मंगलवार, 18 नवंबर 2008

ये चमकीली औरतें ...फिजूल की औरतें,...अंख देखी-कन सुनी एक रिपोतार्ज कथा


आजादी के बाद औरतों ने कैसी कैसी स्वतंत्रताएं हांसिल की ,और परिवार समाज और व्यक्ति से अपने कैसे २ रिश्तें कायम किए इसका जिन्दा उदाहरण मौजूद है ये चमकीली औरतें इनकी शिक्षा ,रहन सहन खान पान सब कुछ अंग्रेजी,नकली आवरण ,जीवन शैली मैं रुपयों पैसों की चकाचोंध और गर्माहट मैं पलती इस संस्क्रती का जिस गति से विकास हुआ ...चौकाने वाला तो है ही घिनौना और कुत्सित भी इसमें पुरुष कितना दोषी है ये बात अभी यहाँ छोड़ीजा रही है ,झूटी शानो शौकत मैं गुरूर से भरी ये औरतें इतनी अलमस्त की दायें -बाएँ कहाँ कौंन इनकी कारगुजारियों को देख सुन रहा है इसकी ना इन्हे फिक्र है ना शर्म इन औरतों से सामजिक उत्थान तो क्या पारिवारिक या अन्य उम्मीद भी बेमानी है पति की कमाईपर एशो -आराम फरमाने वाली ऐसी ही औरतों की ,अंख देखी-कनसुनी बातों का सच्चा दस्तावेज है ...कभी किसी बुटीक पर तो कभी पार्टी मैं कहीं क़ल्ब मैं कार्ड्स खेलते हुए ,तो कभी वातानुकूलित कारों मैं लम्बी ड्राइव पर पेट्रोल और सिगरेट फूंकती, बर्थडे,वेडिंग एनिवेर्सरी के बहानो अथवा यूं ही ब्यूटीपार्लर मैं जबरन उम्र को पीछे धकेलने की नाकाम कोशिश मैं फिजूल की शौपिंग करती हुई इन फिजूल की औरतों को जानने की ये कोशिश है ताकि आप जान सकें की आधी आबादी का एक पढा-लिखा किंतु अनपढ़ हिस्सा बनी ये औरतें अपने परिवार और बेटियों के लिए कौनसी विरासत छोड़ कर जायेंगी ,.... ऐसी ही दो महिलाओं की बात चीत सुने जो एक वातानुकूलित बुटिक मैं है बुटिक मालकिन की भव्यता दोनों अँगुलियों मैं डायमंड दोनों औरतें किसी बड़े व्यापारी/अधिकारी की पत्नियां ...उम्र ४५-५० लगभग कोई काम नही ,नित नई`ड्रेसेस मैं बीस साल पीछे उम्र को धकेलने की नाकाम कोशिश मैं भीतर कहीं कुछ छूट जाने की एक कसमसाहट के साथ....

हाय नीतू सिल गए शलवार सूट?नही हाय रब्बा अब क्या पहनुगीं-२४ को शादी वीच? -,पिछले महीने जो सिलवाया था सुनहरी तारों वाला डाल लेना,....अरे वो ॥वो तो आउट ऑफ़ फैशन हो गया कर दूसरी महिला कहती है अच्छा कितना सिला बता तो सही,देखती है,यह क्या कर दिया .क्यों ? क्या खराबी है इसमें ,...तेरे तो नखरे ही ख़तम नही होना कभी ,नही-नही ये नही चलेगा,ये क्या बाइयों वाली पट्टी डाल दी आस्तीनों मैं ,इसे निकलवा पहले ,वो बारीक वाली किंगरी डलवा पहले बताया था ना तुझे प्रियंका चोपडा जैसा ,..नही ना अब नही हो सकता और १५ दिन लग जाने हैं ,कोई बात नही पर ऐसे नही पहन सकती ,चल ठीक है ,...फिर नाप दे ,दे मास्टर जी को बुटिक मालकिन आवाज़ लगाती है टीवी केमेराकी और जाकर उसकी नजर ठहर जाती है ,,,राजू ...पहली महिला दुपट्टा ऊपर सरकाती है नाप -३८ ४० के बीच ..पारदर्शी कुरते से कीमती ब्रेसरी झांकती है शायद ये भी स्टेटस सिम्बल है ,..सिलसिला बदलता है ,फ़ोन की बेल बजती है ,,अरे ठहर जा अभी आगे ही एक शोर मचा रही है ,नही जल्दी नही दे पाउंगी,तू एक घंटा बाद आना ,....अरे नीतू यार मैंने यादव को हटा दिया ..वो तो तेरा मुँह लगा नौकर था ....तुने ही तो शिकायत की थी बतमीजी की थी उसने तेरे साथ ...ऐं तू तो बड़ी चालाक है मेरे सर डाल दी नौकर दी परेशानी ,अच्छा बता ,पहली महिला से ,तेरे गोविन्द का क्या हुआ ,हाय नाम ना ले उस नमक हराम ,का क्यों? सीने पर हाथ रख लम्बी साँस लेती है ...हाय कुछ कुछ होता है ,भाग गया बेशरम ,दो साल लगे सिखाने मैं ..क्या काम ..मतलब अरे यार तू मतलब की बात बता ,आँख दबाकर हंसती हैकहाँ चला गया आमेर हट बित्त्त्तन मार्केट ..तू तो बडी तारीफें करती फिरती थी मेरा गोविन्द ऐसा है -वैसा है ..तो क्या कल ही पता चला वहां भी दुखी है बेचारा वापिस आना चाहता है ,...पर मेरे बच्चों ने मना करदिया ,..तेरी लत जो लग गई है ,ये बात नही थोडा गंभीर हो कर कहती है ,...काम मैं तो बड़ा सोना था पर ज़रा वीच -वीच चालाकी भी करता था, बुटिक मालकिन मेरा मन करता था ,तेरे गोविन्द को पटा लेती....( शेष अगली पोस्ट पर ),.....

