शनिवार, 21 मार्च 2009

मणिपुर-इम्फाल मैं मानव अधिकारों के हनन का सिलसिला कई सालों से लगातार,कई संगठनों ने आवाज़ बुलंद की है


होली के दुसरे दिन इम्फाल -मणिपुर -मेघालय से लौटना करीब १० दिनी यात्रा के बाद....इ मेल बॉक्स मैं ढेरों होली की शभ कामनाएं ,शुभकामनाएं स्वीकार करने और देने का कोई ओचित्य नजर नही आता ,यकीं माने रंग और खुशियाँ बेमानी लगतेंहैं जब हमारे ही देश के किसी दूसरे राज्य मैं हर दिन दो पॉँच लोग खून के रंग से रंग दिए जातें हैं तो रंगों का ये त्यौहार एक अपराध बोध की तरह दिल-दिमाग को परेशान और दुखी करता है .मणिपुर के बीते और वर्तमान हाल को हर आदमी को उतने ही गहरे से सुनने ,समझने और चिंतन करने की जरूरत है जितना की वो अपनी व्यक्तिगत मुश्किलों से निजात पाने की कोशिश करता है ....हम अपने आप से सवाल करें ...क्या हमें अपने राज्य मैं अपने ढंग से शान्ति पूर्वक जीने -रहने का हक है या नही? क्या समान कानून का प्रावधान हमारे लिए है या नही ,साथही क्या हमारा सविधान हमें जीने का मौलिक अधिकार देता है या नही ---ये सवाल इस लिए भी की बेहद खूबसूरत घाटियों -वादियों से घिरा फूलों से खिला हुआ ,सुंदर और कर्मठ लोगों की आबादी वाला मणिपुर -जहाँ की संस्कृति ,परम्परा वेशभूषा- खान पान हमें लुभाता है,क्या वहां के लोग ,हम आप कीतरह सामान्य जीवन जी पा रहें हैं ,उनके मानवीय और मौलिक अधिकारों का हनन क्यों और किस बिना पर क्या जा रहा है,इस संदर्भ मैं सरकार के अपने तर्क होंगे/हो सकतें हैं,मणिपुर की जनसंख्या इस वक्त लगभग २३ लाख है ,जब हम आप अपने राज्य मैं चैन की नींद स्वतंत्रता पूर्वक सोते हैं ,तभी मणिपुर की घाटियों मैं कोई ना कोई निर्दोष मार दिया जाता है ...दर असल कई सालों से यहाँ हिंसा क्रूरता भ्रष्टाचार और बलात्कार का जो तांडव चल रहा है,उसके लिए [ऐ ऍफ़ एस पी ऐ ]आर्म्स फोर्स स्पेशल पावर एक्ट -१९५८ को जिमेदार ठहराया गया है.और इस एक्ट के विरोध मैं यहाँ के स्थानीय पीड़ित व्यक्ति -संगठनों,ने अब एक जुटहोकर रिअपिल की मांग की है चूँकि [ऐ एफएस पी ऐ ]कश्मीर और नॉर्थ-ईस्ट के अनेक राज्यों मैं कई सालों से लागू है, ये एक्ट इंडियन मिलेट्री और पैरा मिलेट्री फोर्सेस को ये अधिकार और शक्ति प्रदान करता है की ,जिसके तहत वो किसी को भी शूट करसकता है या गिरफ्तार या बिना वारंट के सर्च या किसी भी ढांचे को ख़तम कर सकता है या शक के बिना पर मारने का उसे अधिकार है ..जोकि आपराधिक श्रेणी मैं नही आता ...जब ऐ ऍफ़ एसपी ऐ के लिए रिअपील के समर्थन मैं अधिका धिक् मांग उठने लगी तबभारत सरकार ने एक कमेटी का गठन इस पुनर्विचार हेतु किया, जिसमे कमेटी के प्रमुख के रूप मैं रिटायर्ड सुप्रीम कौर्ट के जज और फार्मर चेयर ऑफ़ दा ला कमीशन जीवन रेड्डी को परिक्षण हेतु निउक्त किया इसी के चलते २००५ मैं जो रिपोर्ट पेश की गई ...