस्ट पर हार्दिक स्वागत है उन पुरुष स्त्री मित्रों का जो मेरी बात से सहमत भी हैं और उसे विस्तार भी दे सकें <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-family: inherit; font-size: 13px; line-height: 16px;"><span style="color: #1d2129;"> ,</span><i><span style="color: red;">हर स्त्री के भीतर उपजा एक नायक होता है ,मन का साथी,वो आपकी काबलियत और इच्छानुसार ही व्यवहार करता है मेरा सनातन अमर नायक है ,मेरे ब्लॉग की हर पोस्ट का जो मुझे अज्ञात सुख देता है और इस भौतिक दुनिया का कोई सशरीर मनुष्य किसी स्त्री के मन का साथी नही हो सकता ,शरीर से एक स्त्री को गुलाम बना लेने वाला नायक कैसे हो सकता है, में स्</span></i></span><span style="font-family: inherit; font-size: 13px; line-height: 16px;"><i><span style="color: red;">वप्नजीवी हूँ और मेरी खुशी इस दुनियावी लोगों से बिलकुल अलग है ,तुम ध्यान से पढ़ोगी तो पहाड़ से मेरा नाता प्रेम का है --आत्मिक प्रेम दैहिक से कितना अलग है, जिसमे इस दुनिया का कोई प्रपंच नही, जब करोगी तो जानोगी, बाकि सब झूट है</span></i><span style="color: #1d2129;"> ---तो पुरूष पति किस चिड़िया का नाम है,तुम्हे इस प्रेम में पति /साथी का ना होना अखर रहा है ,तो जान लो पति को दोस्त बना लेना आसान नहीं है ,और हद्द दर्ज़े तक में ऐसा कर भी पाई हूँ फिर भी मेरे सपनो से छेड़ छाड़ का अधिकार मैंने नहीं दिया उन्हें --मेरा अपना स्पेस है स्त्री होने के नाते ,मुझे पत्नी या जीवन साथी की फ्रेम से बाहर निकाल कर देखो --तुम कहती हो तुमने प्रेम किया ,इस दुनिया में एकाध ही अभागा मनुष्य हुआ होगा जिसे प्रेम नहीं मिला होगा मानती हूँ पर प्रेम को आत्मिक और मानसिक स्तर जीना ये ताक़त सबको नहीं मिलती -मेरे घर में हम दो स्वतंत्र प्राणी है में पति को अपने दोस्तों पर नहीं लादती ना वो ऐसा करते हैं समय समय पर परिवार के फोटो शेयर करना अच्छा होता है ,हाँ में स्वतंत्र हूँ अपनी बात अपनी फोटो शेयर करने को ---और कौनसा पति होगा जो हफ्ते भर जब बाहर आफिस बाजार को निकलो तो बड़े प्यार से पत्नी की फोटो खींच दे --वरना कितनी सेल्फियों वाली दोस्त हैं यहाँ -मेरे तो पासवर्ड भी साझा हैं --सही पत्नी के क्या मायने --मेरा ए टी एम् हसबेंड के पास है --मुझे कभी किसी चीज के लिए मन नहीं मारना पड़ता जब जो चाहिए मिल जाता है और ये स्वतंत्रता मैंने कमाई है --स्वतंत्रता कामना हंसी खेल नहीं है कोई किसी को चाहे --और पति प्राणी के लिए कितने रात और दिन उसके परिवार के लिए तन मन से झोंके होंगे तुम जान नहीं सकती -गृहस्थी का पहाड़ अटल रखते हुए --तो अब आकर इस मुकाम पर हूँ जिंदगी क्या इतने लेखक लेखिकाएं हैं जिनके दर्ज़नो उपन्यास कहानियां होती हैं सबके वो नायक नायिका होते हैं ,अजब है तुम्हारी बात में फिर कहती हूँ किसी स्त्री का पति उसके भीतर का नायक नहीं हो सकता जो ऐसा कहती हैं वो झूटी हैं --हाँ साथी आपकी प्रेरणा हो सकता है मेरे ब्लॉग में ,ज़ेब्रा क्रॉसिंग ,एक लम्बी कहानी है 5 किश्तों में--उसका नायक सनातन दुनियावी प्रेमी है ---मेरी जन्म कुंडली में लिखा है एक दिन में सन्यासिनी हो जाउंगी ---शायद पहाड़ की ये दूसरी यात्रा ,पहली उत्तराखंड की थी --तीसरी बार उस संन्यास की शायद लौ जग जाए </span></span><br />
<div style="font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.5px;">
<div style="color: #222222;">
<span style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 16px;"><span style="font-family: inherit;">मेरे प्रिय लेखक नरेश मेहता कहते हैं --मनुष्य भोगता व्यक्ति की भांति है मगर अभिव्यक्ति कलाकार की भांति करता है , और लेखक को हर हाल अपने इसी अच्युत पद की रक्षा करना पढ़ता है,</span><br /><span style="font-family: inherit;">मुझे नही समझ आता , पति को कैसे अपने लेखन में ले आऊं प्रेम और कर्तव्य एक ही मुहाने पर है जिसे लिखती हूँ उसे जीती हूँ, और जिसे नही लिखती उसके लिए दिन रात बरस दर बरस जिए हैं ,वो तो भीतर है उसके लिए भीतर क्या है ये बताना लिखना छिछलापन है ,उसके दुख सुख के लिए भीतर माँ बहन बेटी दोस्त प्रेमिका एक साथ है, </span></span><span style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 16px;">और मेरे ड्रीम नायक सनातन के लिए में अकेली</span><span style="color: #1d2129; font-family: inherit; line-height: 16px;"> पिछले साल पति को डेथ बेड </span><span style="color: #1d2129; font-family: inherit; line-height: 16px;"> से बचा लाई जब डॉ जवाब दे चुके थे तब मेरे भीतर के सनातन ने ही मुझे स्ट्रेंथ दी --मैंने उससे कहाथा क्या ईश्वर मुझसे मेरे साथी को छीन कर मुझे भिखारी बना देगा --तब सनातन ने ही कहा नहीं, मेरे पेड़ पौधों ने कहा नहीं -दिल ने कहा नहीं और आज में धनवान हूँ -</span></div>
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<span style="font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 16px;"><span style="font-family: inherit;"><b><span style="color: blue;">तो डियर असल जिंदगी से अलग स्वप्न सनातन है ,कहीं ज़िंदा भी तो क्या में उससे मिल पाऊँगी नहीं जानती अगर मिली तो मेरा प्रेम दुगुना ही होगा जानती हूँ इस भीतरी प्रेम के बदौलत ही मेरे साथ ,मेरे आस पास इतनी ख़ूबसूरती है ,एक इनर ताक़त है जो मुझे झूट बोलने से हमेशा रोकती रही है --तो मेरा प्रेम गलत दिशा में कहाँ ---में रास्ते चलते जमीन पर पड़े पत्ते में भी ख़ूबसूरती देख लेती हूँ --लोग भोपाल आते हैं मुझसे मिलना चाहते हैं --जो मिलकर गए उनसे पूछो -मैंने कभी नहीं कहा मेरे पास समय नहीं --मुझे जो ईश्वर ने दिया है ,मुझे गर्व है और माँ की कुछ सीखें सौगाते हैं क्या में खूबसूरत हूँ नहीं ,बहुत नहीं साधारण स्त्री हूँ लेकिन में खूबसूरत होने के मायने जानती हूँ -ख़ूबसूरती से जीती हूँ मेरा मूलस्वर प्रेम है जिसके भीतर दुःख है और दुःख ही मेरी दूसरी ताक़त है जिससे में इस फरेबी दुनिया को जान पाती हूँ -उनसे निबटने उपाय जानती हूँ -किसी का मोहताज़ नहीं रक्खा मुझे ईश्वर ने -मेरी हर बात हर दुआ कबूल की लेकिन उसके पहले मेरी परीक्षा भी ली --क्या में कम उम्र युवती हूँ ,जो छल कपट नहीं जानती होंगी --पर बात यही है कि पास आकर झूट कपट भी मुझसे दूर भाग जाते हैं। तो शुक्रगुजार हूँ नेचर की जो मुझे बुरे लोगों से बचाय रखता है -मेरी दिशा को प्रेम की और बढ़ाये रखता है </span></b></span><br /><span style="color: #1d2129; font-family: inherit;">जब में दुबई गई थी तो जो पॉयलट उड़ाकर कर ले गया था उसका नाम मुस्तफा था , मैंने उस पर एक पोस्ट लिखी थी जिससे में ना तब ना आज तक मिली, तब भी वो मेरा नायक था, भीतर बुद्धत्व का उपजना क्या होता है नही जानती मगर अभिनेता गुरुदत्त मेरे ड्रीम नायक हैं ,तो जंगल भी तो पहाड़ भी तो---</span></span></div>
<div style="color: #222222;">
<span style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 16px;">पत्रकारिता में संघर्ष गृहस्थी बच्ची लेखन परिवार माँ पिता के बिना का जीवन क्या आसान होगा - स्त्री का व्यवहार ही उसका हथियार होता है --जिस आधार पर वो जीतती या हारती है ---<br /><span style="font-family: inherit;">ये लिखना क्या यूं ही है , मेरे पति की क्वालिटी 10 %पुरुष में भी ना होगी, और उन जैसी जिद्द भी नही ,एक जिंदगी बतौर मेरे मानवीय मनुष्य होने के नाते इन सबसे परे हैं ----मेरा स्त्री होना ही शुभ है सार्थक है --हर नजरिये से ,समझती हूँ --जिनमें अधिसंख्य पुरुष मित्र पति और मेरे साझे हैं जिन्होंने हमेशा मुझे आदर सम्मान प्रेम दिया ---</span><br /><span style="font-family: inherit;">मेरे प्रेम को में खिचड़ी बनाने से परहेज रखती हूं ,और उसकी नजर उतारती हूँ </span><br /><span style="font-family: inherit;">इतवार की शुभकामनाएं तुम्हे<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiD-Vz4VeXP10gkwZywIg0v9UgXjt_QS097VP8WSvwU4OWnQsYQ1BMOIWe7BSMNrgNG9OaGnBUBJ4R0OrGjUkzH9lHhwvVYaJJ-I-4sMNTqMxojUPqFTZASyNnFlgykcR124Qbkd_2mTfo/s1600/FB_IMG_1490090019043maandoo.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="405" data-original-width="720" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiD-Vz4VeXP10gkwZywIg0v9UgXjt_QS097VP8WSvwU4OWnQsYQ1BMOIWe7BSMNrgNG9OaGnBUBJ4R0OrGjUkzH9lHhwvVYaJJ-I-4sMNTqMxojUPqFTZASyNnFlgykcR124Qbkd_2mTfo/s320/FB_IMG_1490090019043maandoo.jpg" width="320" /></a></div>
</span></span></div>
</div>
<div style="font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.5px;">
<span style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 16px;"> </span><span style="font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 16px;"><span style="color: lime;">इस पोस्ट पर हार्दिक स्वागत है उन पुरुष स्त्री मित्रों का जो मेरी बात से सहमत भी हैं और उसे विस्तार भी दे सकें </span></span></div>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-43332504028400508322018-06-09T10:47:00.000-07:002018-06-09T10:49:11.702-07:00इस अभेद में भेद को जान लेना तुम, पहाड़ों पर बारिशों के बाद जब कांस के फूल खिलेंगे तुम खुश होना-<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: blue;">मैंने तय किये थे रास्ते और उन रास्तों पर सोचा था तुम्हे ,जिनसे होकर तुम गुजरे होंगे ,सोचती हूँ तय तो था तुमसे बिछुड़ना भी बिना मिले ही ---उन घुमाव दार सड़कों की स्मृतियों में ,उनके हर मोड़ पर ठन्डे पहाड़ों की निर्मल गुनगुन थी कौन सुनता होगा जिन्हे पहाड़ सुनना/सुनाना चाहे उसे ही ना ?जो सुनना चाहे --तब लौटना, लौटना नहीं था लेकिन पीछे मुड़कर देखना सच था पहाड़ मुस्कुराते हुए बिना चले ही साथ चल पड़े थे दूर तक ,बिदा देते से -समूचे पहाड़ आँखों में भर लाई हूँ ---अब लौटी हूँ तो रोना चाहती हूँ</span> ,कितने शिकवे थे इस दुनियावी लोगों के ,--इस तपते शहर के सुर्खरू गुलमोहर मुँह चिढ़ाते हैं ,कहते हैं तुम लौट आई --रोका नहीं तुम्हे किसी ने तुमसे अनुनय नहीं की ?किसी ने ----क्या कहती इन सर चढ़े गुलमोहर से --सनातन जिंदगी कम मौके देती है मनमुताबिक जीने के, एक की लापरवाही दूसरे के दुःख का सबब बन जाती है अनजाने ,तय था ये सब भी जिसे तय किया था किसी ओर पल ने --उस शाम वेज लजीज मोमोज़ खाते बारिश हुई --और भीग गई उसी सड़क पर जिसका नाम मुझे बाद में पता चला ,तुम्हारी ताक़ीद को सुना था,जानते हो सालों से एक सफ़ेद ट्रांसपेरेंट छाता खरीदना तय था--हर बारिश में सफेद छाता ढूँढ़ते जाने कितने हरे नील पीले छाते इकठ्ठा होते गए नीली पीली स्मृतियों संग --सफेद छाता उस दिन भी नहीं मिला, मिलता तो बारिश बादल एक साथ देख लेती ऊपर सर उठाकर ---फिर एक बमुश्किल हरा छाता पसंद आया --जो उस दिन जाने कितनी ह्री पहाड़ी यादों संग बारिश से भर गया --सोचती तो हूँ सोचने से ही इच्छाएं पूरी हो जाती तो ?--पर नहीं जो इच्छाएं पूरी नहीं होती दुःख देती हैं ---जानते हो ना दुःख अलाव है हरदम जलाता है,जिस होटल में रुकी थी वहां विंडो कर्टेंस एकदम नीरस रूखे बूढ़े भूरे रंग के थे उन्हें देखना गवारा नहीं था क पल भी , तो बस जब तक वहाँ होती पीछे बालकनी से पहाड़ की ऊंचाई में बसी घनी हरियाली गर्म कॉफी की प्याली हाथ लिए निहारती रहती ,मेरा बस चलता तो आकाश की नीलाई और पहाड़ों की हरियाली खींच लाती और पर्दों पर स्प्रेड कर देती --<br />
<div>
अ<span style="color: #38761d;">ब लौटकर जब एक पूरा दिन बीत गया है तो दूर तक पसरी इच्छाएं पहाड़ों की शाममें टिमटिम जगमग हो उन जगहों पर उदास मुस्कान लिए सामने आती है रुलाई आँखों में भरभराई हुई है --पेड़ों के चेहरे साफ़ दिखलाई पड़ते हैं पत्ते अब भी उड़ते हुए दुपट्टे में पनाह लेते से हैं अनाम फूलों की खुशबू तरबतर करती है कुछ भी नहीं भूल पाती हूँ सनातन --जिंदगी अक्सर तेज़ चलने के बावजूद पीछे धकेलती है -</span>-आगे उनींदे दिन बीतेंगे जानती हूँ बेबसियों की उदासी भरी शामें आँखे नम करती रहेंगी --इस अभेद में भेद को जान लेना तुम, पहाड़ों पर बारिशों के बाद जब कांस के फूल खिलेंगे तुम खुश होना-- इस बरस साल भर इकठ्ठा करुँगी आम नीम गुलमोहर,आकाश चमेली चम्पा जामुन अमरुद के बीज और उन्हें बिखेर दूँगी तुम्हारी मनपसंद पहाड़ों की घाटियों में कुछ तो लगेंगे ,फलेंगे उम्मीद से ज्यादा उम्मीद रखती हूँ जीवन रहा तो देखूंगी कभी उन्हें बढ़ते खिलते फूलते संग संग तुम संग वो ख़ुशी कितनी मीठी होगी सनातन --कोई नहीं जान पायेगा इस गोपनीय ख़ुशी को --</div>
<div>
-मन कसकता रहेगा फिर भी -- क्योंकि में बुरांश से भरी पहाड़ी देखना चाहती थी ,बुरांश के गहरे लाल गुलाबी फूलों को बालों में सजाना चाहती थी -<span style="line-height: 1.5;">तुम्हारी आँखों में झांकते हुए</span><span style="line-height: 1.5;">-चेलिया गाँव के नुक्कड़ पर बनी </span><span style="line-height: 1.5;">किसी गुमठी की </span><span style="line-height: 1.5;"> चाय पीना चाहती थी </span><span style="line-height: 1.5;">--पहाड़ी आलू का देशज </span><span style="line-height: 1.5;">परांठा खाना चाहती थी --और बुरांश की चाय पिलाने </span><span style="line-height: 1.5;"> का तो वादा है ही </span><span style="line-height: 1.5;">--भूल मत जाना --उस कच्ची पुलिया के कांधों पर गहरी आसक्ति में डूबे झुके उस अनाम पेड़ के कानो में तुम्हारा नाम --सनातन कह आई हूँ कभी गुजरो तो वो आवाज़ लगाएगा --सुन लेना जानते हो पेड़ बहुत जल्दी बुरा मान जाते हैं और फिर उदास भी हो जाते हैं , बस पेड़ों की उदासी में बर्दाश्त नहीं कर पाती हूँ ,मेरी ख़ुशी इतनी ही है इसलिए ख्याल ---रखना </span></div>
<div>
<span style="line-height: 1.5;"><span style="color: red;">अपना भी </span></span></div>
<div>
<span style="color: red;"><span style="background-color: white; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.5px;">-इसी बरस जब बुरांश के फूलों का मौसम आएगा और टोकरा भर बुरांश लिए तुम </span><span style="background-color: white; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.5px;">मेरा </span><span style="background-color: white; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.5px;">इन्तजार करोगे किसी बुरांश के पेड़ों और फूलों से लदी भरी पहाड़ी के किनारे</span><span style="background-color: white; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.5px;">अपनी </span><span style="background-color: white; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.5px;"> मनपसंद पुलिया पर </span></span></div>
<div>
<div style="background-color: white; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.5px;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9OQjZ-N8cKsHK64bxmHViABcm1X06tOOgEKawXhnhXWxU0Nluf3xqbhKZSMmMrZz1-jfdo4FX53mRBW-js7ijr5DoRO_4SmNtdD8xejcn461F9sJNpRT9cqWP_EpBaqJdZLR_orvDyUU/s1600/imagesdharmshalaa.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="193" data-original-width="261" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9OQjZ-N8cKsHK64bxmHViABcm1X06tOOgEKawXhnhXWxU0Nluf3xqbhKZSMmMrZz1-jfdo4FX53mRBW-js7ijr5DoRO_4SmNtdD8xejcn461F9sJNpRT9cqWP_EpBaqJdZLR_orvDyUU/s1600/imagesdharmshalaa.jpg" /></a></div>
<span style="color: red;">जल्दी ही -में उस पुलिया के[कि]नार मिलूंगी ----</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="color: red;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizOMAyv8uvsRPuf8j0ISJ16nfO6chs1XrxwLoOIAzsPNITh495SrmWuZehwPh-5bulp7w9bUnFw2J8xiDR_fkpYmgCmrAwvn4SNiONb48lA8bsS46mYNbKzxviU6nBl06q6lS0Bcjcwzw/s1600/img21_2dharmshalaa.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="466" data-original-width="700" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizOMAyv8uvsRPuf8j0ISJ16nfO6chs1XrxwLoOIAzsPNITh495SrmWuZehwPh-5bulp7w9bUnFw2J8xiDR_fkpYmgCmrAwvn4SNiONb48lA8bsS46mYNbKzxviU6nBl06q6lS0Bcjcwzw/s320/img21_2dharmshalaa.jpg" width="320" /></a></span></div>
<span style="color: red;">
</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.5px;">
# पहाड़ भर यादें --पहाड़ों की- 9 / 6/ 2018 </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.5px;">
<i style="color: black; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">[पहाड़ों की यातनाएं हमारे पीछे हेँ ..मैदानों की यातनाएं हमारे आगे हेँ [ब्रेतोल्ट ब्रेख्त ].</i></div>
</div>
<div>
<i style="color: black; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><br /></i></div>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-81854116278354613442018-05-18T23:49:00.002-07:002018-05-18T23:49:15.320-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfo1ZQuizKv_vsc-O05RgL_r1XCZ1dzIp20jMAs-SWWuad7KNPEmc5jUwR7PxJDPlx1z8KDtXYr2Rhl8vEn0xED9Dd9Tuva0N0dvQFEhqCWt-Hw6Mz_CaYgp1xcMjWoEwqGzvI5ubQwDk/s1600/FB_IMG_1495272394091.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="561" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfo1ZQuizKv_vsc-O05RgL_r1XCZ1dzIp20jMAs-SWWuad7KNPEmc5jUwR7PxJDPlx1z8KDtXYr2Rhl8vEn0xED9Dd9Tuva0N0dvQFEhqCWt-Hw6Mz_CaYgp1xcMjWoEwqGzvI5ubQwDk/s320/FB_IMG_1495272394091.jpg" width="187" /></a></div>
<span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;"><b>लौट कर </b></span><br />
<div style="background-color: white; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
