बुधवार, 22 अप्रैल 2009

मेरे पास ना कोई सबूत है,ना दलील मैं सिर्फ उसकी कहानी छाप सकती हूँ ...चार कहार मिले डोलिया उठाय -अपना बेगाना छूटो ही जाय .

मध्यप्रदेश में मुंगावली खुली जेल के लिए प्रसिद्ध रहा है हालांकि अब वहां जेल नही ,बस्ती के गरीब-बेसहारा लोगो ने कच्ची-पक्की दीवारें उठाकर वैध-अवैध सर छुपा सकने लायक घर बना लिये है ,लगभग चार साल पहले मेरा वहां जाना हुआ था, कुछ पत्रकार साथी और एक महिला संगठन के साथ ..मुंगावली में गणेश शंकर विद्यार्थीकी मूर्ति को एक चौराहे पर लगानेके लिए स्थानीय लोग विरोधकर रहे थे और हमें एक जुट होकर समर्थन में वहां एक कार्यक्रम में भाग लेना था... भोपाल से हम शाम ७बजे वाया रोड निकले और करीब १२ बजे रात मुंगावली पहुंचे ,सभीको तेज भूख लग आई थी हम लोगों ने एक ढाबेनुमा होटल को खुलवाकर भोजन बनवाया और खाया..तब तक डेढ़ बज चुका था मार्च का पहला सप्ताह था ,गर्मी कम और अभी ठंडा मौसम शेष था -रात गहराने के साथ सभी को नींद आ रही थी ..मुंगावली एक छोटे शहर की शक्ल में रात में ऊँघता नजर आ रहा था.. बीच से उसे पार करते दुसरे छोर पर जो सर्किट हाउस था वहान्हामारे ठहरने का इंतजाम था ..तब रात के लगभग २बज चुके थे हमारी अगुवाई करने वाले जो की एक बुजुर्ग थे उन्होंने चौकीदार के साथ सारे कमरों का मुआयना किया चौकीदार ने बताया चार कमरे बड़े और एक छोटा है ,सभी में तीन-तीन लोग आराम से सो सकतें है ,उन्होंने एक से चार तक के कमरों में ग्रुप बनाकर अपने हिसाब से जाकर सोने के निर्देश दिए ..अन्तिम पाँच नंबर के कमरे में मुझे अपना बेग रखने को कहा ...मेरे बगल वाले चार नंबर में महिला संगठन के सदस्यों ने अपना सामान रख दिया, मेरे पीछे-पीछे चौकीदार एक बड़ी सी मोमबत्ती ,माचिस ,मच्छरों की टिकिया ,बेद शीट्स वगेरहा लेकर आ गया ..उसने मुझे बतया बाथरूम में पानी शीशा ,साबून बकेट सभी कुछ है ,कोई काम हो तो बेल बजा देना में आपके कमरे के ठीक बाहर बरामदे में सो रहा हूँ वो शायद गहरी नींद का मारा था लेकिन अपनी नौकरी केप्रति प्रतिबद्ध एक बूढा और इमानदार नौकर....मेरे जवाब की प्रतीक्षा किए बिना वो कमरे से बाहर जाते-जाते हिदायत भी देता गया की दरवाजा अन्दर से ठीक से बंद कर लें ...


