सोमवार, 12 जनवरी 2009

भोपाल ताल कोहरे मैं ...जिन्दगी क्या है हमसे मिलकर देखो...कहते हुए...इस पोस्ट पर आए सभी मेहरबान मित्रों से मुखातिब


सभी का धन्यवाद ...सबसे पहले स्वप्न जी ने कहा मनमोहक उन्हें बधाई की उन्होंने भोपाल ताल का लुत्फ उठाया पारुल ने भी इस सुंदर शाम को आंखों से दिल मैं सहेजा ताऊ जी ने मौके के हिसाब से खींचे गए चित्रों की तारीफ की ..कल की शाम वाकई खुबसूरत थी ..दिन भर कम्बल मैं दुबके रहने एक घंटा एक नावल को ख़त्म करने,दो घंटे गहरी नींद ले लेने के बाद जाकर कहीं दिन ख़त्म हुआ,...पति ने कहा चलो थोडा घूम आयें बस और कोई दिन होता तो ना भी जाती ...अपना डिजिटिल रखा ,मूंग दाल के मंगोडे ,हरे धनिये की चटनी का स्वाद लेते हुए ये भोपाल की खुबसूरत श्यामला हिल्स से लिए गए चित्र हैं,,,यहीं होटल अशोक [अशोक ग्रुप]का पीछे का हिस्सा है, आगे की तरफ एक रास्ता सी एम् हाउस और दूसरा होटल अशोक से आगे होटल जहाँ नुमा नवाबी शासन काल का एक बेजोड़ होटल है जिससे थोडा आगे चलकर अंसल हाऊसिंग सोसायटी के बहुमंजिला और सिंगल बंगलों की शानदार श्रंखला है इन्ही मैं जया भादुडी की मां का भी एक फलेट है और पतिदेव का ऑफिस भी ...यहाँ शाम रूमानी होती है बच्चे -बड़े पतंग उडाते और तालाब की सतह से लगी चट्टानों मैं फिशिंग करते और कारों मैं /झाडियों मैं चोरी छिपे युगल ...किस्सिंग करते हुए भी दिखाई पड़ जातें हैं इसे मौसम की मेहरबानी कहें या अपनी नजरों का बड़प्पन कहें आपकी मर्जी...मेरे ब्लॉग हेड पर एक बड़ा सा बड नुमा पेड़ है जो दुबई से करीब ६०-७० मील दूर प्रसिद्ध फुजैरा नामक स्थान का है ..यहाँ समुद्र मैं तेल शोधक कारखाने लगये गएँ हैं ..वहीँ ये पिक्चर ली थी, मेरी पत्रिका के ८५ वें अंक के लोकार्परण के समय मेरा दुबई जुलाइ मैं जाना हुआ था दुबई के कई संस्मरण फिर कभी ...विनय जी ने चित को शांत कर देने वाले ,मनोरम ...और वाकई भोपाल अपने आप मैं नायाब है ...नवाबी विरासत को सहेजने सरकार और पुरातत्व वालों ने मशकत्त तो की है, मुझे ताजुब्ब होता है भोपाल छोड़ चुके मेरे कई परिचित कैसे भूल पायें होंगे इन द्रश्यों को,अनिल कान्त जी आपका विशेष आभार और बहादुर पटेल जी आप का भी आप लोग एक बार भोपाल अवश्य आयें ...आशीष जी ने कहा खूबसूरत और यही झील आज पानी के लिए प्यासी है...बिल्कुल सही.आशीष हम लोग इसे बचाने का प्रयास तो कर रहें हैं ...मुझे अभी कल ही नगर-निगम भोपाल द्वारा बड़े तालाब का गहरीकरण एवं साफ सफाई अभियान के सम्बन्ध मैं १४ जन को एक बैठकमैं उपस्थित रहने हेतु कलेक्ट्रेट सभाग्रह मैं आयुक्त भोपाल संभाग ने पत्र ...भेजा है ..देखतें हैं सरकार की क्या मंशा है ...अंत मैं मुकेश तिवारी और रंजना जी काभी आभार , वास्तव मैं भोपाल इन तालाबों की वजह से ही भोपाल है लेकिन यहाँ के बाशिंदे जानते हैं फिलवक्त तालाब के चारों और फैली गंदगी पोलीथिन कचरा ,किनारों पर अतिक्रमण जैसी समस्या के कारण इस खूबसूरती मैं कमी आई है ,कुछ दिन पहले ही प्रदेश के मुख्य मंत्री महोदय ने श्रम दान करके इसके सौन्दर्यकरण की दिशा मैं पहला कदम उठाया है ...इस पोस्ट पर राज भाटिया जी समीर जी और भाई अनुराग जी की उपस्थिति भी मैं मानकर चल रही हूँ..... आमीन

13 टिप्‍पणियां:

डॉ .अनुराग ने कहा…

हमें उपस्थित मान कर ही चलिए ...पेशे की कुछ मजबूरियों के तहत पिछले कुछ दिनों से शहर से बाहर थे .पर आपकी पिछली कुछ कविताये पढ़ी....ओर चिटठा चर्चा पर आपको देखकर खुशी हुई...बस अब कुछ मजेदार लिख दिजेयेगा .वैसे भी भोपाल तो बड़े लिख्डो का शहर है..कुछ असर छोड़ जायेगा

