ये चित्र और स्लोगन अहिल्या बाई होलकर की पूर्व राजधानी महेश्वर घाट से करीब छ माह पूर्व लिया गया था ....नर्मदा किनारे स्थित इस घाट तक पहुँचने वाली एक संकरी सड़क पर दोनों तरफ की दीवारों पर पर्यावरण जागरूकता को लेकर बहुत कुछ लिखा गया है ..पश्चमी मध्यप्रदेश के निमाड़ जिला खरगोन का यह सुप्रसिद्ध पौराणिक एवं धार्मिक स्थल आज शासन की उपेक्षा का शिकार हो कर रह गया है वर्ष १९९१ को जब पर्यटन वर्ष घोषित किया गया था, तब म.प्र राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा अनेक प्रसिद्ध स्थलों को विकसित करने और उनके रखरखाव की मह्त्वाकांची योजनायें हाथ में ली गई ...उसके अमली करण का लेखा -जोखा तो एक दूसरा विषय है ,फिर भी अहिल्या बाई का खूबसूरत किला आज भी नर्मदा के बीचों बीच से देखने पर अकेला उपेक्षित दिखाई पड़ता है,किले के अन्दर जरूर चहल-पहल है जहाँ रेवा सोसायटी द्वारा जग प्रसिद्ध साड़ियों का निर्माण पावर लूम पर होता दिखाई देता है ....समय-समय पर नर्मदा शुध्धि करण योजनाओं के तहत लाखों रुपया स्वीकृत होता है ,लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात की तरह पर्यावरण की दिशा में ना ही नियमित कोई काम होता है, और ना ही कोई ठोस पहल....
मानवीय पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र समेलन में स्व. इंदिरा गांधी जी ने कहा था की जीवन एक है और विश्व एक है और ये सभी प्रश्न परस्पर सम्बंधित है .जनसंख्या विस्फोट गरीबी ,ज्ञान तथा रोग हमारे परिवेश का प्रदूषण ,परमाणु हथियारों का जमाव तथा विनाश के जैविकीय तथा रासायनिक साधन से सभी एक दूसरे के दुष्चक्र के हिस्से हैं जिनमे से प्रत्येक बात महत्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य है किन्तु उनमे से एक एक करके निपटना बेकार होगा .भूतकाल को गले को लगाए रखना या दूसरों को दोषी बताना व्यर्थ है ,क्योंकि हम में से कोई भी निर्दोष नहीं है.यदि कुछ लोग दूसरों पर प्रभुत्व जमा लेते हेँ तो ऐसा कम से कम अंशत दूसरों की कमजोरी एकता की कमी या कुछ लाभ पाने की लालच के कारण होता है .यह समर्धि शील लोग जरूरतमंद लोगों का शोषण करते हेँ ..तो क्या हम इमानदारी के साथ यह कह सकतें हेँ कि हमारे स्वयं के समाजों में लोग कमजोरों कि कम जोरी से फायदा या लाभ नहीं उठाते,हमें उन् मूलभूत सिधान्तों का जिन पर हमारा समाज आधारित है और उन आदर्शों का जिन पर वे टिके हेँ ...पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए यदि ह्रदय परिवर्तन ,दिशा परिवर्तन, और कार्य प्रणालियों का परिवर्तन होता है तो कोई एक संगठन या एक देश ,चाहे उसका आशय कितना भी अच्छा हो ऐसा नहीं कर सकता .प्रत्येक देश को समस्या के उस पहलु को हल करना चाहिए जो कि उसके लिए सर्वाधिक संगत हो. फिर भी ये सपष्ट है कि सभी देशों को एक समग्र प्रयास से एक जुट होकर कार्य करने चाहिए और हमारी ग्लोबल समस्याओं कि सम्पूर्ण व्याप्ति के प्रति पैमाने के आधार पर सहयोग पूर्ण द्रष्टिकोण अपनाने के अलावा कोई चारा हमारे पास नही है ...