<span style="color: red;">एक ही समय में होना </span><br /><span style="color: #1d2129;">स्पर्श में ,स्मृति में ,बारिश में बादलों की तरह बरसना नादियों की तरह बहना,समुद्र में मिलना</span><br /><span style="color: #1d2129;">प्रेम, जल,आग और रोशनी के दृश्य में </span><br /><span style="color: #1d2129;">रोशनी की तरह दौड़ना बार बार --और दौड़ जाना</span><br /><span style="color: #1d2129;">फलांगते हुए सात समुद्र</span><span class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: inherit;"><br /><span style="color: #1d2129;">उस उदासी की मौजुदगी मे जो</span><br /><b><span style="color: lime;">उम्र और रिश्तों के हिसाब में<br />अभिसार की रातों में<br />रूमानी सपनो में बसी थी ,<br />देह की अपरिचित भाषा में<br />बूढ़े पहाड़ों पर बजती गिटार की धुन में<br />पत्तों की खड़ खड में<br />रात के स्तब्ध सन्नाटे में ,होते हुए भी ,में थी</span></b><br /><span style="color: #1d2129;">अपने ही आत्मघाती प्रेम में गलती -सुलगती</span><br /><span style="color: #1d2129;">किसी प्रत्याशा में तमुलनाद सी</span><br /><b><span style="color: magenta;">जहाँ नही थी, वहाँ मेरा सुख था<br />खुद को टोहता, अपने प्रेम में संक्षिप्त और सूचनात्मक<br />सावधान आगे अंधा मोड़ है </span></b><br /><span style="color: #1d2129;">और प्रेम जो अभी बाकि था/ है/रह</span></span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px;">
<span style="color: #1d2129;">(</span><b>पंछी लौटते हैं ,अपनी डायरी से 2010, 17 मई )</b></div>
</div>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-86307887522248043972018-03-12T22:00:00.001-07:002018-03-12T22:03:16.886-07:00देह अद्भुत शान्ति की खोज में अपने से ही नितांत अलग थलग चल पड़ती है ---चरम उपलब्धि से कुछ कदम पीछे ही,<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-family: "arial"; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span style="color: blue;">सूरज को टोहता अन्धेरा आगे आगे चलता है अक्सर रात की अगुवाई करता इन दिनों चीजें अपनी तरह से अलग और अलस ढंग से दूसरी तरह से पसरी हुई हैं एक आत्म निवेदन उनसे लगातार सुनाई देता है ,मुझे रहने दो ऐसे ही --पेड़ पत्ते कपड़ों के ढेर फ्रीज़ में सुस्तसी सब्जियां पेन कागज कांच में जमी धूल मिटटी के कटोरे में जमा खट्टा होता दही यहाँ तक की आंसू भी छलके रहने के लिए बरबस </span></span><br />
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: black; font-family: "arial"; font-size: 14px; line-height: 25px;"> .सात्र का अस्तित्ववाद इसी सिद्धांत पर है कि जिन घटनाओं के लिए आप उत्तरदाई नहीं उनका बोझ भी आपके ही माथे पर है.फिर जिन्दगी का हिसाब -किताब कैसे करें कि सारे जोड़ सही हो जाए बिना किसी को घटाए ,उनके सुख चैन छीने बिना </span><br />
<div style="color: #222222;">
<span style="color: black; font-family: "arial"; font-size: 14px; line-height: 25px;">वो वक्त जिसे दुहाई देकर जिया उसके- अपने लिए वो बिछुड़ गया ..उसके बाद सारे स्पर्श खुरदुरे हो कर रह गये, कैसे भूलना होता है,-ना भूलने वाली बातें अस्वाभाविक था शब्दों का अर्थ बदलना उनका विपरित हो जाना .</span><br />
<div style="color: black; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
..एक लम्बी यात्रा से ऊबा हुआ मन और उसमे ना सुस्ताया हुआ दिन था वो ..बस हरा भरा मन हार गया था </div>
</div>
<div style="color: black; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
.ठंडक थोड़ा कम थी वहाँ...एक कम गहरी नदी पर पुल तैरते दिखलाई पड़ते हेँ ..डूब जाने के खतरों के साथ ..यात्राएं अधूरी और त्रस्त होकर रह जाती है ..किनारे खो जाते हेँ तिनके भी छूट जाते हेँ और दूर तक फैली धुध मानो सब कुछ निगल जाना,चुप्पी साधे हुए .कम में अतिरिक्त हांसिल कर लेना भी अपनी इमानदारी में अपने साथ किसी और को भी देखना ..एक हिचकी आ जाती है ..दो तीन चार और लगातार कौन याद करता है ..लेकिन कौन ?पानी गले को तर करता है फिर भी बेअसर ...उस दिन ऐसा ही लगा कहीं दूर भाग जाने का मन एक लम्बी उड़ान ..नीले आसमां में बस जाने का मन बस आसमान और मेरे बीच कोई ना हो ..एक असंभव इक्छा ..फिर लगा पलक झपकते ही ये शहर दूसरे शहर में तब्दील होजाए लेकिन वो भी हो ना सका,पूरे 48 घंटे थे सब कुछ छोड़ देने के लिए ..कोई पहाड़ काट लेता पर वो पल नहीं कटे </div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
<span style="text-align: -webkit-auto;">एक खालीपन और एक निर्मम बेवकूफी के बीच अपने को मृत्त घोषित कर देने में ही सुकून मिलना था ...वो जिन्दगी की सबसे खुशनुमा दोपहर थी तब लगा उड़ना सचमुच ऐसा ही होता होगा अपना ही वजूद ढूँढ पाना मुश्किल था ...संगमरमरी चट्टानों से सूरज ओट हो जाता है ...आँखों का मौन आँखों में ही रह जाता है पलकों से उठते गिरते पल-पल का हिसाब जरूर होगा वहाँ , दिन बीत जाता है रात भी, और बीतती है सुबह ..थक जाती हूँ बहुत दूर तक जाने पर पलटना फिर देखना घर पीछे छूट जाता है ..लौटती हूँ क्या मांगा था ,मुठ्ठी भर धूप ही तो, वो दोपहर दिल में उतरती है सांसों में रूकती है बीच राह कोई रोक लेता है चलते-चलते टोक देता है,आहिस्ता छू लेता है आँखे खुलती है फिर कोई पीछे छूट जाता है पकड़ से परे और वहीँ मरना होता है अचाहे दुःख घसीटते से पीछा करते हेँ और फिर एक जामुनी सफर शुरू होता है अपनी ढेर सी गलतियों का कन्फेस ..तलाश का अंत... ना बोले शब्दों की आंच झुलसा जाती है,एक अकथ पीड़ा बड़े-बड़े दावों -दलीलों बौने हो रह जाते हेँ ,और अब लौटती हूँ तो सब कुछ ठहर गया है शहर के तालाबों पर धुंद,पहाड़ों पर हवाएं पेड़ों पर पत्तियां और नीले बादल सिकुड़ कर आँखों में बस जाते हेँ ,जैसे कहीं कुछ बदला ही नहीं जैसा उन्हें छोड़ा था वैसा ही ,बरसों बाद आज देखा बादलों में उड़ता हुआ एरोप्लेन बचपन की खुशी की तरह बयान ना हो सके ऐसी गंध की छुवन अब भी बरकरार है खिड़की के शीशे से लिपटी धूल को हटाने पर अंगुली कसमसाती है एक शब्द लिखा नहीं जाता ..सीधी लकीर बीच में थोड़ी आड़ी फिर ऊपर की ओर सीधी ..उसके नाम का पहला अक्षर अंगुली की पोर में धंसा रह जाता है,पूरा नाम जैसे एक पूरी यात्रा कर ली हो...क्या वो दिन वो यात्रा वो समय,स्मृतियों में इतना ही ताजा रहेगा ..गहराती शाम में उदासी घूल जाती है सुख में दुखाती शाम पीड़ा की तरह घुलती जाती है ,कोई बात नहीं सपने रहेंगे तो जियेंगे -संग,पार्क की एक बेंच पर बैठे सोचा जाना सामने,एक सेमल का बूढा पेड़ है जिसके तने में गहरी खोह दिखाई दे रही है ...... नारंगी फूलों से भरा, कुछ फूल खोह में धंस जाते हैं कुछ क़दमों में.. ओर आस-पास बिखर जाते हेँ शाम टूटती सी बीतती है थोड़ा कुछ भुलाने की कोशिश में बहुत कुछ याद आता है ..गुजरता है मन से, अपने आस पास की दुनिया ओर वे तमाम लोग जो हमारे बीच हेँ उनसे लड़ने का कोई बहाना ढूँढू ..लगता है...<span style="color: purple;"> कहानी का एक हिस्सा पूरा होता है ,कहानी नहीं ..जिन्दगी भी नहीं </span></span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
<span style="color: purple;"><span style="font-size: 13.3666px; line-height: 20.0499px; text-align: -webkit-auto;">हवा के साथ बजते हुए कुछ शब्द दिल में घुसपैठ करते हेँ,</span><span style="font-size: 13.3666px; line-height: 20.0499px; text-align: -webkit-auto;"> </span><span style="font-size: 13.3666px; text-align: -webkit-auto;">बुध्धम शरणम गच्छामि ...की आवाज..कानो से टकराकर लौटती </span><span style="font-size: 13.3666px; text-align: -webkit-auto;">है </span><span style="font-size: 13.3666px; text-align: -webkit-auto;"> </span><span style="font-size: 13.3666px; line-height: 20.0499px; text-align: -webkit-auto;"> </span></span><span style="font-size: 13.3666px; line-height: 20.0499px; text-align: -webkit-auto;"><span style="color: purple;"> </span>शरीर के साथ उंचाई से नीचे का डर,ओर डर के साथ धडाम से नीचे गिर जाने वाला डर होता है ,वरना तो ऐसा कुछ भी नहीं है ..ओर फिर आँखें मुंद जाती है,बजाय <span style="color: black; font-size: 13.3666px; line-height: 20.0499px;">बस सोच ही काफी है, बेचैनियों की तरल छूअन उसे छू कर लौट आती है तब तक अस्सी करोड़ से ज्यादा बार उसे सोचा जा सकता है ..बहुत कुछ ऐसा था जिसे नहीं समझा जा सका ,कितनी आहटें ओर दस्तकें थी पर वही नहीं था, जो उसके लिए था किसी ओर के लिए संभव ही नहीं था एक ऐसा सच जो पानी में घुल मिल गये की तरह था ,इस बार भी लगा वह लौट आयेगा कई बार की तरह...बीते सालों में उसका इन्तजार मौसमों की तरह ही तो किया था ओर सोचा जियेगा बीते कल को फिर से ..एक छोटे से जीवन में नामालूम से रंग भी बुरे मौसम की आशंका से फीके हुए जाते हेँ एक धूसर दुःख चुप्पी साध लेता है जिसके पीछे का सुख एक धनात्मक उम्मीद जगाता है ..बेहद निस्संग ओर उदास शाम भी आखिर खींच-तान के, दिन के साथ बीत ही जाती है, इस बारिशी नमी में भी कुछ शब्दों को सुखा लेने का सुख अन्दर ही अन्दर शोर बरपाता है ,कतई नहीं हो सकता --क्या? वो ,जो तुम सोचती हो, वैसा -हाँ क्यों नहीं ...अपने को भरमाने के अलावा हो ही क्या सकता है फिर भी सब कुछ उंचाई से नीचे की ओर धंसता ही जाता है ,९० डिग्री के कोण से नीचे देखना देह को थरथरा जाता है</span>सामना करने का, मुंदी आँखों से एक ठंडी साँस के साथ फिर से जीने की कोशिश --बस बचा लिया उसने वरना तो मर ही जाती --थैंक्स ,एक दिली थकान जुबां से बहार निकलती है उबड़-खाबड़ पहाड़ों से, दुःख से उबरना ,हमें लौटना होगा अपनी आबो- हवा में जहाँ हमारी चुप्पियाँ रहती हेँ जिनके बेहद करीब उसकी नर्म अँगुलियों ने खोज ली थी [लामायुरु]की सफेद पगडंडियाँ बस संग साथ की सोच से उमीदों को बल मिलता था,ओर कोशिशों से ,जहाँ अनाम जंगली पेड़ों की कंटीली गीली ओर चमकदार पत्तियों में धंसी धूप खिलखिल करती अचंभित करती है अब भी ...</span></div>
<div style="color: black; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
<b style="font-size: 13.3666px; line-height: 20.0499px; text-align: -webkit-auto;"><span style="color: #222222; font-size: x-small; font-weight: normal; line-height: 20.0499px;">सच में बावजूद हंसना फिर भी स्थगित रहता है -विक्टोरियन उपन्यास की तर्ज पर कभी कभी अभिभूत होना ...सर्वेश्वर की कविता का याद आना उसकी सौ कविताओं के साथ उनके बाद ....कितना चौड़ा पाट नदी का कितनी गहरी शाम'' वसंत में शुरू और ख़त्म हुए किस्से का वजूद बचा रहता है सर्दियों की शामे और रातें तो वक्त ही नहीं देती यूं आती हें यूं जाती हें कि बस उनका मुड़कर ओझल होना ही याद भर रह जता है फिलहाल दिन बड़े हें और राहत है लेकिन ऐसे कैसे दिन आये भी नहीं ,बीते भी नहीं,भूले भी नहीं,और खो गए किसी अक्षांश -देशांतर में दिक्काल के किसी कोण पर ना मालूम कहाँ ...वसंत का आना सेमल का दहकना बर्फ में दबी कविताओं वाले दिनों का पिघलना टहनी से बिछड़ी पत्तियों का नवजीवन बनना फिर सेमल के फूलों से फलियाँ बनना फिर उनमे गद बदी रुई का भरना .हवा में एक गंध का फैलना धुंद और धुप के बीच चिड़ियों की उड़ानों का स्थगित रहना शाम का जाना रात का आना ...और छोटे-छोटे सफेद सेल्फ प्रिंटेड फूलों की ए लाइनसफेद नाईटी में बहुत दिनों बाद खुद को हल्का महसूस करना ..तारों भरे आसमान के नीचे छत्त पर सुकून में मोबाईल के मेसेजेबोक्स में झांकना ,डिलीट करना बकवास ख़बरें ..दुनिया से बेखबर एक कतरा सुख की खातिर आखिर कोई नाम तो चमके उसकी खातिर .</span></b></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
<b style="font-size: 13.3666px; line-height: 20.0499px; text-align: -webkit-auto;"><span style="font-size: x-small; line-height: 20.0499px;"><span style="color: red;"><i><span style="font-family: "arial" , sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: 20.0499px; text-align: justify;">देह अद्भुत शान्ति की खोज में अपने से ही नितांत अलग थलग चल पड़ती है ---चरम उपलब्धि से कुछ कदम पीछे ही, राग -विराग ,आसक्ति -अनासक्ति ,मिलन--बिछोह और समय की क्रूरताओं में हमारी समिल्लित अनुभूतियों के बीच आकार लेता --हमारा बचा हुआ प्रेम,इसी उम्मीद पर तो बाढ़ को तैर कर --तूफान को पार कर --इस दुनिया को तुम्हारी ही आँखों से देखते हुए,कोई अगर बची हो उन अधूरी इक्षाओं को पूरा करना, जीना चाहती हूँ, असंभव में कुछ संभव जोड़ते हुए -उन -सारे सपर्शों को गंध में लपेट--झिलमिलाते हुए </span><span style="font-family: "arial" , sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: 20.0499px; text-align: justify;">अधीर</span></i></span><span style="font-family: "arial" , sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: 20.0499px; text-align: justify;"><span style="color: red;"><i> दिन की तरह, दो शब्दों में बोला गया एक शब्द</i><span style="font-weight: normal;">,</span></span><span style="color: #222222; font-weight: normal;"> शहद में गूंथा हुआ नाम , देह की परिचित भाषा में - दिनों हफ़्तों महीनो सालों जिसमें तुम उजाले की शक्ल में दिखाई देते रहते हो हरदम , अपने लिए, तुम्हारे लिए बचाये गए जीवन में, अपने वासन्ती आँचल के बालूचरि ताने- बाने में,एक भरा पूरा सच, जिसे इस जीवन में तुम्हारे सिवा कोई कुछ नहीं जानता</span></span><span style="color: #222222; font-weight: normal;">.</span></span></b></div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">
<b style="color: black; line-height: 20.0499px; text-align: -webkit-auto;"><span style="color: #222222; font-weight: normal; line-height: 20.0499px;"><span style="font-family: "arial" , sans-serif; line-height: 20.0499px;"> एक चुप्प सी रात भी बीत जाती है -</span></span></b><span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; line-height: 20.0499px;">हरमोड़ पर भटकाव --हर भटकाव में ढेर से रास्ते --ठिठक जाओ या एक चुन लो या लौट जाओ सब कुछ आपकी सोच पर निर्भर करेगा ---लौटो तो दस पांच खिड़कियों वाला घर भी अंदर से रोशन नहीं करता, लेकिन क्या जरूरी है हर खिड़की से रौशनी भीतर आये --लेकिन इन्ही में से किसी दिन या रात तयशुदा मृत्यु जरूर आएगी --मृत्यु का भय घेरता है ---'कौन हो तुम ''पूछते ही वह धूप की परछाई में गुम होता है किसी मुकम्मल स्पर्श से जीवित होती देह --फिर छूट जाने से डरती है तेज गले से रुलाई का भरभराना रोने से बदत्तर --कितना दम घुटता है कोई माप नहीं, एक तपिश देह में उतरती है --जल में उँगलियाँ डूबा देना एक सुकून एक ठंडक एक राहत -</span><span style="font-family: "arial" , sans-serif; line-height: 20.0499px;"><span style="color: lime;">-<b>लेकिन कब तक ? एक चुप्प सी रात भी बीत जाती है -बहुत उदास किया एक उदास दिन -रात ने जो बीत गया अभी अभी, डब डब सी आवाज़ करता पानी में</b></span></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-family: "arial" , sans-serif; line-height: 20.0499px;"><span style="color: lime;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFqLL56KG96DLbizDL6EqUiR3OpSWIoPpZVs4bEfjM4AqV7qrxZ0BVgxKDusoWYFJaAuHbJE_ikhU9gvRtpdJEEuGxc24n5OwQ8-iZAJRV8ayO5xeD6bkHcP4VEQ6G4LeldPA85e-qIvo/s1600/FB_IMG_1495647453288.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="405" data-original-width="720" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFqLL56KG96DLbizDL6EqUiR3OpSWIoPpZVs4bEfjM4AqV7qrxZ0BVgxKDusoWYFJaAuHbJE_ikhU9gvRtpdJEEuGxc24n5OwQ8-iZAJRV8ayO5xeD6bkHcP4VEQ6G4LeldPA85e-qIvo/s320/FB_IMG_1495647453288.jpg" width="320" /></a></span></span></div>
<span style="font-family: "arial" , sans-serif; line-height: 20.0499px;"><span style="color: lime;">
</span></span><b style="color: black; font-size: 13.3666px; line-height: 20.0499px; text-align: -webkit-auto;"><span style="color: #222222; font-size: x-small; font-weight: normal; line-height: 20.0499px;"><div class="m_-7043911073447651130gmail-m_8057162419830159786gmail-m_1217535409443827107gmail-m_7637416829468905154gmail-m_8492591811093027531gmail-m_-6378994024729872679gmail-m_177200519749570859gmail-m_4317223393582570132gmail-m_8157155354815008419gmail-post-body m_-7043911073447651130gmail-m_8057162419830159786gmail-m_1217535409443827107gmail-m_7637416829468905154gmail-m_8492591811093027531gmail-m_-6378994024729872679gmail-m_177200519749570859gmail-m_4317223393582570132gmail-m_8157155354815008419entry-content" id="m_-7043911073447651130gmail-m_8057162419830159786gmail-m_1217535409443827107gmail-m_7637416829468905154gmail-m_8492591811093027531gmail-m_-6378994024729872679gmail-m_177200519749570859gmail-m_4317223393582570132gmail-m_8157155354815008419gmail-post-body-3855754607726313601" style="border-color: rgb(238, 238, 238) rgb(238, 238, 238) rgb(255, 255, 255); border-style: dotted; border-width: 0px 1px; color: black; display: inline; font-family: 'Trebuchet MS', Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.3666px; line-height: 20.0499px; margin: 0px 0px 0.75em; padding: 10px 14px 1px 29px;">
<div dir="ltr" style="display: inline;">
</div>
</div>
</span></b></div>
