बुधवार, 10 अगस्त 2022

नीतीश कुमार कोई राजनीतिक त्यागी पुरुष नही है - एक विश्लेषण

 बिहार में कंधा बदल: क्या यह मोदी बनाम नीतीश की कच्ची पटकथा है? 



बिहार में मुख्यपमंत्री नीतीश कुमार द्वारा तीसरी बार पाला बदलने और 17 साल में छठी बार सीएम पद की शपथ लेने के पैंतरे को राजनीतिक प्रेक्षक अलग अलग नजरिए से देखने समझने की कोशिश कर रहे हैं। लालू प्रसाद यादव के जिस ‘जंगल राज’ के खिलाफ उन्होंने भाजपा से हाथ मिलाकर लड़ाई लड़ी, उन्हीं लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ दूसरी बार सरकार बनाकर वो बिहार में ‘मंगल राज’ लाने की बात कह रहे हैं। इस मायने में नीतीश ‘पलटूराम पालिटिक्स’ के यकीनन बाजीगर हैं। लेकिन बात केवल अपनी सत्ता की पालकी का कंधा बदलने तक सीमित नहीं है। कहा जा रहा है कि नीतीश अब राष्ट्रीय फलक पर किस्मत आजमाना चाहते हैं, वो उस आसमान में उड़ना चाहते हैं, जिसे उन्होंने बिहार में 2015 में भाजपा के कंधे पर बैठकर सरकार बनाकर गंवा दिया था। वरना 2013 में जिन नरेन्द्र मोदी को ‘साम्प्रदायिक’ बताकर नीतीश ने साम्प्रदायिक राजनीति के खिलाफ मोर्चा खोला था और जिसके कारण उन्हें विपक्ष का सर्वसम्मत चेहरा माना जाने लगा था, उन्हीं मोदी का नेतृत्व स्वीकार कर एक नैतिक लड़ाई वो हार गए थे। अब सात साल बाद नी‍तीश फिर उसी अखाड़े में खम ठोंकने की तैयारी में हैं। भले ही वो ऊपर से ना करते रहें, लेकिन भीतरी तमन्ना वही है। यहां सवाल यह है ‍कि यदि सचमुच नीतीश 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी नेता के रूप में प्रोजेक्ट हुए तो क्या वो मोदी और भाजपा को सत्ता से बाहर कर पाएंगे? क्या इतनी ताकत, आभामंडल  और जनअपील उनके पास है? क्या यह समूचा घटनाक्रम 2024 के लोकसभा चुनाव में खेले जाने वाले मोदी बनाम नीतीश कुमार नाटक की कच्ची पटकथा है?  

तथ्यों और तर्कों के आईने में देखें तो ऐसा कर पाना असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल जरूर है। यहां लोकसभा चुनाव की बात इसलिए क्योंकि भाजपा के लिए  बिहार का विधानसभा चुनाव जीतने से ज्यादा अहम वहां लोकसभा की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना है। बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं। विजयी सीटों की संख्या के ‍िहसाब से देखें तो जब नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) 2014 में कांग्रेस नीत यूपीए का हिस्सा थी, उस वक्त भाजपा ने 40 में से 22 सीटें जीती थीं। उसका वोट शेयर 29.40 फीसदी था। तब भाजपानीत एनडीए में लोक जनशक्ति पार्टी और उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी शामिल थी ( अब यह पार्टी जेडीयू में शामिल हो गई है)। और इन दोनो पार्टियों ने भी क्रमश: 6 और 3 सीटें जीती थी। तीनो पार्टियों को अगर मिला लिया जाए यह वोट शेयर 38 फीसदी होता है। दूसरी तरफ आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस यूपीए के सहयोगी के रूप में लड़े थे। उन्हें क्रमश: 4 और 2, 2 सीटें मिली थीं। एक सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस ने जीती थी। इस सबका वोट शेयर 44 फीसदी होता है। यानी कुल वोट ज्यादा मिलने के बाद भी सीटें एनडीए ने चार गुना ज्यादा जीतीं। तब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे। एनडीए की जीत को मोदी लहर के रूप में पारिभाषित किया गया। 

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू साथ थे। इनके अलावा एनडीए में रामविलास पासवान की लोक जनशक्तिपार्टी भी थी। इस गठबंधन ने बिहार में विपक्ष का लगभग सफाया कर दिया था। तीनो ने कुल 39 सीटें जीत लीं। केवल एक सीट कांग्रेस को मिली। तीनो का सम्मिलित वोट शेयर 52.45 फीसदी रहा। जबकि राजद 15 फीसदी वोट लेकर भी कोई सीट नहीं जीत पाई। हालांकि सीटों और वोट शेयर के हिसाब से भाजपा को घाटा ही हुआ। उसकी पांच सीटें कम हो गईं और वोट शेयर भी 6 फीसदी घट गया। इस चुनाव की जीत भी मोदी लहर का नतीजा ही मानी गई। 

