##जेब्रा क्रॉसिंग -
##उस मोड़ पे मिलो तो-सोचूँ जहाँ से मुड़कर एक नदी बहती है -वहां पानी की नीली रौशनी की सतह पे ताजे बुरुंश के खिले फूलों को बहाया था मैंने कल,गहराती शाम से पहले हथेलियों के चप्पु से उस दिशा में --ताकि उन्हें समेट पाओ दूसरे किनारे से--तुम --
कहो तो चलना शरू करूँ, यहाँ से इस मोड़ से -तुम तक -अपनी नीली जरी के चौड़े पाट वाली गुलाबी साड़ी पहने -अपनी पदचाप में तुम्हे गुनते बुनते ---में ठीक हूँ ----बिलकुल ठीक हूँ
तुमने क्यों पूछा --
अच्छा लगा तुम्हारा पुकारना
उस जेब्रा क्रासिंग के पार रेलिंग के सहारे वो कोट की जेब में हाथ छुपाये खड़े रहना -याद है मुझे अब तक और भीड़ में दूर से मुझे पहचान लेना तुम्हारा --सालों बाद भी वो याद है क्या फिर कभी ये होगा जिंदगी कितना ही बीते को दोहराये जानते हो सन्दल" रंग और रूप वक़्त का वो नही होता --एक द्रश्य के सौ रूप और उनमें से एक तुम को ढूंढना --आज भी उस जेब्रा क्रासिंग पे रूक जाती हूँ ,अपने शहर में -देर तक कार पार्किंग की दिशा याद नही आती शॉपिंग का बोझा मन, भर का हो जाता है -पिछली बार तुमने पूछा था तब घुटनो में दर्द आ गया था, पैथॉलॉजी रिपोर्ट में केल्शियम डिफेंशियनशी --एक हद्द के बाद दर्द में जीना भी सरल हो जाता है--
जिस जेब्रा क्रॉसिंग को उड़ कर क्रास कर लेती थी -उस पार खड़े तुम पलक झपकाये बिना देखते रह जाते थे मुझे, क्या अब भी में तुम्हे वैसे ही दिखूं ,ना अब में 20 साल पहले वाली नही रही शायद तुम तैयार ना हो वो सब देखने के लिए
पर सच में बदल गई हूँ --क्या में बदल गई हूँ तुम देखोगे तो जानोगे ---लो में अपनी कार तक आ पहुंची --बगल की कार में एक ड्राइवर बैठा ऊँघ रहा है --गीत बज रहा है" जरा सा झूम लूँ में जरा सा घूम लूँ में -- में चली बन के हवा----
तुम याद आते हो इसी जेब्रा क्रॉसिंग पे
अक्सर संदल
##उस मोड़ पे मिलो तो-सोचूँ जहाँ से मुड़कर एक नदी बहती है -वहां पानी की नीली रौशनी की सतह पे ताजे बुरुंश के खिले फूलों को बहाया था मैंने कल,गहराती शाम से पहले हथेलियों के चप्पु से उस दिशा में --ताकि उन्हें समेट पाओ दूसरे किनारे से--तुम --
कहो तो चलना शरू करूँ, यहाँ से इस मोड़ से -तुम तक -अपनी नीली जरी के चौड़े पाट वाली गुलाबी साड़ी पहने -अपनी पदचाप में तुम्हे गुनते बुनते ---में ठीक हूँ ----बिलकुल ठीक हूँ
तुमने क्यों पूछा --
अच्छा लगा तुम्हारा पुकारना
उस जेब्रा क्रासिंग के पार रेलिंग के सहारे वो कोट की जेब में हाथ छुपाये खड़े रहना -याद है मुझे अब तक और भीड़ में दूर से मुझे पहचान लेना तुम्हारा --सालों बाद भी वो याद है क्या फिर कभी ये होगा जिंदगी कितना ही बीते को दोहराये जानते हो सन्दल" रंग और रूप वक़्त का वो नही होता --एक द्रश्य के सौ रूप और उनमें से एक तुम को ढूंढना --आज भी उस जेब्रा क्रासिंग पे रूक जाती हूँ ,अपने शहर में -देर तक कार पार्किंग की दिशा याद नही आती शॉपिंग का बोझा मन, भर का हो जाता है -पिछली बार तुमने पूछा था तब घुटनो में दर्द आ गया था, पैथॉलॉजी रिपोर्ट में केल्शियम डिफेंशियनशी --एक हद्द के बाद दर्द में जीना भी सरल हो जाता है--
