पिता...तुम हो हमारे आस-पास
महाबोधि वृक्ष थे तुम
जिसकी छाया में पनपी ये साधारण काया
हमारी हथेलियों की रेखाओं में बसी है ,
तुम्हारी कर्मठ ऊर्जा की गर्माहट,
महकता है तुम्हारा चेहरा अब भी
केया गंध सा हमारे बचपन की सौंधी शरारतों में
मीठी मुस्कराहटों में..अनगिन सच-झूट में
ताउम्र उगते रहे जो सूरज तुम्हारी आंखों में
हमें रौशनी देने की खातिर,रौशनी के उस मुकाम में
हमारी छोटी उपलब्धियों पर चकित होने वाले ,
तुम्हारे वैभव शाली लाड-दुलार में,डांट-फटकार,निषेध आज्ञाओं में ,
सख्ती-नरमी और तुम्हारे निश्चल प्रेम की सौगातों में ,
सख्ती-नरमी और तुम्हारे निश्चल प्रेम की सौगातों में ,
कठिन लक्ष्यों के प्रति ,धैर्य से साधे गए संधानो की सीख में ,
पिता शब्द की सनातन अनगूंज में,
शिराओं में घुले रक्त के प्रवाह में ,
स्तब्ध सन्नाटे के खिलाफ बन आवाज में
कठिनाई में सचेत हो दौड़ पड़ने वाले आत्मबल में,
हमारी अबोध चाहतों के विस्तार में
बचपन से युवा होते समय के अनंत में ,
तुम्हारे पसंदीदा महकते चम्पा के फूलों में ,
माँ के प्रति सदैव तुम्हारी अछूती ताजगी भरी धडकनों में
हमारे बच्चों और उनकी संतानोकी किलकारियों और पवित्र स्पर्शों में ,
आगत उत्सवों के नाद में,और रक्त से रक्त संबंधों के बनते पर्व में,
अप्रत्याशित बिछोह के दुःख में ,शिव की शक्ति में,
इस ब्रह्मांड-जड़ चेतन में चिरंतन दर्ज तुम्हारी उपस्थितियों में,
तुम्हारे लिए फिर भी बहुत कुछ ना कर पाने के स्वीकार में ,
हमारी अगाध,असीम ,अनंत भावनाओं के अभिमंत्रित अर्ध्य में ,
अंजुरी से बहते जल में ,गति शील कर्तव्यों की सक्रियता में ,
हमारी भूलों और तुम्हारी भोली क्षमा में ,
निशेष सपनो,हँसी आंसुओं,के साथ उस रिश्ते में ,
जो मिटटी ,पानी, आकाश, हवा और आग संग गुंथा है ,
वही तुम्हारे होते रहने की मूर्तता है ..तुम हो आस-पास हमारे .....
पिता की एक उजली छवि अब तक मन में है....जिन्होंने ना कभी डांटा,ना कान उमेठे..बिना कहे हमारी मुश्किलों को समझने वाले.....कहते थे जमीन पर पड़ी कोई चीज कभी नही उठाना...सितारें तोड़ने का होंसला हमेशा दिल में बनाय रखना...
21 टिप्पणियां:
pita ke sare ahsaas sanjo diye hain aapne.
bahut sunder bhav purna rachna, khoobsurat shabdon ka chayan aur bhavnaayen.
जमीन पर पड़ी कोई चीज कभी नही उठाना...सितारें तोड़ने का होंसला हमेशा दिल में बनाय रखना.....बेहद सुन्दर लगी यह बात ..पिता एक छाया होती है .जिसके आशीर्वाद का साया हमेशा अपने साथ चलता प्रतीत होता है ..आपने खूबसूरत लफ्जों में इस रचना को लिख दिया है बहुत समय तक यह याद रहेगी ...
बहुत ही बढ़िया रचना . आभार
बहुत ही नायाब रचना. शुभकामनाएं.
रामराम.
बड़ी सुन्दरता से भावों के मोतियों को पिरोया है आपने. बेहद भावपूर्ण-बधाई.
बहुत ही बेहतरीन रचना लिखी है आपने साभार
अद्भुत...अद्भुत...पिता को कविता में सामेटना सबसे मुश्किल काम है....इसे पढ़कर मन्नू भंडारी का अपने पिता पर लिखा संस्मरण याद आ गया ...एक गुजारिश कभी वक़्त मिले तो गध में भी उन पर लिखे उत्सुकता रहेगी...एक बार फिर अद्भुत कविता
पिता के लिए रचना ....बहुत बड़ा काम है
बहुत अच्छी लगी
कितनी निर्मल यादोँ को बुना हुआ है आपने इस सच्ची श्रध्धाँजली रुपी अँजलि मेँ -मेरे स्व, पापा जी की याद बरबस झकझोर गई !
- लावण्या
बहुत सुंदर भावों के साथ अच्छी रचना लिखी है ... बधाई।
महाबोधि वृक्ष थे तुम
जिसकी छाया में पनपी ये साधारण काया
....वाकई पिता महाबोधि वृक्ष ही होते है.
महाबोधि वृक्ष थे तुम
कितनी मार्मिक..........भावोक रचना लिखी है आपने............पिता और माता दोनों ही वाट वृक्ष की तरह जीवन भर छाया देते रहते हैं.............उनकी यादें संबल बन जाती हैं जीवन के हर पल में ...............बहुत ही सजीव रचना है
चलो कहीं तो पिता की भी पूछ हो रही है. हमें एक गीत याद आ गया "तू प्यार का सागर है, तेरे हर बूँद के प्यासे हम". आपकी रचना सचमुच अनुपम है.
बहुत भावुक अभिव्यक्ति
...जमीन पर पड़ी कोई चीज कभी नही उठाना...सितारें तोड़ने का होंसला हमेशा दिल में बनाय रखना.....
शुक्रिया
हम्म्म बहुत सुंदर लेखनी से सब बातें बता दीं !
शब्द-शब्द में
पिता के स्नेह की महक बसी हुई है
वात्सल्य की परिभाषा से परिपूर्ण
अति-उत्तम रचना
नमन
---मुफलिस---
Pita par aapki kavit ko padh kar aisa laga jaise mai khud apne pita ke bare me aisi bate kahana chahata tha, par sabd nahi the , aapane etani badi fellings ko sabdon me dhal kaar man ki bat kah di....Great
Regards
बहुत अच्छी लिखाई है...बधाई...
my father ki post jaroor dekhen mere blog par
shaandaar abhivyakti ke liye dhanywad
bahut sundar likha hai.....bahut si cheeze gehrai tak chhu jati hain........
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