खिलंदड़ी --गिलहरियां बहुत आसानी से
पीछा करती हें --एक दूसरे का
--वहाँ प्रतियोगिता नहीं है /उनकी बेहिसाब दौड़ती-फुदकती दुनिया में /-
-एक आरामदायक सुरक्षा है /उजली सुबहों में घास के बीज कुतरती गिलहरियां मुझे पसंद हें /-बेहद पसंद है
-उतरती दोपहर और शुरू होती शामों से पहले वाले सन्नाटे में /--
पत्तों की हरी रौशनी में झुरमुटों के बीच /उनका होना एक हलचल है /-
-पत्तों के गिरते रहने में भी /
--तब भी ,जब सुकमा की झीरम घाटी में विस्फोट होता है /
और पत्तों की नमी यकायक सूख जाती है
/--भरभराकर टूटते शब्द बौने होते जाते हें /
तब कड़क और कलफदार चेहरों वाली इस दुनिया को /-
-अपनी गोल किन्तु छोटी और चमकदार आँखों से ,
चौकन्ने कानों से, पंजो के बल /पेड़ के तने को नन्हे पंजों से थामे / -खड़ी हो देखती है
,झांकती ,सुनती है गिलहरियां- अगल बगल -
---मेरी समझ से---लचीली गिलहरियां दुःख ताप ईर्ष्या से परे
दुनियावी चीजों को एक से ,दूसरे सिरे तक देखती मिलेंगी /-
-एक लम्बे विलाप को पूर्ण विराम देती सी /
-
-बांस की दो चिपटियों के बीच दबकर निकलती सी उनकी आवाज़ की मिठास /-
-किसी लोकवाद्य यंत्र की तरह बजती हुई निष्कपट /
उस-- इस समय में /-जिनमे दर्ज है हमारा प्रेम /-
-प्रेम के उत्सव की तरह ,मंगलगीत गाती बीतती है /
--फिर आना तुम याद बहुत कहती--/शर्माती शाख की सबसे ऊँची फुनगी तक दौड़ जाती है
और तमाम तरक्कियों के बावजूद बदत्तर होती जाती इस दुनिया में /
-बचे हुए खूबसूरत प्रेम की मानिंद / हर सुबह -हर दिन
घास के एक नन्हे तिनके के सहारे थाम लेती है, पूरा आकाश /-
उन्ही बहादुर गिलहरियों से मुझे बेहद प्रेम है
---बेहद
4 टिप्पणियां:
गिलहरियां खिलंदड़ी
वाह .
अच्छा लिखा है.
आदरणीया विधु लता जी
कृपया अपने ब्लॉग को ब्लॉगसेतु ब्लॉग एग्रीगेटर से जोड़ने की कृपा करें. ताकि अधिक से अधिक पाठक आपके ब्लॉग तक पहुँच सकें. धन्यवाद.
यह रहा ब्लॉगसेतु का लिंक .....
https://blogsetu.com/
dhanyvaad sabhi kaa
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