वसंत के इन दिनों में
कभी तो मिलो ,कहीं तो मिलो /कुछ बातें हों गिले शिकवें दूर हों /तुम्हे भी तो पता लगे /कितना अच्छा होता है /कभी-कभी पुल पार करना.....
अपनी डायरी से ----कवि अनाम
------ कई बार जो मन कहता है ,कहना चाहता है --उसके लिए शब्द दुर्लभ हो जाते हैं भाषा नहीं मिलती सिफर होकर भाव गुम हो जाते हैं,जो लिखा होता है,उस हर लिखे शब्द के चेहरे पर सफेदी पुत जाती है-साक्षी भी कोई नहीं होता सिवाय अपने,कुछ --मनश्चेतना की गहराई से नए सिरे से सोचती हूँ जतन से फिर लिखे को सोचती, छूती और जीती हूँ अपने लिखे को जीना ही मेरे लिए सार्थक लिखना होता है 'ताना-बाना' इसी रूप में रूबरू होता रहेगा...
15 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूब.
पुल पार करना ..... ज़रूरी भी होता है कभी कभी ..
वैसे उसे भी तो पता होगा कि बसंत आ गया है....हां पुल पार करना भ जरूरी ही है, सही कहा।
क्या बात है
वाह
मिलने से ही तो खुलती है मन की बात, मिलने की तमन्ना से ही तो होता है पुल पार
बहुत ही सुंदर भाव लिये है यह छोटी सी कविता.
धन्यवाद
मनोभाव कुछ ही शब्दों में
लाजवाब. सुंदरतम भाव.
रामराम.
डायरी को पटलना और उसमें लिखी की पसंदीदा कविता की पंक्तियाँ पढ़ना, सच बहुत ही अनूठा अनुभव होता है, हर बार!
kya kahoon
kitana achhcha hota hai kbhi kbhi pul par karna.par kitana mushkil hota hai kabhi kabhi pul par karna. bahut sundar kavita hi.
परवीन शाकिर की याद आ गयी आपको पढ़कर.......आप गजब है .
मिलो. साथ साथ चलो और साथ साथ पुल पार करो.अच्छी पंक्तियाँ.
बसंत के आगमन का इंतजार किसे नही होता है । इसका इस्तकबाल करने को पशु से लेकर किसान तक कतार में खड़े होते है । इस मौसम में मिलना और मिलने के लिए बाट जोहना किसे नही अच्छा लगता है । धन्यवाद
कुछ बातें हों गिले शिकवें दूर हों....
wah! wah!
bhaut aacha likha hai aapne.
www.saraswatlok.blogspot.com
waah !!
aapki ki daayri ka nayaab panna
padhne ko mila....
aur maana...nayaab hai collection aapki...
mubarkbaad . . . . .
---MUFLIS---
bahut badhiya ...........vasant mein pul paar karke gile shikve door kiye jaayein ........waah kya soch hai..........milne ka bahut achcha tarika
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