अब 2024 में भाजपा अपने दम पर लड़ी तो उसे कितनी सीटें मिलेंगी, यह देखने की बात है। एनडीए में भी उसके साथ लोजपा ही रह सकती है। ऐसे में जीती हुई सीटो का आंकड़ा 20 तक पहुंचाना भी आसान नहीं है, केवल उस स्थिति को छोड़कर कि जब मोदी और भाजपा के पक्ष में कोई सुनामी चल जाए। देश के अंदरूनी हालात इसकी गवाही नहीं देते। भाजपा की चिंता यह है ‍कि बिहार से होने वाले घाटे की पूर्ति कहां से की जाए। बंगाल में तो अब 2019 का परिणाम दोहराना भी मुश्किल है। बाकी हिंदी पट्टी में वो अधिकतम सीटें जीत ही रही है। इसमें और इजाफे की गुंजाइश नहीं है। पूर्वोत्तर में सीटें ही बहुत कम हैं। दूसरी समस्या यह है कि भाजपानीत एनडीए से तीन बड़े सहयोगी दलों के बाहर जाने के बाद गठबंधन में कहने को 18 दल बचे हैं, लेकिन इन शेष दलों की राजनीतिक हैसियत गौण है। इसलिए एनडीए व्यवहार में अब केवल भाजपा ही है। 

तो क्या भाजपा और मोदी के लिए 2024 का चुनाव बिहार के ताजा घटनाक्रम के बाद ज्यादा कठिन होने वाला है? इसमें शक नहीं कि आज मोदी देश में लोकप्रियता के अपने सर्वोच्च शिखर पर हैं। अगले चुनाव में भी उनके नाम पर ही वोट पड़ेंगे। उसकी तुलना में नीतीश की लोकप्रियता का दायरा बिहार तक सीमित है। जहां तक जन नेता होने की बात है तो नीतीश लोकसभा तो दूर बिहार विधानसभा का चुनाव भी कभी अपने दम पर नहीं जीत सके हैं। हर वक्त उन्हें कोई न कोई सहारा चाहिए होता है। ऐसे में विपक्ष ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें प्रोजेक्ट कर भी ‍िदया तो वो अपने दम पर कितने वोट खींच पाएंगे,यह बड़ा सवाल है। यूं नीतीश ने अपनी छवि समन्वयवादी जरूर बना रखी है, लेकिन वो कोई धुरंधर वक्ता भी नहीं हैं। बिहार के बाहर उन्हें लोग कितना स्वीकार करेंगे, कहना मुश्किल है। 

तो फिर वो यह बात किस भरोसे से कह रहे हैं जो 2014 में आए, वो 2024 में न आ पाएं। यह केवल उनका सपना है या हकीकत का पूर्वाभास? ऐसा केवल एक ही स्थिति में संभव है कि देश का समूचा विपक्ष अपने मतभेदों और अहम को भुलाकर लोकसभा चुनाव में एक हो जाए, उनमें सीट शेयरिंग भी सहजता हो जाए, देश तथा लोकतंत्र को बचाने का एकमात्र एजेंडा बन जाए और जनता के गले यह बात उतारने में कामयाबी मिल जाए कि मोदी-शाह के नेतृत्व में देश सुरक्षित नहीं है, तब ही बड़ी सफलता की उम्मीद है। इस तर्क में दम इसलिए भी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने 303 सीटें जीत कर अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था, तब भी उसे 37.36 प्रतिशत वोट ही मिले थे, यानी बाकी 62.64 फीसदी वोट विपक्षी दलों में बंट गए थे। अगर विपक्षी वोट नहीं बंटे तो भाजपा को सत्ता में आने के लिए अपना वोट प्रतिशत 50 प्रतिशत तक ले जाना होगा। यह आसान नहीं है। हालांकि यह कागजी गणित है। व्यवहार में ऐसा ही हो जरूरी नहीं है। 

इस देश में विपक्षी एकता का एक महाप्रयोग इमर्जेंसी के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में हुआ था, जब तकरीबन समूचा विपक्ष एक हो गया था और तबकी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस और श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव में वन-टू- वन लड़ाई हुई थी। उसमें कांग्रेस पश्चिमोत्तर भारत में साफ हो गई थी। फिर भी दक्षिण में वो पूरी ताकत से जिंदा रही थी। यानी देश का मन तब भी विभाजित था। आने वाले चुनाव में विपक्ष भी नीतीश के नेतृत्व में अपने वजूद को बचाने एक हो सकता है, लेकिन भाजपा के खिलाफ वन-टू-वन मुकाबला बनाने के लिए राजनीतिक जिगरा और त्याग चाहिए। अभी तो यह भी तय नहीं है कि विपक्ष में नेतृत्व का ध्वजदंड किसके हाथ में होगा। राहुल गांधी, नी‍तीश कुमार या ममता बनर्जी या फिर और कोई। 

