बुधवार, 12 मई 2010

काश कोई महसूस करता, मेरे शहर के तालाब की फैली....//-

काश कोई महसूस करता ,
मेरे शहर के तालाब की फैली ,
सीमातीत थरथराहट ,
और मरी हुई -बेजान पत्तियों की ,
लगातार कसमसाहट .
डोंगियाँ चली जाती है ,
इस पार से उस पार ,
अपने विकृत अस्तित्व तले ,
मरी हुई पत्तियों को ओर मारते हुए ,
और छोड़ जाती है ,मौन तालाब के अंतर पर ,
क्षण दो क्षण की हलचल ,
काश कोई महसूस करता ,
फिर वही लम्बी चुप्पी ,
और परत दर परत चढ़ती सी ,
प्रकम्पित उदासी ,
काश कोई महसूस करता .....
अपने कॉलेज की पत्रिका ''अभिव्यक्ति'' में प्रकाशित [१९८०]भोपाल के बड़े तालाब के किनारे बेहद खूबसूरत जगह बना एम्.एल बी कन्या महाविधालय जहाँ हम सभी दोस्त बैठकर ग़प- शप्प करते थे ...जिसके दूसरे छोर पर गर्ल्स होस्टल था ...और वहां रहने वाली ..लड़कियां
क्लासेस ख़त्म होने के बाद ..कॉलेज की बोट से ही उस पार जाया करती थी ...बेहद सरल और खूबसूरत उन दिनों की बात ही निराली थी ...