शनिवार, 11 जुलाई 2009

'प्रेम एक ऐसा दृढ़ निश्चय है ,जो हमारी आत्मा के साथ रहता है और जो वतमान को अतीत तथा भावी युगों से जोड़ता है ,


खलील जिब्रान की एक पुस्तक ''दी अर्थ गोड्स का हिन्दी मैं अनुवाद धरती के देवता नाम से ..माई दयाल जैन ने किया था और इसका चौथा सस्करण [१९८९] मैं सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन द्वारा हुआ था जिसकी कीमत केवल रूपये मात्र है जो मुझे देहली के फूटपाथ से मिली ,हो सकता है जिब्रान बहुतों को नापसंद हो लेकिन जो उन्हें पढ़ते रहें होंगे वे जानते हैं ...जीवन संदेश,पागल,बटोही,शैतान ,तूफान और विद्रोही आत्माए आदि उनकी ऐसी कृतियाँ हें जो कभी पुरानी नही होगी धरती के देवता जिब्रान की अन्तिम रचना है जो उनकी म्रत्यु के दो सप्ताह पूर्व प्रकाशित हुई थी इनमे उनके कुछ गध्य गीत भी हें जिसमे संगीत और लय का अलौकिक सौन्दर्य है, जिन्हें बारम्बार पढने पर भी तृप्ति नही होती ....उसी से एक अंश....प्रेम क्या है .......
जिसे हम प्रेम कहतें हैं,वो महान मुक्ति क्या है जो समस्त परिणामों का कारण है और सब कारणों का परिणाम वो क्या शक्ति है जो मौत और जिन्दगी को एक करती है और फिर उनमे एक ऐसा स्वप्न पैदा करती है जो जीवन से भी अधिक विचित्र और मौत से भी अधिक गहरा है
अभी कल ही मैं मन्दिर के द्वार पर खडा था और पास से जाने वाले सभी व्यक्तियों से प्रेम के रहस्यों और लाभों के बारे मैं पूछ रहा था ....एक अधेड़ आयु का व्यक्ति जिसकी शक्ति क्षीण हो चली थी और त्योरियां चढी हुई थी वो कहने लगा ....प्रेम एक जन्म जात दुर्बलता है,जिसे हमने आदि पुरूष से उतराधिकार मैं प्राप्त किया है ...फिर एक नवयुवक जिसका शरीर और भुजाएं सुद्रढ़ थी उसने कहा ...''प्रे एक ऐसा दृढ़ निश्चय है ,जो हमारी आत्मा के साथ रहता है और जो वर्तमान को अतीत तथा भावी युगों से जोड़ता है ,...उसके बाद एक शौकातुर स्त्री गुजरी वो बोली प्रेम एक घातक विष है जिसे पाताल वासी भुजधर सारे लोक मैं फैलातें हें आत्मा उसके प्रभाव मैं नशे से मस्त हो बाद मैं नष्ट हो जाती है ,..एक गुलाबी चेहरे वाली सुंदर लड़की का कहना था कि.....प्रेम एक अमृत है जिसे प्रभात कि वधुएँ बलवान पुरुषों के लिए बरसाती है जिससे वे समस्त आनंद का भोग कर सकें फिर एक काले वस्त्रों मैं लम्बी दाढी वाले व्यक्ति ने कहा कि ....प्रेम एक मुर्खता है जो जवानी के प्रभात के साथ प्रगट होती है और संध्या बेला मैं विदा हो जाती है ,....उसके बाद एक तेजपूर्ण चेहरे वाले आदमी ने शांत और प्रसन्न मुख से कहा प्रेम एक दैवी ग्यान है जो हमारे अन्तरंग और बाहर कि आंखों को प्रकाश प्रदान करता है जिस से हम समस्त वस्तुओं को देवताओं के समान देखने लागतें हैं ,...बाद मैं एक अंधे आदमी ने रोते हुए कहा प्रेम एक गहरी धुंद है जो आत्मा को ढंक देती है जिसमे आदमी अपनी इक्छाओं की प्रति छाया मैं अपनी ही आवाज की प्रति ध्वनी सुनता रहता है फिर एक नवयुवक वीणा बजाते हुए आया और बोला प्रेम एक स्वर्गिक ज्योति है जो सूक्ष्म ग्राही आत्मा की तरंग से चमक कर अपने आस-पास की समस्त वस्तुओं को प्रकाशमान कर देती है ,...फिर एक बूढे ने कहा प्रेम एक दुखी शरीर की विश्रांति है ,जो उसे कब्र मैं प्राप्त होती है फिर पाँच वर्ष का एक बालक दौड़ते हुए आया और उसने कहा ..प्रेम मेरा बाप है प्रेम मेरे माँ-बाप के सिवा कोई नही जानता कि प्रेम क्या है ...
और जब शाम हो चली सभी प्रेम के विषय मैं अपने विचार प्रगट कर चुके ..सन्नाटा होगया तब मैंने मन्दिर मैं एक आवाज सुनी ..जीवन दो चीजों का नाम है -एक जमी हुई नदी और दूसरी धधकती हुई ज्वाला .और धधकती हुई ज्वाला ही प्रेम है ...और मैंने घुटने टेक इश्वर से मन से प्रार्थना की,हे प्रभु मुझे इस धधकती हुई ज्वाला का भोग बना दे और इस पवित्र अग्नि की आहुति बना......
.मैं तुम्हे जिस भी कोण से देखता हूँ ,हर कोण द्रष्टि कोण बन जाता है ...शिव मंगल सिंह सुमन