जहां तक गठबंधन राजनीति की बात है तो भाजपा अब उस दौर में पहुंच गई हैं, जहां कभी कांग्रेस हुआ करती थी। वह अब सत्ता में शेयरिंग नहीं चाहती। इसके फायदे और नुकसान दोनो हैं। भाजपा यह चाहे कि देश का हर दल और हर व्यक्ति और दल राष्ट्रवादी हो जाए और उसी की तरह सोचने लगे तो यह संभव नहीं है। लेकिन विपक्षी दल अपने राजनीतिक आग्रहों और सुविधा के अनुसार कट्टी-बट्टी करते रहें तो इससे भी उन्हें कुछ ज्यादा हासिल नहीं होने वाला। जाहिर है कि राष्ट्रीय फलक पर नीतीश के लिए चमकना बेहद कठिन है। अगर वो प्रधानमंत्री बन सके तो यह चमत्कार ही होगा। 

जहां तक बिहार की बात है तो भाजपा वहां अब लगभग अकेली है। अपनी ताकत बढ़ाने के लिए वो अब साम्प्रदायिक कार्ड खुलकर खेलेगी। हालांकि बिहार में इस कार्ड का चलना कठिन इसलिए है, क्योंकि बिहार का राजनीतिक चरित्र अलग तरह का है, ठीक वैसे ही कि जैसे बंगाल का है। बिहार में राष्ट्रीय मुद्दे भी जातिवाद के रैपर में ही चलते हैं। जातीय और क्षेत्रीय अस्मिता के आग्रह के आगे राष्ट्रवाद और हिंदू एकतावाद पानी भरने लगता है। दरअसल‍ बिहार में सत्ता पार्टी या व्यक्ति के हाथ में नहीं आती, परोक्ष रूप से वह जाति या जातियों के हाथों में आती है। इस जातीय गोलबंदी को तोड़ना भाजपा के लिए अभी भी आसान नहीं है, क्योंकि उसके पास राज्य में नीतीश के कद का कोई नेता भी नहीं है। ऐसा नेता तैयार करने में भी वक्त लगेगा।  

कुछ नीतीश कुमार के ताजा फैसले को देश में  विपक्ष के पुनर्जन्म के रूप में देख रहे हैं। यह अति आशावाद भी हो सकता है। भाजपा गठबंधन में अपनी सहयोगी पार्टियों की जड़े खोदने का काम करती है, यह आरोप सही हो तो भी भाजपा और आरएसएस एक साथ कई मोर्चों पर काम करते हैं, यह भी समझना होगा। सारी विपक्षी पार्टियां अपने राजनीतिक हितों को दांव पर लगाकर नीतीश के पीछे बिना शर्त खड़ी हो जाएं, तो भी यह काफी मुश्किल है। यह तभी संभव है जब देश की बहुसंख्यक जनता मोदी-शाह की रणनीति और भाजपा की राजनीति से ऊब जाए। इसके कोई आसार अभी तो नहीं दिख रहे। अलबत्ता नीतीश का यूपीए में लौटना अल्पसंख्यक वोटों में राहत का सबब जरूर होगा। 

यूं नीतीश कुमार के लिए भी अब बिहार में सात पहियों वाली सरकार चलाना आसान नहीं होगा। क्योंकि महाराष्ट्र में तीन पहियों वाली सरकार ही ढाई साल मुश्किल से चल पाई। क्योंकि नीतीश समाजवादी भले हों, लेकिन राजनीतिक त्यागी पुरूष कदापि नहीं है। उनका मन कब किस से ऊब जाए, कहा नहीं जा सकता। मोदी के खिलाफ भी वो उसी स्थिति में खम ठोकेंगे, जब उन्हे पक्का यकीन हो जाएगा कि प्रधानमंत्री की कुर्सी उनका ही इंतजार कर रही है, वरना पटना में मुख्यमंत्री की धुनी रमी हुई है ही, वक्त जरूरत के हिसाब से कंधा बदलने में कोई दिक्कत नहीं है न नैतिक और न ही राजनीतिक। 

वरिष्ठ संपादक अजय बोकिल की कलम से

‘राइट क्लिक’


शनिवार, 30 अप्रैल 2022

संघ का एजेंडा, मध्यप्रदेश सरकार के लिए

 *सरकार और संगठन के काम से नाखुश संघ, MP BJP को दी चेतावनी, गलतियां नहीं सुधारी तो सत्ता से हाथ धोना पड़ सकता है*


भोपाल। भाजपा के साथ आरएसएस भी चुनावी मोड में आ गया है. मिशन 2023 की रणनीति को लेकर मप्र की भाजपा सरकार से संघ ने दो टूक कह दिया है कि नहीं सुधरे तो सत्ता से हाथ धो दोगे. संघ ने यह चेतावनी सरकार और संगठन के काम से नाखुश होकर दी है. संघ ने कहा है कि गलतियां नहीं सुधारी तो हाल 2018 की तरह हो सकता है. 