जिस जेब्रा क्रॉसिंग को उड़ कर क्रास कर लेती थी -उस पार खड़े तुम पलक झपकाये बिना देखते रह जाते थे मुझे, क्या अब भी में तुम्हे वैसे ही दिखूं ,ना अब में 20 साल पहले वाली नही रही शायद तुम तैयार ना हो वो सब देखने के लिए
पर सच में बदल गई हूँ --क्या में बदल गई हूँ तुम देखोगे तो जानोगे ---लो में अपनी कार तक आ पहुंची --बगल की कार में एक ड्राइवर बैठा ऊँघ रहा है --गीत बज रहा है" जरा सा झूम लूँ में जरा सा घूम लूँ में -- में चली बन के हवा----
तुम याद आते हो इसी जेब्रा क्रॉसिंग पे
अक्सर संदल
जेब्रा क्रॉसिंग ## (दो)
कभी कभी चुप्पियाँ निरर्थक साबित होती जाती है प्रार्थना के बाद भी -जब हम दुनिया के सही सलामत और साबूत बचे रहने की उम्मीद में आँख मूँद खड़े रहते हैं
"जानते हो क्यों ?-इसलिए कि इसी दुनिया में तुमहो -जब धरती हिली और 6.6 के रिएक्टर पर, तुम्हारे शहर में दहशत थी -समाचारों की धुकधुकी में में तुम्हे बार बार काल करती रही कोई उत्तर नही.कितनी धरती आकाश लांघ गई पल में कुछ याद नही -- देर बाद देखा एक डिजिट बीच में गलत डायल होता रहा उफ़ अपनी ही जल्दबाजी और बेवकूफी दोनों पर शर्मसार होना था, बहुत सी तबाही में सब ठीक था ""यही क्या कम था -फिर भी उस रात एक करवट की नींद के बाद सुबह कत्थई उजालों से भरी थी --बहुत कुछ छूट जाने की आशंका से बच जाना --लेकिन किसी अकस्मात से पहले मुठ्ठियों की ऊँगली से रेत के झर जाने के बावजूद स्मृतियों का हरा पहाड़ सांत्वना देता रहा दिल में एक ठंडी लौ जगाये हुए
संदल तुम जानते --मोहलत नही देती जिंदगी तेज चाल के बावजूद --उस जेब्रा क्रॉसिंग के बाद सड़क की रेलिंग्स पर रुक जाती हूँ हाथ टिकाये --सोचते हुए तुम्हे --हांफ भी उठती हूँ वहां तक आने के लिए कभी तो ऑटो को दूसरी तरफ छोड़ देती हूँ, कार से आऊं तो पार्किंग तक जाने में वो रेलिंग छूट जाता है वो बरसो पुराना हाथ भी जहाँ तुम हाथ टिकाये खड़े होते थे --बस एक अहसास है तो है
तुम्हे नही पता इतनी फुर्तीली में तुम्हारी अब कितनी गोलियां खाकर ज़िंदा हूँ थायराइड बी पी ये वो --हर सांस पे शक़ धक--
अभी लौटी हूँ ड्रायक्लिंर्स के यहाँ से उस गीले जेब्रा क्रॉसिंग से अहा बारिश में कितना चमकीला धुला धुला सा --जहाँ से एक बार तेज दौड़ते हुए हाथों को पकड़े हुए हमने सड़क क्रास की थी और देर रात तालाब के किनारे खड़े रहे
कभी कभी चुप्पियाँ निरर्थक साबित होती जाती है प्रार्थना के बाद भी -जब हम दुनिया के सही सलामत और साबूत बचे रहने की उम्मीद में आँख मूँद खड़े रहते हैं
