बोलों पे जड़ दिए ताले
सूरज कैद कर लिया था किसीने
सन्नाटा था ,हवाए नाराज ,पेड़ उदास ,
मेरे शहर मैं ख़ास अर्थ होता है
धूपऔर हवा के निकलने बिखरने का
सिमट गए थे , तालाब,समीक्षित हो गया आकाश,
बदल गई थी जिंदगियां हिरोशिमा और नागासाकी के ढेर मैं
बीत गए साल दर साल,
बदलने- सँवारने-निखारने की तयारियों मैं ,
परछाइयां पकडती व्यवस्था घटा टौप अंधेरों मैं
रचती हर दिन एक नया षड़यंत्र ......
उन दिनों ,मेरे दोस्त
सुबह का इन्तजार बेहद जरूरी था
और मैं अपने शहर के तालाब पर फैली
सिर्फ स्याह काई देखती रही
सोचती रही
अपनी गोद से उछाल देगा आकाश
यकायक पीला सुनहरा सूरज
सूरज पे हमें विशवास है
गैस त्रासदी पे लिखने के लिए जो शब्द हो ,मेरे पास नही ,ये उसी वक्त लिखी और प्रकाशित एक लम्बी कविता थी जो थोड़े से बदलाव के साथ है...
5 टिप्पणियां:
अच्छा िलखा है आपने । भावों को प्रभावशाली ढंग से अिभव्यक्त िकया है ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
उन दिनों ,मेरे दोस्त
सुबह का इन्तजार बेहद जरूरी था
और मैं अपने शहर के तालाब पर फैली
सिर्फ स्याह काई देखती रही
सोचती रही
अपनी गोद से उछाल देगा आकाश
यकायक पीला सुनहरा सूरज
सूरज पे हमें विशवास है
बहुत ही भाव पुर्ण कविता लिखी है आप ने .
धन्यवाद
aapkey shabdo ke kayal hu...jald he mulakat hogi ......
गहरी त्रासदी को जैसे आपने शब्द दिये है ........
Atyant bhavpurna.
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