अपने लिए व्यर्थ है ,निरर्थक है ,
अनुभव और स्मृतियाँ चाहे जितनी बार गुजारे ,
उन रास्तों से हमें ,वे शब्द बेआवाज हें ,
सारी प्रार्थनाएं धंस गई है पाताल में ..
हमारी यात्राएं स्थगित हें
विस्मृति के किसी क्षण में,
पूरे होते-होते किसी अधूरे स्पंदित समय में ,
ठिठके हुए किसी शब्द -क्षण या सहमी हुई कोई प्रार्थना ,
भूले से........
किसी रास्ते का पुनर्जन्म संभव हो ---वो लौटे ,
पर हम कहाँ होंगें ,
हम मिले शायद नहीं?शायद हाँ
उन रास्तों शब्दों ,और प्रार्थनाओं के मौन अस्तित्व में ,
[में जो देखता हूँ और कहता हूँ -के बीच ,में जो कहता हूँ और मौन रहता हूँ -के बीच ,में जो मौन रहता हूँ और सपने देखता हूँ के बीच, में जो सपने देखता हूँ और भूलता हूँ के बीच कविता सरकती है - ओक्टावियो पाज ]
ये कविता अहा जिन्दगी ! में प्रकाशित ....बहुत दिनों से ब्लॉग पर कुछ नया लिखना था कई प्रारूप तय्यार भी किये ..लेकिन अंतिम तौर पर फिर भी कुछ नहीं लिख पाई ....आप सभी को दीपावली की असीम शुभ कामनाएं ...
8 टिप्पणियां:
Bahut sundar!
प्रार्थनाओं का मौन अस्तित्व - सुन्दर, बहुत सुन्दर।
और अंत में प्रार्थना।
आपको पढना ...हमेशा जिंदगी के उन हिस्सों पर समय से पहले पहुंचना है ....जहाँ शायद तजुर्बे कुछ वक़्त बाद पहुंचाते .........
ओर एक लाइन जो आपने कोट की है.....भोगते हम व्यक्ति की तरह है ओर अभिव्यक्ति कलाकार की तरह ........बहुत गहरा अर्थ रखती है
बहुत बहुत सुन्दर ...बहुत जरुरत थी इस वक़्त ऐसी ही कुछ पंक्तियों की धन्यवाद
... bahut sundar !!!
कहीं कुछः अनमोल खोया सा.. अचानक ब्रेल की तरह उभरता है स्म्रति के पन्नो पर....
शब्द ही हमारी प्रार्थनाओं को गढ़ते हैं..जैसे कि हमारे कदम गढ़ते हैं रास्तों को..और इन शब्दों, रास्तों और प्रार्थनाओं के बीच हम..जैसे समय की किसी और धारा मे बहते हुए..या पत्थर की तरह अधोमुख धँसे हुए..अपने ही एकाकीपन के सघन शून्य मे..शब्द और स्मृतियाँ अगर अपने कोटर मे वापस लौटना चाहें तो क्या हम मिलेंगे उन्हे वहीं..जटिल प्रश्न..आपकी कविता उठाती है..तो नयी प्रपत्तियाँ भी सुझाती है..जैसे रास्तों का पुनर्जन्म..
यह पंक्तियाँ जैसे बजती रहती है कानों मे..अपने अद्भुत शिल्प के संग..
पूरे होते-होते किसी अधूरे स्पंदित समय में ,
ठिठके हुए किसी शब्द -क्षण या सहमी हुई कोई प्रार्थना
आपकी उपस्थिति और नियमित होनी चाहिये इधर..
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