मंगलवार, 18 नवंबर 2008

ये चमकीली औरतें,..रिपोतार्ज कथा,..पिछली पोस्ट से आगे,






चमकीली औरतें कोई किस्सा नही, हमारे समाज का सच है ,आधी आबादी का एक पढा लिखा अनपढ़ हिस्सा बनी ये औरतें अच्छे भले आदमी का दिमाग घुमाने के लिए काफ़ी है ,ये पोस्ट ज्यों की त्यों पेश है जैसा मैंने इसे सुना,...आगे सुनिए.....बुटिक मालकिन आँख मारकर,..यादव को तो पटा नही पाई ,अरे क्या पटाती ..चोरी कर के जो खाता था ,फिर तो गोविन्द तेरे यहाँ चल ही नही सकता,ग्यारंटी से कहती हूँ ,क्यों ?क्यों ,क्या जब तू ज्यादा आब्जर्व करेगी तो नौकर ने तो भागना ही है सीने पर चर्बी के पहाड़ , ,रंगीन होंटो की नकली चमक ,कटे छितराए बालो का घोंसला प्यार तो क्या देखने के भी काबिल नही जाने किन अभागों के पल्ले आती होंगी ये महिलायें ,मन ही मन सोचती हूँ ,....चल तेरी लक्ष्मी को पटा लेती हूँ ...पहली ना जी,ये मत करना तेरे लिए रोज दो मुर्गे भेज दूँगी ..ओह पर तुने खाना नही बनाना ...अरे यार कौन से पति महाराज ने गोल्ड मैडल देना है वो खाना खाता ही कब घर मैं ,कभी यहाँ ,तो कभी कोई पार्टी दुनिया भर मैं मुँह मारता फिरेगा और घर के खाने मैं नुक्स निकालेगा,मेरे बस का नही ये सब,फिर घर के खाने को खाना ही कितनो ने,फिर उसकी आँख का कोना दब जाता है ,..जबसे लक्ष्मी आई है साहब भी खुश,मैं भी अच्छा तू तो आज ही गोविन्द को बुला दे ..खाने की मुझे तो परेशानी है ,सास जो है मेरे सर ,निभाना ही है ,...खाने मैं क्या -क्या देती थी ,...क्या-क्या नही दिया बदमाश को ,साहब से पहले एक गिलास दूध ,दो उबले अंडे ,..दूसरी आँखे मटका कर...साहबसे पहले और क्या-क्या...छोड़ यार याद नादिला उसकी ..पर एक बात समझ ले ,इसके बाद भी उसे चोरी से खाते देख ले तो एक आँख बंद कर लेना ,क्यों दोनों क्यों नही ,सवाल मत कर समझ ले,उससे आँख ना मिल जाए ,तेरी जो मर्जी आए करना बेचारा सब मैं राजी तू जाने तेरा गोविन्द, आज से वो तेरा हुआ, भोंडी और निरर्थक हँसी ,..ही ..ही ..हो...चल बता कुरते कब देना है तूने-अपने भारी भरकम शरीर को समेटती हुई खड़ी होती है ,खुशनुमा और थोड़े ठंडे मौसम मैं भी कहती है ,हाय बड़ी गर्मी है शाम आजा ,..बियर का मूड है ,मजे करेंगे ,ना बाबा तेरे यहाँ क्या ख़ाक मजे करना है मैंने ,तेरा पति तो होगा नही ,हाँ ये बात तो है उसने कहाँ होना है सही शाम घर पे ,अच्छा चल कॉल करना ..तू चाहे ना आए अपना तो प्रोग्राम फिक्स है सींक कबाब बनवा लूँगी ...ओके ,कल इसी वक्त कुरते तैयार रखना ,बुटिक वाली मुझे देखती है उड़ती सी नजर से ...गेट तक छोड़ने महिला को जाते हुए ,..दोनों महिलायें अपने पेंटेड काले सुनहरे बालों के साथ थोडा गर्दन को झटका देते हुए चली जाती हैं हवा मैं देशी पसीने और विदेशी पर फ्यूम की मिली जुली एक तीखी गंध छोड़कर ....(अगली पोस्ट मैं एक ब्यूटीपार्लर मैं मिलेंगे)

4 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

सटीक!

Manish Kumar ने कहा…

अच्छा लिखा है आपने।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

sach hee hogaa tabhee to aapane likhaa achchhaa hai badhaiyaa

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे बाप रे, केसी केसी .......
धन्यवाद