वो दो सीढियां नीचे उतरी पानी ठंडा,शांत,और ठहरा हुआ था पार दर्शी पानी की सतह पर दो-तीन सीढियां और दिखाई दे रही थी ,उसका जी चाहा थोडा और नीचे उतरा जाए,उसने पैरों को मजबूती से चौथी सीढ़ी की टोह लेते हुए जमा दिया जहाँ हरी काई भरी फिसलन थी,एक हाथ से पहनी हुई पैरट ग्रीन -पर्पल कलर की ढाकाई जाम दानी साढी की चुन्नटों को समेटते हुए,और थोडा झुकते हुए घुटनों से थोडा नीचे तक उठा लिया, पानी के नीचे छोटी-छोटी मछलियां आवा-जाही कर रही थी ,उसके पैरों मैं गुदगुदी सी करती,उसे अच्छा लगा भीतर कुछ ठंडा ,साड़ी किनारों से ऊपर तक भीग गई थी ,बीच दोपहर का समय था,और सूरज की रौशनी से छन्नकर साड़ी का हरा -जामुनी रंग पानी की सतह पर बिखर गया था वो फिर झुकी ,पीठ मैं दर्दके बावजूद,साड़ी को दोनों हाथों से निचोडा और हलके से छितरा कर फैला दिया और संभल कर तालाब किनारे बैठ गई, जाने कितने रंग थे ना जाने कितने सुख थे जो संग-साथ हाथों से बटोरने थे उन आंखों से देखने थे ...दूर तक फैला तालाब आनंद से हिलोरें ले रहा था,,चीजें देर से मिले और जल्दी खो जाएँ कुछ पल भीग जाएँ ,कुछ सूख जाएँ कई बेश्किमती पल चोरी हो जाएँ कहीं कोई सुनवाई ना हो ,एक असहाय वक्त मैं ...क्या यहाँ आकर यही सोचना था ,सोचती है, सर्च लाईट सी रौशनी दिमाग मैं जलती बुझती है,एक जिन्दगी यू ही ख़त्म हो जाती है क्या? साल पर साल बीत जातें हैं ...कल किसी का डिनर आज कहीं लंच क्या और कौन सी साड़ी पहनी जाए,बेटी के प्रीबोर्ड ,बोनसाई की मिटटी बदलनी है, मटर की कचोरियाँ ,अहमदाबादी पुलाव भी बना पाओ तो ,,,पति की आवाज उभरती है ,एक दो ट्रेडिशनल डिश,चटनियाँ सिल पर पिसवा लेना--रूक कर --शोभा से,एकाध स्वीट डिश मार्केट से ,--बना सको तो थोडा बहुत आज कल खाता ही कौन है सभी लोग तो हेल्थ कांशस है, फिर भी घर की बनी हो तो, अरे हाँ तुम्हारी वो दोस्त डाक्टर है ,ठीक से चेकप क्यों नही करवाती ,शायद केल्शियम दिफिशिंसी ही हो ,मन ही मन सोचती है,किसी कडुवे केप्सूल कोई इंजेक्शन या पेन रिलीफ ट्यूब से थोडी देर को राहत ,आदत मैं शुमार ,,दूसरे दिन दिल- दिमाग शरीर के किस हिस्से मैं दर्द शुरू हो जायेगा इसका इन्तजार करना होता है परिवर्तन के बिना ,पानी मैं पैर सिकुड़ने लगतें हैं भीतर कोई भीत राग बजने लगता है, जैसे अन्दर कोई रिमोट लेकर बैठ गया हो बार- बार वही सुनाता है ॥राग पुरिया धना श्री सबसे पसंदीदा राग ..थोडा बचना होता है आत्मा से मुल्ल्में उतरने जैसा कुछ,एक खरे अहसास के लिए जगह बनाना होती है ,किनारे बने शिवालय पर चढे मुरझाये फूल पानी मैं बहते हैं ,मछलियां उन्हें कुतरती,एक पल मैं गहरे चली जाती है शिवालय सीढियां ,सर्द मौसम, अनुभूति ,मछलियां निशब्द देखतें हैं ,उस यात्रा मैं उस गंतव्य तक पहुंचना जहाँ कभी जाना ही नही था ।कितनी शेष चीजों के साथ वहीँ रह गई जहाँ उन्हें देखा था,स्तब्ध हवाओं के साथ गीली देह को सुखाते कोई घुलता है उकेरे हुए नाम के साथ अन्दर, हर पल ..यकीन करना,फूलों को अलसाने से बचाना , पत्तों की हरियाली बनाय रखना ,एक आदिम स्मरती को अपनी दिव्यता मैं संजोय रखना,मछुआरे लौट रहें है खुले बदन,डोंगियों मैं मरी हुई मछलियां लिए,गहराती जाती शाम कांप तें रंगों के बीच से गुजर जाती है,तमाम,चीजों, लोगों, रिश्तों, प्रेम कीतरह बिछुड़ ता है फिर एक साल।
"और कुछ देर न गुजरें; शबे फुर्खत से कहो... दिल भी कम दुखता है; वो याद भी कम आते हैं..." - फैज़।
नव वर्ष की शुभकामनाएं ...!