उसमे आर्म्स फोर्स और अलग-अलग लोगों के नजरिये को युक्ति-युक्त तरीके से समझना था ...जो आधिकारिक रूप से तो पेश नही की जा सकी लेकिन नेशनल डेली हिंदू के जरिये सामने जरूर आई ..रिपोर्ट ने ऐ ऍफ़ एस पी ऐ के सन्दर्भ में रिअपील का समर्थन किया ..जो की अमल मैं नही लाइ जा सकी , फल स्वरुप मणिपुर और घाटियों में साथ आस-पास के जन जीवन मैं मानव अधिकारों का हनन तेजी से और भी बढ़ता गया ,,जिसमें शक के आधार पर निर्दोषों के मार डालने , औरतों के साथ बद सलूकी और बलात्कार जैसी अमानवीय घटनाएं शामिल होती रही,मणिपुर नॉर्थ ईस्ट मैं भारतकी सीमा मायंमार से जुदा है यहाँ की साम्राज्य का इतिहास परम्परा और समृद्ध है ,१९४९ से १९५० मैं मणिपुर मैं प्रथक नागा संगठन का विद्रोह सामने आया और साथ ही कई मिलते जुलते संगठन मणिपुर मैं बने ,क्योकि तब उनके राज्य को इंडियन यूनियन से जोड़ा गया ..ऐ ऍफ़ एस पी ऐ के लागू होते ही वहां की औरतों की जिन्दगी पर बुरा असर पड़ने लगा अपनी शक्ति और विशेष ताकत के बल पर उन्हें उत्पीडित करना, मार डालना जैसी घटनाएं रोजमर्रा की जिन्दगी मैं आम हो गई है ..मणिपुर मात्रसत्तात्मक समाज की अगुआई करता है अपने आर्थिक जीवन यापन के लिए अधिकाँश औरतें जंगलों में कठिन परिस्थितियों में इंधन-पानीके लिए घूमते ..घाटियों में ऐ ऍफ़ एस पी ऐ के हाथों हिंसा का शिकार हो जाती हैं ,हाल ही मैं जन - फर मैं ९० लोगों को मार डाला गया ...और ये अमानवीय व्यवहार घाटी में आज भी बदस्तूर जारी है ...जो बेहद शर्मनाक भी है ,एक अनुमान के अनुसार इन्ही कारणों के चलते यहाँ यु जी स अंडर ग्राउंड ग्रुप्स] का दबदबा बढ़ता ही जा रहा है ,एक अनुमान के अनुसार घाटी मैं फिलवक्त ३० युइ जी स सक्रीय हैं और ५५हजार सिकुरिटीफोर्स ढाई करोर जनसंख्या के ऊपर है मणिपुर के लोगों के लिए यह एक चुनौती है जिसमे पहाडियों पर रहने वाला जनसमुदाय का एक बहुत बढ़ा हिस्सा फँस गया है ...इसी कारण मानवीय अधिकारों के लिए जागरूक और सक्रीय संगठन बढ़ते ही जा रहे हैं,इस वक्त वहां महिलाओं के पक्ष में पारम्परिक और जमीनी नेट वर्क है मायरापेबी...इस संगठन में माइतीऔरतें हैं जो गावों -शहरों और मणिपुर की घाटियों में कार्यरत हैं ये लोग शाराब -ड्रग्स और हर तरह के अन्याय के खिलाफ रैली यां निकाल्तें हैं और अपने तरीकें से लड़तें हैं ,इनके साथ ही नागा वूमेन यूनियन मणिपुर[एन डब्लू यु एम् ]एक एसा संगठन है जो वहां की १६ जनजातियों को मिला कर बनाया गया ये पहाडी जिलों मैं अथक-और सतत काम कर रहा है इनका विरोध भी ऐ ऍफ़ एस पी ऐ के खिलाफ है