संघ की बैठक में निकला निचोड़ : संघ की नजर में एमपी में फिलहाल प्रभावी ट्राइबल नेतृत्व की कमी है. खिसकते जनाधार का यह एक प्रमुख कारण माना गया है. जिस पर चिंता भी जताई गई है आदिवासियों को लुभाने की योजना के क्रियान्वयन का खाका सरकार ने संघ को दिया, लेकिन संघ की रिपोर्ट में देखा गया कि सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं. संगठन के मुताबिक आदिवासी बाहुल्य इलाके में नेता रुचि नहीं दिखा रहे हैं. इसे देखते हुए संघ ने साफ कहा है कि बीजेपी के नेता 2018 जैसी गलतियां फिर न दोहराएं. 


सीएम शिवराज और वीडी शर्मा ने पेश किया था रिपोर्ट कार्ड: 


दिल्ली में हुई बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने सत्ता-संगठन का रिपोर्ट कार्ड पेश किया. प्रेजेंटेशन के बाद संघ ने यह भी प्लान मांगा कि सरकार आने वाले दिनों क्या करने जा रही है. इसके अलावा संगठन से भी उसकी तैयारियों को लेकर पूछताछ की गई.


संघ ने बताया अपना एजेंडा: संघ ने सरकार को एजेंडा बताकर काम पर फोकस करने की सलाह दी है. संघ ने प्रदेश के नेताओं को युवाओं पर फोकस करने के लिए कहा है. संघ के मुताबिक ढाई करोड़ युवाओं पर फोकस करने के साथ सोशल मीडिया और आईटी का काम सुधारने की भी बात कही है. संघ कि चिंता इस बात को लेकर भी है कि सत्ता और संगठन के बीच समन्वय की कमी है. जिस तरह से मंत्रियों की आपसी खींचतान और मुख्यमंत्री के साथ कई मंत्रियों का आपसी मनमुटाव की बातें सीधे तौर पर जनता के बीच जा रही हैं, विपक्ष इसका फायदा उठा सकता है

सोमवार, 8 जून 2020

पहले से अधिक संपन्नता से छिपते हैं तुम्हारे मौन के शब्द


#पहले से अधिक शब्दों के बीच,
   संपन्नता से छुपते हैं ,
  केसरिया धब्बों की तरह तुम्हारे मौन के शब्द
  मेरे मौन में--लेकिन
  देर तक रहते हैं देह में,देह की धमनियों में बजते से
  देर से अँधेरा है,यहाँ 
  दूर तक बिजली/रौशनी नही
  जिसने यकायक पहुंचा दिया है,
 इस गोपन आत्मा को, तुम तक 
 और मैंने अभी अभी रोना स्थगित कर 
दौड़ के अंतिम लक्ष्य तक,
बूँद भर से राफ्फू गिराई की महा समुद्र की
मुठ्ठी में भर   लिया ब्रह्मांड,को
सोचा --
 कब से मिलना नही हुआ तुमसे,
 कितने लंबे समय से,नही देखा तुम्हे
 इस लेखे को भी फाड़ दिया आज रत्ती रत्ती,
 बहुत तपने के बाद हुई आज बारिश में
मौलश्री के  वृक्षों का रंग गहरा हरा है आज 
 सड़के काली नदी सी, जिन पर
 मेरी राह ठुमकती है ,तुम तक आने को
 रक रसता की ऊब से उठकर
 एक मौलश्री का पेड़ उग आता है मेरी नाभि तक
कालसर्प योग से छीजती देह में -
 एक फूल धंसता है नाभि तक 
और सारी देह आहिस्ता से मौलश्री के गोल छोटे तेज फूलों की खुशबू से भर उठती है
 जानते हो बिछुड़ कर जीने का संघर्ष कैसा होता है
इसे लिखकर नही बताया जा  सकता
बस दौड़कर आतुरता में 
जीती हूँ ,ठहरकर
खुश्बू से तरबतर,तुम्हारे लिए
सोचने से ना बचते हुए
अनंत तक ,इस अँधेरे में रात -बिरात
जानते हो ना मौलश्री का एक बोन्साई भी तो है मेरे पास