</div>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-325360479631764232018-02-07T01:41:00.001-08:002018-02-07T01:41:11.289-08:00कलमकारी भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<span style="color: blue;"><b>कलमकारी</b> भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है</span><span style="color: #222222;">।</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<span style="font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small; line-height: normal;">कपड़े पर जन जीवन ये कलमकारी कहलाती है,दक्षिण में ये कला खूब विकसित हुई ,ये कला एक श्रम साध्य कार्य है ,चित्र को वेजिटेबल डाय द्वारा चार पांच दिन में उकेरा जा कर तैयार किया जाता है , इसे इमली के बीज उसके पानी ,फिटकरी के घोल से बार बार निकाला जाता है ,इमली की लकड़ी के कोयले से ही आकृति उभारी जाती है,ये पूरी तरह से केमिकल रंगों से मुक्त होते है,इस कारण महंगे भी होते हैं , इस कला के कलाकारों को फिर भी </span><span style="line-height: 22.4px;">।उतना मेहनताना नहीं मिलता जिसके वो हक़दार हैं-महंगे और चमीकीले बाजारों ने इन बेहद कर्मठ कलाकारों के जीवन की रौशनी कम कर दी है ,सरकारों द्वारा प्रायोजित बाजारों और हाट मेलों में इनके हुनर को सराहा तो बहुत जाता है लेकिन इन्हे अपने माल और मेहनताना के वाजिब मूल्य नहीं मिलते ,इससे भी बड़ी विडंबना यह है की वेजिटेबिल डाय वाले कपड़ों के मुकाबले में मार्केट में सिंथेटिक डाय वाले कपड़ों की नकल तेजी से आ जाती है ,और जानकारी के अभाव में ,लोग इन वेजेटेबिल्स डाय की असल कीमत देने को तैयार नहीं होते </span></div>
<div style="font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<span style="line-height: 22.4px;"><span style="color: lime;">क़लमकारी एक हस्तकला का प्रकार है जिस में हाथ से सूती कपड़े पर रंगीन ब्लॉक से छाप बनाई जाती हैक़लमकारी शब्द का प्रयोग कला एवं निर्मित कपड़े दोनो के लिए किया जाता है मुख्य रूप से यह कला भारत एवं ईरान में प्रचलित है।</span></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
सर्वप्रथम वस्त्र को रात भर गाय के गोबर के घोल में डुबोकर रखा जाता है अगले दिन इसे धूप में सुखाकर दूध, माँड के घोल में डुबोया जाता है। बाद में अच्छी तरह से सुखाकर इसे नरम करने के लिए लकड़ी के दस्ते से कूटा जाता है। इस पर चित्रकारी करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक पौधों, पत्तियों, पेड़ों की छाल, तनों आदि का उपयोग किया जाता है।</div>
<div style="color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
भारत में क़लमकारी के दो रूप प्रधान रूप से विकसित हुए हैं एक हैं मछिलिपट्नम क़लमकारी और दूसरा श्रीकलाहस्ति क़लमकारी।</div>
<div style="font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<span style="color: red;">मछिलिपट्नम क़लमकारी में मुख्य रूप से पादप रंगों का उपयोग लकड़ी के ब्लॉक के माध्यम से किया जाता है। इसके लिए जिस कपड़े का उपयोग होता है वह <a class="m_-8318410866482517310m_-7781430972771127565m_8518602826022199825gmail-m_-9223266842441553466gmail-m_-6875660600627210823gmail-m_6838773269507235gmail-m_-7249546899993531495gmail-mw-redirect" data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?hl=en&q=https://hi.wikipedia.org/wiki/%25E0%25A4%2586%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%25A7%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25A6%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%25B6&source=gmail&ust=1518082364050000&usg=AFQjCNGCHIZrSSb4WtvAZYJh0BJRF4eFhA" href="https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6" style="background-clip: initial; background-image: none; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; text-decoration: none;" target="_blank" title="आंध्रप्रदेश">आंध्रप्रदेश</a> के मछिलिपट्नम प्रांत में बनाया जाता है। इस शैली से बनाई गई हस्तशिल्प वस्तुओं को मुगल काल में दीवार पर सजावट के तौर पर लगाया जाता था,वर्तमान में ये साड़ियों बेडशीट दुपट्टे सूट्स रुमाल और घरेलू सजावटी वस्त्रों में भी बखूबी की जा रही है </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
[चित्र में एक असल वेजिटेबल डाय वाला कलमकारी saari</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi40omS80_FQpyJGbnGqPTgGhvZSphIMnYfc607KQ6tMJeRnKdXVFepgrxQeO4qqFlUA0xHOnLgeb7E-869h8Agpp6t3q5v6WxkZqfqAVpU5qsryRVgQtYtN7qLfVxLKLw1H25_BdlirSQ/s1600/az-large-4324826kalamkaari.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="500" data-original-width="363" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi40omS80_FQpyJGbnGqPTgGhvZSphIMnYfc607KQ6tMJeRnKdXVFepgrxQeO4qqFlUA0xHOnLgeb7E-869h8Agpp6t3q5v6WxkZqfqAVpU5qsryRVgQtYtN7qLfVxLKLw1H25_BdlirSQ/s320/az-large-4324826kalamkaari.jpg" width="232" /></a></div>
<span class="m_-8318410866482517310m_-7781430972771127565m_8518602826022199825gmail-m_-9223266842441553466gmail-J-J5-Ji" id="m_-8318410866482517310m_-7781430972771127565m_8518602826022199825gmail-m_-9223266842441553466gmail-:2a0" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 17.6px;"> </span></div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-88900999641445279732018-02-07T01:29:00.000-08:002018-02-07T01:29:00.861-08:00खिलंदड़ी --गिलहरियां बहुत आसानी से पीछा करती हें --एक दूसरे का <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span style="color: red;">खिलंदड़ी --गिलहरियां बहुत आसानी से </span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="color: red;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipHRJIDA2uDYWmWWSnbuV2jTIolHn6NWRNziISx7OQtA_w6ERhQQXXmUXWy4JLIB_j3H4jSzhmCXGur3PRJOKQZmby9arvCvoH8FPwSWj5FafVX_FhNHPAPVGvkabvyWmFSAV5yuFgON8/s1600/FB_IMG_1494575168884.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="360" data-original-width="480" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipHRJIDA2uDYWmWWSnbuV2jTIolHn6NWRNziISx7OQtA_w6ERhQQXXmUXWy4JLIB_j3H4jSzhmCXGur3PRJOKQZmby9arvCvoH8FPwSWj5FafVX_FhNHPAPVGvkabvyWmFSAV5yuFgON8/s320/FB_IMG_1494575168884.jpg" width="320" /></a></span></div>
<span style="color: red;"><br />पीछा करती हें --एक दूसरे का </span><br /><span style="color: #222222;">--वहाँ प्रतियोगिता नहीं है /उनकी बेहिसाब दौड़ती-फुदकती दुनिया में /-</span><br /><span style="color: #222222;">-एक आरामदायक सुरक्षा है /उजली सुबहों में घास के बीज कुतरती गिलहरियां मुझे पसंद हें /-</span><br /><span style="color: #222222;">-उतरती दोपहर और शुरू होती शामों से पहले वाले सन्नाटे में /--</span><br /><span style="color: #222222;">पत्तों की हरी रौशनी में झुरमुटों के बीच /उनका होना एक हलचल है /-</span><br /><span style="color: #222222;">-पत्तों के गिरते रहने में भी /</span><br /><span style="color: #222222;">--तब भी ,जब सुकमा की झीरम घाटी में विस्फोट होता है /</span><br /><span style="color: #222222;">और पत्तों की नमी यकायक सूख जाती है</span><br /><span style="color: #222222;">/--भरभराकर टूटते शब्द बौने होते जाते हें /</span><br /><span style="color: #222222;">तब कड़क और कलफदार चेहरों वाली इस दुनिया को /-</span><br /><span style="color: #222222;">-अपनी गोल किन्तु छोटी और चमकदार आँखों से ,</span><br /><span style="color: #222222;">चौकन्ने कानों से, पंजो के बल /पेड़ के तने को नन्हे पंजों से थामे / -खड़ी हो देखती है </span><br /><span style="color: #222222;">,झांकती ,सुनती है गिलहरियां- अगल बगल -</span><br /><span style="color: #222222;">--</span><span style="color: blue;">-मेरी समझ से---लचीली गिलहरियां दुःख ताप ईर्ष्या से परे<br />दुनियावी चीजों को एक सिरे से देखती मिलेंगी /-<br />-एक लम्बे विलाप को पूर्ण विराम देती सी /<br />-किसी लोकवाद्य यंत्र की तरह बजती हुई निष्कपट /<br />-बांस की दो चिपटियों के बीच दबकर निकलती सी उनकी आवाज़ की मिठास /-<br />उस-- इस समय में /-जिनमे दर्ज है हमारा प्रेम /-<br />-प्रेम के उत्सव की तरह ,मंगलगीत गाती बीतती है /<br />--फिर आना तुम याद बहुत कहती--/</span><br /><span style="color: #222222;">और तमाम तरक्कियों के बावजूद बदत्तर होती जाती इस दुनिया में /</span><br /><span style="color: #222222;">-बचे हुए खूबसूरत प्रेम की मानिंद /</span><br /><span style="color: #222222;">जो घास के एक नन्हे तिनके के सहारे थाम लेती है, पूरा आकाश /-</span><br /><span style="color: #222222;">उन्ही गिलहरियों से मुझे बेहद प्रेम है </span><br /><span style="color: #222222;">---बेहद</span><br />
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
गिलहरियां--[कविता ]</div>
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
विधुल्लता </div>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-86047916686501896752017-07-22T08:45:00.005-07:002017-07-22T08:45:48.579-07:00# भारतीय खान पान ,परम्परा और हमारे व्यवहार और हमारी रेलवे <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="_5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}" id="js_2n" style="background-color: white; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 1.38;">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px;">
<span style="color: blue;"><b># भारतीय खान पान ,परम्परा और हमारे व्यवहार और हमारी रेलवे </b></span><br /><span style="color: #1d2129;">कल एक खबर देख रही थी ,भारतीय रेल विभाग में खान पान को लेकर कितनी गड़बड़ियां है ,हेल्थ को लेकर सरकार एक तरफ चौकन्ने होने का दावा करती है, दूसरी तरफ ,ऐसा खान -पान जो कई बीमारियों के साथ जान लेवा हो सकता है --तो कहाँ है हमारी गलती और कहाँ है सरकारी भूले ,</span><br /><span style="color: #1d2129;">बचपन में रेल के सफर के दौरान हर स्टेशन पर हमें सीज़नल फल फ्रूट मिल जाते थे,करौंदे ,आम अमरूद, ककड़ी खीरा चिरोंजी ,शहतूत,फालसे,जामून और उबलासूखा हुआ चना मूमफली आदि, एक सुराही होती थी या छागल जिसमें पानी भर कर घर से ले आते थे ,खाने में अचार पूड़ियाँ पराठे आलू की सब्जी --और नमकीन --सोने के लिए एक मोटी से दरी होल्डाल एकाध एयर पिलो होता, सफर कितना ही लंबा होता मज़ा आता था,और आराम से कट जाता था </span><br /><span style="color: #1d2129;">धीरे धीरे सब बदल गया ,वातानुकूलित डिब्बे सफ़ेद झक चादरें कम्बल --और उसमें रेलवे की मन मर्ज़ी का खाना --रेलनीर --जिससे ना मन भरता है ना पेट --अब स्टेशन पर वो फल कटी हुई ककड़ी भुट्टे नहीं मिलते ,अब हम अंकल चिप्स हल्दीराम की भुजिया खाते हैं ,वो भी मनमाने दामों पर ,अब सफर पर चलने के दौरान औरते वो मशक्क्त नहीं करती जो हमारी माँ को हमने देखा --वो दो चार लोगों की अतिरिक्त खान सामग्री साथ रखती थी कि ,नामालूम कब ट्रैन लेट हो जाये कब कहाँ रुक जाना पड़ जाए, और ऐसा होता भी था ,तब माँ की चतुराई देखते ही बनती थी ,बचपन के ऐसे तमाम किस्से याद है जब हमने रातें वोटिंग हाल में गुजारी लेकिन खाना कम नहीं पड़ा बल्कि आस पास में बांटकर भी बच जाता था ---अब एक शब्द ' सुनती हूँ ज़हर खुरानी , ना किसी का खाना खाइये ना खिलाइये , चोरों और ठगों का बोल बाला है हमारी ये परम्परा है क्या सब कुछ अकेले अकेले खा जाएँ --सहयात्रियों को बांटे बिना --लेकिन सब कुछ बदलने के साथ मानवीय वृतियां भी ज्यादा बदली और ज्यादा ठगी होने लगी --सोचने की बात ये हैकि ऐसा क्यों हो रहा है --पूँजीवाद ने जो भी बदला है उससे भौतिक प्रगति के सूचकांक चाहे जितने ऊँचे हो ,लेकिन शनै शनै मानवीय वृतियों का ह्रास हुआ है और होता जा रहा है -</span><br /><span style="color: #1d2129;">पिछले साल ही में तिरुपति से लौट रही थी सम्पर्क क्रांति [ए पी ] उसमें पेंट्री कार ही नहीं थी ये ट्रैन तिरुपति से सुबह 5 बजे निकलती है ,वो तो हमारी बर्थ के बगल में एक रेल अधिकारी थे उन्हें हैदराबाद उतरना था उन्होंने कहीं काल किया और इडली डो से का इंतजाम हुआ ,एसी 2 ,और ऐसी 1 में भी वही वेंडर आते हैं जो रेलवे से अथोराइज़्ड होते हैं और उनके पास भी वही होता है जिस खाने का हम या तो खा नही पाते या लम्बे सफर में उसे पचा नही पाते, इसका विकल्प नहीं होता ,जाते वक़्त तो हम दो दिन तक के सफर का भरपूर खाना साथ रखते हैं --लेकिन लौटते वक़्त क्या करें --आजकल यदि किसी रिश्तेदार का कोई स्टेशन बीच राह पड़ता भी है तो --कई बहाने है ,किसी का घर दूर है ,तो कोई बिज़ी है ,कोई आफिस में है ,कोई बीमार है ---तो कहने और सुनने के बीच स्वाभिमान आड़े आ जाता है --बचपन में हमारे शहर से किसी परिचित /रिश्तेदार /परिवार केगुजरने पर माँ खाना लेकर भेजती थी यथा संभव उनके पसंद का ,और अब सब कुछ रेलवे सडा गला खाना मैनेज करता है ---</span><br /><span style="color: #1d2129;"><b><i>शताब्दी से अपनी दो सालपहले की यात्रा के दौरान पड़ोस के एक बुजुर्ग दम्पत्ति जो जल्दबाजी में खाने का पैकेट घर भूल आये थे --मुश्किल में आ गए उन दोनों को शुगर थी जब नाश्ता ,खाना सर्व होता वो समेटकर रख देते या लौटा देते --मैंने पूछा तो पता चला डायबिटिक हैं ,और अब तक जितना खान पान सर्व हो रहा था उनके काम का ना था --मैंने अपने बेग से उन्हें चने और कुछ नमकीन दिया --वेंडर से दही मांगा तो नहीं था ना लस्सी थी और थी भी तो मीठी --रेलवे ने उस वक़्त कांट्रेक्ट आगरा केंट के किसी कांट्रेक्टर को दिया था --प्लेट में रखे पेपर नेपकिन पर उनका नाम फोन नंबर था काल किया और सजेशन दिया --एक माह बाद अखबार में छपा भी अब डायबिटिक लोगों के लिए शताब्दी में खाना अलग से दिया जाएगा --वो लागू हुआ या नहीं ,नहीं पता </i></b></span><br /><span style="color: #1d2129;">हम अपने बचपन से ही खान पान की बिगड़ी आदतों की वजह से बड़े होने तक मुश्किल में रहते हैं, हम सभी भाई बहन मूम्फ़ली ककड़ी चना बिस्कुट से पेट भर सकते हैं --देखती हूँ सफर के दौरान बच्चे तो बच्चे, माँ बाप भी कोल्डड्रिंक्स और जंकफूड डकारते हुए सफर पूरा करते हैं और साथ में रेलवे का कुभोजन भी ,</span><br /><span style="color: #1d2129;">सोम नाथ एक्सप्रेस में सोमनाथ की यात्रा के दौरान चूहों की भरमार थी -सीट बर्थ में कुतरे हुए बिस्किट रोटियां --तो तमीज़ किसे सिखाएं रेलवे को या खुद को ---बिना धुली चादरें प्रेस करके फिर यात्रियों को दे देना --आप सजग नहीं तो भुगतो किसी इंफेक्शन को -मेरा चाहे जिस कैटेगरी में रिज़र्वेशन हो में अपनी बेडशीट ले जाना नहीं भूलती -भूल जाऊं तो दुपट्टे को ही उपयोग में लाती हूँ चादरों के नीचे --बाहरी खान पान -रहन सहन से एक अज्ञात डर सताता है और उसके सारे उपाय कर लेना जरूरी समझती हूँ </span><br /><span style="color: #1d2129;">फिर बेटी को बताया उसने कहा मॉ आगे से किसी जंक्शन का पता कर के वाहन से आन लाइन बुकिंग करो ब्रेकफास्ट लांच डिनर सब कुछ मिलेगा ,में कहती हूँ ये अमेरिका नहीं है बेटा ,ट्रैन अक्सर लेट होती है ,खाने की क्वालिटी खराब हो तो क्या ग्यारंटी पैसा वापिस होगा ,और होगा भी तो इतनी झंझट में कौन फंसे --तुम अमेरिका में हो हम इंडिया में --कुछ दिन पहले हमारे फेसबुक दोस्त आर एन शर्मा जी भोपाल से गुजरे तो मैंने उनसे कहा था, आप पहले बताते तो में खाना लेकर आती,उज्जैन से भोपाल की दूरी ट्रैन से 4 घंटे की है,लेकिन हमारी सास पूड़ी सब्जी अचार पैक करके रखती थी, जाने कब जरूरत पड़ जाए,और अक्सर मक्सी या काला पीपल पे ट्रैन 4 4 घंटे खड़ी रहती थी, तब ना कार थी ना बस रुट अच्छे थे ,आज भी कार के सफर के दौरान भी में खाना जरूर साथरखती हूँ वो उपयोग ना आये तो किसी जरूरत मंद को दे देती हूँ --एक बात सच है की हम दूसरे के लिए ऐसा नहीं करना चाहते इसके पीछे एक ही मकसद है ,की फिर हमे भी करना पडेगा ,अगर सभी इस भाव को दिल से निकाल दें वक़्त जरूरत अपने इष्ट मित्रों रिश्तेदारों को भोजन पैक कर देते रहें तो रेलवे की जरूरत ही नहीं होगी यथासंभव साथ घर का बना शुद्ध सात्विक भोजन साथ ले जाएँ </span><br /><span style="color: #1d2129;">और में सच कहूँ मुझे आज भी स्टेशन पर अपने परिचितों को खाना देकर आना अच्छा लगता है एक सुकून है किसी हमारे को, हमारे शहर से गुजरते देखना और उसे शुद्ध स्वादिष्ट घर का ,हाथ से बना भोजन खिलाकर तृप्त होना</span></div>
<div style="display: inline; font-family: inherit; margin-top: 6px;">
<b><span style="color: red;">सरकारें ना सुधरी है ना सुधरेंगी --आप हमको ही सुधरना होगा अपनी आदतों और बिगड़े चलन पर कंट्रोल करना होगा<br />[कल रात इंडियन रेलवे के बिगड़े खान पान पर रिपोट देख सुनकर ]<br />[इसे अपने ब्लॉग ,ताना बाना,के लिए लिखा है,सोचा यहाँ भी पेश कर दूँ ]</span></b></div>
</div>
<div class="_3x-2" style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 16.08px;">
<div data-ft="{"tn":"H"}" style="font-family: inherit;">
<div class="mtm" style="font-family: inherit; margin-top: 10px;">
<div class="_5cq3" data-ft="{"tn":"E"}" style="font-family: inherit; position: relative;">
<a ajaxify="https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1429192163812989&set=a.130638940334991.23708.100001666569303&type=3&size=184%2C122&source=13&player_origin=story_view" class="_4-eo" data-ploi="https://scontent-sit4-1.xx.fbcdn.net/v/t1.0-9/20229248_1429192163812989_6283633529035237980_n.jpg?oh=e184951cf840d821f44eccdc17d19dc2&oe=59EE2832" data-render-location="permalink" data-testid="theater_link" href="https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1429192163812989&set=a.130638940334991.23708.100001666569303&type=3" rel="theater" style="box-shadow: rgba(0, 0, 0, 0.0470588) 0px 1px 1px; color: #365899; cursor: pointer; display: block; font-family: inherit; position: relative; text-decoration: none; width: 368px;"><div class="uiScaledImageContainer _4-ep" id="u_0_u" style="font-family: inherit; height: 244px; overflow: hidden; position: relative; width: 368px;">
