वो अपनी चुप्पी में मगन है,
अपने दुःख में सुखी, -गर्वोंमुक्त,
अपनी जीत में हार की ख़ुशी लिए ,
अपने सच के झूट से चमत्कृत ...
वक्त से आगे जाना चाहता है ,
सितारों के पार ,
ना जाने किस-किस में व्यक्त होना चाहता है ,
उसका सुख....
इन दिनों सेमल के पेड़ पर ,
लाल सुर्ख फूलों की नियति में ,..
टंका हुआ ,
अकेला अलग -थलग.
दैनिक भास्कर समूह की पत्रिका के अक्तूबर २००७ के ''अहा जिन्दगी'' में प्रकाशित