"जानते हो क्यों ?-इसलिए कि इसी दुनिया में तुमहो -जब धरती हिली और 6.6 के रिएक्टर पर, तुम्हारे शहर में दहशत थी -समाचारों की धुकधुकी में में तुम्हे बार बार काल करती रही कोई उत्तर नही.कितनी धरती आकाश लांघ गई पल में कुछ याद नही -- देर बाद देखा एक डिजिट बीच में गलत डायल होता रहा उफ़ अपनी ही जल्दबाजी और बेवकूफी दोनों पर शर्मसार होना था, बहुत सी तबाही में सब ठीक था ""यही क्या कम था -फिर भी उस रात एक करवट की नींद के बाद सुबह कत्थई उजालों से भरी थी --बहुत कुछ छूट जाने की आशंका से बच जाना --लेकिन किसी अकस्मात से पहले मुठ्ठियों की ऊँगली से रेत के झर जाने के बावजूद स्मृतियों का हरा पहाड़ सांत्वना देता रहा दिल में एक ठंडी लौ जगाये हुए
संदल तुम जानते --मोहलत नही देती जिंदगी तेज चाल के बावजूद --उस जेब्रा क्रॉसिंग के बाद सड़क की रेलिंग्स पर रुक जाती हूँ हाथ टिकाये --सोचते हुए तुम्हे --हांफ भी उठती हूँ वहां तक आने के लिए कभी तो ऑटो को दूसरी तरफ छोड़ देती हूँ, कार से आऊं तो पार्किंग तक जाने में वो रेलिंग छूट जाता है वो बरसो पुराना हाथ भी जहाँ तुम हाथ टिकाये खड़े होते थे --बस एक अहसास है तो है
तुम्हे नही पता इतनी फुर्तीली में तुम्हारी अब कितनी गोलियां खाकर ज़िंदा हूँ थायराइड बी पी ये वो --हर सांस पे शक़ धक--
अभी लौटी हूँ ड्रायक्लिंर्स के यहाँ से उस गीले जेब्रा क्रॉसिंग से अहा बारिश में कितना चमकीला धुला धुला सा --जहाँ से एक बार तेज दौड़ते हुए हाथों को पकड़े हुए हमने सड़क क्रास की थी और देर रात तालाब के किनारे खड़े रहे
तुम भी जानते हो वो सड़क रक्त में कथाओं की तरह घुली है
ये तुम्हारा दुःख है तुम्हारी याद है जो बेअसर नही होने देती मुझे मेरे शहर में -
ये तुम्हारा दुःख है तुम्हारी याद है जो बेअसर नही होने देती मुझे मेरे शहर में -
ज़ेब्रा क्रॉसिंग--3-- ## जब-जब लौटती हूँ, वहाँ से ,बातें ठीक से याद अाती हें,बहुत से शब्द अपने ढेर से अर्थ देर बाद खोलते हें-पुराने निशानों के सहारे चलते जाना ओर लौटना कभी धोखा भी हो जाता है -नगर निगम वालों ने पूरे शहर का नक्शा ही बदल दिया है -अक्सर भौच्चक उसी ज़ेब्रा क्रॉसिंग पे दाएं बायें देखती हूँ -ट्रेफिक सिग्नल की ग्रीन रेड लाइट मे गुम सी--अंधेरा अाजकल जल्दी घिर अाता है ,शाम से पहले शाम -रात से पहले रात -हैरानी होती है किसी का पुकारना एक अंतराल के बाद -कोई मुझे तलाशता है ,मे चकित हूँ ,-क्या मुझे अपने को संशोधित करने की जरूरत है इस अाशा निराशा राग द्वेष से परे -जानते हो संदल मे दुखों के टोहे जाने से डरती हूँ,फिर भी मऩ वहीं पहुंचता है --कहता भी है -तुम कहां हो ? जिस जगह हजार हरसिंगार झरते थे --अब तुम नही तो वह जगह अनायास अपरिचित. फीकी सी ,बेस्वाद लगने लगती है- ओर मे अपनी प्रार्थना कामना मे अनायास खाली हो जाती हूँ --ये एक प्रयास होता है सबसे जुदा तुम्हे सोचने का ---फिर तुम भीतर उतरते हो तो मे अासमान होती जाती हूँ -और उसी खालीपन से शुरू करती हूं नये सिरे से अपने को भरना---उड़ना ---
तुम होते तो देख पाते --तुम्हारे ना होनेे पर भी समय अपने पूरे अधूरेपन के साथ कैसे विस्तारित होता है
