शनिवार, 8 मई 2010

उदास गीत नहीं था उनके पास... जब्बार ढ़ाकवाला... एक श्रद्धांजलि... //-

कल जब inside news से खबर आई, जब्बार ढ़ाकवाला नहीं रहे, उनकी गाडी एक खाई में गिर गई... यह महज खबर नहीं थी मेरे लिए, कभी कभी शब्द भी दुखों को पकड़ नहीं पाते हैं, यकीन नहीं हुआ... अपना अकेलापन खोये बगैर जो व्यक्ति अपनी कविता में बना रहा, जीवन के राग-विराग में एक साथ डूबे हुए उनसे परिचय मध्यप्रदेश के वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी होने के नाते ही नहीं रहा... दो वर्ष पूर्व दुबई में समकालीन हिंदी साहित्य सम्मेलन में उन्हें अधिक जानने का मौका मिला... जीवन के प्रति गहरी आस्था के साथ जीने वाले ढ़ाकवाला जी बस एकाध साल बाद अपने होने वाले रिटायरमेंट के बाद कविताओं और पेंटिंग पर काम करना चाहते थे ,एक सार्थक कल के लिए जीना चाहते थे .
उन्होंने मुझे कहा था ...इस नौकरी और इसके ताम-झाम में, मैं अपने को अजनबी सा लगता हूँ एक अध्यात्म का अनासक्त भाव था उनमे ..फिर दो चार मुलाकातें हुई ...हाल ही में उनका विभाग बदला ,शायद परिवर्तन उन्हें रास नहीं आया -पूरी दुनिया घूमने की चाहना रखने वाले भाई जब्बार जी जब हमारे साथ दुबई की एक गोल्ड शाप से बाहर निकले तो मैंने पूछा..क्या खरीददारी की आपने ...तो उन्होंने अपनी कलाई को मोड़ कर हाथ में पहनी हुई चमचमाती घडी को दिखा कर कहा ...समय को निरंतर पीछे छोड़ने वाली --टिक-टिक, और वे जोरों से खिलखिलाए ---उनकी हंसी उनके व्यक्तित्व की शान थी, दुबई-अबुधापी में उनके साथ बिताये दिन अविस्मरनीय है बाद में भोपाल में उनके आवास - चार इमली पर कविता और चित्रकला पर चर्चाएं, लेकिन लम्बे सफ़र में, मील की पत्थर सी छूटी उनकी बातें... यादें... लगता तो है, वह लौटेंगे... लेकिन चाहने - सोचने से सब कहाँ संभव होता है?...
"उदास गीत नहीं हैं उनके पास" - उनका पहला कविता संग्रह जिसके प्रथम पेज पर उन्होंने लिखा है - "प्रिय विधुल्लता को सप्रेम - जब्बार"... फिर उनके हस्ताक्षर हैं, यक़ीनन ये लिखा हुआ, पढते हुए आज दुःख व्यक्त करने के लिए मेरे पास कोई सटीक शब्द भी नहीं है... अगले पेज पर उन्होंने किताब को अपनी पत्नी - "तनु" को समर्पित किया है... दो शब्द जो मुद्रित हैं, वह लिखा है - " तनु जी , जो जीवन के साथ जुडी हुई हैं... मादक संगीत की तरह..." नियति ने बड़ी तटहस्थता में सहज उन्हें मृत्यु के साथ भी जोड़ दिया... इस संग्रह में बस्तर और बस्तर के जंगल, और लोक संस्कृति के बारीकी से आत्मसात किये गए अनुभव हैं... "कविता को वे स्वयं को संवेदनशील और अच्छा इन्सान बनाये रखने वाला औजार और जीवन के प्रति विस्श्वास बनाये रखने की कला मानते रहे हैं..."
रायपुर - मध्यप्रदेश में 15 दिसम्बर 1955 को जन्मे जब्बार जी मूलतः गुजरात के कठियावाढ़ के मेनन .. पूर्वजों के गाँव - "ढांक" के नाम पर "ढांकवाला" कहलाये... आरंभिक शिक्षा गुजरात में, बाद में रायपुर - रविशंकर विश्विद्यालय से, एम.ऐ. राजनीती शास्त्र में तथा एल.एल.बी. दोनों में स्वर्ण पदक प्राप्त... 1976-1980 राजनीती के व्याख्याता रहे, 1980 में राज्य प्राश्निक सेवा में चयन, पूर्व में अपर कलेक्टर - भोपाल, 1991 से व्यंग्य एवं कविता में लेखन, 1995 में व्यंग्य संग्रह - "बादलों का तबादला" जो की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित..
ज्ञान चतुर्वेदी जी ने उनके विषय में लिखा है - "एक प्रशासनिक अधिकारी को जीवन का नरक और सुविधाओं का स्वर्ग एक साथ देखने, महसूसने और भोगने का अवसर मिलता है... उनकी कविताओं में एक संवेदनशील अफसर की तड़फ नज़र आती है...जो हाथ में तथा कथित हथियार होते हुए भी इस धरती पर पल रहे जीवन को बदल नहीं पाता."
और यह सच है, कविताओं में सहजता उनके व्यक्तित्व का सच है... शायर डॉक्टर बशीर बद्र ने, नकी पुस्तक के फ्लेप पर लिखा है - "वे मनुष्यता के विरोधियों पर जिस तेजाबी ढंग से आक्रमण करते हैं, उससे उन पर फ़िदा हो जाने को दिल करता है... उनकी शैली दिलफरेब है... आस्था और विश्वास से रची-बसी उनकी नज्मों की तहरीर की आत्मा ज़िन्दगी का एहतराम है... उनकी नज़मो में एक साथ फूलों की ताजगी, गहरा तीखा तंज और करुना का अथाह दरिया है."
उनकी एक बेहत चर्चित रही कविता - "इरान में औरत अब गाना गा सकेगी..." , जिसे उन्होंने मेरी पत्रिका "औरत" में प्रकाशित करने को कहा था, और मैंने कहा था मध्यप्रदेश के लेखक-कवि आई.एस. अधिकारीयों की रचनाओं पर एक विशेषांक निकलने का मेरा इरादा है, जिसमे इसे प्रकाशित करुँगी. जिसकी अंतिम पंक्तियाँ इस तरह है - "चलिए इरान की नस्रीम बेगम का गाना सुनने... औरत का गाना, खुदा की बेहतरीन नेमतों में से एक है..." उनकी पूरी कविता फिर कभी, लेकिन अब हम उन्हें कभी नहीं सुन पाएंगे... अक्सर किसी के चले जाने के बाद कहे जाने वाले शब्द... वाकई वो याद आएंगे... हाँ जरुर,... तहे दिल सेयही दुआ है खुदा उनकी रूह को सुकून दे.

4 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Shraddha suman arpit karti hun...

डॉ .अनुराग ने कहा…

यक़ीनन ऐसे जाना दुखद है खास तौर से एक सहज ह्रदय व्यक्ति का

उम्मतें ने कहा…

अफ़सोस !

राजेश उत्‍साही ने कहा…

विधु जी मुझे नहीं पता था कि आपसे लंबे समय बाद मुलाकात इस तरह होगी। एक तो मेरे ब्‍लागों को स्‍थगित करने के क्रम में आप मिलीं और जब आपके ब्‍लाग पर पहुंचा तो वहां जब्‍बार जी की यह हृदय विदारक खबर पढ़ी। एक सक्रिय लेखक का इस तरह जाना सचमुच बहुत कचोटता है।