15 टिप्‍पणियां:

vikram7 ने कहा…

सार्थक प्रेरणादाई लेख

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जीवन दो चीजों का नाम है -एक जमी हुई नदी और दूसरी धधकती हुई ज्वाला .और धधकती हुई ज्वाला ही प्रेम है ...

दर asal प्रेम क्या है.......... isko हर किसी ने अपने अपने dhang से paribhaashit करने का prayaas किया है........ खलील जिब्रान ने भी अलग अलग maadhya से इस बात को btaane का prayaas किया है और ant में jevan के gahre darshan को अपने andaaj से लिख कर प्रेम को paribhaashit करने का pryaas किया है.......... lajawaab prasang को आपने अपनी post में dala है............वो प्रेम को jwala कहते हैं........... मैं प्रेम को sheetalta kahta हूँ........... कोई कुछ और kahegaa........... ये तो एक nirantan prayatn है aajeevan chalta रहेगा..........

राज भाटिय़ा ने कहा…

सब की अपनी अपनी सोच ओर अपनी अपनी नजर है, आप ने बहुत अच्छा लेख दिया.
धन्यवाद

संगीता पुरी ने कहा…

एक कहानी आपने जरूर पढी होगी .. कई अंधो को एक हाथी को टटोलने को दिया गया और उनसे हाथी के बारे में पूछा गया .. सबों ने हाथी के बारे में अलग अलग सोंचा .. क्‍यूंकि उन्‍होने अलग अलग अंगों को टटोला था .. हमारी जिंदगी में भी धारणाएं ऐसे ही बनती है .. जिन घटनाओं का हमारे जीवन में जैसा प्रभाव पडता है .. तद्नुरूप हमारे विचार हो जाते हें ।

अनिल कान्त ने कहा…

आपने बेहतरीन लेख लिखा है ....

Udan Tashtari ने कहा…

सार्थक आलेख!!

