अमृता प्रीतम की "दूसरे आदम की बेटी" पुस्तक २००२ में 'राजपाल एंड संस' ने समीक्षा के लिए मुझे भेजी थी। यह किताब पढ़ना शुरू करने के बाद ख़त्म किए बगैर छोड़ देना मुश्किल है, उनके लिए ही नहीं जिन्होंने गुज़रा ज़माना देखा है या जो किताबों के साथ जिए हैं, बल्कि उनके लिए भी जो इस टी.वी संस्कृति के मुरीद तो हैं साथ ही अपने वक्त की दुनिया का अपने पड़ोसियों का और दुनियाभर के अदीनो लिखने वालों का हाल जानना चाहते हैं। अमृता प्रीतम की नायाब कलम से, एक दूसरी नायाब कलम का, एक नायाब बयान है यह किताब।
तौसीफ ने कहा - "मैं कहानियो की शक्ल मैं कुछ लौटा रही हूँ, और ख्वाहिश रखती हूँ की और लिखूं ताकि दुनिया छोड़ने से पहले मेरा वजूद हल्का हो जाए..."
कौन है ये तौसीफ? अमृता प्रीतम ने लिखा वह आई थी/ शनाख्त के कागजों पर मोहरें लगवाती हुई/और सफर के लिए/ उँगलियों पर गिने जा सकने योग्य/ दिनों की मोहलत मांगकर... मुख्य बात यह नहीं है की तौसीफ कितनी ऊँची अदीन हस्ती है पाकिस्तान की बल्कि यह है की वह अमृता की रूह में जज्ब हो चुकी दोस्त भी है, और अमृता जैसी शायराना कलम जब अपनी रूह में बैठी दूसरे आदम की बेटी के लिए चलती है तो लफ्ज़ जैसे बहने लगते है। "कई मौसम एक साथ चलते हैं मजमून के" यह शब्द कभी लाहौर शहर के ऊँचे बुर्ज के नीचे से बहता दरिया बन जाते हैं और कभी पंजाब की मिटटी में खड़े दरख्त की सुर्ख-नर्म कोंपले... कभी करांची की शायरा सईदा गजदर का जलाया हुआ दीया बनते हैं तो कभी मिजोरम की जोयान पारी की जल्पई हुई आग की लपट... ।
ऐसे एक साथ कई मौसमों की ताजा बयार बहती है इसमे। तौसीफ पाकिस्तानी लेखिका है, बागी लेखिका है, सत्ताधीशों का चैन हराम करने वाली लेखिका भी जो महीनो पाकिस्तानी जेलों में बंद रही हैं। वे उस पंजाब में पैदा हुई थी जो अब भारत में है। अमृता उस लाहौर में पली-बड़ी जो अब पाकिस्तान में है। विभाजन की बेबसी, दोनों की कलम तीखी कर गई और दर्द से भर गई। तौसीफ ने अमृता जी को ख़त लिखने शुरू किए। उनका लिखा हुआ पढने के बाद - गुमनाम ख़त, जिसमे नीचे लिखा होता था - "एक बेटी पंजाब की"। किसी ख़त के नीचे कुछ और, और किसी के अंत में "एक कैदी शहजादी का ख़त" और इस कलम की शहजादी के गुमनाम खतों से हो पहचान शुरू हुई थी अमृता जी की उसी की परिणिति है दूसरे"आदम की बेटी"।
तौसीफ ने अमृता प्रीतम के लिए कहा था - "तुम खुदा के हाथ से गिरी हुई दुआ हो", और अमृता ने कहा तौसीफ को "तुम जैसी नियामत को कोई खुदा हाथों से गिरने न दे"। यह सच ही कहा था उन्होंने ।
2 टिप्पणियां:
"तौसीफ पाकिस्तानी लेखिका है, बागी लेखिका है, सत्ताधीशों का चैन हराम करने वाली लेखिका भी जो महीनो पाकिस्तानी जेलों में बंद रही हैं। वे उस पंजाब में पैदा हुई थी जो अब भारत में है। अमृता उस लाहौर में पली-बड़ी जो अब पाकिस्तान में है। विभाजन की बेबसी, दोनों की कलम तीखी कर गई और दर्द से भर गई।"
lajawaab!likha hai apne...
Congratulations!
यह किताब मैंने भी पढ़ी है ..आपने बहुत बेहतरीन लिखा है इस पर .मैंने इसको सेव कर लिया है ..शुक्रिया इसको पढ़वाने का इसको पढ़ कर उन्ही की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है ...काया को मैंने दर्द का तिलक किया /दर्द ,जो छाती से उठा और होंठो पर आया / मैं उस क्षण की दर्शक हूँ ........
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