<img alt="Image may contain: train, bridge, sky and outdoor" class="scaledImageFitWidth img" height="244" src="https://scontent-sit4-1.xx.fbcdn.net/v/t1.0-9/20229248_1429192163812989_6283633529035237980_n.jpg?oh=e184951cf840d821f44eccdc17d19dc2&oe=59EE2832" style="border: 0px; height: auto; min-height: initial; position: relative; width: 368px;" width="368" /></div>
</a></div>
</div>
</div>
</div>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-5782840607274929142017-05-19T20:08:00.001-07:002017-05-19T20:11:06.552-07:00इस वर्तमान को अतीत होने से फिलवक्त बचाना चाहती हूँ,बस इतना ही तो चाहती हूँ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhj-coh7B9JWKW9ZtmumV0JxwQwHguhMq6GelEttKsUMwpEESO2k45Kcqvm1rYhdh-_VHliTC7LZ7DCd995NMzez_P4oLQnIEhX9O5LpiTEgrQtnFbIwGhLY2DxwGvVvISEIWVULRCrNWY/s1600/download++jngal+ladki.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhj-coh7B9JWKW9ZtmumV0JxwQwHguhMq6GelEttKsUMwpEESO2k45Kcqvm1rYhdh-_VHliTC7LZ7DCd995NMzez_P4oLQnIEhX9O5LpiTEgrQtnFbIwGhLY2DxwGvVvISEIWVULRCrNWY/s1600/download++jngal+ladki.jpg" /></a></div>
<div dir="ltr" style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: #cc0000;">इ<b>स वर्तमान को अतीत होने से फिलवक्त बचाना चाहती हूँ,बस इतना ही तो चाहती हूँ </b></span></div>
<div dir="ltr" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br />
## और में चल पड़ती हूँ ,जंगलों की तरफ -<br />
जंगलों के अंतिम विनाश के खिलाफ़ --<br />
अपनी आत्मा की समूल शुद्धि -के लिए -<br />
तुम्हारी स्मृति के गाढ़े हरियल होने को<br />
जंगल की सुवासित देह को,पेड़ों की सुगठित गठन ,चमकीले पत्तों ,अनाम फूलों की जंगली खुशबूओं को ,<br />
भरे पूरे गर्भा गूलर को ,चट्टान के सीने से लिपटी प्रेम पगी लत्तरों को आत्मसात करने </div>
<div dir="ltr" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
चलते चलते - </div>
<div dir="ltr" style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: #222222;"> </span><span style="color: blue;">देखती हूँ शहर के तालाब का अंतिम छोर लांघते, मछुआरों को जाल डाले </span></div>
<div dir="ltr" style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: blue;">कच्चे तूरे हरे सिंघाड़ों से लदी नाव को किनारे लगते हुए आहिस्ता -</span></div>
<div dir="ltr" style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: blue;">और में चलती रहती हूँ ,गहरी नदियों ऊँचे पहाड़ों की सीमांत तक ,<br />खुद को तुम्हारी और चलते देखना-मानो तुम वहां हो -<br />'भीम बैठिका, की अंतिम चोटी से मॉरीशस की 'मुड़िया' चोटी तक<br />पूरा शहर टिमटिम जुगनूओं सा ,</span><br />
<span style="color: #222222;">में चाहती हूँ तुम्हे दिखाना अपनी आँख से,</span></div>
<div dir="ltr" style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: #222222;">सांस लेते शाल वृक्ष,सागौन वन वृक्षों को -</span><br />
<span style="color: #222222;">उनसे बात करते,उनमें निमग्न होना,रोजगार और शोर से परे,</span><br />
<span style="color: #222222;">बस इतना ही चाहती हूँ -</span><br />
<span style="color: #3d85c6;">ताकि सुन पाओ गुन पाओ मुझे भी,एक अनुष्ठान की तरह -समझ पाओ मेरी साधारणता को -<br />चहकती वनस्पतियों के दिन है ये और उनकी सुगंध से भर दूं हथेलियों से तुम्हारी देह, -चाहती हूँ<br />वहीँ कहीं आस -पास --धुँआती लकड़ी पे बनती सौंधी चाय के अस्वाद संग -गीली आँखों से<br />एक मुस्कान का बाहर आना --दृश्य से </span></div>
<div dir="ltr" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
--उस वक़्त </div>
<div dir="ltr" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
एक जीवन का बीत जाना हो -वहाँ<br />
पहाड़ी सीने पर उड़ते धुएँ से बनते धूसर बरसाती रंग में-एक भूरी चिड़िया का तिनका बनता घोसला -देखना<br />
चट्टान के सीने पर खड़े निड़र पेड़,पत्थरों पे उकेरी प्रेम की प्रतिध्वनियां -जंगल की अनगूंज सुनना<br />
मेरे धानी दुपट्टे से छनकर आती जंगली मेहँदी की खुशबू,और प्रेम में लीन वो काला जंगली खरगोशों का जोड़ा<br />
,देखना शाम की ठंडक में,तुम्हारी आँखों के जुगनुओं को समेट लेना तभी,फिर देखना जंगली झरना -पहाड़ी ऊंचाई पे,</div>
<div dir="ltr" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
काँधे पर तुम्हारे,अपनी साँसों का दुशाला -ओढ़े सो जाना</div>
<div dir="ltr" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
बीच आधी रात,पूरी रात में खिलने वाले फूलों को देखना,देखते हुए --</div>
<div dir="ltr" style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: #222222;">सोचती हूँ -सुनूंगी तुमसे एक कविता -तुम्हारी-अलौकिक इच्छाओं से भरी</span><br />
<span style="color: #222222;">फिर अपने नाम का- </span><br />
<span style="color: #222222;"> जाप- उच्चारण बार बार </span><br />
<span style="color: #222222;">इस ब्रह्मांड के जड़ चेतन से निर्विवाद अलग थलग,संशय रहित,आत्मिक और कायिक निकटता में </span><br />
<span style="color: #222222;">बस इतना ही तो चाहती हूँ --</span><br />
<span style="color: #222222;">में इस वर्तमान को अतीत होने से फिलवक्त बचाना चाहती हूँ</span><br />
<span style="color: #222222;">जो तुम्हे दिखाना है,उसे आत्मसात कर </span><br />
<span style="color: lime;">एक मुकम्मल जंगल से गुजर जाना चाहती हूँ -यकीन करो में,अपनी गवाह बन -सरसराती जंगली हवा की तरह </span></div>
<div dir="ltr" style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: lime;">ना लौटकर आने के लिए -<br />लेकिन थोड़ा ज्यादा चाहती हूँ -<br />बस इतना ही ---</span></div>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-70719940594187367462016-09-11T06:24:00.003-07:002016-09-11T06:24:55.349-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1Ew-_rfpglVNJoe0H86gyw1G066dL7xIoT5o1aBm9yjIuo6SaPEhcnbnr2wJE9W2Dd3lh6wIIEAjnXCxcuUpdQEPBLwa8PFeyPAwVmIzjirCjd3kST9uKKanKk7z8AIhcL9NPt6yTmhA/s1600/20150107_162343-1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1Ew-_rfpglVNJoe0H86gyw1G066dL7xIoT5o1aBm9yjIuo6SaPEhcnbnr2wJE9W2Dd3lh6wIIEAjnXCxcuUpdQEPBLwa8PFeyPAwVmIzjirCjd3kST9uKKanKk7z8AIhcL9NPt6yTmhA/s320/20150107_162343-1.jpg" width="194" /></a></div>
<span style="background-color: white; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><b>## जेब्रा क्रॉसिंग -6,,बाहरी अँधेरे में एक सनातन भिक्षु मन की बंटी हुई दुनिया में डोलता है</b></span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">आज खबर है इस शहर को स्मार्ट सिटी में तब्दील किया जाएगा तो निश्चित ही वो ज़ेब्रा क्रासिंग भी कई नए मोड़ के साथ अपनी नई शक्ल में सामने होगा,बैचैन हूँ इस खबर से - इस खबर के अलावा यहाँ सब कुछ ठीक ठाक है लेकिन सनातन बीते कई वर्षों में समय अपनी रफ़्तार से आहिस्ता घटती हुई घटनाओं और काल जिसमें हम तुम बीत रहे हैं चल रहा है -मेरा मन यकीन करों उसमें नही लगता जिंदगी में कितनी सारी बातें उल्ट हो जाती है --असावधानी से पीटे मोहरे और फिर भी खेल जारी रहे तो इसका मतलब हम हारना नही चाहते ---जीत की उम्मीद के बिना --और मुश्किल और दुःख यही ना की दूसरी बाजी खेलने नही मिलती </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><span style="color: #38761d;">उम्र दिन गिन रही है और मुझे याद आया अचानक वो दिन --लेकवयू से श्यामला हिल्स की पहाड़ियों तक जब हम जाने क्या सोच पांच किलोमीटर तक पैदल चलते रहे उस दिन हल्की ठंडक थी सड़कें दूर तक सूनसान ऊपर नील आकाश में चमकता नर्म पीला चाँद साथ चलता हुआ,तुम्हारा बात को बीच बीच में अधूरा छोड़ देना ''सुनो एक जरूरी बात -और तुमने मेरा हाथ हाथों से छोड़ दिया थोड़ी तपिश भरी हथेलियों में हल्की ठण्ड का टुकड़ा सिमट आया और बाहरी दुनिया से मन जुड़ गया --में देखती हूँ तुम्हारी आँखों में एक स्लेटी शाम का अन्धेरा -नही कुछ नहीं जाने क्या सोच बात अधूरी छोड़ दी तुमने ---आज इतने सालों बाद भी उस अधूरी बात को सुनना चाहती हूँ और एक पल में में उस ज़ेब्रा क्रॉसिंग को पार करती हूँ एक बिना भीड़ वाला दिन उस दिन भारत भवन से एक प्ले देख कर लौटे हुए मेरी पैरट ग्रीन जामवार साड़ी -के पल्लू पर पर्पल कलर के बने मोर पे कैसे मोहित हुए थे तुम --ज्यादा ही मूडी हो गए थे कहते कहते तुम मेरी मोरनी और में, ये मोर--उड़ने मत देना -में हंसी, मोर वैसे भी कहाँ उड़ पाते हैं -सहेज रखना तुमने कहा</span></span><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"> -</span><br />
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">-आज वार्डरोब से कई साड़ियां निकाली कामवाली बाई से और वो चीख पड़ी दीदी ये तो में लूंगी आपको तो नहीं देखा पहने कभी आनन् फानन में उसने झट उसी पल्लू को सीने पे डाल कहा देखो तो कितनी अच्छी -साड़ी झपट कर मैंने उससे कहा ,,ना --ये नहीं इसके बदले दूसरी दोऔर ले लो पर ये नही दूँगी --क्या प्रेम और आस्था के जिए चरम क्षणों में हम जीवन की दूसरी यंत्रणाओं संग सहनीय नही बनाते --बनते --शायद हाँ </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">- कोई उदासी कोई ,कोई कुंठा ,कोई याद कोई मोह ,-और ऐसा ही कोई रूखा सूखा दिन किसी रात में गड़मड़ होता है कोई ठौर नहीं ,बेस्वाद और तूरा सा दिन दूर से नजदीक की चीजों को देखता हुआ ख़त्म होता है और रात पास आकर दूर जा कर सोचती है --हर मोड़ पर भटकाव --हर जगह ढेर से रास्ते --ठिठक जाओ या एक चुन लो या लौट जाओ सब कुछ आपकी सोच पर निर्भर करेगा ---लौटो तो दस पांच खिड़कियों वाला घर भी अंदर से रोशन नहीं करता, लेकिन क्या जरूरी है हर खिड़की से रौशनी भीतर आये --क्या इन्ही में से किसी दिन या रात -- तयशुदा मृत्यु नही आएगी सवाल अपने आप से होता है --मृत्यु का भय घेरता है ---कई डर सताते हेँ एक साथ .दरवाजों पर नीले परदे कांपते हेँ सचमुच सच सा लगता था- वो साथ अब छूट जाता है ओर फिर --.</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><span style="color: blue;">.इस घटाटोप में कोई हाथ थाम लेता है .कहने को बहुत कुछ था तब भी अब भी दरअसल एक पूरा भाषा विज्ञान था ओर कहने के खतरे भी नहीं थे, उँगलियों में गंध का टुकडा लिए, लेकिन हम सोचते रहे संबंधों की बड़ी डोर से धरती ओर आकाश को बाँध लेना, एक ही संवाद को दुहराते जाना ओर यह सोचते जाना की डूबने से पहले पानी के बीच किसी स्निग्ध फूल की तरह खिला था वो वक्त.</span></span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">वक़्त को पलट कर देखना 'कौन हो तुम ''पूछते ही वह धूप की परछाई में गुम होता है किसी मुकम्मल स्पर्श से जीवित होती देह --फिर छूट जाने से डरती है तेज गले से रुलाई का भरभराना रोने से बदत्तर --कितना दम घुटता है कोई माप नहीं, एक तपिश देह में उतरती है --जल में उँगलियाँ डूबा देना एक सुकून एक ठंडक एक राहत --लेकिन कब तक ? एक चुप्प सी रात भी बीत जाती है -बहुत उदास किया एक उदास दिन -रात ने जो बीत गया अभी अभी, डब डब सी आवाज़ करता पानी में--</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">तुम्ही बताओ हे तथागत उस उजल और साफ दिन में जैसा आज यहाँ है उस दिन तब जब एक समरस समय में तालाब जल बीच में बने शिवमन्दिर भीतर एक सौ आठ रक्त-चम्पा के फूलों से में शिव का अभिषेक करुँगी -एक दिन ये होगा जरूर-- -सोचती ही रह जाती हूँ रात घिरती है-देर रात फ़रमाइशी गीतमाला में आशाजी का गीत बज उठता है</span><span style="background-color: white; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><span style="color: red;"> 'समय और धीरे चलो --बुझ गई राह से छाँव --दूर है पी, का गाँव --धीरे चलो</span></span><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">-साथ ही -पति की आवाज़ हेडफोन लगाकर क्यों नही सुनती हो उफ़ कितना शोर है--</span><span style="background-color: white; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><span style="color: purple;">जेब्रा क्रॉसिंग की कालीपट्टियों पे चलता हुआ --बाहरी अँधेरे में एक सनातन भिक्षु मन की बंटी हुई दुनिया में डोलता है </span></span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><span style="color: red;">[जेब्रा क्रॉसिंग ,, अपनी लंबी कहानी का छटवां [6] भाग ]</span></span></div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-57061646994335167392016-08-01T08:10:00.001-07:002016-08-01T08:10:49.393-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px;">
#<a data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?hl=en&q=https://www.facebook.com/hashtag/%25E0%25A4%259C%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%25AC%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25BE?source%3Dfeed_text%26story_id%3D1071323572933185&source=gmail&ust=1470149553250000&usg=AFQjCNGRDj0zMFr4m97gOR1VKdJRBIbN8Q" href="https://www.facebook.com/hashtag/%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE?source=feed_text&story_id=1071323572933185" style="color: #365899; font-family: inherit; text-decoration: none;" target="_blank"><span style="color: #4267b2; font-family: inherit;">#</span><span style="font-family: inherit;">जेब्रा</span></a> क्रॉसिंग -<br />#<a data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?hl=en&q=https://www.facebook.com/hashtag/%25E0%25A4%2589%25E0%25A4%25B8?source%3Dfeed_text%26story_id%3D1071323572933185&source=gmail&ust=1470149553250000&usg=AFQjCNHyKdP1ExWKvc9DjPv1TBI9ZEAiEw" href="https://www.facebook.com/hashtag/%E0%A4%89%E0%A4%B8?source=feed_text&story_id=1071323572933185" style="font-family: inherit; text-decoration: none;" target="_blank"><span style="color: #4267b2; font-family: inherit;">#</span><span style="font-family: inherit;"><span style="color: blue;">उस</span></span></a><span style="color: blue;"> मोड़ पे मिलो तो-सोचूँ जहाँ से मुड़कर एक नदी बहती है -वहां पानी की नीली रौशनी की सतह पे ताजे बुरुंश के खिले फूलों को बहाया था मैंने कल,गहराती शाम से पहले हथेलियों के चप्पु से उस दिशा में --ताकि उन्हें समेट पाओ दूसरे किनारे से--तुम --<br />कहो तो चलना शरू करूँ, यहाँ से इस मोड़ से -तुम तक -अपनी नीली जरी के चौड़े पाट वाली गुलाबी साड़ी पहने -अपनी पदचाप में तुम्हे गुनते बुनते ---में ठीक हूँ ----बिलकुल ठीक हूँ<br />तुमने क्यों पूछा --</span><br />अच्छा लगा <span style="font-family: inherit;">तुम्हारा पुकारना<br />उस जेब्रा क्रासिंग के पार रेलिंग के सहारे वो कोट की जेब में हाथ छुपाये खड़े रहना -याद है मुझे अब तक और भीड़ में दूर से मुझे पहचान लेना तुम्हारा --सालों बाद भी वो याद है क्या फिर कभी ये होगा जिंदगी कितना ही बीते को दोहराये जानते हो सन्दल" रंग और रूप वक़्त का वो नही होता --एक द्रश्य के सौ रूप और उनमें से एक तुम को ढूंढना --आज भी उस जेब्रा क्रासिंग पे रूक जाती हूँ ,अपने शहर में -देर तक कार पार्किंग की दिशा याद नही आती शॉपिंग का बोझा मन, भर का हो जाता है -पिछली बार तुमने पूछा था तब घुटनो में दर्द आ गया था, पैथॉलॉजी रिपोर्ट में केल्शियम डिफेंशियनशी --एक हद्द के बाद दर्द में जीना भी सरल हो जाता है--<br />जिस जेब्रा क्रॉसिंग को उड़ कर क्रास कर लेती थी -उस पार खड़े तुम पलक झपकाये बिना देखते रह जाते थे मुझे, क्या अब भी में तुम्हे वैसे ही दिखूं ,ना अब में 20 साल पहले वाली नही रही शायद तुम तैयार ना हो वो सब देखने के लिए<br />पर सच में बदल गई हूँ --क्या में बदल गई हूँ तुम देखोगे तो जानोगे ---लो में अपनी कार तक आ पहुंची --बगल की कार में एक ड्राइवर बैठा ऊँघ रहा है --गीत बज रहा है" जरा सा झूम लूँ में जरा सा घूम लूँ में -- में चली बन के हवा----<br />तुम याद आते हो इसी जेब्रा क्रॉसिंग पे<br />अक्सर संदल</span></div>
<div style="display: inline; font-family: inherit;">
<div style="background-color: white; font-family: inherit; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
