गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

बचपन के डर हमेशा कमजोर नहीं होने देते समय के साथ वो आपके व्यक्तित्व को जिम्मेदार और मजबूत बनाते

व्हाट्स एप्प पर कुछ दिन पहले एक मैसेज कुछ इस शक्ल में था ,म sssssssssम -मी ईईईईईईई''सुनोsssनाsss  -वो एक लम्बी बात थी,बेटी ने जो  कहना चाहा,वो बाद में, इस संस्मरण के बाद ---
चार साल की बेटी को शाम अक्सर सामने वाले पार्क में जूते मोज़े फ्राक पहनाकर  घुमाने ले जाती थी वो भोपाल का पांच नंबर बस स्टॉप कहलाता है  उस पार्क में एक छोटा सा तालाब था जो आज भी है,जिसमें तब भी, आज भी ढेर से सुन्दर कमलफूल खिले रहते हैं, लगता था की बस उन्हें एक टक  देखते ही रहो, पार्क में ही एक साइड में मंदिर और दूसरी तरफ बच्चों के खेलने के लिए छोटे झूले और करीब छह फूट ऊँची एक फिसल पट्टी थी --मेरी बेटी आहिस्ता  अपने नन्हे क़दमों से ऊपर चढ़कर बैठ तो जाती थी लेकिन ऊपर से नीचे फिसल कर आने में उसे डर लगता था, तब ऊपर से नीचे आने में उसे मेरे सपोर्ट  की जरूरत होती और में उसका होंसला आफजाई करती उसे पुश करती और वो धीरे धीरे फिसलते हुए नीचे आती फिर उसके पैर रेत के ढेर में धंस जाते --वो जोर से हंसती मानो अपने ही बल पर कोई जंग जीत ली वो  समझ ही नहीं पाती कि उसकी इस बहादुरी में, माँ का कितना बड़ा सहारा है --वो रेत भरी हथेलियों को फ्राक से पोंछते हुए फिर से दुगने उत्साह से पीछे सीढ़ियों की तरफ दौड़ जाती,लेकिन हर बार ऊपर जाकर उसे माँ  के सहारे की जरूरत पड़ती ---एक बार मैंने उसे ऊपर चढ़ते हुए देखा, फिर मेरा ध्यान बंट गया में भूल गई की ऊपर जाकर उसे फिर मेरे सहारे की जरूरत होगी,  में तालाब के किनारे खिले कमल के फूलों को देखने में मग्न थी - तभी एक चीख सुनाई दी -म sssssमी ssईईइ  लगा जान निकल गई मैंने पलटे बिना ही बेटी के लहूलुहान होने की कल्पना कर डाली ---और उसकी  तरफ तकरीबन भागते हए देखा बेटी उसी पॉइंट पर ऊंचाई पर अटकी हुई थी --करीब पहुंची तो वो डरी हुई सी साफ साफ आवाज में बोली मम्मी आप उधर फूल देख रही हो मुझे देख ही नहीं रही हो --वो-रुआंसी सी-- थी मुझे यहाँ ऊपर से डर लग रहा है मम्मी  मैंने उसे आहिस्ता से ऊपर से नीचे की ओर फिसलने में मदद की --वाकई में,मैं उस दिन बेहद  शर्मिंदा थी --फिर मैंने कभी उसकी तरफ से इस जिंदगी में कभी  गफलत नहीं की ---सोचकर ही डर  जाती हूँ की ऊपर से वो गिर जाती तो ---?आज वो करोड़ों मील मुझसे दूर है लेकिन उसे मेरी ऐसी ही अब भी मानसिक सम्बल की जरूरत वक़्त -बेवक़्त पढ़ जाती है  समझती हूँ वो कहती नहीं लेकिन में जानती हूँ --उस वाक्यात के बाद  फिर मैंने कभी आज तक उसमें गिर जाने का भय तक पैदा नहीं होने दिया ना ही कहीं गिरने दिया ना डरने दिया वक़्त जरूरत जहाँ जरूरत हुई उसके लिए न्यायोचित लड़ाई भी लड़ी उसे बुलंद होना उसकी प्रिंसपल के सामने बोलना, सच और झूट में फर्क करना सिखाया दूसरों को अपनी मदद से ऊपर उठाना भी --हर हाल में जीना लेकिन मजबूर होकर नहीं थोड़ी मुश्किलें तो अब भी आती हैं लेकिन  वो खुश है और में भी
वाहट्स एप्प पर जो चार - पांच दिन पहले उसका[बुलबुल] जो मैसेज था वो ही बचपन वाली आवाज में, वो इस लिए की उस दिन सुबह से उसके कई मेसैजेस थे ,दो चार मिस्ड काल भी,, अमूमन मोबाईल मेरे आस पास ही रहता है लेकिन उसी दिन बैटरी डाउन थी चार्जर पर लगा कर में बाई के साथ घर की साप्ताहिक सफाई में लग गई --दोपहर में जब देखा तो वही मम्मी वाली लम्बी टोन में लिखा -हुआ --में परेशान हो गई कई फोन और मैसेजेस दिए लेकिन कुछ उत्तर नहीं मिला आखिरकार रात उसने फोन किया -बोली एग्जाम था ,आपकी याद आ रही थी सोचा आपसे बात कर लूँ -  लेकिन आप का तो फुरसत ही नहीं,मुझे उसका बचपन याद आया, ना बचपन के डर हमेशा कमजोर नहीं होने देते समय के साथ वो आपके व्यक्तित्व को जिम्मेदार और मजबूत बनाते [मेरी बेटी बुलबुल इस वक़्त कोलोराडो यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग के फोर्थ सेमेस्टर की पढाई कर रही है  और मुझे आज उसकी जोरदार याद आ रही है ]