रिश्तों का अवमूल्यन होना दुखद होता है, लेकिन उन्हें बचाना और निभाना भी जरूरी हो तो बहुत कुछ किया जा सकता क्या हम शब्द या व्यवहार से रिश्ते में दरार पैदा कर रहे हैं?सोचना जरूरी है बिना गिले-शिकवे जमा किए खुलकर बात करना एक विकल्प हो सकता है
अपनी भावनाओं को स्पष्ट करना और दूसरे की भावनाओं को समझने की कोशिश करना जरूरी हो सकता है
ज्यादा अपेक्षाएँ रिश्ते को बोझिल बना देते है
व्यावहारिक और यथार्थवादी उम्मीदें ही सही है
यदि एक का भी सम्मान कम हो जाए, तो रिश्ता कमजोर हो जाता है।
एक-दूसरे की भावनाओं, सोच और स्वतंत्रता का सम्मान करें।
यदि रिश्ते में विश्वास की कमी आ गई है, तो इसे धीरे-धीरे पुनः स्थापित करें।
अपने शब्दों और कार्यों में स्थिरता बनाए रखें।
हर बातचीत में आलोचना करने से बचें।
छोटे-छोटे पलों में खुशी ढूंढें और साझा करें।
कभी-कभी दूरी बनाए रखने से चीजें स्पष्ट होती हैं।
यदि रिश्ता बहुत तनावपूर्ण हो गया है, तो थोड़े समय के लिए दूर हो जाना ठीक होगा
छोटी-छोटी बातों को पकड़कर बैठने से रिश्ता और कमजोर होता है।गलतियों को माफ करके नए सिरे से शुरुआत करें।
हर रिश्ता समय के साथ बदलता है।
नई परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालें।
रिश्तों को निभाने के लिए धैर्य, समझ और निरंतर प्रयास की जरूरत होती है। अगर रिश्ते में कोई मूल्य नहीं बचा है, तो खुद को तकलीफ देने की बजाय उसे छोड़ना भी एक विकल्प हो सकता है।
सबसे बड़ी बात एक की समझ कम है या अनपढ़ है तो फिर खुद के विवेक से काम लें कि निभाना है या नहीं
(चित्र गूगल से)
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