मंगलवार, 4 अगस्त 2009

//कच्चे कचनार के नीचे खड़े भाई खूब याद आते हैं... उस छोटी दुनिया में बड़ी खुशियाँ हासिल थी जहाँ हमे..//

किसी छोटे बच्चे की गुल्लक मैं रखी ,सहेजी और जतन से जोड़ी गई निधि की तरह , उसके भीतर छोटे बड़े सिक्कों और मुडे-तुडे नए पुराने नोटों की शक्ल मैं जब स्मृतियों को जोड़ती हूँ ...वक़्त जरूरत तोड़ती हूँ --फिर सोचती हूँ ,यदि स्मृतियों को जीवन से हटा दें या उसमें से घटा दें तो आत्मा मैं क्या बचेगा? सिर्फ मुह चिढाता सा ...शेष समय ही नहीं क्या?
बचपन मैं हमारे घर मैं वर्ष भर उत्सव का वातावरण बना रहता था,दो भाई- चार बहने सबसे छोटे हम ,बड़े भाई से हमारी हमेशा अघोषित फर्माइशे रहती वो खूब मेहनत करते खूब कमाते वो जिस मुकाम पर थे उनसे घर खुशहाल था कोई बड़ी इक्छा ना उनकी थी ना हमारी जो थी वो सब पूरी होती थी ..मुझे लिखते हुए वास्तव में गर्व होता है की हमारे भाई मैं कोई ऐसी आदत ना थी जिसे व्यसन कहतें हें ..शांत स्वभाव के धीर गंभीर व्यक्तितव वाले रूप मैं ही उन्हें देखा ...जाना घर के हर सदस्य के परिचित दोस्तों के वो दोस्त हुआ करते हम अंदरूनी तौर पर एक आदरणीय भाव के साथ उनसे डरा करते हमारी छोटी सी दुनिया में बड़ी खुशियाँ हांसिल थी हमें भाई और मां की हुकूमत में रहना सभी की आदत बन गई थी उनकी अवहेलना करना, ये सोच तक हमारे भीतर कभी नहीं बनी.. नाते रिश्तेदारों का आना -जाना बना रहता, गर्मियों की छुट्टियों और अन्य मौकों पर बहने आती उनके पति- बच्चे मां एक अज्ञात सुख से भर जाती, सोचती हूँ तो लगता है मां की दुनिया कितनी सरल थी.. फिर घूमना मौज मस्ती फिल्मे देखना खरीददारी नए कपडे .. संग त्यौहार ,.रूठना मनाना सब कुछ पढाई के साथ चलता रहता..रात मैं महफिल जमती... भाई बहुत अच्छा गाते एक कशिश थी उनकी आवाज में मोहम्मद रफी से उनकी आवाज उन्नीस ही होगी , घर के हर सदस्य और मेहमान को गाना अनिवार्य होता मां हमेशा जज होती और ..भाई हमेशा अव्वल आते मैं दूसरे नंबर पर बाद में भाई के कहने पर ही बी ए मैं एक सब्जेक्ट के तौर पर मैंने संगीत को चुना. कुछ गाने जैसे "ओ दूर .. के मुसाफिर[उड़न खटोला]", "सुहानी रात ढल चुकी [दुलारी]", "टूटे हुए ख़्वाबों ने [मधुमती]", "सीने में सुलगतें हें अरमां[संगदिल]".आदि दिल दिमाग की स्मृतियों में गहरे खजाने की तरह बसे हैं उनकी आवाज़ में, जब तक गर्मियों की छुट्टियां और मेहमान -रिश्तेदार रहते एक हलवाई हमारे यहाँ मुकरर रहता जिसे भाई और मेरी फरमाइश पर ताजा आलू चिप्स,हींग वाली मूंगदाल के पकौडे ,दही बड़े , बेसन की मोटी सेंव ,बड़ी इलायची के दाने डली बड़ी बूंदी [नुकती] बनती जिसे मेहमानों के चले जाने के बाद भी हम खाया करते...टोकरी भर-भर आम आते ..आम रस के साथ कुर डाई[एक तरह के गेहूं के आटे के पापड] तली जाती. पूरण पोई [चने के दाल की मीठी रोटी ]और भी एसा बहुत कुछ जिन्हें खाए बरस बीत चुकें हैं .. हंसी भी आती है दुःख भी होता है ..हम भाई बहनों का प्रेम भी सच्चा और लड़ाई दोनों ही सच्ची हुआ करती थी ,धीरे-धीरे सबके ठौर ठिकाने अलग होते चले गये,अपना घर अपने बच्चे ,अपनी दुनिया और इस दुनिया के स्वार्थ और उसी में जीते-मरते हम दूर होते चले गए ..यादों में एक कच्चा हरा कचनार का पेड़ अब भी आँगन में है जिसमे ढेर से गुलाबी फूल साल भर खिलते जब भी हम जाते और लौटते भाई हमेशा बाहर तक छोड़ने आते थोडा और रुकने खाना खाकर जाने की मनुहार करते ...ये वही शहर यहाँ वही पेड़, वही सड़कें वही लोग वही आबो-हवा ,जहाँ हम संग रहे जिए चले ...लेकिन कल जहाँ हम खिलखिलाते थे रूठते थे संग तीज-त्यौहार मनाते थे आज उन घरों में उनके बच्चों की हूकमतें चलती है रिश्तों की नरमाई नहीं है वहां ,कोई शिकायत भी नहीं,भाई भी नहीं ...पांच साल पहले खो गए वो दिसम्बर की एक कडाके की रात में ...और दूसरे दिन एम्बुलेंस से भाई को उतारते लोग ..आँगन में उनका लेटा हुआ शांत चेहरा ,भुलाने से क्या भूलेगा ?कचनार के मुरझाये फूल तब भी बिखरे थे वहां एक हफ्ते पहले ही तो कहा था उन्होंने फ़ोन पर तुम्हे एक बढिया मोबाईल दिलवाना है, हमारे सुख-दुःख में हमेशा साथ खडे रहने वाले वाले भाई नहीं लौटे....फिर दिन भी बीते ७ माह गुजर गए एक दिन दैनिक भास्कर में एक सूचना थी ,अपने भाई के नाम सन्देश भेजें ...सर्वश्रेष्ठ को पुरूस्कार दिया जाएगा ..पुरूस्कार की तो कोई चाह ना थी ..बिना कुछ कहे, सुने, मिले बिना ,जाने वाले भाई से बात करे बिना दम घुट रहाथा ..मैंने लिखा था वो छपा भी और नोकिया का एक मोबाइल फ़ोन भी, यकीनन वो मेरे भाई के कहने पर ही दिया गया था..उनके बिना राखी का त्यौहार कितना फीका होगा मेरे लिए कौन समझ सकता है...
भीगे शब्दों सूखे आंसुओं, पहाड़ सी यादों रूखे मौसमों,
रूठे पलों पर, लपेट मन का धागा भेजती हूँ,
अनन्त से झांको देखो -सुनो- स्वीकारो
मैंने चांदनी खुशबू और हवाओं से की है प्रार्थना
की ले जाएँ वो मेरी असीम शुभकामनाये
की खुश रहो जहाँ रहो तुम
यूँ चले जाने से ख़त्म नहीं होगा
किसी भी जनम ये रिश्ता...