उस रात अँधेरा था पावर भी कम था बल्ब ६० वाह्ट से ज्यादाके ना होंगे एक ही बरामदे के इस छोर से उस छोर तक एक लाइन में बने उन कमरों के सामने ठीक बीच में चार-पाँच सीढियां उतर कर छोटा सा एक उजाड़ मैदान था जिसमें टूटी-फूटी कांटो की तार वाली एक फेंस लगी हुई थी, जिसके बीच में एक घना बरगद का पेड़ ...अंग्रेजों के समय का बना हुआ यह सर्किट हाउस सरकार की लापरवाही का जीता .जागता नमूना ही था हालांकि उज्जैन -के देवास रोड और इंदौर के रेसीडेंसी एरिया के न्यू रेस्ट हाउस भी कोई बहुत अच्छी स्थिति में नही ...भुतहा से ये बंगलेजाने कब से अधिकारियों के आराम के नही अय्याशी के अड्डे बन कर रह गये हैं ...चौकीदार के जाते ही मैंने बाथरूम में जाकर सफर के कपड़े चेंज किए वहां वाश बेसिन पर एक तिड़का हुआ आइना लगा हुआ था जिस पर ट्रेपेजियम शेप की मरून-रेड तीन बिंदी डिसआर्डर में चिपकी हुई थी ,जरूरत से ज्यादा ऊंचाई पर बने वेंटिलेशन पर एक जंगली चिडिया का घोंसला था जिसे बनाने की कवायद में ढेर से तिनके टॉयलेट की शीट पर बिखरे हुए थे ..फर्श जगह-जगह से उधडी हुई थी ,कभी सफेद झक्क रही होगी टाइल्स पीली पड़ चुकी थी ..लंबे-और बड़े से रूम के बराबर उस बाथरूम के एक कोने पर एक दरवाजा स्थाई तौर पर जंग लगे ताले के साथ बंद पडा हुआ था दरवाजे के ठीक नीचे एक हरे कांच की कड़े नुमा लहरिया चूड़ी का टुकडा इन्द्रधनुष की तरह तना हुआ अटका पडा था स्मृति चक्करघिन्नी खा रही थी ...,शायद वहाँ से पीछे कोई मैदान हो, मैंने अंदाज लगया...जैसी की मेरी आदत है नई जगहों पर रूकने -ठहरने से पहले अक्सर ही में दीवारों दरारों .खिड़की यों उनके पल्लों कांचों किनारों को सरसरी तौर पर जरूर देख लेती हूँ ....ये उपरो तौर पर अपने को निडर घोषित करने जैसा होता है जो स्वतः उसको अंदरूनी डरपोक साबित कर जाता ...बाथरूम से लौटकर मैंने दरवाजा मजबूती से बंद कर लिया मेरे ख्याल से उस समय रात के ३ बज चुके थे डर की कोई बात नही थी लाईट को जलता छोड़कर में पलंग पर लेट गई कोहनी से हाथों को मोड़कर मैंने आंखों पर रख लिया रौशनी से बचने के लिए...दूसरे हाथ से सिरहाने रखे पर्स में मैंने अपने अभिमंत्रित गणेश की मूर्ति को टटोला वो सुरक्षित थी ..वो अमूमन मेरे हर सफर में साथ होती है इस भरोसे को साथ लिए की कुछ अनिष्ट नही होगा ...मुझे समझ आ गया था की अब सुबह तक नींद नही आएगी ,एक बारगी अपने साथ आए लोगों में से किसी को फ़ोन करने का मन हुआ -लेकिन तत्काल ही लगा एक तो ये ठीक नही होगा दूसरे वे अबतक सो चुके होंगे ये ख्याल कर में सुबह होने का इन्तजार करने लगी ..मैदान के दूसरी तरफ हाईवे पर लगातार ट्रकों की आवा-जाहीके साथ बाहर सूखे पत्तों की खडखडाहट की आवाज के अलावा सब ओर सूनसान था हलाँकि चौकीदार की खाट बरामदे में लगी थी ओर उसने कहा भी था की वो जाग रहा हैपर उसके खर्राटे की आवाज उस निस्तब्ध रात में भी एक होंसले कीतरह -एक सहारे की तरह ..