गुरुवार, 6 नवंबर 2008

सिहांसन किसी की बपौती नहीं... पिछले चुनाव और उमा भारती.




कल जब ओबामा की जीत का जश्न पुरी दुनिया मना रही थी,तो मुझे मप्र के २००३ के विधानसभा चुनावोंके बाद के माहौल की बरबस याद हो आई,तब उत्तर भारत के चार प्रमुख हिन्दी भाषी राज्यों,मप्र राजस्थान देहली तथा छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए थे तब इनमे से छतीसगढ़ को छोड़कर शेष राज्यों मैं महिला नेतरतव के उदय स्थापना के साथ ही इतिहास ने मोड़ लिया,मप्र और राजस्थान मैं काबिज कांग्रेस को सत्ता से हटाने मैं बीजेपी ने वसुंधरा राजे सिंधिया और उमाभारती को मुख्यमंत्री के रूप मैं प्रोजेक्ट किया था तब तुलसी कीये पंक्तियाँ "धीरज,धर्म,मित्र अरु नारी; आपातकाल परखीं ये चारी" को उन्होंने चरितार्थ किया। उन्हें संगठन व चुनाव अभियान की जिमेदारी भी सौंपी गई थी,परिणाम मैं उन चुनावों मैं तीन चौथाई बहुमत से जीत हांसिल हुई जिसका श्रेय सिर्फ उमाभारती को जाता है ...बचपन से अलोकिक उमा चाहे राजनीति मैं राजमाता के कहने पर आई हो लकिन अपनी असाधारण प्रतिभा के बल पर ,अपनी सात्विक और प्रबल इक्छाशक्ति के बल पर दमदारी से जब उन्होंने चुनाव जीता था तब मप्र के राजनेतिक इतिहास मैं पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप मैं उनका आगमन थोड़े समय केलिए ही सही ,एक अति विशिष्ट घटना की तरह था, बिना लागलपेट के अपनी बात कहने वाली मुखर,कर्मठ इस साध्वी ने सिद्ध कर दिया की सिहांसन किसी की बपौती नही होते -सच्ची किंतु हठी बालसुलभ और परिपक्व भी गंभीर तो सरल साधारण भी किंतु स्त्री के असाधारण -व्यापक रूपों और अर्थों से भरी उमाभारती चुनाव पूर्व अपनी जिस अद्भूत ताकत के बल लोगों से मिलती थी,उनके यात्रा अनुभवों को एक स्त्री की दर्ष्टि ही अनुभूत कर सकती है जहाँ जहाँ वे गई लोग अति उत्साहित थे ठीक वैसे ही जैसे लोग बराक ओबामा को जीत से पहले और बाद मैं देख रहें हैं,संकल्प रथ के दौरान वो ना रुकी ना थकी ना हताश हुई ,जनता को उन्हें चुनना था ,सो चुन लिया कुछऐसे कारक तत्वों ने उनके पक्ष मैं असर किया था की सन्यासिन ने जो चाहा उसकी झोली मैं आ पडा ,अपनी धुँआधार आम सभाओं मैं वेस्त्रीऔर गरीब के पक्ष मैं बोलती, यात्राओं के दौरान जहाँ रूकती वहीँ पूजा करती ,किसी गरीब के यहाँ भोजन करने से नही हिचकती, रास्तें मैं जहाँ से उनका काफिला गुजरता कार के शीशे हल्दी कुमकुम और रोली से पट जाते,ज्यादातर महिलाएं उन्हें अयोध्या वाली बाई कह कर संबोधित करती थी,८दिसम्बर की सुबह ११ बज कर ५५ मिनट पर जब उन्होंने भगवा वस्त्रों मैं शंखनाद और वैदिक मंत्रोचार के बीच मुख्यमंत्रi पड़ की शपथ ली वो द्रश्य अद्भुत था २०-२२हजार लोंगो के बीच गेंदों और गुलाबों की खुशबू साधू-संतों का जमावाडा था ।उसी शाम अपनी पहली पत्रकार वार्ता मैं उन्होंने मेरे एक प्रशन के उत्तर उन्होंने कहा था ...महिलाओं के मान सम्मान की रक्षा करना उनके स्वाभिमान को बनाय रखने के लिए मेरी सरकार सम्पूर्ण प्रयास करेगी ...मेरा उनसे पहला परिचय ९६ मैं लोकमत के लिए एक साक्षात्कार के सन्दर्भ मैं हुआ था,ये रिश्ता एक पत्रकार से ज्यादा महिला मित्र का था और आज भी है ....बाद की कथा मैं उन्हें उनके हक से बेदखल करना और दूसरी चुनौतियां थी जिसका मुकाबला उन्होंने डट कर किया,उनके नेत्रत्व मैं पंडित दीनदयाल का एकात्म राजनीतिकवाद के रूप मैं आकर लेता तो प्रदेश की तस्वीर ही कुछ और होती ,लकिन ये सच है उमाभारती जैसीस्त्री का महत्व किसी पार्टी से नही ...इस बार जनशक्ति पार्टी का भविष्य जो हो सो हो ।आगामी वर्षों मैं उसकी सूरत बदली नजर आएगी।

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