<span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">जेब्रा क्रॉसिंग ## (दो) </span><br style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;" /><span style="color: magenta;"><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">कभी कभी चुप्पियाँ निरर्थक साबित होती जाती है प्रार्थना के बाद भी -जब हम दुनिया के सही सलामत और साबूत बचे रहने की उम्मीद में आँख मूँद खड़े रहते हैं </span><br style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;" /><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">"जानते हो क्यों ?-इसलिए कि इसी दुनिया में तुम</span></span><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;"><span style="color: magenta;">हो -जब धरती हिली और 6.6 के रिएक्टर पर, तुम्हारे शहर में दहशत थी -समाचारों की धुकधुकी में में तुम्हे बार बार काल करती रही कोई उत्तर नही.कितनी धरती आकाश लांघ गई पल में कुछ याद नही </span><span style="color: #1d2129;">-- देर बाद देखा एक डिजिट बीच में गलत डायल होता रहा उफ़ अपनी ही जल्दबाजी और बेवकू</span></span><span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">फी दोनों पर शर्मसार होना था, बहुत सी तबाही में सब ठीक था ""यही क्या कम था -फिर भी उस रात एक करवट की नींद के बाद सुबह कत्थई उजालों से भरी थी --बहुत कुछ छूट जाने की आशंका से बच जाना --लेकिन किसी अकस्मात से पहले मुठ्ठियों की ऊँगली से रेत के झर जाने के बावजूद स्मृतियों का हरा पहाड़ सांत्वना देता रहा दिल में एक ठंडी लौ जगाये हुए<br />संदल तुम जानते --मोहलत नही देती जिंदगी तेज चाल के बावजूद --उस जेब्रा क्रॉसिंग के बाद सड़क की रेलिंग्स पर रुक जाती हूँ हाथ टिकाये --सोचते हुए तुम्हे --हांफ भी उठती हूँ वहां तक आने के लिए कभी तो ऑटो को दूसरी तरफ छोड़ देती हूँ, कार से आऊं तो पार्किंग तक जाने में वो रेलिंग छूट जाता है वो बरसो पुराना हाथ भी जहाँ तुम हाथ टिकाये खड़े होते थे --बस एक अहसास है तो है<br />तुम्हे नही पता इतनी फुर्तीली में तुम्हारी अब कितनी गोलियां खाकर ज़िंदा हूँ थायराइड बी पी ये वो --हर सांस पे शक़ धक--<br />अभी लौटी हूँ ड्रायक्लिंर्स के यहाँ से उस गीले जेब्रा क्रॉसिंग से अहा बारिश में कितना चमकीला धुला धुला सा --जहाँ से एक बार तेज दौड़ते हुए हाथों को पकड़े हुए हमने सड़क क्रास की थी और देर रात तालाब </span><span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">के</span><span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;"> किनारे खड़े रहे</span></div>
<div style="color: #1d2129; font-family: inherit; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
<span style="background-color: lime; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">तुम भी जानते हो वो सड़क रक्त में कथाओं की तरह घुली है<br />ये तुम्हारा दुःख है तुम्हारी याद है जो बेअसर नही होने देती मुझे मेरे शहर में -</span></div>
<div style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
ज़ेब्रा क्रॉसिंग--3-- ## जब-जब लौटती हूँ, वहाँ से ,बातें ठीक से याद अाती हें,बहुत से शब्द अपने ढेर से अर्थ देर बाद खोलते हें-पुराने निशानों के सहारे चलते जाना ओर लौटना कभी धोखा भी हो जाता है -नगर निगम वालों ने पूरे शहर का नक्शा ही बदल दिया है -अक्सर भौच्चक उसी ज़ेब्रा क्रॉसिंग पे दाएं बायें देखती हूँ -ट्रेफिक सिग्नल की ग्रीन रेड लाइट मे गुम सी--अंधेरा अाजकल जल्दी घिर अाता है ,शाम से पहले शाम -रात से पहले रात -हैरानी होती है किसी का पुकारना एक अंतराल के बाद -कोई मुझे तलाशता है ,मे चकित हूँ ,-क्या मुझे अपने को संशोधित करने की जरूरत है इस अाशा निराशा राग द्वेष से परे -जानते हो संदल मे दुखों के टोहे जाने से डरती हूँ,फिर भी मऩ वहीं पहुंचता है --कहता भी है -तुम कहां हो ? जिस जगह हजार हरसिंगार झरते थे --अब तुम नही तो वह जगह अनायास अपरिचित. फीकी सी ,बेस्वाद लगने लगती है- ओर मे अपनी प्रार्थना कामना मे अनायास खाली हो जाती हूँ --ये एक प्रयास होता है सबसे जुदा तुम्हे सोचने का ---फिर तुम भीतर उतरते हो तो मे अासमान होती जाती हूँ -और उसी खालीपन से शुरू करती हूं नये सिरे से अपने को भरना---उड़ना ---<br />तुम होते तो देख पाते --तुम्हारे ना होनेे पर भी समय अपने पूरे अधूरेपन के साथ कैसे विस्तारित होता है</div>
<div style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="color: #1d2129;">''</span><span style="color: magenta;">तुम स्लीवलेस नही पहनती --ना' ओर तुम्हारी तर्जनी घुप्प से मेरी बाहं मे गड जाती है --अपनी बाहं को सहलाती हूँ --ओर लिपिस्टिक ''ना -क्यों ?-क्यों मतलब नही पसंद --क्यों पसंद नही --अब बातों को घसीटना जरूरी है --नही ---क्यों पूछा --मेरा पूछना -तुम चुप बस अांखों मे झांकते मुस्कुराते रह जाते हो---दो सेकंड बाद ही </span><br /><span style="color: #1d2129;">''ओर ये जो मऩ भर काजल भर लेती हो अांखों मे ठीक से देख पाती हो मुझे ? मे हंसी जोर से --हंसी इतना, अनन्त मे चांद की बिंदी मे-सितारों की खनक चमक मे अपने गजरे की महक मे-हंसी मे ,भीगी इतना कि हँसते हँसते रो पड़ी ---उपर सर उठाया तो बादलों के बीच से उड़ता झिलमिल प्लेन --अांखें उसका पीछा करती है -- कितना देर -- सब कुछ ओझल हो जाता है --जानते हो संदल जब सारी दुनिया ठसाठस भरी होती है --मे ज़ेब्रा क्रॉसिंग के पार उस छोटी सी सड़क के किनारे बने पार्क की रेलिंग्स वाला स्पेस तुम्हारे लिए बचा लेती हूँ ---जिसके सहारे, किनारे चलते हुए हम झील किनारे तक अहिस्ता अाते थे </span><br /><span style="color: #1d2129;">जानते हो जहां रंग बिरंगे फूलों को बेचने वाला वो गरीब लड़का कितनी हसरत से तुम्हे तकता था ---और तुम मुझे ---</span><br /><span style="color: #1d2129;">अभी लौटी हूँ कुछ मेहमानों को शहर दिखाने के बाद --अब इस शहर मे ले दे के झील ही तो है --क्या दिखाया जाय - मेंने ,उनसे कहा चलिए पैदल ही चलते हें हालांकि पति महोदय को मेरा अायडिया जरा रास नही अाया --वो बोले मे उस तरफ मिलता हूँ --ओर ज़ेब्रा क्रॉसिंग की काली सफेद पट्टियों पे चलने का सुख उससे ज्यादा तुम्हे सोच लेने का सुख --पर संदल अब नही चल पाती हूँ सांसे तेज़ चलती है -तो झट्ट याद अाता है , बी पी की टेब खाई या नही -याददाश्त पे ज़ोर देती हूँ तो कुछ ओर याद अा जाता है --वो कोना जहां तेज बारिश होती है --मेरी गीली पीठ पे तुम्हारा हाथ --जान लो कुछ दिन बिजी रहूँगा --करीब दो माह --अपनी रिसर्च कंप्लीट कर लो --इस बीच ---बीच -तालाब के पानी पे एक नाविक जाल फैलाता है -अंधेरा अांखों को काटने लगता है किनारे लगे लैम्प जल उठते हें --उनकी रोशनी पानी की सतह पे गिरती है ओर वहाँ से प्रतिबिंबित होती हुई अांखों की पुतलियों मे चमक अाती है ----</span><span style="color: blue;">तुम देखते हो --समझते हो --मे तुम्हे ** सायमा झील के किनारे ले चलूँगा' नंदिनी '' कहते तुम्हारी झक्क सफेद कमीज़ भीग जाती है बारिश से बचने की कवायद मे---तुम्हारी बारिश भरी हथेलियाँ ---मेरी गीली हथेलियों को भर जाती है ---<br /># अाज तुम्हारी नंदिनी ने भीगा हुअा रजनीगंधा का एक बड़ा सा बंच लिया है----</span></div>
<div style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="color: blue;">*** सायमा झील 'फिनलैंड' की सबसे बीडी झील</span></div>
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<span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">जेब्रा क्रॉसिंग ## 4 -एक # इतनी बारिश जिसमें भीगने सांस लेने का मऩ --- जो --वहाँ सुन लिया गया जाने कैसे --शाम बीत रही थी -शाम का अखरी पल जैसे रुक गया ,पानी की सतह पे --हमारे देखते ही देखते धूप हिली और लचीली पतली लकीर सी हमारे एडियों से उपर तक पानी मे भीगे पैरों को छूती हुई बीच तालाब की तलछट पर पहुंच गई---झिलमिल सी --वो घाट ,वो किनारा ,वो नावों का झुरमुट उस पल मे सिमटा वो शाम रात का अंधेरा उजाला </span><br style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">तुम्हे गुस्सा नही अाता --जवाब मे मुस्कुराना -मानो जवाब ही मुस्कुराना हो --अपने ही शब्द नजरा जाते है ----नाराज़ी ओर चुप्पी एक ही हाईट पे --अब क्या करो-जो महीनो नही टूटती- जो गलती ना करे और बात की पहल भी-- ना- तो ----</span><br style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">फिर उन दिनों का बीतना---जैसे समय ही खुराफात करता हो दोनो के बीच -- सुना है इस बार तुम्हारे शहर मे बर्फबारी हुई है --</span><span style="color: red;"><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">सर्दी तुम्हे जल्दी लग जाती है सोचते हुए तुम्हारी --सुकुड़ती नाक बजने लगती है --- ज़ेहन में</span><br style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">घर से निकली सोच कर कि पास के एक नये बने मॉल मे जरूरी शॉपिंग करुगी - बाहर एक लंबी रैली और भीढ़ दिखाई दी ,अब घूम कर जाओ तो उसी क्रॉसिंग पे--जानते हो सनातन एकांत मे एकांत अक्सर काटता है लेकिन भीढ़ मे अंजानेपन का एकांत ,अजनबी होने का सुख मुझे खूब भाता है --जब चाहे मन को टोह कर कहीं भी रुक जाना शॉप विंडों मेे झांक लेना --देर तक -- भी क्या खूब काम है पता चला, रोड ब्लॉक-रहेगा किसी स्थानिय नेता की सभा होना है - अब उस क्रॉसिंग से गुजरना मजबूरी है --कुछ पल को भी -सोच" टॉप गेयर पे दौड़े तो मुश्किल होती है-- </span></span><br style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">''तुम इतना क्यों डरती '' रोड क्रॉस करने मे --वाकई तुम साथ हो तो --सोच रुकती है- तुम झुंझला गये --हाथ पकड़े पकड़े कहना- अराम से चलो ---सच सनातन अाज भी रोड क्रॉस करने से --डरती हूँ --एक कल्पना ,फिर देखना ट्रेफिक सिगनल को,काउंट डाउन करना 6,5 ,4 ,3 ,2 ,1 मे, अपने को बीच सड़क लहूलुहान पाती हूँ --बर्लिन की वो 22 वीं फ्लोर पे लिफ्ट मे अकेले एक अजनबी के सहारे ग्राउंड फ्लोर पे अाना ,सच कितनी शर्मिंदगी होतीअपनी ही बुजदिली से ,लेकिन डर नही जाता --अपने डरों के सच होने से डरती हूँ--तुम्हे खो देने का डर सच हुअा जब -तब से ओर ज्यादा,--बोटिंग करते हुए उस शाम जब बारिश शुरु हुई और नाविक ने जैसे ही हिचकोले खाती नाव को , तेजी से मोड़ा तो तुम्हारे तरफ झुकी नाव लगा अब डूब ही गई --मैने तुम्हे पीठ ओर बाजुओं से जोर से थाम लिया आँखें बंद कर ली-- तुम कहते रहे-तुम्हे मरने नही दूंगा नंदिनी ---अांखों की झिलमिल में तुम मुस्कुरा दिए --</span><br style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="color: #660000;"><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">खोया समय याद अाता है देर रात ,भाग कर जी लेने की अातुरता बेसब्र होती जाती है --</span><br style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">ये बालों को क्यों इतना कस लेती हो ''नंदिनी अांटी जी ''--हाथ से बालों मे लगे रबर बेंड को लूज़ कर देना ओर मेरा नंदी बन जाना ---देखो तो कितनी अच्छी लगती हो ''कैसे देखूं? ''मेरी अांखों मे उफ्फ ---</span><br style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">तुम्हारी यादों ओर बातों से बनी दुनिया करवट लेती है ---में ज़ेबरा क्रॉसिंग पार करती हूँ -</span><br style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">यही तो कहा था --एक पूरी रात बिना कामना के जागो मुझ संग ''फिर --फिर हम जुगनुओं को पकड़े -एक दूसरे की बंद -मुठ्ठियों को खोले -अांखों से एक दूजे के लिए सितारे पकड़े --तुम मे्रे लिए कोई कविता पढ़ दो --ना ' ये ना होगा मुझसे</span><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"> </span><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">-</span></span><span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">-अरे कोई किताब से पढ़ देना --एक शरारती सवाल- और क्या ? बस उस रात सूरज भी दोपहर दिन चढ़े तक मूह ढाँप सोता रहे -आइडिया अच्छा है 'जान '' और अनायास चेहरे को सिकोड कर होंटों को गोल घुमाकर सीटी मे तुम्हारा गा पड़ना </span><br style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">''ना जाने कहां तुम थे ,ना जाने कहां हम थे जादू ये देखो हम तुम मिलें हें'' -------मन्ना डे की पुरसर अावाज़ मे ,मन्नाडे की आवाज़ पसंद है तुम्हे- तुम कहते हो तो बस फिर कुछ याद नही रहता--वो सिकुड़े हुए होंट वो घूमती अांखें जीरोक्स हो जाती है "जान" सुनते -ही</span><br style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">तुम्हारा खुश चेहरा द्रश्यों मे चमतकार पैदा करता है -तुम्हारा साथ चाहना अाज भी ---उस शाम कितनी बैचैनी थी तुमसे ना मिल् पाने की --अाज सोचती हूँ तो लगता है हम वाकई जिंदगी मे उतना ही पाते हें जितने के हकदार होते हें बाकी कोशिशें बेकार है सनातन---सच बताऊँ एक मुकाम एसा भी अाता है जब सारे सच के झूटे होने के अंदेशे मुझे बहलाते हें --पिछले हफ्ते से पीठ मे दर्द है--अब डॉक्टर के पास जाने से डरती हूँ सनातन जाने कोनसी पैथालॉजी रिपोर्ट से जाने कोन सा भूत निकल अाये --अभी शाम डूबना चाहती है --मे ज़ेब्रा क्रॉसिंग के पार उस रेलिंग्स से खड़े हो वहाँ से देखना चाहती हूँ खुद को चलते हुए तुम तक अाते हुए-फिर एक साथ हवा के गुब्रबार को देखना अासमान मे ,जहां ढेरों अबाबील पंख फैलाये उड़ती रहती है -लेकिन फिलवक़्त ये भी ना हो सकेगा रात कहीं डिनर है '`--तुम्हारी सोच को भी तह लगा छोड़ जाऊंगी -सिरहाने --फिर भी --खोलूंगी बीच रात संशय में---इतने बरस बरस बीते ऑर कल रात से बारीश भी बेइंतहा बरस रही है--</span><br style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="color: blue;"><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">समय का कोई विश्वसनिय पाट है --हमारे बीच सनातन '' जो दिन ओर रात की काली सफेद पट्टियों से चल कर हमे एक दूसरे के भीतर पार उतारता है-- -+</span><br style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">मे समय को सांस लेने की मोहलत देती हूँ--</span><br style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">ताकि चलती रहे जिंदगी ---</span></span></div>
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<div style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 1.38; overflow: hidden;">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px;">
<span style="color: #1d2129;">## ज़ेब्रा- क्रॉसिंग ## 5 ## उसका चेहरा यकायक अब याद नहीं आता ना वो ना उसकी वो बातें और आता भी है तो कहीं भी कभी भी फिर चाहे तालाब पर फैलती सिकुड़ती रौशनी की परछाई ही क्यों ना हो --उनमें भी --बस इस सोच के साथ एक अजब भाव उस पर तारी हो जाता है ---एक लम्बी सांस के साथ रूकना पड़ता है और देखना तालाब की शेडेड रोशनियां कुछ नीली काली सी -- उसके ड्राइंग रूम के पर्दों की तरह -जिन्हे रस्सी की तरह बल देकर कभी पकडे पकडे वो उस तरफ देखती है-- कालबेल पर रखा उसका हाथ -याद आता है ये जो बार बार ज़ेब्रा क्रॉसिंग से लौटती हूँ ना सनातन , तो लगता है कुछ था जो रोशनियों से भरा था वहां से लौटना चाहे जितना तकलीफ देह हो पर ये पीड़ा उस सुख के सामने छोटी ही लगती है -</span><br /><span style="color: #1d2129;">-''तुम पानी फुलकी खाओगी '' ना अरे पूरा बताया करो आखिर क्यों ना --तुम्हारा ये कहना और चिढ़ना और मुठ्ठियों का गोल करके होंटो और मुँह के पास लगा कर खांस उठना और साथ ही मेरे सफ़ेद कुर्ती पर लहराता </span><br /><span style="color: #1d2129;">सतरंगी लहरिया दुपट्ट्टे को मुठ्ठियों में भर लेना --याद आता है --सुन लेने की बेसब्री में --जानती हूँ- ,नहीं पसंद कह उठती हूँ फिर आँखों में कोशचन मार्क --ये खट्टी चीजों से मुझे कोई लगाव नहीं जिंदगी में --- ये क्या हुआ लड़कियों को तो बहुत पसंद होती है' नहीं मुझे नहीं पसंद में जोर देकर कहती हूँ -तुम औरों से बिलकुल अलग हो नंदिनी--और सच सनातन में औरों से कितनी अलग हूँ तुम्ही जानते हो --- </span><br /><span style="color: #1d2129;">लेकिन क्या कितना --सोचना पड़ता है और देर तक सुझाई नहीं देता --बल खाया पर्दा जोर से छोड़ देना पड़ता है जो खिड़की के एक हिस्से के टूटे कांच की तिरछी दरार नुमा लकीर से होकर बेतरतीब हो फैल जाता है और पल भर को शीशों से छन कर अंदर आती रौशनी उसके चेहरे पर लहराती हुई जमीन पर फैल जाती है अंदर की भटकन भी एक झटके के साथ कोने में जा सहम बैठ जाती है ---मिल जाए वो शायद --सब कुछ नहीं बस उतना ही जो उसके हिस्से का था, एक निर्जन सपने में निमग्न होना और हर रात ये प्रार्थना करते हुए सो जाना हे ईश्वर आज कोई सपना मत भेजना ऐसा दुःसह --जैसा कोई नहीं एक सचेतन पूर्व ज्ञान समय की गर्द - गुबार हटाकर स्पंदित होता है बहुत कुछ किसी रंग में ,किसी शब्द में ,किसी वक़्त में किसी मिलती जुलती शक्ल में और कभी तिनके-रेशे भर की समानता में भी--- उसकी निगहबानी चाहे-अचाहे होती ही जाती है फैली हुई हवा की शक्ल का बनना टूट जाता है -और ----स्मृतियों का दरवाजा बेवक़्त खुल ही जाता है एक कोलाज रास्ता रोकता है --जो मेरा था वो वक़्त दूर जाकर चिढ़ाता सा दिखाई पड़ता है तेज गति वाली किसी ट्रेन की खिड़की से हिलते हाथ में रुमाल का धब्बे की शक्ल में होते-होते आलोप हो जाना ---एक क्षण के जादू का ताउम्र उसकी गिरफ्त में जीना ---देर रात तक कई बार नींद नहीं आती ---कांपती ठण्ड में नीले मखमली कम्बल में कुड़मुड़ाते बस पड़े रहो --खैर तसल्ली यही है दृश्यों में पहले सा सन्नाटा नहीं है बेडरूम से सटा हुआ बड़े बड़े भूरे लाल पत्तों वाला पेड़ खड़खड़ करता ---जागते रहो की गुहार लगाता चेताता रहता है, </span><br /><span style="color: #1d2129;">-मन की बैचेनी बारिश के बाद खिल आये जामुन- अमरुद के ताजे पत्तियों की खुशबू में घुमड़ती ही जाती है तंग दिनों की शुरुआत ---अब राहत देती है ---देखो अब हम कितना बदल गए हें --रोते नहीं--एक दूसरे तरह का हुनर अपने में विकसित कर लेना -- एक पेड़ का निर्लिप्त भाव स्मृतियों की निरंतरता को बरकरार रखता है अँधेरे में खड़ा अपने धड़ से कटा पेड़ अपनी दो टहनियों के साथ विपरीत दिशाओं में फैला एक काले बिजूके की तरह ठहाका लगता है- --तुमने कुछ कहा शायद--मैंने कुछ सुना हमारे अच्छे -सच्चे दिनों--का लौटना मुमकिन होगा-- कभी सपनो में कभी सोच में कभी सच में उम्मीद से अधिक उम्मीद आखिर क्यों --सड़क, दुकाने, आवाजें ,शहर --किसी शहर के खूबसूरत नाम वाला वो मार्ग एक गंध कि तरह व्यक्त होता है --क्या सचमुच कोई उधर इन्तजार कर रहा है छूटा हुआ कुछ मिल जायेगा ये भी तय नहीं है बाहर कोहरा है बेहद ठण्ड है --हर वक़्त स्मृतियों की यात्राएं बेठौर कर देती है कोई ठिकाना नहीं बचता </span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="color: #1d2129;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiK8BohsMiIf5UgrJpY18ooZNFaKdVlS45pZdfMMfx_UHXhn6zNPNL2AF3lEdMH59Em1PT8-oJsA7T9jdLFvyUoNJDVUoZk_kFGjxoqvv6elnSv7hz_VXHuxq0Xy6rvnzL6On0ceiZEVV8/s1600/taalaab+aalii.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiK8BohsMiIf5UgrJpY18ooZNFaKdVlS45pZdfMMfx_UHXhn6zNPNL2AF3lEdMH59Em1PT8-oJsA7T9jdLFvyUoNJDVUoZk_kFGjxoqvv6elnSv7hz_VXHuxq0Xy6rvnzL6On0ceiZEVV8/s320/taalaab+aalii.jpg" width="320" /></a></span></div>
