रविवार, 15 नवंबर 2009

मणिपुर की लोह स्त्री शर्मीला की कहानी - शर्मीला समय की उचाइयों पर...




मणिपुर की रहने वाली शर्मिला इरोम की ९ साल पहले एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार के रूप मैं पहचान थी ,वो स्थानीय समाचार पत्र मैं महिला मुद्दों पर बेबाक लिखा करती थी,लेकिन शर्मिला से जब मैं ७ मार्च २००९ को मिली तब वो एक कैदी थी और उसी दिन उसे मणिपुर के स्थानीय जवाहरलाल नेहरु अस्पताल के उच्च सुरक्षा वार्ड से रिहा किया जा रहा था दरअसल ११सितम्बर १९५८ मैं बने ए ऍफ़ एस पी ए [आर्म्स फोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट ]जिसे पूर्वोतर राज्यों अरुणाचल मेघालय असम मणिपुर नागालेंड और त्रिपुरा जैसे राज्यों मैं सेना को विशेष ताकत देने के लिए पारित किया गया था ]शर्मिला ने इस एक्ट के खिलाफ अकेले आवाज उठाई ,वर्तमान मैं शर्मिला के हक और पक्ष मैं सैकडों आवाजें मणिपुर की घाटियों मैं लगातार गूंज रही हें ...अपने राज्य मैं ए ऍफ़ एस पी ए की क्रूरता ,भ्रष्टचार और अमानवीयता के खिलाफ और इस एक्ट को समाप्त करने एवं अपने राज्य मैं शान्ति स्थापित करने के लिए उसने पिछले तकरीबन .9 सालों से मुँह से पानी की ना तो एक बूँद ग्रहण की है ना भोजन किया है ...उसे जबरदस्ती नाक से नली [ट्यूब ]द्वारा भोजन -पानी दिया जाता है ,साल मैं वो एक बार रिहा होती है और दुसरे दिन पुनः गिरफ्तार कर ली जाती है उसके रिहा और गिरफ्तार होने का सिलसिला पिछले 9 वर्षों से लगातार बदस्तूर जारी है,शर्मिला आज बेशक समय की ऊँचाइयों पर है ,कोई मिसाल उस जैसी फिलवक्त देश भर मैं नहीं, लेकिन इन बीते वर्षों मैं उसकी आवाज केंद्र सरकार तक नहीं पहुँच पाई यह अफ़सोस जनक है..हाल ही मैं युवा सांसद अगाथा संगमा ने १८ जून को शर्मिला से जेल मैं मुलाक़ात कर उसकी मांग को सरकार के सामने रखने का आश्वासन दिया है और कहा की वो इस काले कानून को रद्द करने के लिए केंद्र सरकार से मांग करेंगी और इस मुद्दे को प्राथमिकता देंगी उन्होंने एक लिखित ज्ञापन देकर प्रधान मंत्री से इस मामले पर मुलाक़ात कर अनशन पर बैठी शर्मिला के जीवन को बचाने की अपील भी की है
शर्मिला का संघर्ष .9 वर्ष पूर्व 2 नवम्बर 2000 मैं तब शुरू हुआ जब वो इम्फाल से १५ किलोमीटर की दूरी पर सालोम नामक एक छोटे से गाँव मैं एक शान्ति मार्च की तैयारी कर रही थी ,उसी वक़्त आसाम रायफल्स द्वारा बेहद क्रूरता के साथ १० सिविलियंस को मार डाला गया,जिनमें एक ६५ वर्षीय बूढी औरत के साथ राष्ट्रीय बहादुरी पुरूस्कार प्राप्त बालक भी था शर्मिला ने उसी वक़्त निर्णय लिया,की कुछ अर्थ पूर्ण करना होगा अपनी माँ से आर्शीवाद लेकर उसने उसी जगह से भूख हस्ताल शुरू की जहाँ उन १० निर्दोषों को मारा गया था लेकिन दुसरे दिन ही अंडर क्रिमिनल लों-आई .पी सी ,की धारा ३०९ के तहत उसे गिरफ्तार कर लिया गया ....सबसे शर्मनाक पहलु ये है की इन 9 वर्षों मैं शर्मिला के रिहा और गिरफ्तार होने के बीच मणिपुर मैं कही कोई तबदीली नहीं हुई -लोग बेघर होते रहें बच्चे अनाथ,औरतें, विधवा, और निर्दोष मारे जाते रहें ...और ये सिलसिला आज भी जारी है ,इसी वर्ष जन-फरबरी के मध्य ९० लोगों को बेक़सूर मार डाला गया इस अंतहीन क्रूरता के कारण ही यहाँ [यु जी एस] अंडर ग्राउंड ग्रुप्स का दबदबा बढ़ता ही जारहा है एक अनुमान के अनुसार ५५ हजार सिक्युरिटी फोर्स ढाई करोड़ जनसंख्या के ऊपर है मिलेट्री का इतना बड़ा भाग शायद ही दुनिया के किसी हिस्से पर हो ...पिछले १० सालों में यहाँ मानव अधिकारों के लिए सक्रिय संगठन बढ़ते ही जा रहें हें इनलोगों के लिए ये एक मुश्किल भरी चुनौती भी है
