शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

इस सोच से बहुत आगे,कि हम एक दूसरे के लिए हैं ....


इस सोच से बहुत आगे
एक मैदान है,
मैं वहां मिलूंगी,
जब आत्मा ,अपने से भी ऊँची,
घांस के बीच लेटती है,
तो दुनिया इतनी ठसाठस भरी होती है,कि
उसके बारें मैं ,कुछ भी बोलना अच्छा नही लगता,
विचार-भाषा यहाँ तक कि
यह कहना
कि हम एक दूसरे के लिए हैं
जहाँ,
कोई मायने नही रखता ,....
जलालुद्दीन रूमी ....वही दुनिया है ,मैं हूँ तुम हो ,प्रश्न हैं ,युद्ध है ,कविता है ,

7 टिप्‍पणियां:

श्रुति अग्रवाल ने कहा…

शिद्दत से किए प्रेम की इंतहा यही है..अबोला प्रेम जो आँखों में दिखता है। साँसो में महसूस होता है। माँ-बेटे में, ईश्वर और भक्त में यही प्रेम दिखता है। लेकिन जब ऐसा ही प्रेम एक पुरूष और स्त्री में होता है तब........शायद तब ही सृष्टी की रचना हुई होगी। बेहद सुंदर पंक्तियाँ...दिल को छूती हैं।

शोभा ने कहा…

अच्छा लिखा है।

विधुल्लता ने कहा…

तो दुनिया इतनी ठसाठस भरी होती है,कि
उसके बारें मैं ,कुछ भी बोलना अच्छा नही लगता,
विचार-भाषा यहाँ तक कि
यह कहना
कि हम एक दूसरे के लिए हैं
जहाँ,
कोई मायने नही रखता ,in shabdon ke bhaavon ki rumaaniyat insaaniyat ke kareeb hai aur mujhe hameshaa se hi pasand hai,dhanyvaad

पारुल "पुखराज" ने कहा…

इस सोच से बहुत आगे
एक मैदान है,
मैं वहां मिलूंगी,itna dhairya ? nahi rakh paatey sab/zyadaatar thuk jaatey hain us paar pahunchney se pehley hii..

aapka blog khuub ruchtaa hai mujhey

मुंहफट ने कहा…

विचार-भाषा यहाँ तक कि
यह कहना
कि हम एक दूसरे के लिए हैं
जहाँ,
कोई मायने नही रखता .....

...रचना के अर्थ-गांभीर्य पर सादर. पुनः बधाई.

daanish ने कहा…

"iss soch se bahot aage...maiN wahaaN milungi..." vaaq`aee ! prem ki anant chaah se kaheeN aage, vistrit anubhootiyoN ke ekdm paar..
jahaaN sb shaashvat hai...nirmal hai...swachh hai...eeshwareey hai !
Itni achhi, maa`na khez, umda nazm kehne ke liye mubaarakbaad qubool farmaaeiN.
---MUFLIS---

vijay kumar sappatti ने कहा…

aapki kavita mein kuch dhadkta sa hai ..

badhai

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/