<br /><span style="color: #1d2129;">---</span><span style="color: purple;">और हर यात्रा को पीछे मुड़कर देखना अजीब है एक सीझा हुआ सा दिन, उन दिनों के पतझड़ के में प्रेम करने और भुलाने के लिए.मजबूर करता है ---हमारा समय कहाँ दर्ज है जिसमें किसी पत्ती तक के गिरने की आहट नहीं है लेकिन हर रात खड़ खड़ करती बड़ी पत्तियों वाला पेड़ जो आधी रात जगा देता है उसे सुबह देखो तो अजनबी लगता है ,हाँ आजकल घर के नजदीक ही जेब्रा क्रॉसिंग की तरह एकांत पार्क में एक पुलिया ढूंढ ली है बिलकुल वैसी ही बस फर्क इतना है में उससे चलकर अकेली आती हूँ दूर तक, कभी कभी तो तुम्हारा चेहरा सोच कर भी याद नही आता -लेकिन बहुत कोशिशों के बाद -तुम्हारा चेहरा कुछ कुछ याद आ चला है-तुमने फिर अपना कहा अच्छा लगा एक नदी -पहाड़ों के नीचे कछारों में - बहती हुई बढ़ती है ,गीले तिनको घास कागज सीपी शंख को ठेलते हुएआगे बढ़ती है इस साल बारिश भी </span><br /><span style="color: #1d2129;">ज्यादा हुई और इस मौसम में भी लगातार बारिश हो रही है --नदियों के उफान पर आने के साथ ही ----ये भी बीत जायेगा ---लेकिन हम कितना बचा रहेंगे एक दूसरे के लिए ये कौन जानता है -</span><br />
<div style="color: #1d2129; display: inline; font-family: inherit; margin-top: 6px;">
##-ज़ेब्रा क्रासिंग अंतहीन सिलसिला है, कौन जाने इसका क्या अंत है- जब तक स्मृतियां रहेंगी ज़ेब्रा क्रॉसिंग लिखा जाता रहेगा ये, इसका 5 वां भाग है ]</div>
<div style="border-left-color: rgb(220, 222, 227); border-left-style: solid; border-left-width: 2px; color: #1d2129; font-family: inherit; padding-left: 12px;">
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विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-15312291248044454742016-01-01T06:17:00.001-08:002016-01-01T06:17:26.993-08:00सुनो प्रेम तुम भीतर उतरते हो तो में आसमान होती हूँ--वक़्त से पहले वक़्त की गुहार--हमेशा कारगर नहीं होती --तब समय रेंगता है जब उसे दौड़ना हो वो घिसटता है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhl4SOUtE7hgo_brm1MKiJ4z1xfMAYnor9ihXQAbRFJyj9ohxlbHVUz534Nza6dcLpRvkWiNjziWltlaApD6OUu-ZY28MVV0rsxQ3PCjkcTGZVrRVwGG5aJY5Lksd8M1FdgU_chZMLntLQ/s1600/20160101_124755.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhl4SOUtE7hgo_brm1MKiJ4z1xfMAYnor9ihXQAbRFJyj9ohxlbHVUz534Nza6dcLpRvkWiNjziWltlaApD6OUu-ZY28MVV0rsxQ3PCjkcTGZVrRVwGG5aJY5Lksd8M1FdgU_chZMLntLQ/s320/20160101_124755.jpg" width="320" /></a></div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYlR5EzXLJheUyyVWlK3hE2HsEFH4Q1_mo6Ne6DfNt8VlK7cHXx9-qYOzkb1TxqI1cGySlIDCSUfyzho_SW_FJIoT29U19G2Qp7QP1rLDqKdsa04WsA3yIIey6bVv5Fc0sS2xMWpK12_s/s1600/20160101_130350.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYlR5EzXLJheUyyVWlK3hE2HsEFH4Q1_mo6Ne6DfNt8VlK7cHXx9-qYOzkb1TxqI1cGySlIDCSUfyzho_SW_FJIoT29U19G2Qp7QP1rLDqKdsa04WsA3yIIey6bVv5Fc0sS2xMWpK12_s/s320/20160101_130350.jpg" width="180" /></a></div>
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<li style="text-align: justify;"><span style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;"><span style="color: red;"><b>सुनो प्रेम तुम भीतर उतरते हो तो में आसमान होती हूँ</b> ##</span></span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;"> पुराने निशानों के सहारे चलते जाना -और एक निर्धारित जगह से लौटना कभी कभी धोखा दे जाते है, पुराने निशानों की याद के बावजूद आप रास्ते भूलते जाते हो और भौच्चक किसी चौराहे पे दायें बाएं ,नाक की सीध में या कि पीछे पलटे संशय होता है ,बहुत से निशाँ बरगलाते है --अन्धेरा आजकल जल्दी घिर आता है,शाम से पहले रात ,रात से पहले रात होती है, बस वही नही होता जिसे वक़्त से पहले होना चाहये-और </span><span style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;"><span style="color: blue;">वक़्त से पहले वक़्त की गुहार--हमेशा कारगर नहीं होती --तब समय रेंगता है जब उसे दौड़ना हो वो घिसटता है</span></span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;"> और वो धीरे धीरे सरकते हुए -बाहर पसर जाता है यहां वहां टुकड़ों में --शाम की हल्की ठंडक धड़कती नब्ज पर पलकों और हाथों पे महसूस होती है और आँखों में उस ठंडक का उतरना महसूस होना एक जरूरी सोच के साथ प्रकम्पित करता कुछ बातों वातों के साथ ठगता है, तभी उस यात्रा पर जाना ,जहां जाना अनेकों बार स्थगित हो चुका हो --एक लम्बे अंतराल के बाद कोई तलाशता है मुझे, में चकित हूँ --मुझे अपने को संशोधित करने की जरूरत है --क्या ? देर तक सवाल का उत्तर नहीं मिलता -फूलों के -रंगो में ,तितलियों के पंखों में ,सौंदर्य के अर्थों में ,प्रेमियों के एकांत में ,ऊँची घास के मैदानों में ,जोर से कहना --सुनो प्रेम तुम भीतर उतरते हो तो में आसमान होती हूँ --एक जादू असर के साथ बातों का बेहिसाब होना --कहीं पहुँचने से बेखबर -- एक लॉन्ग ड्राइव पे निकल जाना ,दिल में हजार हजार ख्वाहिशों के दृश्य लिए-एक खनक -एक गमक ठुमकती है राग द्वेष से परे --कभी कभी हम अपनी प्रार्थनाओं-कामनाओं में खाली हो जाते हैं --फिर से भर जाने को <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</span></li>
</ol>
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<li style="text-align: justify;"><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</span></li>
<li style="text-align: justify;"><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">-</span><span style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;"><span style="color: #38761d;">-तभी चीजों को भीतर की तरफ देखना कारगार होता है --सूखे फूल एक विस्मृत गंध ,मुड़े हुए मोर पंख ,और पाजेब सी झंकृत होती स्मृतियाँ ----देर तक विस्मृति में रहने के बाद एक रास्ता जंगल नदी की और मुडत्ता है,घर लौटने से बेहतर , विभ्रम से दूर</span></span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">,नदी के उस छोर तक चलते जाना जहां से लौटने की कोई जल्दी नही होती सूखे पीले पत्तों कुछ जंगली फूलों सूखी टहनियों का, पारदर्शी नदी जल में बहना और उस ठंडे जल में अपना गीला चेहरा देखना आहा फिरअपने ही ,चेहरे का लहरों में गुम हो जाना ---तुम कहां हो ---पर जिस जगह तुम नही हो वो जगह अनायास अपरिचित और बेस्वाद लगने लगती है मुझे - लौटना होगा अपने को कहना --अपनी सीध से ठीक उल्ट ,और वो अपनी ब्लेक पश्मीना में कढ़े गुलाबी गुलाबों को बाहों में जकड़े लौटना चाहती है --जाने कितने तमाम सफर जाने कितने छूटे शहरों-जंगल को सोचती हुए ये छूटना भी तय है --दोपहर की धूप में ,नदी जल में एक भीगी जंगली चिड़िया का सूखी टहनी पे बैठ पंख झाड़ना बार -बार काश तुम, मुझ संग देख पाते, नदी की रेतीली दोमट मिटटी वाले कच्चे रास्ते से लौटते हुए अपने कानों पे हाथ रख जोर से कहना सुनो इस बार हम **'सायमा' झील के किनारे मिलेंगे सुना तुमने ----</span></li>
<li style="text-align: justify;"><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;"> [<b> </b></span><b style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: 20.0499px;"><i><span style="color: red;">एक रात की नींद ---बारह हजार दिन के सपने --</span></i></b><b style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: 20.0499px;"><i><span style="color: red;"> </span></i></b><b style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: 20.0499px;"><i><span style="color: red;">मन की रिपोतार्ज कथा ]</span></i></b></li>
<li style="text-align: justify;"><b style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">[** सायमा झील --फिनलैंड की सबसे बड़ी सबसे सुंदर झील ] </b></li>
</ol>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-5725053987729185932015-09-21T05:21:00.002-07:002015-09-21T05:42:30.931-07:00-किरदारों को मोड़ दे देने से क्या होगा -हड़बड़ी और नाउम्मीद सी इस दुनिया में रौशनी में झिलमिल उन दिनों में अपने लिए और वो खुश थी ,वो ऐसा ही सोचती थी उसने सोचा भी ---लेकिन सच सजगताएं आदमी को असहज और निकम्मा बना देती है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;"><b><span style="color: blue;">वैसे किरदारों को मोड़ दे देने से क्या होगा - --बारिशों की उमस भरी सुबह जब रात तेज बारिश होकर गुजर जाए --जिसे बगैर कुछ याद किये गुजारने की कोशिश तो की ही जा सकती है --जिंदगी के अधकचरेपन को समझने में अपनी समझदारी कितना काम आई,उस दिन को इस दिन के मत्थे मढ़ देना हालांकि समझदारी नहीं थी --फिर भी कई बेईमान दोस्त और कई कई तरीकों से सताने वाले लोगों और रिश्तों से छुटकारा पा लेना मुश्किल था पर उसने किया वो सब -</span></b></span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
--हड़बड़ी और नाउम्मीद सी इस दुनिया में रौशनी में झिलमिल उन दिनों में अपने लिए और वो खुश थी ,वो ऐसा ही सोचती थी उसने सोचा भी ---लेकिन सच सजगताएं आदमी को असहज और निकम्मा बना देती है अनुभव तो यही है --फिर भी एक निरीह सपाट आतंक उसके दिल दिमाग पर छाता गया उसका यही भय उसके सामने कभी निराशा तो कभी अतिशय प्रेम और कभी विवशता की तरह सामने आने लगता --जिसका खामियाजा भी उसे बेतरतीब तरीकों से भुगतान कर करना पड़ता --आखिर खींचतान के बाद सलवटों भरा ही तो बचाया जा सकता था बाद में उन्ही सलवटों में खुद को समेट सिकोड़ लेना फिर वैसे ही रहना अनमने और कसैले से हिसाब लगाते रहना दोयम स्थिति से उबरने की कोशिशें, सस्ते और बेहूदा मोहों से बच निकलना -</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
निकलकर मुकम्मल उदासी और खालीपन से अपने को खूब खूब भर लेना उसे बखूबी आता है -फिर भटकना अज्ञात लोक नक्षत्रों में ढून्ढ लेना कोई ठौर हो जाना<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhN7i5nTSilxqzqrR-DBLA48iG0mp0sXH8oGqFlwK90bc0My5_Kr2sLsEdTQqc9AbR-ACZYgi21ZO6Y_8bf3gh5A5BBQnutFJDDY536khbX7lflAMwmSP1WO2WH8IHUrko17LGGXNuT8Fc/s1600/pijon+paikabutar.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhN7i5nTSilxqzqrR-DBLA48iG0mp0sXH8oGqFlwK90bc0My5_Kr2sLsEdTQqc9AbR-ACZYgi21ZO6Y_8bf3gh5A5BBQnutFJDDY536khbX7lflAMwmSP1WO2WH8IHUrko17LGGXNuT8Fc/s1600/pijon+paikabutar.jpg" /></a></div>
<span style="background-color: white;">निस्संग </span> आस-पास से --अरसे तक चलता, कई कहानियो उपन्यासों को बार बार पढ़ना --उनके अंत और घटना क्रम को मन मर्जी से बदल देना --और तसल्ली देना खुद को कोई भी उस जैसी मुश्किल में नहीं ये सोचना उसे खुश करता --आखिरकार अंत तो उसे अपना आप ही बनाना है --किरदारों को मोड़ दे देने से क्या होगा ---इस सब में अपने को जानबूझकर स्थितियों में तर रखना एक तरह की निर्ममता में जीवित रहना उसे रास आ जाता ---उसकी यादों बातों और वादों से ऊब की हद तक उक्ता जाना --ये सोचना किसी के लिए बेवकूफी में बिताये दिनों से फिर भी ये बेहतर है ---एक यही सोच बस थोड़ी सोच की हद से उसे ऊपर ले जाती ----बावजूद कई चीजें और भी इतर चीजों से बड़ी थी जैसे परत उधेड़ती हवा का पीले पत्तों का लहराते कुड़मुड़ाते हुए शाखों से नीचे गिरते देखना खूबसूरत था/, ख़ुशी के खजाने की तरह कोई फूल खिला देखना भीगी चिड़िया का पंख झाड़ना बार बार <span style="background-color: white;">आँख खुलते ही सिरहाने वाली </span><span style="background-color: white;"> खिड़की की मुंडेर पर कबूतरों के जोड़े का गुटरगूं करना </span> बारिश में, नीली धूप का निकलना छिपना देखना ---एक द्वैत भाव ही तो था जो जिला देता था, बाकी दिनों में खुद को तटस्थ रख अपने लिए मृत्त घोषित हो जाना किसी परिणीति के बाद तलाश ख़त्म होगी भी या नहीं ---क्या चीजें छीन लिए जाने के लिए नियति अक्सर चीजों को मिला देती है मिटटी सी चीजों को इतना प्यार करना भी तो ठीक नहीं हंसी आ जाती है एक बूँद आंसू भी --किसी ऐतिहासिक अद्भुत सीलन भरी गंध में सराबोर प्रेम अपनी जगह था जहाँ के तहाँ --इन्तजार एक हैरानी और मूर्खता से भरा पल ही है ,बीते पलों की मौजूदगी में आतुरता से स्पर्श में दर्ज ढाई आखर ---जैसे मधय सप्तक का निषाद स्वर एक ही सांस में मन्द्र सप्तक के निषाद पर उत्तर आये --हैरानी यही थी इस साल वर्षा कम होने के बावजूद,शहर में हरियाली बहुत घनी थी </div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b><i><span style="color: #222222;">]</span><span style="color: red;">एक रात की नींद ---बारह हजार दिन के सपने --मन की आंशिक रिपोतार्ज ] </span></i></b></div>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-14299859965716969052015-05-04T21:01:00.002-07:002015-05-04T21:01:36.844-07:00मन को एक मथ देने वाली उदासी टोहती है,और मुकम्मिल ब्यान दर्ज करती जाती है एक दो तीन एक लम्बी फेहरिस्त फिर सोचना की उसे भरोसा ही नहीं तो कोई क्या करे ? आपका ईमान ही आपका प्रहरी हो सकता है, यू सोच लो कोई माने या ना माने --बेहद कठिन हो जाता है,तुझसे मिलना फिर खोना ,पसीजना ---देर तक फिर सिसकना --वो ठौर पीछे दूर तक छूट जाता है--उदास उदास --लेकिन सब कुछ जल्दी ही धुल पुछ जाता है और फिर नेह की नीड बुनने में व्यस्त ,हल्दी पुते दिनों में तुम्हारी हल्दी हंसी, रेडियो में बजते संगीत से ताल मिलाती है ---दिनभर के बाद शाम देर से आती है और जल्दी लौट जाती है एक अपूर्व निजता मन को कस कर घेरती है उस डूबती दोपहर सी ,उस शाम देर तक देह का पोर पोर बजता रहा था एक हरियल पल --भी एक पल को उदास हो मुस्कुरा उठता है --फिर ऐसा भी होता ,जहाँ मन डूबता ,वहीँ किनारे हरी पत्ती के रंग में ,हर सिंगर के फूलों से गिरती खुश्बू से मन भर जाता तुम हो लगता है, कहीं आस -पास --वो तारीखें और वो भी जिसमें ऐसा कुछ नहीं हुआ वो तारीखें मुकम्मिल है अब भी , थी कम ज्यादा उन तारीखों में सोचे गए कई दिन रात गायब थे ---यूं हिसाबी -किताबी होना आपकी फितरत ना हो तो ,कहते हुए शर्मंदगी हो सकती है लेकिन वक़्त की फितरत अबूझ है यू पलटना और गिनना पल पल कभी मजबूरी हो जाती है और एक अजब करुणा में आद्र हो जाना ,अपने को स्मृतियों से गुणित कर लचल बना लेना तुम्हारी खातिर अच्छा ही लगता जाता है --पानी से गीलापन आग से ऊष्मा मिटटी से आकार लेता सौंधापन मेरे भीतर यही तो हो तुम बस तुम, सुनो ना सुनो में मिलूंगी इसी धरती और आकाश के भीतर कपिल धारा में नर्मदा के सबसे पहले सबसे ऊँचे जल प्रपात के पास अखंड कौमार्य लिए जहाँ नर्मदा, कुण्ड से निकल केवल सात किलोमीटर आगे तक ही तो चलती है,वहीँ जहँ धुप छनकर पानी में चक्राति हुई पैरों की बिछिया बन जाती है शाल वृक्ष से लिपटी हथेलियाँ में मेहँदी घुलती जाती है , पत्तों गुंथी हुई पगडण्डी घुमावदार सड़क के पार जहाँ सूखे शाल पत्र से पटा समतल मैदान है वहीँ, छल -छल पानी गूँज है, चार पग फेरों के बाद -तीन जन्मों के साथ उस गोलाकार सड़क पर जिसे मैंने सुना ही सुना है, का पूरा फेरा लूंगी ,हथेलियाँ मेहँदी रंग,और पायल की रुनझुन में आत्मा की सुवास से भर ,तुम्हारे पीले उत्तरीय वस्त्र के कोने से लिपटे बंधे मन से ,परकम्मपावासी का दृष्टी- आशीर्वाद लेते, में मिलूंगी वहीँ- किसी जनम में, दिन डूबने से पहले हल्दी काया में, केया रंग चूड़ियों भरे हाथ -पीले जरी के पाट वाली --लाल साड़ी में ---सूरज की बिंदी माथे लिए सकुचाई आँखों से ---तुम मिलोगे ना --<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4_rURFExqNqHGNyBxmexWPujsu3xj2yAhQMKpP0rVih8ZdyEbPSQ5iWFT6UnkxXDZtAniKmpICaPR7CNN2WCb8aL9ha-OtEelHMmHxbv-T9SMV_T1cwvoakLyLMdfk3laJ2IQjirX9JU/s1600/ye+vadiyan.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="239" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4_rURFExqNqHGNyBxmexWPujsu3xj2yAhQMKpP0rVih8ZdyEbPSQ5iWFT6UnkxXDZtAniKmpICaPR7CNN2WCb8aL9ha-OtEelHMmHxbv-T9SMV_T1cwvoakLyLMdfk3laJ2IQjirX9JU/s320/ye+vadiyan.jpg" width="320" /></a></div>
<span style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;"><span style="color: blue;"><b>मन को एक मथ देने वाली उदासी टोहती है,और मुकम्मिल ब्यान दर्ज करती जाती है एक दो तीन एक लम्बी फेहरिस्त फिर सोचना की उसे भरोसा ही नहीं तो कोई क्या करे ? आपका ईमान ही आपका प्रहरी हो सकता है, यू सोच लो कोई माने या ना माने --बेहद कठिन हो जाता है,तुझसे मिलना फिर खोना ,पसीजना ---देर तक फिर सिसकना --वो ठौर पीछे दूर तक छूट जाता है--उदास उदास --लेकिन सब कुछ जल्दी ही धुल पुछ जाता है और फिर नेह की नीड बुनने में व्यस्त </b></span></span><br />
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px; text-align: justify;">