तुम होते तो देख पाते --तुम्हारे ना होनेे पर भी समय अपने पूरे अधूरेपन के साथ कैसे विस्तारित होता है
''तुम स्लीवलेस नही पहनती --ना' ओर तुम्हारी तर्जनी घुप्प से मेरी बाहं मे गड जाती है --अपनी बाहं को सहलाती हूँ --ओर लिपिस्टिक ''ना -क्यों ?-क्यों मतलब नही पसंद --क्यों पसंद नही --अब बातों को घसीटना जरूरी है --नही ---क्यों पूछा --मेरा पूछना -तुम चुप बस अांखों मे झांकते मुस्कुराते रह जाते हो---दो सेकंड बाद ही
''ओर ये जो मऩ भर काजल भर लेती हो अांखों मे ठीक से देख पाती हो मुझे ? मे हंसी जोर से --हंसी इतना, अनन्त मे चांद की बिंदी मे-सितारों की खनक चमक मे अपने गजरे की महक मे-हंसी मे ,भीगी इतना कि हँसते हँसते रो पड़ी ---उपर सर उठाया तो बादलों के बीच से उड़ता झिलमिल प्लेन --अांखें उसका पीछा करती है -- कितना देर -- सब कुछ ओझल हो जाता है --जानते हो संदल जब सारी दुनिया ठसाठस भरी होती है --मे ज़ेब्रा क्रॉसिंग के पार उस छोटी सी सड़क के किनारे बने पार्क की रेलिंग्स वाला स्पेस तुम्हारे लिए बचा लेती हूँ ---जिसके सहारे, किनारे चलते हुए हम झील किनारे तक अहिस्ता अाते थे
जानते हो जहां रंग बिरंगे फूलों को बेचने वाला वो गरीब लड़का कितनी हसरत से तुम्हे तकता था ---और तुम मुझे ---
अभी लौटी हूँ कुछ मेहमानों को शहर दिखाने के बाद --अब इस शहर मे ले दे के झील ही तो है --क्या दिखाया जाय - मेंने ,उनसे कहा चलिए पैदल ही चलते हें हालांकि पति महोदय को मेरा अायडिया जरा रास नही अाया --वो बोले मे उस तरफ मिलता हूँ --ओर ज़ेब्रा क्रॉसिंग की काली सफेद पट्टियों पे चलने का सुख उससे ज्यादा तुम्हे सोच लेने का सुख --पर संदल अब नही चल पाती हूँ सांसे तेज़ चलती है -तो झट्ट याद अाता है , बी पी की टेब खाई या नही -याददाश्त पे ज़ोर देती हूँ तो कुछ ओर याद अा जाता है --वो कोना जहां तेज बारिश होती है --मेरी गीली पीठ पे तुम्हारा हाथ --जान लो कुछ दिन बिजी रहूँगा --करीब दो माह --अपनी रिसर्च कंप्लीट कर लो --इस बीच ---बीच -तालाब के पानी पे एक नाविक जाल फैलाता है -अंधेरा अांखों को काटने लगता है किनारे लगे लैम्प जल उठते हें --उनकी रोशनी पानी की सतह पे गिरती है ओर वहाँ से प्रतिबिंबित होती हुई अांखों की पुतलियों मे चमक अाती है ----तुम देखते हो --समझते हो --मे तुम्हे ** सायमा झील के किनारे ले चलूँगा' नंदिनी '' कहते तुम्हारी झक्क सफेद कमीज़ भीग जाती है बारिश से बचने की कवायद मे---तुम्हारी बारिश भरी हथेलियाँ ---मेरी गीली हथेलियों को भर जाती है ---
# अाज तुम्हारी नंदिनी ने भीगा हुअा रजनीगंधा का एक बड़ा सा बंच लिया है----
''ओर ये जो मऩ भर काजल भर लेती हो अांखों मे ठीक से देख पाती हो मुझे ? मे हंसी जोर से --हंसी इतना, अनन्त मे चांद की बिंदी मे-सितारों की खनक चमक मे अपने गजरे की महक मे-हंसी मे ,भीगी इतना कि हँसते हँसते रो पड़ी ---उपर सर उठाया तो बादलों के बीच से उड़ता झिलमिल प्लेन --अांखें उसका पीछा करती है -- कितना देर -- सब कुछ ओझल हो जाता है --जानते हो संदल जब सारी दुनिया ठसाठस भरी होती है --मे ज़ेब्रा क्रॉसिंग के पार उस छोटी सी सड़क के किनारे बने पार्क की रेलिंग्स वाला स्पेस तुम्हारे लिए बचा लेती हूँ ---जिसके सहारे, किनारे चलते हुए हम झील किनारे तक अहिस्ता अाते थे