 इस बार सहेज लूंगी कुछ फूल तुम्हारे लिए
( बुकुल की याद में *बकुल मौलश्री के फूल का नाम )

शुक्रवार, 15 जून 2018

,हर स्त्री के भीतर उपजा एक नायक होता है ,मन का साथी,वो आपकी काबलियत और इच्छानुसार ही व्यवहार करता है मेरा सनातन अमर नायक है ,मेरे ब्लॉग की हर पोस्ट का जो मुझे अज्ञात सुख देता है और इस भौतिक दुनिया का कोई सशरीर मनुष्य किसी स्त्री के मन का साथी नही हो सकता ,शरीर से एक स्त्री को गुलाम बना लेने वाला नायक कैसे हो सकता है, में स्वप्नजीवी हूँ और मेरी खुशी इस दुनियावी लोगों से बिलकुल अलग है ,तुम ध्यान से पढ़ोगी तो पहाड़ से मेरा नाता प्रेम का है --आत्मिक प्रेम दैहिक से कितना अलग है, जिसमे इस दुनिया का कोई प्रपंच नही, जब करोगी तो जानोगी, बाकि सब झूट है ---तो पुरूष पति किस चिड़िया का नाम है,तुम्हे इस प्रेम में पति /साथी का ना होना अखर रहा है ,तो जान लो पति को दोस्त बना लेना आसान नहीं है ,और हद्द दर्ज़े तक में ऐसा कर भी पाई हूँ फिर भी मेरे सपनो से छेड़ छाड़ का अधिकार मैंने नहीं दिया उन्हें --मेरा अपना स्पेस है स्त्री होने के नाते ,मुझे पत्नी या जीवन साथी की फ्रेम से बाहर निकाल कर देखो --तुम कहती हो तुमने प्रेम किया ,इस दुनिया में एकाध ही अभागा मनुष्य हुआ होगा जिसे प्रेम नहीं मिला होगा मानती हूँ पर प्रेम को आत्मिक और मानसिक स्तर जीना ये ताक़त सबको नहीं मिलती -मेरे घर में हम दो स्वतंत्र प्राणी है में पति को अपने दोस्तों पर नहीं लादती ना वो ऐसा करते हैं समय समय पर परिवार के फोटो शेयर करना अच्छा होता है ,हाँ में स्वतंत्र हूँ अपनी बात अपनी फोटो शेयर करने को ---और कौनसा पति होगा जो हफ्ते भर जब बाहर आफिस बाजार को निकलो तो बड़े प्यार से पत्नी की फोटो खींच दे --वरना कितनी सेल्फियों वाली दोस्त हैं यहाँ -मेरे तो पासवर्ड भी साझा हैं --सही पत्नी के क्या मायने --मेरा ए टी एम् हसबेंड के पास है --मुझे कभी किसी चीज के लिए मन नहीं मारना पड़ता जब जो चाहिए मिल जाता है और ये स्वतंत्रता मैंने कमाई है --स्वतंत्रता कामना हंसी खेल नहीं है कोई किसी को चाहे --और पति प्राणी के लिए कितने रात और दिन उसके परिवार के लिए तन मन से झोंके होंगे तुम जान नहीं सकती -गृहस्थी का पहाड़ अटल रखते हुए --तो अब आकर इस मुकाम पर हूँ जिंदगी क्या इतने लेखक लेखिकाएं हैं जिनके दर्ज़नो उपन्यास कहानियां होती हैं सबके वो नायक नायिका होते हैं ,अजब है तुम्हारी बात में फिर कहती हूँ किसी स्त्री का पति उसके भीतर का नायक नहीं हो सकता जो ऐसा कहती हैं वो झूटी हैं --हाँ साथी आपकी प्रेरणा हो सकता है मेरे ब्लॉग में ,ज़ेब्रा क्रॉसिंग ,एक लम्बी कहानी है 5 किश्तों में--उसका नायक सनातन दुनियावी प्रेमी है ---मेरी जन्म कुंडली में लिखा है एक दिन में सन्यासिनी हो जाउंगी ---शायद पहाड़ की ये दूसरी यात्रा ,पहली उत्तराखंड की थी --तीसरी बार उस संन्यास की शायद लौ जग जाए मेरे प्रिय लेखक नरेश मेहता कहते हैं --मनुष्य भोगता व्यक्ति की भांति है मगर अभिव्यक्ति कलाकार की भांति करता है , और लेखक को हर हाल अपने इसी अच्युत पद की रक्षा करना पढ़ता है, मुझे नही समझ आता , पति को कैसे अपने लेखन में ले आऊं प्रेम और