बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

कलमकारी भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है

कलमकारी भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है
कपड़े पर जन जीवन ये कलमकारी कहलाती है,दक्षिण में ये कला खूब विकसित हुई ,ये कला एक श्रम साध्य कार्य है ,चित्र को वेजिटेबल डाय द्वारा चार पांच दिन में उकेरा जा कर तैयार किया जाता है , इसे इमली के बीज उसके पानी ,फिटकरी के घोल से बार बार निकाला जाता है ,इमली की लकड़ी के कोयले से ही आकृति उभारी जाती है,ये पूरी तरह से केमिकल रंगों से मुक्त होते है,इस कारण महंगे भी होते हैं , इस कला के कलाकारों को फिर भी ।उतना मेहनताना नहीं मिलता जिसके वो हक़दार हैं-महंगे और चमीकीले  बाजारों ने  इन बेहद कर्मठ कलाकारों के जीवन की रौशनी कम कर  दी है ,सरकारों द्वारा प्रायोजित बाजारों और हाट मेलों में इनके हुनर को सराहा तो बहुत जाता है लेकिन इन्हे अपने माल और मेहनताना के वाजिब मूल्य नहीं मिलते ,इससे भी बड़ी विडंबना यह है की वेजिटेबिल डाय वाले कपड़ों के मुकाबले में मार्केट में सिंथेटिक डाय वाले कपड़ों की नकल तेजी से आ जाती है ,और जानकारी के अभाव में ,लोग इन वेजेटेबिल्स डाय की असल कीमत देने को तैयार नहीं होते 
क़लमकारी एक हस्तकला का प्रकार है जिस में हाथ से सूती कपड़े पर रंगीन ब्लॉक से छाप बनाई जाती हैक़लमकारी शब्द का प्रयोग कला एवं निर्मित कपड़े दोनो के लिए किया जाता है मुख्य रूप से यह कला भारत एवं ईरान में प्रचलित है।
सर्वप्रथम वस्त्र को रात भर गाय के गोबर के घोल में डुबोकर रखा जाता है अगले दिन इसे धूप में सुखाकर दूध, माँड के घोल में डुबोया जाता है। बाद में अच्छी तरह से सुखाकर इसे नरम करने के लिए लकड़ी के दस्ते से कूटा जाता है। इस पर चित्रकारी करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक पौधों, पत्तियों, पेड़ों की छाल, तनों आदि का उपयोग किया जाता है।
भारत में क़लमकारी के दो रूप प्रधान रूप से विकसित हुए हैं एक  हैं मछिलिपट्नम क़लमकारी और दूसरा श्रीकलाहस्ति क़लमकारी।
मछिलिपट्नम क़लमकारी में मुख्य रूप से पादप रंगों का उपयोग लकड़ी के ब्लॉक के माध्यम से किया जाता है। इसके लिए जिस कपड़े का उपयोग होता है वह आंध्रप्रदेश के मछिलिपट्नम प्रांत में बनाया जाता है। इस शैली से बनाई गई हस्तशिल्प वस्तुओं को मुगल काल में दीवार पर सजावट के तौर पर लगाया जाता था,वर्तमान में ये साड़ियों बेडशीट दुपट्टे सूट्स रुमाल और घरेलू सजावटी वस्त्रों में भी बखूबी की जा रही है 
[चित्र में एक असल वेजिटेबल डाय वाला कलमकारी saari
 

खिलंदड़ी --गिलहरियां बहुत आसानी से पीछा करती हें --एक दूसरे का

खिलंदड़ी --गिलहरियां बहुत आसानी से 

पीछा करती हें --एक दूसरे का 

--वहाँ प्रतियोगिता नहीं है /उनकी बेहिसाब दौड़ती-फुदकती दुनिया में /-
-एक आरामदायक सुरक्षा है /उजली सुबहों में घास के बीज कुतरती गिलहरियां मुझे पसंद हें /-
-उतरती दोपहर और शुरू होती शामों से पहले वाले सन्नाटे में /--
पत्तों की  हरी रौशनी में झुरमुटों के बीच /उनका होना एक हलचल है /-
-पत्तों के गिरते रहने में भी /
--तब भी ,जब सुकमा की झीरम घाटी में विस्फोट होता है /
और पत्तों की  नमी यकायक सूख जाती है
/--भरभराकर टूटते शब्द बौने होते जाते हें /
तब कड़क और कलफदार चेहरों वाली इस दुनिया को /-
-अपनी गोल किन्तु छोटी और चमकदार आँखों से ,
चौकन्ने कानों से,  पंजो के बल /पेड़ के तने को नन्हे पंजों से थामे / -खड़ी  हो देखती है 
,झांकती ,सुनती है गिलहरियां- अगल बगल -
---मेरी समझ से---लचीली गिलहरियां दुःख ताप  ईर्ष्या  से परे
दुनियावी चीजों को एक सिरे से देखती मिलेंगी /-
-एक लम्बे विलाप को पूर्ण विराम देती सी /
-किसी लोकवाद्य यंत्र की  तरह बजती हुई  निष्कपट /
-बांस की  दो चिपटियों  के बीच दबकर निकलती सी उनकी आवाज़ की  मिठास /-
उस-- इस समय में /-जिनमे दर्ज है हमारा प्रेम /-
-प्रेम के उत्सव की  तरह ,मंगलगीत गाती बीतती  है /
--फिर आना तुम याद बहुत कहती--/

और तमाम तरक्कियों के बावजूद बदत्तर  होती जाती इस दुनिया में /
-बचे हुए खूबसूरत प्रेम की  मानिंद /
जो घास के एक  नन्हे तिनके के सहारे थाम लेती है, पूरा आकाश /-
उन्ही गिलहरियों से मुझे बेहद  प्रेम है 
---बेहद
गिलहरियां--[कविता ]
विधुल्लता