6 टिप्‍पणियां:

shivraj gujar ने कहा…

बधाई विधुजी. हकीकत को आपने जिस तरह से नंगा किया है, कबीले तारीफ है.
अच्छा लगा आप मेरे ब्लॉग (meri dayari.blogspot) पर आए, इस दौरे को निअमित रखियेगा.

"अर्श" ने कहा…

यथार्थ को जिस तरीके से आपने चित्रित किया वो अंदाज भी बहोत खूब है वो भी एक महिला होकर महिला का सच्चाई सबके सामने देना.... आपकी हिम्मत की दाद देता हूँ..... आपके ब्लॉग पे पहली बार आया बहोत खूब पढ़ने को मिला आपको बहोत बहोत बधाई... स्वीकारें इसे....

रेगार्ड्स
अर्श

P.N. Subramanian ने कहा…

आप के ब्लॉग पर पहली बार आया. बहुत ही संजीदगी से आपने आज के तथाकथित उच्च वर्ग के नारियों की कथा बताई. दुख इस बात का है कि देखादेखी दूसरों पर भी इसका असर हो रहा है. आभार.
http://mallar.wordpress.com

राज भाटिय़ा ने कहा…

ऎसा पहली बार हुआ, मै किसी महिला के बांलाग पर आया, लेख बिना रुके सारा पुरी तरह से पढा, ओर कायल हो गया,आप ज्ने मेरे मन की बाते हूबाहू लिखी है, मै ओरतो का विरोधी नही मेरे घर मै भी मां बहन ओर बीबी है, लेकिन गलत को गलत कहना भी सही है, मुझे आप की अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा,कुछ इन महिलाओ के मर्दो के बारे भी लिखे, क्यो कि ऎसे मामलो मे मर्द भी आधे कसुरवार होते है.
आप का बांलग मेने आप की इज्जात के बिना अपनी बांलग लिस्ट मे डाल लिया है, माफ़ी चाहूगां.
धन्यवाद

डॉ .अनुराग ने कहा…

आपकी लेखनी का तो कायल था ही आज शीर्षक देखकर खीचा चला आया ....भूमिका वास्तविक घटना पर भारी पड़ रही है आपने जैसे लिखा है .....

विधुल्लता ने कहा…

आप सभी का शुक्रिया,...सच कहूं मेरे पास ऐसे अनन्त किस्से हैं दुःख होता है ऐसी औरतों को देख कर ..वे चाहें तो समाज हित मैं क्या नही कर सकती,लेकिन समाज सेवा मैं भी ये अपने मनोरंजन के बहाने ढूँढ लेती दिखाई देती हैं और सारी सुविधाएं हड़प लेती हैं मीडिया इनके पीछे-पीछे,हँसी भी आती है शर्म भी,और वित्रष्ना भी कोई कोना नही छोड़ा जहाँ माध्यम वर्गी महिलायें बैठ कर सूकून की साँस ले सके ..और हमारा पुरुष समाज भी अभिप्रेरित तो इन महिलाओं से ही होता दिखाई पड़ता है अधिकाँश ,