शर्मिला इरोम के पक्ष मैं घाटियों मैं रहने वाला [शर्मिला कनबा लूप]..सेव शर्मिला कैम्पेन ...ने शर्मिला के पक्ष मैं संगठात्मक क्रमिक भूख हड़ताल के साथ गोष्ठी भी लागतार की हें यहाँ ये बता देना जरूरी है की शर्मिला कनबा लूप दरअसल मायरा पेबी ग्रुप का एक भाग है और मायरा पेबी ग्रुप औरतों का एक पारम्परिक जमीनी नेट वर्क है .ये औरतें माइती औरतें कहलाती हें ,जो गावों- शहरों और मणिपुर की घाटियों मैं कार्यरत हैं ,ये शराब-ड्रग्स और स्त्री के प्रति अमानवीयता के खिलाफ रैलियाँ निकालती हें इनके साथ नागा वूमेन यूनियन संगठन भी जुड़ा हुआ है ,जो की वहां की १६ जनजातियों को मिला कर बनाया गया है ये पहाडियों घाटियों मैं अथक काम कर रहें हें और इस वक़्त शर्मिला के संघर्ष मैं हमकदम होने के साथ-साथ ए ऍफ़ एस पी ए विरोध मैं भी है
ए ऍफ़ एस पी ए[स्पेशल आर्म्स फोर्स पॉवरएक्ट ]१९५८-से जमू कश्मीर और उतर पश्चिम राज्यों मैं कई सालों से लागू है ये एक्ट इंडियन मिलेट्री और पैरा मिलेट्री फोर्सेस को ये पॉवर देती है की वो कोई भी ढांचा नष्ट या ख़त्म कर सकती है चाहे कारण छोटा ही क्यों ना हो ,साथ ही किसी को भी शूट या गिरफ्तार भी जो की अपराधिक श्रेणी मैं नहीं आता. जिसके फलस्वरूप निर्दोषों को लगातार मारा जाता रहा है ..हालांकि इस एक्ट के खिलाफ री-अपील की जब मांग जोर शोर से उठी तब भारत सरकार ने एक कमेटी के प्रमुख के रूप मैं रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट के जज और फारमर चेयर ऑफ़ द ला कमीशन -जीवन रेड्डी को परिक्षण हेतु नियुक्त भी किया, बाद मैं अनेक मुश्किलों के चलते २००५ मैं एक रिपोर्ट पेश की गई जिसमे अलग अलग राज्यों के लोगों और आर्म्स फोर्स के नजरिये से युक्ति-युक्त तरीके से इसे समझना था --ये रिपोर्ट आधिकारिक तौर पर तो पेश नहीं की गई किन्तु एक नेशनल डेली-[द हिन्दू ]के जरिये सामने जरूर आई जिसमे इस री-अपील का समर्थन किया गया था
बाद मैं [स्पेशल आर्म्स फोर्स पॉवरएक्ट के जुल्मों के खिलाफ विश्व इतिहास मैं एक एसा मामला दर्ज हुआ जो रोंगटे खडे कर देने के लिए काफी था और ये सच भी है की कांगला फोर्ट के उस गुम्बद के नीचे से गुजरते हुए हम उन औरतों की मुश्किलों- मजबूरियों -उनके जज्बे -होंसले को अपने अन्दर भी जज्ब और महसूस कर पा रहे थे...वो काला किस्सा ये था की ११जुलाइ २००९ को जब थंगजम मनोरमा नामक एक युवा लड़की को उसके घर से उठाकर उससे बलात्कार और प्रताड़ना के बाद आसाम रायफल्स द्वारा मार डाला गया परिणाम स्वरूप मायरा पेबी संगठन की १२ औरतों [युवा इमा -माताओं ने आसाम रायफल्स हेड क्वाटर्स इम्फाल के एतिहासिक कांगला फोर्ट पर नग्न मार्च परेड निकाली उनके हाथों पर पर बैनर्स पर लिखा हुआ था "इंडियन आर्मी रेप अस" ,उस वक़्त मानव अधिकारों के लिए लड़ रहे कई औरतों के संगठनों ने अपने अपने तरीकों से विरोध
किया ये लोग वही थे जो शर्मिला को मजबूती से सहयोग कर रहे थे
अक्टूबर २००६ मैं शर्मिला जब रिहा हुई तब वो चुपचाप दो तीन संगठनों के साथ देहली आगई..देहली मैं जंतर-मंतर पार्लियामेन्ट स्ट्रीट पर उसने धरना दिया और अपनी आवाज बुलंद की पुनः उसे गिरफ्तार किया गया और एम्स मैं भर्ती कर दिया गया कुछ दिनों बाद फिर उसे मणिपुर जेल भेज दिया गया शर्मिला मणिपुर की जेल मैं आज भी जिंदा है उसका जीवन ख़त्म हो रहा है ,और उस जैसी सैकडों लड़कियों -औरतों आदमियों को अन्याय का शिकार होना पड रहा है, मणिपुर की स्थानीय पत्रकार अंजुलिका ..ने हमें ३० मिनिट की एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बताई जिसमें अन्याय की शिकारविधवा और उनके परिवार महिलाओं की व्यथा दर्ज है.