कर्तव्य एक ही मुहाने पर है जिसे लिखती हूँ उसे जीती हूँ, और जिसे नही लिखती उसके लिए दिन रात बरस दर बरस जिए हैं ,वो तो भीतर है उसके लिए भीतर क्या है ये बताना लिखना छिछलापन है ,उसके दुख सुख के लिए भीतर माँ बहन बेटी दोस्त प्रेमिका एक साथ है, और मेरे ड्रीम नायक सनातन के लिए में अकेली पिछले साल पति को डेथ बेड से बचा लाई जब डॉ जवाब दे चुके थे तब मेरे भीतर के सनातन ने ही मुझे स्ट्रेंथ दी --मैंने उससे कहाथा क्या ईश्वर मुझसे मेरे साथी को छीन कर मुझे भिखारी बना देगा --तब सनातन ने ही कहा नहीं, मेरे पेड़ पौधों ने कहा नहीं -दिल ने कहा नहीं और आज में धनवान हूँ - तो डियर असल जिंदगी से अलग स्वप्न सनातन है ,कहीं ज़िंदा भी तो क्या में उससे मिल पाऊँगी नहीं जानती अगर मिली तो मेरा प्रेम दुगुना ही होगा जानती हूँ इस भीतरी प्रेम के बदौलत ही मेरे साथ ,मेरे आस पास इतनी ख़ूबसूरती है ,एक इनर ताक़त है जो मुझे झूट बोलने से हमेशा रोकती रही है --तो मेरा प्रेम गलत दिशा में कहाँ ---में रास्ते चलते जमीन पर पड़े पत्ते में भी ख़ूबसूरती देख लेती हूँ --लोग भोपाल आते हैं मुझसे मिलना चाहते हैं --जो मिलकर गए उनसे पूछो -मैंने कभी नहीं कहा मेरे पास समय नहीं --मुझे जो ईश्वर ने दिया है ,मुझे गर्व है और माँ की कुछ सीखें सौगाते हैं क्या में खूबसूरत हूँ नहीं ,बहुत नहीं साधारण स्त्री हूँ लेकिन में खूबसूरत होने के मायने जानती हूँ -ख़ूबसूरती से जीती हूँ मेरा मूलस्वर प्रेम है जिसके भीतर दुःख है और दुःख ही मेरी दूसरी ताक़त है जिससे में इस फरेबी दुनिया को जान पाती हूँ -उनसे निबटने उपाय जानती हूँ -किसी का मोहताज़ नहीं रक्खा मुझे ईश्वर ने -मेरी हर बात हर दुआ कबूल की लेकिन उसके पहले मेरी परीक्षा भी ली --क्या में कम उम्र युवती हूँ ,जो छल कपट नहीं जानती होंगी --पर बात यही है कि पास आकर झूट कपट भी मुझसे दूर भाग जाते हैं। तो शुक्रगुजार हूँ नेचर की जो मुझे बुरे लोगों से बचाय रखता है -मेरी दिशा को प्रेम की और बढ़ाये रखता है जब में दुबई गई थी तो जो पॉयलट उड़ाकर कर ले गया था उसका नाम मुस्तफा था , मैंने उस पर एक पोस्ट लिखी थी जिससे में ना तब ना आज तक मिली, तब भी वो मेरा नायक था, भीतर बुद्धत्व का उपजना क्या होता है नही जानती मगर अभिनेता गुरुदत्त मेरे ड्रीम नायक हैं ,तो जंगल भी तो पहाड़ भी तो--- पत्रकारिता में संघर्ष गृहस्थी बच्ची लेखन परिवार माँ पिता के बिना का जीवन क्या आसान होगा - स्त्री का व्यवहार ही उसका हथियार होता है --जिस आधार पर वो जीतती या हारती है --- ये लिखना क्या यूं ही है , मेरे पति की क्वालिटी 10 %पुरुष में भी ना होगी, और उन जैसी जिद्द भी नही ,एक जिंदगी बतौर मेरे मानवीय मनुष्य होने के नाते इन सबसे परे हैं ----मेरा स्त्री होना ही शुभ है सार्थक है --हर नजरिये से ,समझती हूँ --जिनमें अधिसंख्य पुरुष मित्र पति और मेरे साझे हैं जिन्होंने हमेशा मुझे आदर सम्मान प्रेम दिया --- मेरे प्रेम को में खिचड़ी बनाने से परहेज रखती हूं ,और उसकी नजर उतारती हूँ इतवार की शुभकामनाएं तुम्हे इस पोस्ट पर हार्दिक स्वागत है उन पुरुष स्त्री मित्रों का जो मेरी बात से सहमत भी हैं और उसे विस्तार भी दे सकें