जानते हो जहां रंग बिरंगे फूलों को बेचने वाला वो गरीब लड़का कितनी हसरत से तुम्हे तकता था ---और तुम मुझे ---
अभी लौटी हूँ कुछ मेहमानों को शहर दिखाने के बाद --अब इस शहर मे ले दे के झील ही तो है --क्या दिखाया जाय - मेंने ,उनसे कहा चलिए पैदल ही चलते हें हालांकि पति महोदय को मेरा अायडिया जरा रास नही अाया --वो बोले मे उस तरफ मिलता हूँ --ओर ज़ेब्रा क्रॉसिंग की काली सफेद पट्टियों पे चलने का सुख उससे ज्यादा तुम्हे सोच लेने का सुख --पर संदल अब नही चल पाती हूँ सांसे तेज़ चलती है -तो झट्ट याद अाता है , बी पी की टेब खाई या नही -याददाश्त पे ज़ोर देती हूँ तो कुछ ओर याद अा जाता है --वो कोना जहां तेज बारिश होती है --मेरी गीली पीठ पे तुम्हारा हाथ --जान लो कुछ दिन बिजी रहूँगा --करीब दो माह --अपनी रिसर्च कंप्लीट कर लो --इस बीच ---बीच -तालाब के पानी पे एक नाविक जाल फैलाता है -अंधेरा अांखों को काटने लगता है किनारे लगे लैम्प जल उठते हें --उनकी रोशनी पानी की सतह पे गिरती है ओर वहाँ से प्रतिबिंबित होती हुई अांखों की पुतलियों मे चमक अाती है ----तुम देखते हो --समझते हो --मे तुम्हे ** सायमा झील के किनारे ले चलूँगा' नंदिनी '' कहते तुम्हारी झक्क सफेद कमीज़ भीग जाती है बारिश से बचने की कवायद मे---तुम्हारी बारिश भरी हथेलियाँ ---मेरी गीली हथेलियों को भर जाती है ---
# अाज तुम्हारी नंदिनी ने भीगा हुअा रजनीगंधा का एक बड़ा सा बंच लिया है----
*** सायमा झील 'फिनलैंड' की सबसे बीडी झील
जेब्रा क्रॉसिंग ## 4 -एक # इतनी बारिश जिसमें भीगने सांस लेने का मऩ --- जो --वहाँ सुन लिया गया जाने कैसे --शाम बीत रही थी -शाम का अखरी पल जैसे रुक गया ,पानी की सतह पे --हमारे देखते ही देखते धूप हिली और लचीली पतली लकीर सी हमारे एडियों से उपर तक पानी मे भीगे पैरों को छूती हुई बीच तालाब की तलछट पर पहुंच गई---झिलमिल सी --वो घाट ,वो किनारा ,वो नावों का झुरमुट उस पल मे सिमटा वो शाम रात का अंधेरा उजाला
तुम्हे गुस्सा नही अाता --जवाब मे मुस्कुराना -मानो जवाब ही मुस्कुराना हो --अपने ही शब्द नजरा जाते है ----नाराज़ी ओर चुप्पी एक ही हाईट पे --अब क्या करो-जो महीनो नही टूटती- जो गलती ना करे और बात की पहल भी-- ना- तो ----
फिर उन दिनों का बीतना---जैसे समय ही खुराफात करता हो दोनो के बीच -- सुना है इस बार तुम्हारे शहर मे बर्फबारी हुई है --सर्दी तुम्हे जल्दी लग जाती है सोचते हुए तुम्हारी --सुकुड़ती नाक बजने लगती है --- ज़ेहन में