<span style="color: #222222;">,हल्दी पुते दिनों में तुम्हारी हल्दी हंसी, रेडियो में बजते संगीत से ताल मिलाती है ---दिनभर के बाद शाम देर से आती है और जल्दी लौट जाती है एक अपूर्व निजता मन को कस कर घेरती है उस डूबती दोपहर सी ,उस शाम देर तक देह का पोर पोर बजता रहा था एक हरियल पल --भी एक पल को उदास हो मुस्कुरा उठता है --फिर ऐसा भी होता ,जहाँ मन डूबता ,वहीँ किनारे हरी पत्ती के रंग में ,हर सिंगर के फूलों से गिरती खुश्बू से मन भर जाता तुम हो लगता है, कहीं आस -पास --वो तारीखें और वो भी जिसमें ऐसा कुछ नहीं हुआ वो तारीखें मुकम्मिल है अब भी , थी कम ज्यादा उन तारीखों में सोचे गए कई दिन रात गायब थे ---यूं हिसाबी -किताबी होना आपकी फितरत ना हो तो ,कहते हुए शर्मंदगी हो सकती है लेकिन वक़्त की फितरत अबूझ है यू पलटना और गिनना पल पल कभी मजबूरी हो जाती है और एक अजब करुणा में आद्र हो जाना ,अपने को स्मृतियों से गुणित कर लचल बना लेना तुम्हारी खातिर अच्छा ही लगता जाता है --पानी से गीलापन आग से ऊष्मा मिटटी से आकार लेता सौंधापन मेरे भीतर यही तो हो तुम बस तुम, सुनो ना सुनो में मिलूंगी इसी धरती और आकाश के भीतर कपिल धारा में नर्मदा के सबसे पहले सबसे ऊँचे जल प्रपात के पास अखंड कौमार्य लिए जहाँ नर्मदा, कुण्ड से निकल केवल सात किलोमीटर आगे तक ही तो चलती है,वहीँ जहँ धुप छनकर पानी में चक्राति हुई पैरों की बिछिया बन जाती है शाल वृक्ष से लिपटी हथेलियाँ में मेहँदी घुलती जाती है , पत्तों गुंथी हुई पगडण्डी घुमावदार सड़क के पार जहाँ सूखे शाल पत्र से पटा समतल मैदान है वहीँ, छल -छल पानी गूँज है, चार पग फेरों के बाद -तीन जन्मों के साथ उस गोलाकार सड़क पर जिसे मैंने सुना ही सुना है, का पूरा फेरा लूंगी ,हथेलियाँ मेहँदी रंग,और पायल की रुनझुन में आत्मा की सुवास से भर ,तुम्हारे पीले उत्तरीय वस्त्र के कोने से लिपटे बंधे मन से ,परकम्मपावासी का दृष्टी- आशीर्वाद लेते, </span><b><span style="color: red;">में मिलूंगी वहीँ- किसी जनम में, दिन डूबने से पहले हल्दी काया में, केया रंग चूड़ियों भरे हाथ -पीले जरी के पाट वाली --लाल साड़ी में ---सूरज की बिंदी माथे लिए सकुचाई आँखों से ---तुम मिलोगे ना --</span></b></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px; text-align: justify;">
<span style="background-color: white; font-size: x-small; text-align: start;"><span style="color: purple;"><i>अगर शरर है तो भड़के-जो फूल है तो खिले </i></span></span><div style="font-size: small; text-align: start;">
<span style="color: purple;"><i>तरह तरह की तलब, तेरे रंगे लब से है </i></span></div>
<div style="font-size: small; text-align: start;">
<span style="color: purple;"><i>सहर की बात --उम्मीदें -सहर की बात सुनो [फ़ैज़] </i></span></div>
</div>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-86963501561507324782015-04-14T10:42:00.001-07:002015-04-14T10:42:20.189-07:00जिनमे दर्ज है हमारा प्रेम /--बचे हुए खूबसूरत प्रेम की मानिंद---गिलहरियां<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;"><span style="color: blue;">खिलंदड़ी --गिलहरियां बहुत आसानी से </span></span><br />
<div style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
<span style="color: blue;">पीछा करती हें --एक दूसरे का </span></div>
<div style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
<span style="color: blue;">--वहाँ प्रतियोगिता नहीं है /उनकी बेहिसाब दौड़ती-फुदकती दुनिया में /-</span></div>
<div style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
<span style="color: blue;">-एक आरामदायक सुरक्षा है /उजली सुबहों में घास के बीज कुतरती गिलहरियां मुझे पसंद हें /-बेहद पसंद है </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
-उतरती दोपहर और शुरू होती शामों से पहले वाले सन्नाटे में /--</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
पत्तों की हरी रौशनी में झुरमुटों के बीच /उनका होना एक हलचल है /-</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
-पत्तों के गिरते रहने में भी /</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
--तब भी ,जब सुकमा की झीरम घाटी में विस्फोट होता है /</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
और पत्तों की नमी यकायक सूख जाती है</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
/--भरभराकर टूटते शब्द बौने होते जाते हें /</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
तब कड़क और कलफदार चेहरों वाली इस दुनिया को /-</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
-अपनी गोल किन्तु छोटी और चमकदार आँखों से ,</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
चौकन्ने कानों से, पंजो के बल /पेड़ के तने को नन्हे पंजों से थामे / -खड़ी हो देखती है </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
,झांकती ,सुनती है गिलहरियां- अगल बगल -</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
---मेरी समझ से---लचीली गिलहरियां दुःख ताप ईर्ष्या से परे</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
दुनियावी चीजों को एक से ,दूसरे सिरे तक देखती मिलेंगी /-</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
-एक लम्बे विलाप को पूर्ण विराम देती सी /</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
-</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
-बांस की दो चिपटियों के बीच दबकर निकलती सी उनकी आवाज़ की मिठास /-</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
<span style="font-size: 13.3333339691162px;">-किसी लोकवाद्य यंत्र की तरह बजती हुई निष्कपट /</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
उस-- इस समय में /-जिनमे दर्ज है हमारा प्रेम /-</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
-प्रेम के उत्सव की तरह ,मंगलगीत गाती बीतती है /</div>
<div style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
<span style="color: #222222;">-</span><span style="color: lime;">-फिर आना तुम याद बहुत कहती--/शर्माती शाख की सबसे ऊँची फुनगी तक दौड़ जाती है </span></div>
<div style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
<span style="color: lime;">और तमाम तरक्कियों के बावजूद बदत्तर होती जाती इस दुनिया में /</span></div>
<div style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
<span style="color: lime;">-बचे हुए खूबसूरत प्रेम की मानिंद / हर सुबह -हर दिन </span></div>
<div style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
<span style="color: lime;"> घास के एक नन्हे तिनके के सहारे थाम लेती है, पूरा आकाश /-</span></div>
<div style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
<span style="color: lime;">उन्ही बहादुर गिलहरियों से मुझे बेहद प्रेम है </span></div>
<div style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
<span style="color: lime;">---बेहद </span></div>
<div style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13.3333339691162px;">
<span style="color: #222222; font-size: x-small;">पिछले साल सुकमा के झीरम घाटी में नक्सली हमले [विस्फोट ]</span><span style="color: #222222; font-size: x-small;"> के बाद<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiWHewvKN-4ysTu_p1mdhC1_POipMPI04UzQQ2PQ6rWvbvKSead3bhatj7lvxmJV2yn5BOLop1Wr859tRP5ebetYzzUJnynEXImtkzdS1PSXCzPlnotrwBtTvpQDbq-KyVaQbQfyrXNy8/s1600/16102010324.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiWHewvKN-4ysTu_p1mdhC1_POipMPI04UzQQ2PQ6rWvbvKSead3bhatj7lvxmJV2yn5BOLop1Wr859tRP5ebetYzzUJnynEXImtkzdS1PSXCzPlnotrwBtTvpQDbq-KyVaQbQfyrXNy8/s1600/16102010324.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSDA4RL1MwBo2voYMpMMmeV4cCnSiGiHwocPXXQiMKR1QvjCKTkO9wU2tIJya_krCdqkqaBZF1S-TXJZqhiC202xrinL0RXHZRNRczmQrkjNUvrX5453XMp6nQvxJ7nX0HgFfLekjtvHQ/s1600/2014-08-16+02.09.19.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSDA4RL1MwBo2voYMpMMmeV4cCnSiGiHwocPXXQiMKR1QvjCKTkO9wU2tIJya_krCdqkqaBZF1S-TXJZqhiC202xrinL0RXHZRNRczmQrkjNUvrX5453XMp6nQvxJ7nX0HgFfLekjtvHQ/s1600/2014-08-16+02.09.19.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2AAEgzqtHYuKpbcoApfFy-tbzBRdjzZRWtMOEpxp0NPhnj2DHKkoJPBoj-L9Yt1UPqmQzcR7Z4NmvWs7dlDK8iCkiFfWeQZXBeSJaCDESnpFxoCqxyjD2uS4IMKark201SVvJD0RnOYA/s1600/16102010338.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2AAEgzqtHYuKpbcoApfFy-tbzBRdjzZRWtMOEpxp0NPhnj2DHKkoJPBoj-L9Yt1UPqmQzcR7Z4NmvWs7dlDK8iCkiFfWeQZXBeSJaCDESnpFxoCqxyjD2uS4IMKark201SVvJD0RnOYA/s1600/16102010338.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
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विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-38557546077263136012015-04-09T05:47:00.001-07:002015-04-09T05:47:24.670-07:00किसी मुकम्मल स्पर्श से जीवित होती देह --फिर छूट जाने से डरती है तेज गले से रुलाई का भरभराना रोने से बदत्तर --कितना दम घुटता है कोई माप नहीं, एक तपिश देह में उतरती है --<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;"><span style="color: #741b47;">दो आवाजों को अलगाना मुश्किल हो जाता है जब एक ही समय में एक ही सुर में वो सुनाई दे ---ठीक वैसे ही भीतर के दृश्य धूप से छनकर बाहर की ओर एक बड़े से सेमल के पेड़ की झुकी हुई शाखाओं को भेद जमीन पर आते हैं, उनका दिखना ही अद्भुत है --सेमल की बड़ी बड़ी हरी गदबदी नरम रूई वाली कच्ची फलियों में अब दरारें पढ़ना ही चाहती हैं --इन्तजार तो धूप को भी है, फलियों की छोटी बड़ी परछाइयाँ हवा संग संग जमीन पर पड़े आड़े तिरछे दृश्यों को दुलराती हुई अलसाई दिखलाई पड़ती है</span></span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;"> धूप लम्बी शाखों पे चढ़ते -उतराते एक पतली कांच की लकीर की मानिंद लचीली डोलती है ---हतवाक'' समय में सब कुछ साफ होता है कुछ आवाजें भी, में तो कहीं गया ही नहीं था सच कहीं जाने के लिए ---तुम्ही बताओ तथागत ऐसा कैसे चलेगा --एक सिरे पर आवाज कंपकपाती तो दूसरे सिरे पर स्थिर हो रह जाती है कबूतर का एक जोड़ा भरी दोपहर क्लॉक वाइज़ ,एंटी क्लॉकवाइज घूमता हुआ सोच को फिर वहीँ लौटाता हुआ चकित करता है --कुछ चीजें जीते जी अश्मीभूत होती जाती हैं तो दूसरी तरफ फूलों की शिराओं में प्रतिध्वनियों की शक्ल में जी उठती है --सन्नाटे वाली दोपहर में दबी दबी हंसी वाली धूप थोड़ा आगे सरकती है ,बीतती है आहिस्ता -पहुँचती है शाम तक सुस्त चाल से --लेकिन शाम देर नहीं करती चुस्त चाल से लम्बूतरी हो पहुँच ही जाती है अँधेरे के निकट --अँधेरे में सुझाई नहीं देता कहाँ सुख है और कहाँ पीड़ा --</span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
कोई उदासी कोई ,कोई कुंठा ,कोई याद कोई मोह ,कोई मुक्ति -और ऐसा ही कोई निश्छल दिन कोई रात में गड़मड़ होता है कोई ठौर नहीं ,बेस्वाद और तूरा सा दिन दूर से नजदीक की चीजों को देखता हुआ ख़त्म होता है और रात पास आकर दूर सोचती है --हरमोड़ पर भटकाव --हर भटकाव में ढेर से रास्ते --ठिठक जाओ या एक चुन लो या लौट जाओ सब कुछ आपकी सोच पर निर्भर करेगा ---लौटो तो दस पांच खिड़कियों वाला घर भी अंदर से रोशन नहीं करता, लेकिन क्या जरूरी है हर खिड़की से रौशनी भीतर आये --लेकिन इन्ही में से किसी दिन या रात तयशुदा मृत्यु जरूर आएगी --मृत्यु का भय घेरता है ---'कौन हो तुम ''पूछते ही वह धूप की परछाई में गुम होता है किसी मुकम्मल स्पर्श से जीवित होती देह --फिर छूट जाने से डरती है तेज गले से रुलाई का भरभराना रोने से बदत्तर --कितना दम घुटता है कोई माप नहीं, एक तपिश देह में उतरती है --जल में उँगलियाँ डूबा देना एक सुकून एक ठंडक एक राहत --लेकिन कब तक ? एक चुप्प सी रात भी बीत जाती है -बहुत उदास किया एक उदास दिन -रात ने जो बीत गया अभी अभी, डब डब सी आवाज़ करता पानी में--<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMlG_5veEr3BTVUkwuV_Uyzb4q9BlGzH8WI1c0C6mfPmd7U579Pim1USIMC4H59sVMhYud2cxaEWwS2AY-ABOalQD88fii5J2hOwUbJowIbfQ2Er_atuleP6Iu_7QP6n6M83-VjNI7Uno/s1600/iped+5.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMlG_5veEr3BTVUkwuV_Uyzb4q9BlGzH8WI1c0C6mfPmd7U579Pim1USIMC4H59sVMhYud2cxaEWwS2AY-ABOalQD88fii5J2hOwUbJowIbfQ2Er_atuleP6Iu_7QP6n6M83-VjNI7Uno/s1600/iped+5.jpg" /></a></div>
उसे डूबते देखना भी कितना अजीब है चलो रास्ता दिखाओ कोई आदेश सर माथे चढ़कर देता है -कहीं जाने के लिए नहीं -बस ज़रा टहलते हैं -वो रात ख़त्म होती है जिसका कोई जायज अंत नहीं होता </div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: #222222;">कोई तो है, कोई सपर्श अब भी बचा है, कोई प्रेम में पगा बैठा है- कैसा दुःख -अँधेरा या डर ये एक आश्चर्य समय होता है जिसमें रहने का सुख -दुःख सपर्श राग विराग --सारे कुछ को मुठ्ठी में दबाये रहना और इसी सच बीच जीना -</span><span style="color: blue;">-पंख ऊग आये तो कौन ना चाहेगा उड़ना उसे तो वैसे भी पसंद नहीं, ठहर जाना गति से बचकर --अपनी ही इक्षाओं की नजर कैद से स्वाभाविक मुक्ति खुश भी तो करती है --कब लौटोगे ? लौटोगे तो जरूर --सवाल के जवाब का इन्तजार कौन करे --तुम्ही बताओ हे तथागत उस उजल और साफ दिन में जैसा आज यहाँ है ये दिन तब जब एक समरस समय में तालाब जल बीच में एक सौ आठ रक्त-चम्पा के फूलों से शिव का अभिषेक करुँगी --''एका दिवशी ये होणार'' --एक दिन ये होगा जरूर </span></div>
<div style="font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: blue;">[</span><span style="background-color: white;"><span style="color: red;"><b>समय और धीरे चलो --बुझ गई राह से छाँव --दूर है पि का गाँव --धीरे चलो</b> </span></span><span style="background-color: white; color: #222222;">]</span></div>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-54435706735064692262015-04-02T07:13:00.001-07:002015-04-02T07:17:28.831-07:00बचपन के डर हमेशा कमजोर नहीं होने देते समय के साथ वो आपके व्यक्तित्व को जिम्मेदार और मजबूत बनाते<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #3d85c6;">व्हाट्स एप्प पर कुछ दिन पहले एक मैसेज कुछ इस शक्ल में था ,म sssssssssम -मी ईईईईईईई''सुनोsssनाsss -वो एक लम्बी बात थी,बेटी ने जो कहना चाहा,वो बाद में, इस संस्मरण के बाद -</span>--<br />
चार साल की बेटी को शाम अक्सर सामने वाले पार्क में जूते मोज़े फ्राक पहनाकर घुमाने ले जाती थी वो भोपाल का पांच नंबर बस स्टॉप कहलाता है उस पार्क में एक छोटा सा तालाब था जो आज भी है,जिसमें तब भी, आज भी ढेर से सुन्दर कमलफूल खिले रहते हैं, लगता था की बस उन्हें एक टक देखते ही रहो, पार्क में ही एक साइड में मंदिर और दूसरी तरफ बच्चों के खेलने के लिए छोटे झूले और करीब छह फूट ऊँची एक फिसल पट्टी थी --मेरी बेटी आहिस्ता अपने नन्हे क़दमों से ऊपर चढ़कर बैठ तो जाती थी लेकिन ऊपर से नीचे फिसल कर आने में उसे डर लगता था, तब ऊपर से नीचे आने में उसे मेरे सपोर्ट की जरूरत होती और में उसका होंसला आफजाई करती उसे पुश करती और वो धीरे धीरे फिसलते हुए नीचे आती फिर उसके पैर रेत के ढेर में धंस जाते --वो जोर से हंसती मानो अपने ही बल पर कोई जंग जीत ली वो समझ ही नहीं पाती कि उसकी इस बहादुरी में, माँ का कितना बड़ा सहारा है --वो रेत भरी हथेलियों को फ्राक से पोंछते हुए फिर से दुगने उत्साह से पीछे सीढ़ियों की तरफ दौड़ जाती,लेकिन हर बार ऊपर जाकर उसे माँ के सहारे की जरूरत पड़ती ---एक बार मैंने उसे ऊपर चढ़ते हुए देखा, फिर मेरा ध्यान बंट गया में भूल गई की ऊपर जाकर उसे फिर मेरे सहारे की जरूरत होगी, में तालाब के किनारे खिले कमल के फूलों को देखने में मग्न थी - तभी एक चीख सुनाई दी -म sssssमी ssईईइ लगा जान निकल गई मैंने पलटे बिना ही बेटी के लहूलुहान होने की कल्पना कर डाली ---और उसकी तरफ तकरीबन भागते हए देखा बेटी उसी पॉइंट पर ऊंचाई पर अटकी हुई थी --करीब पहुंची तो वो डरी हुई सी साफ साफ आवाज में बोली मम्मी आप उधर फूल देख रही हो मुझे देख ही नहीं रही हो --वो-रुआंसी सी-- थी मुझे यहाँ ऊपर से डर लग रहा है मम्मी मैंने उसे आहिस्ता से ऊपर से नीचे की ओर फिसलने में मदद की --वाकई में,मैं उस दिन बेहद शर्मिंदा थी --फिर मैंने कभी उसकी तरफ से इस जिंदगी में कभी गफलत नहीं की ---सोचकर ही डर जाती हूँ की ऊपर से वो गिर जाती तो ---?आज वो करोड़ों मील मुझसे दूर है लेकिन उसे मेरी ऐसी ही अब भी मानसिक सम्बल की जरूरत वक़्त -बेवक़्त पढ़ जाती है समझती हूँ वो कहती नहीं लेकिन में जानती हूँ --उस वाक्यात के बाद फिर मैंने कभी आज तक उसमें गिर जाने का भय तक पैदा नहीं होने दिया ना ही कहीं गिरने दिया ना डरने दिया वक़्त जरूरत जहाँ जरूरत हुई उसके लिए न्यायोचित लड़ाई भी लड़ी उसे बुलंद होना उसकी प्रिंसपल के सामने बोलना, सच और झूट में फर्क करना सिखाया दूसरों को अपनी मदद से ऊपर उठाना भी --हर हाल में जीना लेकिन मजबूर होकर नहीं थोड़ी मुश्किलें तो अब भी आती हैं लेकिन वो खुश है और में भी<br />
वाहट्स एप्प पर जो चार - पांच दिन पहले उसका[बुलबुल] जो मैसेज था वो ही बचपन वाली आवाज में, वो इस लिए की उस दिन सुबह से उसके कई मेसैजेस थे ,दो चार मिस्ड काल भी,, अमूमन मोबाईल मेरे आस पास ही रहता है लेकिन उसी दिन बैटरी डाउन थी चार्जर पर लगा कर में बाई के साथ घर की साप्ताहिक सफाई में लग गई --दोपहर में जब देखा तो वही मम्मी वाली लम्बी टोन में लिखा -हुआ --में परेशान हो गई कई फोन और मैसेजेस दिए लेकिन कुछ उत्तर नहीं मिला आखिरकार रात उसने फोन किया -बोली एग्जाम था ,आपकी याद आ रही थी सोचा आपसे बात कर लूँ - लेकिन आप का तो फुरसत ही नहीं,मुझे उसका बचपन याद आया, ना <span style="color: #38761d;">बचपन के डर हमेशा कमजोर नहीं होने देते समय के साथ वो आपके व्यक्तित्व को जिम्मेदार और मजबूत बनाते [मेरी बेटी बुलबुल इस वक़्त कोलोराडो यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग के फोर्थ सेमेस्टर की पढाई कर रही है और मुझे आज उसकी जोरदार याद आ रही है ]</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-R9RDDSoHV8U/VR1N9cPjbBI/AAAAAAAABeY/-o9-iwKJ7O8/s1600/20150402_185119-1-1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-R9RDDSoHV8U/VR1N9cPjbBI/AAAAAAAABeY/-o9-iwKJ7O8/s1600/20150402_185119-1-1.jpg" height="320" width="203" /></a></div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-z8u6dwZUf-g/VR1OhJozoiI/AAAAAAAABeg/QBxQgLCMWe0/s1600/20150402_185054-1-1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-z8u6dwZUf-g/VR1OhJozoiI/AAAAAAAABeg/QBxQgLCMWe0/s1600/20150402_185054-1-1.jpg" height="215" width="320" /></a></div>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-20058824578017828452015-03-13T04:03:00.000-07:002015-03-13T04:03:56.234-07:00उसका एक अव्यक्त दुःख , एक आर्तनाद रोजाना मुझे सुनाई देता है --मुझे रूकना पड़ता है उसके पास,सांत्वना देती हूँ - कहती हूँ कब तक ठूँठ रहोगे एक दिन यहीं से कोंपले फूटेंगी तब तुम चारों तरफ से लहराती शाखाओं वाले सुन्दर वृक्ष बन जाओगे --तब देखना किसी को भी याद ना रहेगा की तुम कभी इतने निरीह रहे होगे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-JWsZ7HhYPZU/VQLDiciwq3I/AAAAAAAABcI/PB5pNnxD6Og/s1600/tesu%2B1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-JWsZ7HhYPZU/VQLDiciwq3I/AAAAAAAABcI/PB5pNnxD6Og/s1600/tesu%2B1.jpg" /></a></div>
