बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

खिलंदड़ी --गिलहरियां बहुत आसानी से पीछा करती हें --एक दूसरे का

खिलंदड़ी --गिलहरियां बहुत आसानी से 

पीछा करती हें --एक दूसरे का 

--वहाँ प्रतियोगिता नहीं है /उनकी बेहिसाब दौड़ती-फुदकती दुनिया में /-
-एक आरामदायक सुरक्षा है /उजली सुबहों में घास के बीज कुतरती गिलहरियां मुझे पसंद हें /-
-उतरती दोपहर और शुरू होती शामों से पहले वाले सन्नाटे में /--
पत्तों की  हरी रौशनी में झुरमुटों के बीच /उनका होना एक हलचल है /-
-पत्तों के गिरते रहने में भी /
--तब भी ,जब सुकमा की झीरम घाटी में विस्फोट होता है /
और पत्तों की  नमी यकायक सूख जाती है
/--भरभराकर टूटते शब्द बौने होते जाते हें /
तब कड़क और कलफदार चेहरों वाली इस दुनिया को /-
-अपनी गोल किन्तु छोटी और चमकदार आँखों से ,
चौकन्ने कानों से,  पंजो के बल /पेड़ के तने को नन्हे पंजों से थामे / -खड़ी  हो देखती है 
,झांकती ,सुनती है गिलहरियां- अगल बगल -
---मेरी समझ से---लचीली गिलहरियां दुःख ताप  ईर्ष्या  से परे
दुनियावी चीजों को एक सिरे से देखती मिलेंगी /-
-एक लम्बे विलाप को पूर्ण विराम देती सी /
-किसी लोकवाद्य यंत्र की  तरह बजती हुई  निष्कपट /
-बांस की  दो चिपटियों  के बीच दबकर निकलती सी उनकी आवाज़ की  मिठास /-
उस-- इस समय में /-जिनमे दर्ज है हमारा प्रेम /-
-प्रेम के उत्सव की  तरह ,मंगलगीत गाती बीतती  है /
--फिर आना तुम याद बहुत कहती--/

और तमाम तरक्कियों के बावजूद बदत्तर  होती जाती इस दुनिया में /
-बचे हुए खूबसूरत प्रेम की  मानिंद /
जो घास के एक  नन्हे तिनके के सहारे थाम लेती है, पूरा आकाश /-
उन्ही गिलहरियों से मुझे बेहद  प्रेम है 
---बेहद
गिलहरियां--[कविता ]
विधुल्लता 

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