घर से निकली सोच कर कि पास के एक नये बने मॉल मे जरूरी शॉपिंग करुगी - बाहर एक लंबी रैली और भीढ़ दिखाई दी ,अब घूम कर जाओ तो उसी क्रॉसिंग पे--जानते हो सनातन एकांत मे एकांत अक्सर काटता है लेकिन भीढ़ मे अंजानेपन का एकांत ,अजनबी होने का सुख मुझे खूब भाता है --जब चाहे मन को टोह कर कहीं भी रुक जाना शॉप विंडों मेे झांक लेना --देर तक -- भी क्या खूब काम है पता चला, रोड ब्लॉक-रहेगा किसी स्थानिय नेता की सभा होना है - अब उस क्रॉसिंग से गुजरना मजबूरी है --कुछ पल को भी -सोच" टॉप गेयर पे दौड़े तो मुश्किल होती है--
''तुम इतना क्यों डरती '' रोड क्रॉस करने मे --वाकई तुम साथ हो तो --सोच रुकती है- तुम झुंझला गये --हाथ पकड़े पकड़े कहना- अराम से चलो ---सच सनातन अाज भी रोड क्रॉस करने से --डरती हूँ --एक कल्पना ,फिर देखना ट्रेफिक सिगनल को,काउंट डाउन करना 6,5 ,4 ,3 ,2 ,1 मे, अपने को बीच सड़क लहूलुहान पाती हूँ --बर्लिन की वो 22 वीं फ्लोर पे लिफ्ट मे अकेले एक अजनबी के सहारे ग्राउंड फ्लोर पे अाना ,सच कितनी शर्मिंदगी होतीअपनी ही बुजदिली से ,लेकिन डर नही जाता --अपने डरों के सच होने से डरती हूँ--तुम्हे खो देने का डर सच हुअा जब -तब से ओर ज्यादा,--बोटिंग करते हुए उस शाम जब बारिश शुरु हुई और नाविक ने जैसे ही हिचकोले खाती नाव को , तेजी से मोड़ा तो तुम्हारे तरफ झुकी नाव लगा अब डूब ही गई --मैने तुम्हे पीठ ओर बाजुओं से जोर से थाम लिया आँखें बंद कर ली-- तुम कहते रहे-तुम्हे मरने नही दूंगा नंदिनी ---अांखों की झिलमिल में तुम मुस्कुरा दिए --
खोया समय याद अाता है देर रात ,भाग कर जी लेने की अातुरता बेसब्र होती जाती है --
ये बालों को क्यों इतना कस लेती हो ''नंदिनी अांटी जी ''--हाथ से बालों मे लगे रबर बेंड को लूज़ कर देना ओर मेरा नंदी बन जाना ---देखो तो कितनी अच्छी लगती हो ''कैसे देखूं? ''मेरी अांखों मे उफ्फ ---
तुम्हारी यादों ओर बातों से बनी दुनिया करवट लेती है ---में ज़ेबरा क्रॉसिंग पार करती हूँ -
यही तो कहा था --एक पूरी रात बिना कामना के जागो मुझ संग ''फिर --फिर हम जुगनुओं को पकड़े -एक दूसरे की बंद -मुठ्ठियों को खोले -अांखों से एक दूजे के लिए सितारे पकड़े --तुम मे्रे लिए कोई कविता पढ़ दो --ना ' ये ना होगा मुझसे --अरे कोई किताब से पढ़ देना --एक शरारती सवाल- और क्या ? बस उस रात सूरज भी दोपहर दिन चढ़े तक मूह ढाँप सोता रहे -आइडिया अच्छा है 'जान '' और अनायास चेहरे को सिकोड कर होंटों को गोल घुमाकर सीटी मे तुम्हारा गा पड़ना
''ना जाने कहां तुम थे ,ना जाने कहां हम थे जादू ये देखो हम तुम मिलें हें'' -------मन्ना डे की पुरसर अावाज़ मे ,मन्नाडे की आवाज़ पसंद है तुम्हे- तुम कहते हो तो बस फिर कुछ याद नही रहता--वो सिकुड़े हुए होंट वो घूमती अांखें जीरोक्स हो जाती है "जान" सुनते -ही
