मेरे कुरते का,टूटा बटन
टांकने के लिए आख़िर उसे
सुई धागा नही मिला
समय नही ठहरा,कुरते के टूटे बटन के लिए
अपनी जगह रही मेरी तसल्ली,
सुई धागा,तलाशती वह,
गहरे संताप मैं वहीँ छूट गई,
बिना बटन के ही
वो कुर्ता पहना, पहना इतना,
आगे पहनने लायक नही रहा
मेरे पास वोही एक कुर्ता था,
जिसकी जेब मैं तमाम दुनिया को रखे घूमता था,
रात को मेरे सीने पर वह,
सर टिकाये रहती है,
टूटा बटन खोजती,अपनी अँगुलियों के साथ,
वो शाम के रंगों की तरह था,आया और चला गया,किसको अँधेरा खोजता ,आया और चला गया,[शरद रंजन ]
7 टिप्पणियां:
behatarin rachana ,bahot khub ,sparsh karne wali masum si rachana ...dhero badhai sath me nav varsh ki mangalkamana ke sath ...
arsh
बहुत प्रभावशाली और यथाथॆपरक रचना है । भाव और िवचार के समन्वय ने रचना को मािमॆक बना िदया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है- आत्मिवश्वास के सहारे जीतंे िजंदगी की जंग-समय हो पढें और प्रितिक्रया भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
बहुत ही भावुक कविता.....
धन्यवाद
बहुत उम्दा भावविभोर करने वाली सुन्दर कविता!
रात को मेरे सीने पर वह,
सर टिकाये रहती है,
टूटा बटन खोजती,अपनी अँगुलियों के साथ,
bahut hi badiya. ek dil chho lene wali rachana padvane ke liye aabhar.
narendra goud shajapur ke rahane wale hai. ve achchhe kavi hain.
aapane kavita padhawai dhanywaad.
unaka mob. no.-09826548961
सचमुच मेरी पढ़ी गयीं अच्छी कविताओं में ये भी शुमार हो गयीं....लेखक के साथ-साथ इसे पढ़वाने के लिए आपको भी बधाई....!!
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