गुरुवार, 5 नवंबर 2009

उसका खुश चेहरा,और सात तालों में कैद चुप्पी बोलती है घोलती है --बेखबर, जलतरंग की झिलमिल / / -


एक छोर से आसमान ढह गया
धूल-धूसरित,
धरती भी थोडी सी डूबी,
और जम गई -इस बीच एक धुन्द सी
और ये कहते -कहते
रुंध गया है गले में ये जो ,कुछ
एक ही समय में ,
अगम राह में निर्जन
इकठ्ठा कोई संत्रास ,
भीतर-बाहर उफनता है
ये तो ..ठीक नहीं
धूप सर पर है
और नापना शून्य को है
अपने ही भीतर निमग्न होते
एक निमिष आकाश को
रंग उडे ख्यालों की अद्रश्य उदासी
नहीं, सबसे अलग खोजा उसने,
अभिमंत्रित एक शब्द
तुम्हारे होने ना होने की जगह
उस बबूल के पेड़ तले
ताजे,छोटे, गोल, पीले रेशमी फूलों की ,
महमहाती छावं में
वक़्त रुकता नहीं
जहाँ रूकती है दृष्टी
उसी वक़्त तुम सुनते हो
,मन्नाडे की पुरअसर आवाज
"हंसने की चाह ने इतना मुझे रुलाया है"
टूटा-फूटा वर्तमान छूट रहा है
एक भरा-पूरा भविष्य हो सकता है
इक्छाओं को टोह देती है ,
नेक नियत- सधे हुए ढंग से
रंग उडे ख्यालों को रंगना
बिसराए जाने से पहले
ताज़ी स्मृति बनना
और उन्हें देखना -देखते रह जाना
जहाँ से गुजरता है
''प्रेम '' प्रवासी पक्षी सा
एक नया सूर्योदय
भुरभुरी रौशनी के साथ उभरता है
एक निराकार अंधेरे के बाद
उसका खुश चेहरा,और
सात तालों में कैद
चुप्पी बोलती है
घोलती है --बेखबर,
जलतरंग की झिलमिल

आँखों में देखकर मिरी, तुफाने मौजे खूं... चढ़ने से पहले, वक़्त का दरिया उतर गया...
जो मौत के जवाब में रहता था, पेश-पेश, वो ज़िन्दगी के चंद सवालों से डर गया... (-नजीर फतेहपुरी)


16 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

आपकी रचना डूबकर लिखी गयी होती है
एक एक शब्द बहुत गहराई लिए होते हैं और हम उसमें डूबते से जाते हैं

नजीर फतेहपुरी जी पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं

रंजू भाटिया ने कहा…

उसका खुश चेहरा,और
सात तालों में कैद
चुप्पी बोलती है.....बेशक एक एक पंक्ति लफ्ज़ बहुत कुछ कह गया ..बहुत से सच और बहुत सी हंसने की चाह ..पर एक उदासी में डूबा हुआ ..एक बेहतरीन रचना ...

डॉ .अनुराग ने कहा…

क्या कहूं.सुबह एक दो बार नेट पर आया .कुछ काम का न देख लौट गया ....ओर अभी नेट देखा तो

"अगम राह में निर्जन
इकठ्ठा कोई संत्रास ,
भीतर-बाहर उफनता है


ये तो ..ठीक नहीं
धूप सर पर है
और नापना शून्य को है "

ओर ये .......

अपने ही भीतर निमग्न होते
एक निमिष आकाश को
रंग उडे ख्यालों की अद्रश्य उदासी


शब्द चुराने का मन करता है ...

इक्छाओं को टोह देती है ,
नेक नियत- सधे हुए ढंग से
रंग उडे ख्यालों को रंगना
बिसराए जाने से पहले
ताज़ी स्मृति बनना
और उन्हें देखना -देखते रह जाना

अमूमन उर्दू में आजाद नज्मे जैसा असर छोड़ती है ...वैसा आप छोड़ती है .ओर आखिर में जो शेर कहती है ...

हम आपके फेन है विधु जी ....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

नेक नियत- सधे हुए ढंग से
रंग उडे ख्यालों को रंगना
बिसराए जाने से पहले
ताज़ी स्मृति बनना
और उन्हें देखना -देखते रह जाना
जहाँ से गुजरता है
''प्रेम '' प्रवासी पक्षी सा
एक नया सूर्योदय

रचना पढ़ते हुवे एक एक शब्द को बार बार पढने को मन करता है ........... गहरी बातों को कविता के रूप में लिखना बस आपके बस की बात है ......... बहुत लाजवाब रचना है ....

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप की रचना बहुत गहरी बात कह गई, बहुत सुंदर, आप बहुत दिनो बाद आई.

विधुल्लता ने कहा…

आप सभी का शुक्रिया ..एकदम व्यस्त थी ...कहीं कुछ लिखने का मन भी नहीं था .दस अक्टू को .एक वर्ष पूरा हो गया है ब्लॉग लिखते....इतना स्नेह ...इतना सम्मान सब कुछ सर माथे पर धन्यवाद

neera ने कहा…

दो बार पढ़ी ...अलग अनुभूति.. यह पंक्तियाँ तो बस

''प्रेम '' प्रवासी पक्षी सा
एक नया सूर्योदय
भुरभुरी रौशनी के साथ उभरता है
एक निराकार अंधेरे के बाद
उसका खुश चेहरा,और
सात तालों में कैद
चुप्पी बोलती है
घोलती है --बेखबर,
जलतरंग की झिलमिल

Unknown ने कहा…

well.. some words of this poetry are way too good and beautiful..
नहीं, सबसे अलग खोजा उसने,
अभिमंत्रित एक शब्द
तुम्हारे होने ना होने की जगह
keep up the best work :)

अजित वडनेरकर ने कहा…

धूप सर पर है
और नापना शून्य को ह

बानगी देने लायक एक से एक भावाभिव्यक्त्तियां हैं।
बहुत सुंदर लिखती हैं आप। गद्य भी कविता सा होता है।

Arvind Mishra ने कहा…

अहसासों की सुन्दर कविता

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

सादर प्रणाम
अति सुन्दर

P.N. Subramanian ने कहा…

शब्दों को कितने सुन्दर तरीके से संवारा है. गोताखोर बनना पड़ेगा!

neelima garg ने कहा…

बहुत सुन्दर ....

प्रदीप जिलवाने ने कहा…

उम्‍दा रचना. बधाई.

Unknown ने कहा…

एक ही समय में ,
अगम राह में निर्जन
इकठ्ठा कोई संत्रास ,
भीतर-बाहर उफनता है
ये तो ..ठीक नहीं
धूप सर पर है
और नापना शून्य को है
vidhuji
bahut acha
WAH

ritu raj ने कहा…

vidhu ji,
Mujhe yah kavita bahut pasand aai.
aur aakhir ka sher bhi good hai.
shukriya.