गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

वसंत के इन दिनों मैं,


वसंत के इन दिनों में

कभी तो मिलो ,कहीं तो मिलो /कुछ बातें हों गिले शिकवें दूर हों /तुम्हे भी तो पता लगे /कितना अच्छा होता है /कभी-कभी पुल पार करना.....

अपनी डायरी से ----कवि अनाम

15 टिप्‍पणियां:

अमिताभ मीत ने कहा…

बहुत ख़ूब.

पुल पार करना ..... ज़रूरी भी होता है कभी कभी ..

शायदा ने कहा…

वैसे उसे भी तो पता होगा कि बसंत आ गया है....हां पुल पार करना भ जरूरी ही है, सही कहा।

shivraj gujar ने कहा…

क्या बात है
वाह
मिलने से ही तो खुलती है मन की बात, मिलने की तमन्ना से ही तो होता है पुल पार

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही सुंदर भाव लिये है यह छोटी सी कविता.
धन्यवाद

के सी ने कहा…

मनोभाव कुछ ही शब्दों में

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

लाजवाब. सुंदरतम भाव.

रामराम.

Vinay ने कहा…

डायरी को पटलना और उसमें लिखी की पसंदीदा कविता की पंक्तियाँ पढ़ना, सच बहुत ही अनूठा अनुभव होता है, हर बार!

Asif Iqbal ने कहा…

kya kahoon

सीमा रानी ने कहा…

kitana achhcha hota hai kbhi kbhi pul par karna.par kitana mushkil hota hai kabhi kabhi pul par karna. bahut sundar kavita hi.

डॉ .अनुराग ने कहा…

परवीन शाकिर की याद आ गयी आपको पढ़कर.......आप गजब है .

hem pandey ने कहा…

मिलो. साथ साथ चलो और साथ साथ पुल पार करो.अच्छी पंक्तियाँ.

बेनामी ने कहा…

बसंत के आगमन का इंतजार किसे नही होता है । इसका इस्तकबाल करने को पशु से लेकर किसान तक कतार में खड़े होते है । इस मौसम में मिलना और मिलने के लिए बाट जोहना किसे नही अच्छा लगता है । धन्यवाद

saraswatlok ने कहा…

कुछ बातें हों गिले शिकवें दूर हों....

wah! wah!
bhaut aacha likha hai aapne.

www.saraswatlok.blogspot.com

daanish ने कहा…

waah !!
aapki ki daayri ka nayaab panna
padhne ko mila....
aur maana...nayaab hai collection aapki...
mubarkbaad . . . . .
---MUFLIS---

vandana gupta ने कहा…

bahut badhiya ...........vasant mein pul paar karke gile shikve door kiye jaayein ........waah kya soch hai..........milne ka bahut achcha tarika