तुम्हारा खुश चेहरा द्रश्यों मे चमतकार पैदा करता है -तुम्हारा साथ चाहना अाज भी ---उस शाम कितनी बैचैनी थी तुमसे ना मिल् पाने की --अाज सोचती हूँ तो लगता है हम वाकई जिंदगी मे उतना ही पाते हें जितने के हकदार होते हें बाकी कोशिशें बेकार है सनातन---सच बताऊँ एक मुकाम एसा भी अाता है जब सारे सच के झूटे होने के अंदेशे मुझे बहलाते हें --पिछले हफ्ते से पीठ मे दर्द है--अब डॉक्टर के पास जाने से डरती हूँ सनातन जाने कोनसी पैथालॉजी रिपोर्ट से जाने कोन सा भूत निकल अाये --अभी शाम डूबना चाहती है --मे ज़ेब्रा क्रॉसिंग के पार उस रेलिंग्स से खड़े हो वहाँ से देखना चाहती हूँ खुद को चलते हुए तुम तक अाते हुए-फिर एक साथ हवा के गुब्रबार को देखना अासमान मे ,जहां ढेरों अबाबील पंख फैलाये उड़ती रहती है -लेकिन फिलवक़्त ये भी ना हो सकेगा रात कहीं डिनर है '`--तुम्हारी सोच को भी तह लगा छोड़ जाऊंगी -सिरहाने --फिर भी --खोलूंगी बीच रात संशय में---इतने बरस बरस बीते ऑर कल रात से बारीश भी बेइंतहा बरस रही है--
समय का कोई विश्वसनिय पाट है --हमारे बीच सनातन '' जो दिन ओर रात की काली सफेद पट्टियों से चल कर हमे एक दूसरे के भीतर पार उतारता है-- -+
मे समय को सांस लेने की मोहलत देती हूँ--
ताकि चलती रहे जिंदगी ---
तुम्हे गुस्सा नही अाता --जवाब मे मुस्कुराना -मानो जवाब ही मुस्कुराना हो --अपने ही शब्द नजरा जाते है ----नाराज़ी ओर चुप्पी एक ही हाईट पे --अब क्या करो-जो महीनो नही टूटती- जो गलती ना करे और बात की पहल भी-- ना- तो ----
फिर उन दिनों का बीतना---जैसे समय ही खुराफात करता हो दोनो के बीच -- सुना है इस बार तुम्हारे शहर मे बर्फबारी हुई है --सर्दी तुम्हे जल्दी लग जाती है सोचते हुए तुम्हारी --सुकुड़ती नाक बजने लगती है --- ज़ेहन में
घर से निकली सोच कर कि पास के एक नये बने मॉल मे जरूरी शॉपिंग करुगी - बाहर एक लंबी रैली और भीढ़ दिखाई दी ,अब घूम कर जाओ तो उसी क्रॉसिंग पे--जानते हो सनातन एकांत मे एकांत अक्सर काटता है लेकिन भीढ़ मे अंजानेपन का एकांत ,अजनबी होने का सुख मुझे खूब भाता है --जब चाहे मन को टोह कर कहीं भी रुक जाना शॉप विंडों मेे झांक लेना --देर तक -- भी क्या खूब काम है पता चला, रोड ब्लॉक-रहेगा किसी स्थानिय नेता की सभा होना है - अब उस क्रॉसिंग से गुजरना मजबूरी है --कुछ पल को भी -सोच" टॉप गेयर पे दौड़े तो मुश्किल होती है--
''तुम इतना क्यों डरती '' रोड क्रॉस करने मे --वाकई तुम साथ हो तो --सोच रुकती है- तुम झुंझला गये --हाथ पकड़े पकड़े कहना- अराम से चलो ---सच सनातन अाज भी रोड क्रॉस करने से --डरती हूँ --एक कल्पना ,फिर देखना ट्रेफिक सिगनल को,काउंट डाउन करना 6,5 ,4 ,3 ,2 ,1 मे, अपने को बीच सड़क लहूलुहान पाती हूँ --बर्लिन की वो 22 वीं फ्लोर पे लिफ्ट मे अकेले एक अजनबी के सहारे ग्राउंड फ्लोर पे अाना ,सच कितनी शर्मिंदगी होतीअपनी ही बुजदिली से ,लेकिन डर नही जाता --अपने डरों के सच होने से डरती हूँ--तुम्हे खो देने का डर सच हुअा जब -तब से ओर ज्यादा,--बोटिंग करते हुए उस शाम जब बारिश शुरु हुई और नाविक ने जैसे ही हिचकोले खाती नाव को , तेजी से मोड़ा तो तुम्हारे तरफ झुकी नाव लगा अब डूब ही गई --मैने तुम्हे पीठ ओर बाजुओं से जोर से थाम लिया आँखें बंद कर ली-- तुम कहते रहे-तुम्हे मरने नही दूंगा नंदिनी ---अांखों की झिलमिल में तुम मुस्कुरा दिए --