जब ७मार्च २००९ को शर्मिला को रिहा किया जा रहा था तब अलग -अलग राज्यों से मौजूद महिला पत्रकारों की भारी तादाद मौजूद थी ..शर्मिला अपने समर्थकों और नेकेड प्रोटेस्ट की कुछ औरतों के साथ अस्पताल के भीतर ही बने एक किलोमीटर की दूरी पर बने शिविर तक पैदल चलकर पहुंची,उसका चेहरा शांत और झक्क सफेद था शर्मिला के पक्ष मैं १० दिसम्बर २००८ से मायरा पेबी की औरतें भूख हड़ताल पर हें शर्मिला साफ और धीमे बोलने वाली स्त्री है हर दिन योगा करती उसके भाई सिंघजीत इरोम ने बताया शर्मिला से हमें मिलने मैं दिक्कत आती है ... उसने मीडिया से चंदबातें मणिपुरी में जो कही थी वो यह की "आप लोगो ने जो यहाँ मेरा इंतज़ार किया उसके लिए धन्यवाद जैसे शब्द छोटे हैं, मेरी शक्ति द्विगुणित हुई है... मैं अपना ये कैम्पेन लगातार जारी रखूंगी, मेरे राज्य की घाटियों में सुन्दर फूल खिलते हैं, जल है और नैसर्गिक सुन्दरता है लेकिन जहाँ औरतों को कैद में रखा जाता है. मैं उम्मीद करती हूँ की सभी बहने मेरे राज्य की कहानी अपने साथ ले जाएँ, मेरी आवाज़ बने, मुझे जिंदा रखने में सरकार अपनी बोहोत सी शक्ति और धन खर्च कर रही है..." क्या ये ठीक है?
शर्मीला आश्वस्त है की सरकार इस तरफ देखेगी, इस अन्याय के खिलाफ उसके राज्य को न्याय मिलेगा. शर्मीला का कहना है की कमल के पत्ते पर ओस की बूंद की तरह वह हवा में नहीं बहना चाहती जिसका कोई उद्देश्य न हो.
(मणिपुर से लौटकर)
इसी वर्ष ७ मार्च को मेरी मुलाकात शर्मीला इरोम से इम्फाल में हुई थी, जब उसे इम्फाल के एक स्थानीय "जवाहरलाल नेहरु" अस्पताल के उच्च सुरक्षा वार्ड से रिहा किया जा रहा था, तब मैंने उसे बेहद नज़दीक से देखा जाना और सुना था... उसके साथ उसके समर्थकों की भारी भीड़ थी. मणिपुर की यह लोह स्त्री - iron women, सही मायनो में इस बात को सच साबित करती है.
शर्मीला की यह कथा वैसे तो देश के एक बड़े हिन्दी अखबार में प्रकाशित होनी थी जो मुझे ना छपने पर लौटाई नहीं गयी, जिसे मैंने CD (compact disk) में दिया था, अतः उसे मुझे ज्यों का त्यों अपने ब्लॉग पर देना पड रहा है, जिसे आज से आठ माह पहले लिख चुकी हूँ... और आज प्रकाशित कर रही हूँ. जैसा की मैंने पूर्व में प्रकाशित अपने लेख "इम्फाल में मानवीय अधिकारों के हनन का सिलसिला जारी" में उल्लेख किया है... (औरत संगठन फॉर पावर सोसायटी की ओर से...)
शर्मीला इरोम के पक्ष में सारी दुनिया से अपील करते हुए,..... इसी नवम्बर में जिसे 9 साल पूरे हो गए हैं, जेल की सीखचों के पीछे...