श्रुति अग्रवाल ने कहा…

विधु जी कुछ दिन से बाहर थी...अपने जन्मस्थान जबलपुर और ननिहाल फुलारा (गाँव) गई थीं। वहाँ नेट और बाहरी दुनिया से बिलकुल कटऑफ अपनी नानी के आँचल में छिपी थी...एक दूसरी दुनिया में मस्त। जब भी ज्यादा परेशान होती हूँ या फँस जाती हूँ कुछ देर गाँव में नानी के पास हो आती हूँ। इस बार तो चार साल बाद जाना हुआ। पहले लंदन में दो साल फिर इंदौर में व्यस्तता का चक्कर अब फिर बाहर जाना है इसलिए दस दिन की छुट्टी पर हो आई। बस इसलिए आपकी पोस्ट का रसास्वादन नहीं कर पाई आज एक साथ कई सुंदर रिपोतार्ज पढ़ लिए।

जितेन्द़ भगत ने कहा…

सुंदर दृश्‍यांकन।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत सुंदर मौसम का हाल लिखा आपने और उसका मजा भी लिया. ब्लाग हैड के चित्र के बारे मे मेरी उत्सुकता भी शांत हुई. एक बार फ़िर उसकी तारीफ़ कबूल किजिये. वास्तव मे मनभावन चित्र.. बहुत धन्यवाद इस नयनाभिराम चित्र को लगाने के लिये.

रामराम.

बेनामी ने कहा…

भोपाल ताल की दुर्दशा बड़ी दुखदायी है. लोगों में जागृति आ रही है और शासन के कुछ प्रयासों से भी कुछ उम्मीद बंध रही है. उस बड़े पेड़ को देख कर थोड़ा सा भ्रम हो गया लेकिन रेत के दिखने से समझ में बात आई. चित्र भी सुंदर हैं. आभार.

"अर्श" ने कहा…

sundar drishyankan ke sath badhiya badhainaama.........



arsh

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

जब तक हम अपनी मानसिकता और जागरूकता पर सकारात्मक सोच को हावी नहीं होने देंगे तब तक सब निरर्थक है,ये बातें फटे आकाश में थिगडे लगाना जैसा है. हमारी प्राथमिक शिक्षा और पालकों द्वारा रखी जाने वाली नींव में ही कमजोरी रहती है, जिस पर ध्यान देने की अनिवार्यता होना चाहिए .यहाँ मैंने आलेख के दूसरे पहलू की चर्चा की है.
विधु जी के सकारात्मक आलेख की मैं प्रशंसा करता हूँ
"तालाब के चारों और फैली गंदगी पोलीथिन कचरा ,किनारों पर अतिक्रमण जैसी समस्या के कारण इस खूबसूरती मैं कमी आई है " यह सोचनीय प्रश्न है ?
-विजय

राज भाटिय़ा ने कहा…

मै सब से बाद मै आया, लेकिन बहाना कोई नही बस बिमार था थोडा नहि बहुत दो दिन तक बिस्तर नही छोडा, बेसुध सा पडा रहा, आज शाम को थोडा होश आया तो फ़िर से ब्लांगिग शुरु, अब कुछ ठीक है.
मेने भी आज आप से इस सुंदर पेड के बारे पुछना था, लेकिन आप ने खुद ही बता दिया, मै कभी भोपाल तो नही आया, लेकिन आप के इस लेख ने बहुत सुंदर चित्र खीचा है भोपाल का, अगली बार जब भी भारत आना हुया तो भारत भरमण पर जरुर निकलेगे, क्योकि घर भी मां वाप के साथ होता है, जब वो ही नही रहेगे तो फ़िर किस पर जोर, चलिये अब देखते है आप की इस से पहले वाली पोस्ट.
धन्यवाद

इरशाद अली ने कहा…

कितने सारे सन्दर्भ आपको याद हैं, और कितने जोश से भरी हुई है आपकी ऊर्जा। लेकिन फिर भी आप प्रकृति के काफी करिब है और उसी की व्याख्याकार। सून्दरता को देखने का नजरिया सबके पास नही होता और जिनके पास होता है जरूरी नही उनके पास सवेंदना की आंखें भी हो। पर आप तो ये काम बखूबी कर रही हैं। छोटी-छोटी चीजें और बातों को करीने से सजाना सबको कहां आता हैं। मैंने काफी सारी पोस्टें आपके ब्लॉग पर पढ़ी, रोचकता किसी भी पोस्ट के लिए बेहद जरूरी है लेकिन आत्मियता की छौंक से आप उन सबको और भी मनभावन बना रही हैं। ऐसे ब्लॉग ही लोगो के करिब होते है। ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ।

Amit Kumar Yadav ने कहा…

आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

Girish Kumar Billore ने कहा…

यहाँ शाम रूमानी होती है
Sach behad sundar alekh

Richa ने कहा…

विधु जी, इस परदेश में बैठ कर आपने मुझे मेरे जन्म स्थान को दिखा कर बहुत उपकार किया है। आपका बहुत धन्यवाद।

ऋचा

Richa ने कहा…

नमस्ते विधुजी,

मैं भोपाल में ही पली-बड़ी हूँ, और शादी के बाद बाहर चली गई - उम्र के २४ साल मैंने भोपाल में ही बिताये हैं। आपके ब्लॉग पर ताल के चित्रों के देख कर बचपन याद आ गया :))

ऋचा