जागते रहो की गूँज की तरह मुझे लग रही थी ....इन सारी बातों का मतलब ही यही था की मुझ पर एक अज्ञात भय हावी हो चुका था समझ नही आया की मुझे डर क्यों लगा .....जैसे-तैसे सुबह हुई सुबह की हलकी रौशनी में भी रेस्ट हाउस उतना ही उजाड़ था जितना रात के अंधेरे में बरगद के चारों ओर फर्शी लगी हुई थी ,जिसके बगल में एक हेंडपंप था आस-पास की औरतें जिस से पानी निकाल रही थी में वही ठंडी हवा में बैठीं रही ..ओर सबके उठने का इन्तजार करने लगी...ये किस्सा यू ही ख़त्म नही हुआ शाम तक सभी कार्यक्रम समाप्त होने के बाद देर रात तक हम लोग भोपाल लौट आए इसका जिक्र मैंने घर में नही किया और एक हफ्ता गुजर गया ।

एक दिन जब मुझे मंत्रालय जाना था में सम्बंधित अधिकारी का नाम डायरी में खोज रही थी तभी 'एस 'के पेज पर मेरी एक दोस्त का नाम सामने आ गया ..वो मंत्रालय में पिछले आठ सालों से पदस्थ थी मेरी उससे मुलाक़ात दो तीन माह के अन्तराल पर हो जाती थी उन दिनों एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में मेरा वहां आना जाना लगा हुआ था मंत्रालय के काम तो अपनी गति से ही होतें हैं वहां चमत्कार की कोई गुंजाइश नही होती ...ओर में जल्दी -जल्दी उससे मिलने लगी मुझे ख़ुद नही मालुम कब कैसे वो मेरी अन्तरंग हो गई वो थोडा घरेलू किस्म की आय ऐ एस अधिकारी थी रंग गोरा बाल भूरे-कर्ली ,चेहरा आम भारतीय स्त्री की तरह गोला कार जो की हर औरत को उसकी उमर से थोडा बडा ही दर्शाता है ..थोडा पद ओर काम की गंभीरता, परिवार के प्रति निष्ठा जिम्मेदारी ने भी उसे बढाकर दिया था वो चुस्त थी फिर भी शरीर थोडा थुलथुला हो चुका था ...वो एक पारदर्शी महिला थी पर ज्यादा नफासत पसंद नही,जल्दी ही उसने एक अधिकारी का लबादा उतार फेंका ओर मेरे साथ सहज हो गई ..वो कोई भी बेढंगे रंग-प्रिंट की साड़ी पहने होती ओर मुझसे पूछती बताओ कैसी लग रही हूँ में मुस्करा देती ...फिर कई मुलाकातें लेकिन उसने आगे होकर कभी कॉल नही किया ..जब मिलती तो कहती अरे कल ही तो याद कर रही थी देखो आज तुम आ गई हो ,क्या कहूं मीटिंग्स, टूर इन सारे कामों से उऊब चुकी हूँ ...शादी कर लो बिना किसी भूमिका के मुझे कहना पड़ा ....वो मुझमे एक अच्छी दोस्त तलाश रही थी ..में उसे पसंद भी करती थी ..किंतु जैसी मेरी आदत भी है जो लोग मुझे पसंद होतें हैं में उनसे एक निश्चित दूरी बनाकर रखती हूँ उसके साथ भी वैसा ही कुछ इरादा था मेरा ...उसे इस तरह के उत्तर की उम्मीद नही थी...जिसे पसंद करती हो या जिसने तुम्हे पसंद किया हो ..वो मुस्कराई एक तत्वज्ञानी की तरह .मानो वो इसी बिन्दु का इन्तजार कर रही हो कोई पूछे ओर वो बताये.....लेकिन वो एक विधुर है ...बच्चे स्टेब्लिश है बड़ी बेटी अपोज कर रही है ...ये उसका कहना है ...इन बातों के अब कोई मायने नही वो चाहेगा तो सब कुछ हो सकता है मेरा कहना था ...