 ,हर स्त्री के भीतर उपजा एक  नायक होता है ,मन का साथी,वो आपकी काबलियत और इच्छानुसार ही व्यवहार करता है मेरा  सनातन अमर नायक है ,मेरे ब्लॉग की  हर पोस्ट का  जो मुझे अज्ञात सुख देता है और इस भौतिक दुनिया का कोई सशरीर मनुष्य किसी स्त्री के मन का साथी नही हो सकता ,शरीर से एक स्त्री को गुलाम बना लेने वाला नायक कैसे हो सकता है, में स्वप्नजीवी हूँ और मेरी खुशी इस दुनियावी लोगों से बिलकुल अलग है ,तुम ध्यान से पढ़ोगी तो पहाड़ से मेरा नाता प्रेम का है --आत्मिक प्रेम दैहिक से कितना अलग है, जिसमे इस दुनिया का कोई प्रपंच नही, जब करोगी तो जानोगी, बाकि सब झूट है ---तो पुरूष पति किस चिड़िया का नाम है,तुम्हे  इस प्रेम में पति /साथी का ना होना अखर रहा है ,तो जान लो पति को दोस्त बना लेना आसान नहीं है ,और हद्द दर्ज़े तक में ऐसा कर  भी पाई हूँ फिर भी मेरे सपनो से छेड़  छाड़ का अधिकार मैंने नहीं दिया उन्हें --मेरा अपना स्पेस है स्त्री होने के नाते ,मुझे पत्नी या जीवन साथी की फ्रेम से बाहर निकाल कर देखो --तुम कहती हो तुमने प्रेम किया ,इस दुनिया में एकाध ही अभागा मनुष्य हुआ होगा जिसे प्रेम नहीं मिला होगा मानती हूँ पर प्रेम को आत्मिक और मानसिक स्तर  जीना ये ताक़त सबको नहीं मिलती   -मेरे घर में हम दो स्वतंत्र प्राणी है में पति को अपने दोस्तों पर नहीं लादती ना वो ऐसा करते हैं समय समय पर परिवार के फोटो शेयर करना अच्छा होता है ,हाँ में स्वतंत्र हूँ अपनी बात अपनी फोटो शेयर करने को ---और कौनसा पति  होगा जो हफ्ते भर जब बाहर आफिस बाजार को निकलो तो बड़े प्यार से पत्नी की फोटो खींच दे --वरना  कितनी सेल्फियों वाली दोस्त हैं यहाँ -मेरे तो पासवर्ड भी  साझा हैं --सही पत्नी के क्या मायने --मेरा  ए टी एम् हसबेंड  के पास है --मुझे कभी किसी चीज के लिए मन नहीं मारना पड़ता जब जो चाहिए मिल जाता है और ये स्वतंत्रता मैंने कमाई है --स्वतंत्रता कामना हंसी खेल नहीं है कोई किसी को चाहे --और पति प्राणी के लिए कितने रात और दिन उसके परिवार के लिए तन मन से झोंके होंगे तुम  जान नहीं सकती -गृहस्थी का पहाड़ अटल रखते हुए --तो अब आकर इस मुकाम पर हूँ जिंदगी क्या इतने लेखक लेखिकाएं हैं जिनके दर्ज़नो उपन्यास कहानियां होती हैं सबके वो नायक नायिका होते हैं ,अजब है तुम्हारी बात में फिर कहती हूँ किसी स्त्री का पति उसके भीतर का नायक नहीं हो सकता जो  ऐसा कहती हैं वो झूटी हैं --हाँ साथी आपकी प्रेरणा हो सकता है मेरे ब्लॉग में ,ज़ेब्रा क्रॉसिंग ,एक लम्बी कहानी है 5  किश्तों में--उसका नायक सनातन दुनियावी प्रेमी है ---मेरी जन्म कुंडली में लिखा है एक दिन में सन्यासिनी हो जाउंगी ---शायद पहाड़ की ये दूसरी यात्रा ,पहली उत्तराखंड की थी --तीसरी बार  उस संन्यास की शायद लौ जग जाए 
मेरे प्रिय लेखक नरेश मेहता कहते हैं --मनुष्य भोगता व्यक्ति की भांति है मगर अभिव्यक्ति कलाकार की भांति करता है , और लेखक को हर हाल अपने इसी अच्युत पद की रक्षा करना पढ़ता है,
मुझे नही समझ आता , पति को कैसे अपने लेखन में ले आऊं प्रेम और कर्तव्य एक ही मुहाने पर है जिसे लिखती हूँ उसे जीती हूँ, और जिसे नही लिखती उसके लिए दिन रात बरस दर बरस जिए हैं ,वो तो भीतर है उसके लिए भीतर क्या है ये बताना लिखना छिछलापन है ,उसके दुख सुख के लिए भीतर माँ बहन बेटी दोस्त प्रेमिका एक साथ है, 