17 टिप्पणियां:
very nice and touching...
"Happy New Year" to you too... !
achchha likha hai. badhai.
ek prvah ke saath bhavnaon ka achchha chitran.
naya saal bahut bahut mubarak ho. aapki kalam main or nikhar aaye. kamyaabi aapki hamsafar bane yahee dua hai.
vaqt nikalkar mere blog meridayari .blogspot.com par bhi visit karen
अहा ! विधु जी तालों में ताल भोपाल ताल बाकी सब तलैयां. एक अनछुआ अहसास. बहुत सुन्दर.
नव-वर्ष शुभ हो आपको.
शब्दों के माध्यम से भाव और िवचार का श्रेष्ठ समन्वय िकया है आपने । अच्छा िलखा है आपने ।
आपको नववषॆ की बधाई । नया आपकी लेखनी में एेसी ऊजाॆ का संचार करे िजसके प्रकाश से संपूणॆ संसार आलोिकत हो जाए । -
http://www.ashokvichar.blogspot.com
अच्छा लिखा आपने...
नया साल मुबारक हो....
प्रभात जी के ब्लांग पर आपका कमेंट देखा । मन में ख्याल आया कि एक बार ताना-बाना का दीदार हो । फिर मैने दीदार किया भी । फिर आपके लिखावट ने तो मेरे भीतर के ताने-बाने को ही बाहर कर दिया । नए साल के ऊपर आए आपके पोस्ट को पढ़कर अपने आप को रोक नही पाया । मेरे विचार को भी पढ़े । बधाई
"और कुछ देर न गुजरें; शबे फुर्खत से कहो... दिल भी कम दुखता है; वो याद भी कम आते हैं..." - फैज़।
और जब याद आते हैं तो बहुत याद आतें है.
प्रिय सिया,अरुणादित्य जी,शिवराज गुजर जी,बवाल जी,डॉ अशोकप्रिय रंजन दास जी ,,अजित वडनेकरजी,कुमार धीरज जी, और सुनील मंथन जी ....आप सभी का बेहद धन्यवाद,
आपका शुक्रिया. हमारा भी कुछ आप जैसा ही विचार था, बस ब्लॉग की दुनिया में नया होने के कारण ब्लॉग सम्बन्धी कुछ परम्पराओं का पालन नहीं कर पाते हैं. आप सबकी सलाह, विचार का हमेशा स्वागत है.
देरी के लिए मुआफी ......
शायद ब्लॉग जगत के उन लोगो में से आप है जिन्हें न पढ़कर मिस किया जाता है...शानदार शब्द चित्रण....प्रत्याशा जी ,आप ,शायदा जी.....कभी कभी नीरा ...मुझे जीवन का एक शिल्प गढ़ते नजर आते है ...सामान्य सी घटनाओं में जीवन को रेखाकांकित करना....आपको पढ़ना भला सा लगता है
badhiya hai. nav varsh ki shubh kamanayen.
इस तालाब में जैसे ख़ुद मैं भी आपके शब्दों के साथ उतर आया..........आज पहली बार आया था........इस ठहरे हुए पानी में भी ये ("मैं")बन्दा बह गया.....सच....!!
main is post ko padhkar stabdh raha gaya, ant mein kuch aisa likha hai aapne ki gale min kuch atakne sa lagta hai , aankhe nam hone lagti hai ..
i am speechless.
bahut bahut badhai ..
kuch nayi nazmen likhi hai ..zara nazar farmaayen..
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
hghgh
Respected Vidhu Bhabhi ji,
Time to time i use to read your articles,Its really a good blogger.I feels refresh and full of energy while reading your articles.Literature is my hobby.
By the way
HAPPY NEW YEAR TO YOU AND FAMILY.
The new year is a time to look towards the future while reflecting upon the past.
As i get time i also will post my opinions on this blog.
It is good medium of interaction during this busey schedule life.
Best Regards
Abhilasha
HAPPY NEW YEAR
Best Wishes For Your "Kalam Ki Takat"
Jay
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