खोया समय याद अाता है देर रात ,भाग कर जी लेने की अातुरता बेसब्र होती जाती है --
ये बालों को क्यों इतना कस लेती हो ''नंदिनी अांटी जी ''--हाथ से बालों मे लगे रबर बेंड को लूज़ कर देना ओर मेरा नंदी बन जाना ---देखो तो कितनी अच्छी लगती हो ''कैसे देखूं? ''मेरी अांखों मे उफ्फ ---
तुम्हारी यादों ओर बातों से बनी दुनिया करवट लेती है ---में ज़ेबरा क्रॉसिंग पार करती हूँ -
यही तो कहा था --एक पूरी रात बिना कामना के जागो मुझ संग ''फिर --फिर हम जुगनुओं को पकड़े -एक दूसरे की बंद -मुठ्ठियों को खोले -अांखों से एक दूजे के लिए सितारे पकड़े --तुम मे्रे लिए कोई कविता पढ़ दो --ना ' ये ना होगा मुझसे --अरे कोई किताब से पढ़ देना --एक शरारती सवाल- और क्या ? बस उस रात सूरज भी दोपहर दिन चढ़े तक मूह ढाँप सोता रहे -आइडिया अच्छा है 'जान '' और अनायास चेहरे को सिकोड कर होंटों को गोल घुमाकर सीटी मे तुम्हारा गा पड़ना
''ना जाने कहां तुम थे ,ना जाने कहां हम थे जादू ये देखो हम तुम मिलें हें'' -------मन्ना डे की पुरसर अावाज़ मे ,मन्नाडे की आवाज़ पसंद है तुम्हे- तुम कहते हो तो बस फिर कुछ याद नही रहता--वो सिकुड़े हुए होंट वो घूमती अांखें जीरोक्स हो जाती है "जान" सुनते -ही
तुम्हारा खुश चेहरा द्रश्यों मे चमतकार पैदा करता है -तुम्हारा साथ चाहना अाज भी ---उस शाम कितनी बैचैनी थी तुमसे ना मिल् पाने की --अाज सोचती हूँ तो लगता है हम वाकई जिंदगी मे उतना ही पाते हें जितने के हकदार होते हें बाकी कोशिशें बेकार है सनातन---सच बताऊँ एक मुकाम एसा भी अाता है जब सारे सच के झूटे होने के अंदेशे मुझे बहलाते हें --पिछले हफ्ते से पीठ मे दर्द है--अब डॉक्टर के पास जाने से डरती हूँ सनातन जाने कोनसी पैथालॉजी रिपोर्ट से जाने कोन सा भूत निकल अाये --अभी शाम डूबना चाहती है --मे ज़ेब्रा क्रॉसिंग के पार उस रेलिंग्स से खड़े हो वहाँ से देखना चाहती हूँ खुद को चलते हुए तुम तक अाते हुए-फिर एक साथ हवा के गुब्रबार को देखना अासमान मे ,जहां ढेरों अबाबील पंख फैलाये उड़ती रहती है -लेकिन फिलवक़्त ये भी ना हो सकेगा रात कहीं डिनर है '`--तुम्हारी सोच को भी तह लगा छोड़ जाऊंगी -सिरहाने --फिर भी --खोलूंगी बीच रात संशय में---इतने बरस बरस बीते ऑर कल रात से बारीश भी बेइंतहा बरस रही है--
समय का कोई विश्वसनिय पाट है --हमारे बीच सनातन '' जो दिन ओर रात की काली सफेद पट्टियों से चल कर हमे एक दूसरे के भीतर पार उतारता है-- -+
मे समय को सांस लेने की मोहलत देती हूँ--
ताकि चलती रहे जिंदगी ---
1 टिप्पणी:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " पिंगली वैंकैया - भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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