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<a href="http://2.bp.blogspot.com/-SyPYqtHGK6E/VQLDsofZeJI/AAAAAAAABcQ/f41J-hoEkI4/s1600/tesu%2B2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-SyPYqtHGK6E/VQLDsofZeJI/AAAAAAAABcQ/f41J-hoEkI4/s1600/tesu%2B2.jpg" /></a></div>
<ol style="text-align: left;">
<li style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; color: #38761d; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">हमारी कालोनी के पार्क में एक पलाश के पेड़ ने ,आज फिर दिल दुखाया पार्क के एक सिरे से, थोड़े पहले ये टेसू का पेड़ अपने सहोदरों से बिछड़ा महसूस होता है मेरे ख्याल से --न्यू भोपाल की बस्ती बनने के क्रम में छोटे जंगलों को काटा छांटा गया होगा --कुछ पेड़ काटे गए होंगे --कुछ को जड़ से उखाड़ा गया होगा, पता नहीं ये किस कर्मचारी की दयालुता की वजह से बच गया या अपनी कमसिन फूलों की खिली हुई डालियों की वजह से, ये तो पता नहीं ,किन्तु ये पार्क की हद में है लेकिन इसका आधा तना सड़क के बहार तक फैला हुआ है जो बाउंड्री वाल के सहारे बहार की ओर सड़क तक अपनी शाखाओं के साथ फूलों से लदे - फदे होने के बावजूद ,उदास नजर आता है</span><span style="background-color: white; color: #38761d; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;"> </span></li>
<li style="text-align: justify;"><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">इसके ढेरों पत्तों और उनकी उपयोगिता को भी आज भुला दिया गया है कभी जन्म मरण आयोजनो कथा पाठ तो प्रसाद में इसके बने दोनों पत्तलों के बिना काम ही नहीं चलता था और आज किसी को जरूरत ही नहीं ,मनुष्य ने सभ्य होकर हर चीज का विक्लप ढूंढ लिया है हाँ बस कहावतों में याद रखा है --फिर वही ढाक के तीन पात ---</span></li>
<li style="text-align: justify;"><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">--जमीन से थोड़ा ऊपर ही इसकी दो विभाजित भुजाओं में से किसी ने एक भुजा को काट दिया है लगता है जैसे कोई हादसा हुआ है --पलाश वहीँ से ठूँठ नजर आता है --विकलांग भी दुःख होता है उसे यूं देख कर , नजदीक जाने पर --लगता है इस हादसे के जिमेदार लोगों की शिकायत करना चाहता है -लेकिन कोई सुने तब ना -किसे फुरसत क्षण भर रुके उसके पास। -अपनी एक ही भुजा से ऊपर की और जाता हुआ ये टेसू मुझे निरीह युवा पुत्र की तरह दिखाई पड़ता है ---</span></li>
<li style="text-align: justify;"><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">उसका एक अव्यक्त दुःख , एक आर्तनाद रोजाना मुझे सुनाई देता है --मुझे रूकना पड़ता है उसके पास,सांत्वना देती हूँ - कहती हूँ कब तक ठूँठ रहोगे एक दिन यहीं से कोंपले फूटेंगी तब तुम चारों तरफ से लहराती शाखाओं वाले सुन्दर वृक्ष बन जाओगे --तब देखना किसी को भी याद ना रहेगा की तुम कभी इतने निरीह रहे होगे बस खुश् रहा करो और इन्तजार करो उस दिन का जब लोग ठिठक कर तुम्हारे पास रूकेंगे तुम्हे निहारेंगे तब तुम अपनी डाल पर खिले सैकड़ों फूलों संग दुलार प्यार में ही व्यस्त होगे </span></li>
<li style="text-align: justify;"><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">टेसू के खुरदुरे तने पर काली चीटियों की कतार ऊपर तक जाती दिखाई पड़ती है जो फूलों के गुच्छों के पास जाकर खो जाती है ---चीटियों की मीठी प्यास बुझाता --खुद टेसू कितना प्यासा है, कौन जनता है --उदासी में भी मुस्कुराता हुआ , इसके ठीक सामने --डा मित्रा का बँगला है जो आजकल अपनी चमचमाती बड़ी सी सफेद गाडी को इसकी शाखाओं के नीचे खड़ा कर देते हैं --सुबह देखो तो लगता है किसी युवती के सफेद दुपट्टे पर रेशमी सिंदूरी टेसू फूल कढ़े हो --यहाँ वहां ये एक अद्भुत नजारा होता है --लेकिन कारवाश वाला बड़ी बेरहमी से उन्हें बुहारता हुआ यहाँ वहां बिखेर देता है --फूल गिरते हुए टायरों के नीचे बिखरते -कुचलने को अभिशप्त होते जाते हैं, डा मित्राका परिवार शायद ही कभी इसको अपनी प्यार दुलार भरी नजरों से देख पाया हो ---काश ये मेरे घर के सामने होता --इसके दहकते फूलों में कितनी ऊर्जा है इसके रंगों में कितनी प्रियता है वो समझ पाते --जिंदगी में वो सब आपके पास नहीं होता जिसकी आपको दरकार होती है ---देवताओं के प्यार से अभिशप्त टेसू के फूलों को इन दिनों मंदिर में देवी देवताओं की मूर्ति पर भी अर्पित कर आती हूँ शायद कभीये शाप मुक्त हों और इन्हे भी चौतीस करोड़ देवी देवताओं का पवित्र और असीम दुलार -प्रेम मिल सके अन्य फूलों की तरह और इसके पेड़ को भी वो ही मान्यता मिले जो बरगद और नीम पीपल की है --कोशिष्टो कर ही सकती हूँ </span></li>
<li><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;"><br /></span></li>
<li><span style="color: #0b5394; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">[व्यक्ति एवं अन्य द्वारा निर्मित ऐसी कई स्थितियों के अलावा भी संसार में बहुत कुछ है जिनके अस्तित्व से जुड़कर हमारे विचार नवीन ऊर्जा से भर जाते हैं --जैसे वृक्ष नदी पर्वत पहाड़ पशु पक्षी --जो जीवन की गहरी जड़ों तक ले जाते हैं हमारी स्मृतियाँ ताज़ी करते हैं और सबसे ज्यादा आसानी से याद रखने वाली बात को याद रखने और भूल जाने वाली बात को भूल जाने में सहायक बनते हैं --मेरा अनुभव तो यही है ---]</span></li>
</ol>
</div>
विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-32490529575562751382015-03-07T05:17:00.001-08:002015-03-07T05:17:24.566-08:00 सोचते ही पहुँच जाना भीतरी हदों तक --बेछोर आसमान में ,बियाबान जंगलों में पुराने अस्त्रों से बार बार मुश्किलों को, काट छांट कर पहुंचना तुम तक, एक राग, एक प्रियता का बुलाना। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">जब तुम्हारी लय टूटती है,असंगत होती जाती है -अच्छा नहीं लगता एक छोटी सी जगह में छोटे-छोटे शब्द अनुत्तरित हो घायल कबूतरों की तरह लौटते हैं,--सुरमई शाम में, अपने मौन में अपनी यात्रा से ऊबा हुआ थोड़ा- थका सा ,दिन डूब ही जाता है ,तारीखें बदलती जाती हैं लेकिन कुछ चिन्हित पल रूक रूक दस्तक देते ही जाते हैं उस तरफ से कोई आहट ही नहीं जैसे कोई बीहड़ शुरू हो -दूर तक- देखो तो कुछ सुझाई नहीं देता -किसी पल को तो सन्नाटा अपनी जद में लेने की जिद्द भी करता है </span><span style="background-color: #b6d7a8;"><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">निजी वजहों से बिछुड़ते पल धूसर </span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">हो रह जाते हैं यकीन जानो दिल भी दुखता है बेहद तकलीफ भी होती है ये टोकरी भर लोग मेरे तुम्हारे बीच मन भर पहाड़ कैसे बन जाते हैं, नहीं जान पाती --ये तो मानोगे मुझे सब रंग अच्छे लगते हैं --बस यही धूसर रंग नहीं, सन्नाटे का चुप्पी का ये रंग, हद दर्जे तक इससे मुझे नफ़रत है --बाकी सब रंग मुझे लुभाते हैं-अपने खुश रंग में --फिर भी रंगो से मुझे डर लगता है--तुम भी जानते हो -सफेद सुबह जीवन से भरा और शाम काला श्याम सा बस ये दो रंग ही अपनी सपाट बयानी में ज्यादा आकर्षित करते हैं-हालाँकि रंगो को ढोंगी होना नहीं आता,तुम्हारी कविताओं के रंगों को तो बिलकुल भी नहीं, कितनी सरलता से लिपट जाते हैं मुझसे-फिर दिनों हफ़्तों महीनो लिपटे लिपटे ही मुझमें समा जाते हैं। </span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;"> लेकिन पिछले कई सालों से जबसे तुम्हे जाना है --कच्चे पीले फूलों से लदा -फदा एक प्रौढ़ टेबुआइन मेरे सिरहाने वाली खिड़की की चौखट तक आकर अपनी भव्यता के साथ खिल-खिल करता,खुश करता है उसके रूई जैसे नर्म गोलगोल फूल हवा चलते ही अंदर सिरहाने तक फैल जाते हैं </span></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-GqKjytGCAPk/VPr5_6QiYZI/AAAAAAAABbs/UAJKm5nGdSA/s1600/20150307_171359.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-GqKjytGCAPk/VPr5_6QiYZI/AAAAAAAABbs/UAJKm5nGdSA/s1600/20150307_171359.jpg" height="180" width="320" /></a></div>
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<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
सिरहाने खुशियां हो तो भरपूर नींद का आना लाज़िमी है--किन्तु हर दिन तो ऐसा नहीं होता -खुशियों और उदासियों के सामानांतर स्मृतियाँ चलती है मन को मथती हुई. उस दिन तुम्हारी हथेलियों में कच्चे आम्रबौर की खुशबू थी वो हथेलियाँ मेरे हाथों में थी और उड़ती ख़ुश्बू आँखों से भर एक दूसरे पर उलीचते हुए हम दोनों -तुम्हे जाना था,मैंने बस जाते हुए महसूस किया तुम्हे,देखा नहीं,देख ही नहीं सकती थी दर्द आँखों में घुलता है बहता नहीं - उस शाम के बाद देर तक रात भी जागी रही संग-घर से लगे उजाड़ पार्क को नगर निगम वाले देर रात तक रेट गिट्टी, मिटटी से-पूरते रहे स्मृतियों की आवाजें भी आती रही --भरती रही सुबह तक , कहते हैं, जिस साल आम्र ज्यादा फलता है , वो साल शुभ शुभ होता है एक हठ भरी कोशिश --अब ना छूटेगी ना घटेगी वो शुभ महक ,दिन बढ़ते हैं तपे हुए दिनों के साथ धत्त'' हठात ये सोचना की ऐसा भी होता है --और सोचते ही पहुँच जाना भीतरी हदों तक --बेछोर आसमान में ,बियाबान जंगलों में पुराने अस्त्रों से बार बार मुश्किलों को, काट छांट कर पहुंचना तुम तक, एक राग, एक प्रियता का बुलाना। सजीव स्मृतियों का चलना कोई समृति भूलती नहीं कोई सपर्श छूटता नहीं ---बिना सलवटों वाला शांत समुद्री हरा हरा रंग - मन को सजल बनाय रखता है --लेकिन सृष्टि का क्रम टूटता है एक दुनियादार औरत अंदर बैठी डराती है अपनी जिरह मुश्किल में डालती है सच और सच के सिवा कुछ नहीं वर्जित क्षेत्र में अपनी पहचान मत खोना ?--उसकी बातों से दूर निर्भीक बन सोचती हूँ तुम्हे, बस तुम्हे सोचना ही तो जिलाता है भीतरी कोई अभाव, जिसे लबालब भरता है अपने एकांत और बाहरी शोर से उपजी एक तरंग एक घटना जिसके तारतम्य में विनिर्माण को गूंथना और फिर देखना देर तक उजालों में दर्ज होती तुम्हारी उपस्थिति --एक नैतिक अन्वेषण की मानिंद जिसे में आखिर खोज ही लेती हूँ अपनी पनीली खोजी आँखों से एक कच्ची महक बजती है --डूब जाने को आतुर </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
[<i style="background-color: #9fc5e8;">तनहा उसे अपने दिले तंग में पहचान हर बाग़ में हर दश्त में हर संग में पहचान </i></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<i style="background-color: #9fc5e8;">हर आन में हर बात में हर डग में पहचान,आशिक़ है तो दिलबर को हर रंग में पहचान ]</i></div>
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<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
</div>
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<div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: auto; text-align: start; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: auto; word-spacing: 0px;">
<span style="background-color: #9fc5e8;">[नज़ीर] </span></div>
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विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-23606129305811649192015-02-28T09:49:00.002-08:002015-02-28T09:49:51.010-08:00-देह अद्भुत शान्ति की खोज में अपने से ही नितांत अलग थलग चल पड़ती है ---चरम उपलब्धि से कुछ कदम पीछे ही, राग -विराग ,आसक्ति -अनासक्ति ,मिलन--बिछोह और समय की क्रूरताओं में हमारी समिल्लित अनुभूतियों के बीच आकार लेता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;"><b style="background-color: #cccccc;">में कहना चाहती थी,और नहीं कह पाई,उस दिन </b>--</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">उसका मिलना मतलब अक्सर कुछ ना कुछ छूट जाना--और चले जाने के बाद सैकड़ों बातों से मन भर लेना --येभी- वोभी जाने क्या क्या कहना, रह </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small; text-align: left;">जाना </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;"> </span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;">- </span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;">दो चीजें ही हमें एक जुट,जुड़े हुए और एक रखती है --तुम्हारा शिद्दत से लौटना और मेरा इन्तजार --भीतरी और बाहरी-</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small; text-align: left;">और फिर लौटकर </span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;">--मेरा पुकारा गया नाम, जब --आवाज फकत आवाज नहीं होती है</span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;"> </span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;">उस वक्त वो --एक आख्यान होता है - </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px; text-align: left;">
<b><i style="background-color: #eeeeee;"><span style="font-size: 12.8000001907349px; text-align: justify;">समय के अजनबी रंगो ,रोशनियों शब्दों की बाढ़ में --बहुत भटकन और अंतराल के बाद मिलने वाला चेहरा सचमुच अपना है, संशय से मन कुलबुलाता है ---तुम्हारे चेहरे पर टिकी मेरी आँखें बस मूंद सकती है ----उधेड़बुन में भटकते शब्द कुछ अर्थ बुन पाते तभी ये सोच कि - जानती हूँ भटकाव जिंदगी को गहराई देते हैं -कितना अच्छा होता --आदमी किताब की तरह खुल तो पाता। </span><br /><span style="font-size: 12.8000001907349px; text-align: justify;">अक्सर दुःख निराशाओं के मायने ढूँढ़ते हैं --मेरे प्रयत्नो में मुक्ति की कामना नहीं होती वहां -कारण और परिणामों का विश्लेषण भी नहीं होता --इसलिए दुःख भी नहीं , </span></i></b><br /><span style="font-size: 12.8000001907349px; text-align: justify;">जानते हो- जिस समय में तुम नहीं होते, भीतरी अनुभव संसार खाली सा अपने अधूरे आपे के साथ विकलांग हो कर रह जाता है --एक बेसुरी चुप्पी -जिसमें -फरियाद की कोई लय नहीं रूखा सूखा सा-- </span><br /><span style="font-size: 12.8000001907349px; text-align: justify;">एक </span><span style="font-size: 12.8000001907349px; text-align: justify;">ध्यानाकर्षण की सूचना की तरह --दूसरे छोर के शोर गुल में अनसुनी -गुम हो रह जाती है --क्या कहूँ बस अपना वास्ता ही दे सकती हूँ कितनी जकड़न -सिहरन एक रात बिन सोये बीतने की थकान -भरम हो जाता है --इस सत्य के साथ की में बस वो हिस्सा हूँ --जहां भय और इक्षा का एक सा चेहरा है, जिसे तुम्हारी भीतर वाली आवाज पहचानती है ये --सोच कि -तुम्हारे लिए इस कदर जरूरी क्यों है दुःख का अपने साथ बनाय रखना ? दूर दराज के ठिकानो में ढूंढ आना फिर बेहाल होना ---और नहीं मिलना खोई हुई चीजों की तरह एक बैचैनी --थोड़े संदेह की तरह की, मिलोगे भी या नहीं शंका-कुशंका के कुहासे में चीजें साफ नहीं होती एक अहसास की, इतनी आवाजों में से कौनसी पद चाप देर तक सुनाई देती रहेगी ,सुख तो सापेक्ष है --वसंत आते आते रूक जाता है एक हद के बाद -<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjroJOK-2d8bUOp0BOgrLzVfaYyKwIK98rXm9EUca3B-0-Jj1TIMF2zvLYHpDIV4xCivPM2LRyyrrMvLs_ytkljg1t5fTyVvwh3frGYpyEKrNHm8HzxgFo1kHMt_abYQKMjDg7jDe4pki8/s1600/20150204_082821.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjroJOK-2d8bUOp0BOgrLzVfaYyKwIK98rXm9EUca3B-0-Jj1TIMF2zvLYHpDIV4xCivPM2LRyyrrMvLs_ytkljg1t5fTyVvwh3frGYpyEKrNHm8HzxgFo1kHMt_abYQKMjDg7jDe4pki8/s1600/20150204_082821.jpg" height="180" width="320" /></a></div>
-देह अद्भुत शान्ति की खोज में अपने से ही नितांत अलग थलग चल पड़ती है ---चरम उपलब्धि से कुछ कदम पीछे ही, राग -विराग ,आसक्ति -अनासक्ति ,मिलन--बिछोह और समय की क्रूरताओं में हमारी समिल्लित अनुभूतियों के बीच आकार लेता --हमारा बचा हुआ प्रेम,इसी उम्मीद पर तो बाढ़ को तैर कर --तूफान को पार कर --इस दुनिया को तुम्हारी ही आँखों से देखते हुए,कोई अगर बची हो उन अधूरी इक्षाओं को पूरा करना, जीना चाहती हूँ, असंभव में कुछ संभव जोड़ते हुए -उन -सारे सपर्शों को गंध में लपेट--झिलमिलाते हुए </span><span style="font-size: 12.8000001907349px; text-align: justify;">अधीर</span><span style="font-size: 12.8000001907349px; text-align: justify;"> दिन की तरह, दो शब्दों में बोला गया एक शब्द, शहद में गूंथा हुआ नाम , देह की परिचित भाषा में - दिनों हफ़्तों महीनो सालों जिसमें तुम उजाले की शक्ल में दिखाई देते रहते हो हरदम , अपने लिए, तुम्हारे लिए बचाये गए जीवन में, अपने वासन्ती आँचल के बालूचरि ताने- बाने में,एक भरा पूरा सच, जिसे इस जीवन में तुम्हारे सिवा कोई कुछ नहीं जानता</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px; text-align: left;">
<span style="font-size: 12.8000001907349px; text-align: justify;"><b><i> [''<span style="background-color: lime;">एक संभव दिन'' ---अपनी एक लम्बी कहानी का अंश ]</span></i></b></span></div>
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विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.com1