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------ कई बार जो मन कहता है ,कहना चाहता है --उसके लिए शब्द दुर्लभ हो जाते हैं भाषा नहीं मिलती सिफर होकर भाव गुम हो जाते हैं,जो लिखा होता है,उस हर लिखे शब्द के चेहरे पर सफेदी पुत जाती है-साक्षी भी कोई नहीं होता सिवाय अपने,कुछ --मनश्चेतना की गहराई से नए सिरे से सोचती हूँ जतन से फिर लिखे को सोचती, छूती और जीती हूँ अपने लिखे को जीना ही मेरे लिए सार्थक लिखना होता है 'ताना-बाना' इसी रूप में रूबरू होता रहेगा...
10 टिप्पणियां:
man mohak chitra. badhai, aur dhanyawad mere blog par aane ke liye.
kitni sundar shaam hai...
भोपाल के ताल कोहरे में लिपटे ..आज की एक सर्द और उदास शाम में
मौके के हिसाब से आपने बहुत शानदार चित्र खींचे हैं. बधाई.
और आपने जो चित्र ब्लाग हैड पर लगा रखा है वो तो कमाल का सजीव फ़ोटो है, मैने इतना कमाल का फ़ोटो नही देखा, कहां का है?
रामराम.
mein ek baar Bhogaya gaya tha lekin is tarah ghoomne ka mauka nahi mila....dhanyvaad Bhopal ki jhalak dikhane ke liye
चित्त को शान्त कर देने वाले मनोरम दृश्य
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
खूबसूरत...लेकिन आज यही झील पाली के लिए प्यासी है..स्थिति बहुत बुरी हो गई है..लेकिन हम लोग लगे हैं इसे बचाने में.....
विधु जी,
आज सुबह चिट्ठाजगत में ताना-बाना की टिप्पणियाँ पढते हुये आपके ब्लॉग पर आने का मौका मिला. कमाल किया है छायाकार ने भोपाल के ताल वैसे ही नही कहे जाते हैं कहावतों में. और कोहरे में डूबे झिलमिलाते हुये देखना बहुत ही अच्छा लगा.
मुकेश कुमार तिवारी
मेरा ब्लॉग : " कवितायन " जहाँ आप मेरी कविताओं को पढ सकती हैं
http://tiwarimukesh.blogspot.com
bahut achchhi chhayayen.
dhanywaad.
बहुत सुंदर शाम के चित्र हैं
बहुत ही सुंदर ओर एक से बढ कर एक चित्र, काश इस सुंदरता को हम सब समभाल कर रखते, ओर गण्दगी से इसे खराब ना करते .
धन्यवाद
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