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: ने कहा…

सर्वप्रथम तो खलील जिब्रान की एक नई कथा से साक्षात्कार कराने का धन्यवाद स्वीकार करें||
परन्तु आपकी इस पोस्ट पर कुछ कहने से पूर्व मुझे अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेने दें ?
मैं दिगंबर नासवा जी के ब्लॉग पर आपकी बेबाक टिप्पणी देख कर इधर आने को आने को प्रेरित हुआ हूँ ,ऐसे गुणग्राही का मेरे ब्लॉग ''कबीरा '' पर आगमन प्रार्थनीय है ,
मैंने दिगंबर जी की कविता से प्रेरित हो उन्ही के शब्दों में जो लिखा उसकी चार पंक्तियां उनके ब्लॉग पर उन्हें समर्पित कर आया हूँ ,अवलोकनार्थ प्रस्तुत है ,

जैसे सहयात्री हो नीले सागर का ,
कोसों कोस साथ चले ये रेत-समुन्दर भी ,
........
..........
..........
...........
ऐसे ही क्षण इन्द्रधनुषी रंग बिखर जातें है ,
पर प्यास अनन्त अतः मिलन दोहराए जाते हैं||


पूरी कविता अपने ब्लॉग पर ''दिगंबर जी '' को समर्पित करते हुए शीघ्र अपने ब्लॉग पर डाल दूंगा ,जरा अनुमति लेलेनेदें ||

पुनः खलील जिब्रान कीबात ,
मुझे '' शिव मंगल सिंह सुमन का ''कथन इस कथा पर मौजूं लगता है | कबीर ने तो प्रेम को '' ढाई आखर'' में समेट उसी में सारे ज्ञान की गठरी बांध दी | खलील जिब्रान ने उसे धधकती ज्वाला से परिभाषित किया ,एक सीमा तक इससे सहमत हुआ जा सकता है [ यानि मैं एक सीमा तक सहमत हूँ ] क्यों कि कहा भी गया है
''ये इक आग का दरिया है और तैर के जाना है '' ग़ालिब ने कहा '' वो आतिश है जो लगाये न लगे , लगे तो बुझाये न बने '' चच्चा कि बात में दम तो है ||

'' ये वह आतिश है ,
जिसमे वजूद मिट जाते है,
और वजूद में वजूद समा जाते है ,
या तो खाकनशीं या कुंदन में बदल जातें हैं ||


कबीरा पर प्रतीक्षा में

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: ने कहा…

पुनश्च अ;-- कुछ कहने से जो रह गया था

खलील जिब्रान को खलील जिब्रान की निगाह से पढ़ चुका हर प्रबुद्ध पाठक '' ईश्वर द्वारा प्रेम को जमी हुई नदी और आग बताते ही समझ जाता है,[[ यदि इसके बाद का अंश छिपा भी दिया जाता तब भी ]] कि खलील जिब्रान द्वारा आग को ही चुना जायेगा ||कहा तो और बहुत कहा जा सकता है पर हर चीज कि एक सीमा होती है , सुनाने वाले के धैर्य कि बिजली कटौती के समय कि अदि अदि

Prem Farukhabadi ने कहा…

jaisi jiski bhavna vaisi uski anubhhuti.aap ko dil se badhaai!!!!!!!!!

sandeep sharma ने कहा…

bahut sundar aalekh...

or antin lines...
.मैं तुम्हे जिस भी कोण से देखता हूँ ,हर कोण द्रष्टि कोण बन जाता है ...

or bhi khoobsurat hain...

Vinay ने कहा…

सार्थक और शिक्षाप्रद
---
श्री युक्तेश्वर गिरि के चार युग

मथुरा कलौनी ने कहा…

प्रेम पर बहुत रोचक आलेख है। पढ़ कर आनंद आया।

के सी ने कहा…

मैं उन में से हूँ जो जिब्रान साहब को पसंद करते हैं
आपने जिस सादगी से बात कही है वाही अंदाज उनका भी रहा. एक उपयोगी आलेख जो उर्वर है. शुभकामनाएं

ज्योति सिंह ने कहा…

jaisi jiski bhavna ,prabhu murat waisi ,kuchh isi tarah ki bhavana bhi pyar se judi hui hai .ati uttam .

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

'जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी...हरि अनंत अनंता बहुविधि कहहिं-सुनहिं सब संता...प्रभु और हरि के स्थान पर प्रेम कर दें...यह सनातन सत्य है, जिसका अनुभव करनेवाले जन और नौभाव बयां करने वाले शब्द बदल जाते हैं.