अकेली चट्टान ने ,हर क्षण टूटने पर भी ,नर्मदा में खड़े रहकर ,रोकना चाहा ''रेवा '' वेग को ..ओ यशश्वी नदी वह में हूँ .....आज ना सही कल में इस भय को वैसे ही पीछे छोड़ कर आगे बढ़ जाउंगा ,जिस प्रकार नर्मदा का यशश्वी जल सब कुछ छोड़ता हुआ प्रवाहमान है ....श्री नरेश मेहता के उपन्यास ''नदी यशश्वी है '' से ...
दिसंबर २००९ में महेश्वर [इंदौर ] यात्रा के दौरान लिए गये चित्र...
12 टिप्पणियां:
Yah sach hai,ki,yuddh star pe paryawaran ke prati jan jagruti phailane kee zaroorat hai..
पर्यावरण दिअस पर एक महत्वपूर्ण और विचारणीय पोस्ट..यह सच है कि हममे से कोई भी निर्दोष नही है..और आज जिस अधुनातन जीवनशैली की अभीप्सा मे हम अंधे हैं..वह पहले से ही क्षत-विक्षत पारस्थितिक तंत्र को और भी कमजोर करने वाली है..अपनी संवेदनहीनताओं को देख कर मुझे कालिदास के उस मूढ़ रूप की याद आती है..जो उसी डाल को काट रहा था..जिस पर वह बैठा हुआ था...यह हमारी इसी संवेदनहीनता का प्रमाण है कि जीवनदायी नदियाँ जो कभी विश्व की विकसित सभ्यताओं को जन्म देती थीं..आज खुद अपने अस्तित्व के आखिरी छोर पर खड़ी हैं..और उनके पुनरुद्धार के लिये स्वीकृत अरबों का धन सरकारी-गैरसरकारी मगरमच्छों के पेट मे जाता है..और पर्यावरण चिंता के अंतर्राष्ट्रीय मंच विकसित-विकासशील देशों के निहित स्वार्थों के अखाड़ा बने हुए हैं..अपने अपने स्वार्थों के लिये धरती के साथ छल करते वक्त हम बस यह भूल जाते हैं..कि हम सभी की अगली पीढ़ियों को इस गलती का खामियाजा समान रूप से भुगतना पड़ेगा..अगर वे अस्तित्व मे आ पायी तो..
महत्वपूर्ण बात कही है .. हम सभी इस बात के दोषी हैं और सभी को मिल कर इस समस्या का हाल खोजना है .. पर लगता नही है की कोई प्रयास हो रहा है .. सभी प्रयास साथी तौर पर होते लगते हैं ....
पर्यावरण दिवस पर एक महत्वपूर्ण और विचारणीय पोस्ट
विचारणीय पोस्ट.
हमारे शहर में " किशोर सागर " नाम का एक तालाब है जो अक्सर (अनदेखी की वजह से शायद) गन्दगी में डूब जाता है
अभी हाल ही में कुछ चुनिन्दा अखबारों ने मिलकर उसे साफ़ करने का बीड़ा उठाया और अब दृश्य बिलकुल बदला हुआ है
बेहद सुन्दर, प्रभावित और मनन करने वाली अभिव्यक्ति ! साधुवाद विधु जी !
पर्यावरण और जागरूकता ... एक सशक्त लेख..
माधव जी ,शमा अपूर्व दिगंबर जी,शिखा गौरव एवं नरेंद्र नीरा जी धन्यवाद ...इस लेख में बस एक स्थिति बताने का प्रयास है .साथ बिसलरी की जो बाटल्स का चित्र है वो वहां एक लकड़ी के खम्बे पे उसी अंदाज में बंधी हुई है जैसा चित्र में दर्शाया गया है ....जो बेहद सरल या यूं कहें एक गामठी अंदाज में पर्यावरण जागरूकता का सन्देश है ...एकदम सशक्त अनुभव जागता है उन्हें इस तरह बंधे देख ...सवाल बेहद गहरा है आखिर कहाँ ठिकाने लगायेंगे हम रोजाना करोड़ों में खपत होने वाली इन पानी की बोतलों को हम ..अब सोचने से नहीं कुछ करने से काम होगा
प्रेरणाप्रद प्रयास।
This is very true,we should do something for our green future.
जिन्दा लोगों की तलाश!
मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।
हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।
इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।
अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
सुंदर पोस्ट.
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