लंच हो चुका था काफी ओर सेंडविच के साथ बातें आगे बढती रही कुछ था उसके अन्दर जो घुल रहा था वो बताना चाह रही थी मेरी कोई विशेष रूचि नही थी उसे सुनने में इसके पहले भी वो प्यार मर्द बच्चों रिश्तों पर गहराई से बात कर चुकी थी उसका पूरा परिवार यू पी में कहीं था ,मुझे लगा ऐसे ही कामकरते साथ उठते बैठते प्रेम व्रेम के चक्कर में पड़ गई होगी ...उसने जो नाम बताया वो उस महकमे में खासा बदनाम था ...जानती हो ? नही, में तपाक से झूट बोली, नाम जरूर सुना है ...वो दोनों अक्सर दौरे पर साथ होते काम के सिलसिले में कभी यहाँ वहां रुकना मिलना होता रहता था ..ओर भी बहुत सी बातें जो एक शादी-शुदा औरत ही कर सकती थी मुझे समझ नही आया कया कहूं ,वो बहुत तनाव में थी उस दिन ...अपने हाथ में पहनी चूड़ी को दूसरे हाथ से गोल-गोल घुमाती जारही थी ,वो बड़ी सी बिंदी भी लगाती थी ...वो दूसरी अधिकारी महिलाओं से अलग थी ...वो मेरी बैचनी को समझ रही थी मुझे घर लौटने की जल्दी थी ,उसने पहली बार कहा इस रविवार घर आओ तुम्हे अपना बगीचा दिखाना है अपनी कढाई का हुनर ..साथ ही दूसरी रुचियों के बारें में ..बात करेंगे ..उसने ड्रावर से एक छोटी डायरी निकाली उसमें अपना पता नंबर दर्ज कर दिया जो आज भी मेरे पास सुरक्षित है ...वो मुझे जितना अपना समझ रही थी में नही,वो रविवार बीत गया में उससे मिलने नही जासकी जान बुझकर ...फिर तकरीबन छे माह तक कोई मुलाक़ात नही ..जब में मुंगावली गई ओर लौटी उसके सात दिन बाद मंत्रालय गई ...मुझे अपनी फाइल की प्रोग्रेस मालुम करनी थी ..सविता वहां नही थी ...उसके पी ऐ ने बताया ...शी इज नो मोर ....अपने दौरे के समय वो नींद की गोलियाँ खाकर मर चुकी थी ....जिसके लिए मेंबहुत कुछ कर सकती थी ...नही कर पाई ...मन ही मन उससे माफी मांग ली मैंने ...खिन्न मन से ...बाद में मैंने पता लगाया चौकीदार वो रूम जिसमे में रुकी थी पहले खोलने से इनकार कर चुका था ...कभी ना कभी में उस अधिकारी से जरूर मिलूंगी मेरे अलावा उस धोखे बाज, लम्पट उसके अय्याश प्रेमी को कोई नही जानता मौका मिला तो थप्पड़ भी मारूंगी ये भी जानती हूँ क़ानून कोई सहायता नही कर पायेगा सविता के पक्ष में मेरे पास ना कोई सबूत है,ना दलील लेकिन अब उसके बारें में इससे ज्यादा कुछ लिखना भी नही चाहती ..उस रात सविता की बिंदी ओर चूडियों का वो टुकडा मुझे कुछ बताने के लिए हीनियति का साथ दे कर क्या उस रेस्ट हाउस में ले गये ...आज भी याद करती हूँ तो रीढ़ की हड्डी में सिहरन सी दौड़ जाती है ,में उस रविवार मिल लेती उससे तो वो शायद कोई एसा कदम नही उठाती ..लेकिन मेरा विशवास है जीवन में हुए बहुत से अन्यायों में प्रतिकार के लिए इश्वर को नियुक्त कर देना चाहिए ...सविता को न्याय जरूर मिलेगा ...तब में उसके उस निकृष्ट प्रेमी पर एक पोस्ट जरूर लिखूंगी....
चाँद से मांद सितारों ने कहा आखिर शब् ,कौन करता है वफा अहदे वफा आखिरशब्, ....फैज