इस पूरी कहानी मणिपुर की स्त्रियों का एक पक्ष यह भी है की वह किस तरह लाम बध्द होकर अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है,बतौर उदाहरण ...एक युवा लड़की थंगजम मनोरम को ११जुलै २००४ को उसके घर से रात के वक्त उठा लिया गया बाद मैं बलात्कार एवं प्रताड़ना के बाद आसाम राइफल्स द्वारा मार दिया गया,परिणाम स्वरूप मायरापेबी की १२ औरतों -युवा इमा [माताओं]ने आसाम राइफल्स हेड क्वाटर्स -इम्फाल के एतिहासिक कांगला फौर्ट पर नग्न परेडनिकाली उनके हाथों पर बैनर्स पर लिखा था ..इंडियन आर्मी रेप अस ...ये एतिहासिक कदम शायद दुनिया मैं पहला एसा कदम था जिस के लिए एक होंसले के साथ ही अपनी बिरादरी के लिए कुछ करने का जज्बा उन औरतों मैं था, और आज भी है उस वक्त जो संगठन वहां अपने हक के लिए लड़ रहे थे वो भी सकते मैं आगये...तब से अबतक वालीवाल मेच के दौरान १४ मार्च १९८४ को सी आर पी ऍफ़ की फायरिंग से १४ लोगों की मौत ,१० जुलाई १९८७ को ओपरेशन ब्लू बर्ड के समय,१४ सिविलियंस को मारना,२५ मार्च १९९३ को तेरा बाजार कैल्थल -इम्फाल मैं ७ लोगों की ह्त्या, ७जुलाइ १९९५ मैं इंफालमेडिकल कालेज मैं ९ स्टूडेंट्स का खून करना,२ नवम्बर २००० को मालोम मैं १० लोगों के साथ एक बूढे आदमी की हत्या, -[जहाँ से शर्मिला नामक ३८ वर्षीय युवती ने हंगर स्ट्राइक शुरू की ,इसकी कहानी अगली पोस्ट मैं ]उपरोक्त विवरण के अनुसार थांग-जम मनोरम की कस्टोडियल मौत....जिसके परिणाम मैं कांगला फौर्ट पर नग्न प्रदर्शन ]ये उदाहरण एक इसे सच से रूबरू करातें हैं की सोचने पर मजबूर होना पड़ता है की क्या हम आजाद हिन्दुस्तान मैं रह रहें है,या बर्बर युग मैं...देश भर की महिला पत्रकारों का एक बड़ा दल देश के भिन्न भागों से ,मार्च के पहले हफ्ते मणिपुर मैं मौजूद था ...और भी कई कारक तत्व इस वक्त इंफाल मैं काम कर रहें की वहां के लोग सामान्य जीवन भी नही जी पा रहें हैं ...मणिपुर के लोगों के मुश्किल हालातों और जन जीवन मैं आए इस बिखराव-तनाव ..के कारण सबसे अधिक मुश्किलों का सामना महिलाओं को करना पड़ रहा है ,लेकिन हालत मैं बदलाव आयेगा जरूर ...सरकार को समझना होगा,सुनना होगा, और तुंरत उचित कारर्वाई भी करनी होगी,...मणिपुर की हमारी साथी पत्रकार अंजुलिका थिन्गम जिसके भाई को ३माह पूर्व आसाम राइफल्स वालों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी ,ने जब मुझे एयर पोर्ट छोड़ते वक्त कहादेश मैं कहीं भी कोई छोटी सी घटना होती ही छोटे-बड़े अखबारों मैं छपता है ...यहाँ जीवन कीडे-मकोडों के समान है हर दिन लोग मारे जा रहें है औरतें विधवा जीवन जी रही हैं ...उनके घर बर्बाद होगये हैं ...कहीं कोई हलचल नही होती,ये अन्याय नही है क्या?मेरा संदेश हिन्दी पाठको तक पहुंचे ..हमारे दुःख को वो भी समझेगे मुझे यकीन है पिछले कई दिनों से ये पोस्ट चित्रों के कारण पोस्ट नही हो पाई है...फोटो अपलोड होने मैं मुश्किल आरही है इसलिए फिलहाल सिर्फ रिपोर्ट...अगली पोस्ट मैं दूसरे चित्र भी ...होंगे.आमीन,