और मेरे ड्रीम नायक सनातन के लिए में अकेली पिछले साल पति  को डेथ बेड  से बचा लाई जब डॉ जवाब दे चुके थे तब मेरे भीतर के सनातन ने ही मुझे स्ट्रेंथ दी --मैंने उससे कहाथा क्या ईश्वर मुझसे मेरे साथी को छीन कर मुझे भिखारी बना देगा --तब सनातन ने ही कहा नहीं, मेरे पेड़ पौधों ने कहा नहीं -दिल ने कहा नहीं और आज में धनवान हूँ -
तो डियर असल जिंदगी से अलग स्वप्न सनातन है ,कहीं ज़िंदा भी तो क्या में उससे मिल पाऊँगी नहीं जानती अगर मिली तो मेरा प्रेम दुगुना ही होगा जानती हूँ  इस भीतरी प्रेम के बदौलत ही मेरे साथ  ,मेरे आस पास इतनी ख़ूबसूरती है ,एक इनर  ताक़त है जो मुझे झूट बोलने से हमेशा  रोकती रही है --तो  मेरा प्रेम गलत दिशा में कहाँ ---में रास्ते चलते जमीन पर पड़े पत्ते में भी ख़ूबसूरती देख लेती हूँ --लोग भोपाल आते हैं मुझसे मिलना चाहते हैं --जो मिलकर गए उनसे पूछो -मैंने  कभी नहीं कहा मेरे पास समय नहीं --मुझे जो ईश्वर ने दिया है ,मुझे गर्व है और माँ की कुछ सीखें सौगाते हैं क्या में खूबसूरत हूँ नहीं ,बहुत नहीं साधारण स्त्री हूँ लेकिन में खूबसूरत होने के मायने जानती हूँ -ख़ूबसूरती से जीती हूँ मेरा मूलस्वर प्रेम है जिसके भीतर दुःख है और दुःख ही मेरी दूसरी ताक़त है जिससे में इस फरेबी दुनिया को जान पाती हूँ -उनसे  निबटने  उपाय जानती हूँ    -किसी का मोहताज़ नहीं रक्खा मुझे ईश्वर ने -मेरी हर बात हर दुआ कबूल की लेकिन उसके पहले मेरी परीक्षा भी ली --क्या में कम उम्र युवती हूँ ,जो छल कपट नहीं जानती  होंगी --पर बात यही है कि  पास आकर झूट कपट भी मुझसे दूर भाग जाते हैं। तो शुक्रगुजार हूँ नेचर की जो मुझे बुरे लोगों से बचाय रखता है -मेरी दिशा  को प्रेम की और बढ़ाये रखता है 
जब में दुबई गई थी तो जो पॉयलट  उड़ाकर कर ले गया था उसका नाम मुस्तफा था , मैंने उस पर एक पोस्ट लिखी थी जिससे में ना तब ना आज तक मिली, तब भी वो मेरा नायक था, भीतर बुद्धत्व का उपजना क्या होता है नही जानती मगर अभिनेता गुरुदत्त मेरे ड्रीम नायक हैं ,तो जंगल भी तो पहाड़ भी तो---
पत्रकारिता में संघर्ष  गृहस्थी बच्ची  लेखन परिवार माँ पिता के बिना का जीवन क्या आसान होगा - स्त्री का व्यवहार ही उसका हथियार होता है --जिस  आधार पर वो जीतती या हारती है ---
ये लिखना क्या यूं ही है , मेरे पति की क्वालिटी 10 %पुरुष में भी ना होगी, और उन जैसी जिद्द भी नही ,एक जिंदगी बतौर मेरे मानवीय मनुष्य होने के नाते इन सबसे परे हैं ----मेरा स्त्री होना ही शुभ है सार्थक है --हर नजरिये से ,समझती हूँ --जिनमें अधिसंख्य पुरुष मित्र पति और मेरे साझे हैं जिन्होंने हमेशा मुझे आदर सम्मान  प्रेम दिया ---
मेरे प्रेम को में खिचड़ी बनाने से परहेज रखती हूं ,और उसकी नजर उतारती हूँ 
इतवार की शुभकामनाएं तुम्हे
   इस पोस्ट पर हार्दिक स्वागत है उन पुरुष स्त्री मित्रों का जो मेरी बात से सहमत भी हैं और उसे विस्तार भी दे सकें  

शनिवार, 9 जून 2018

इस अभेद में भेद को जान लेना तुम, पहाड़ों पर बारिशों के बाद जब कांस के फूल खिलेंगे तुम खुश होना-

मैंने तय किये थे रास्ते और उन रास्तों पर सोचा था  तुम्हे ,जिनसे होकर तुम गुजरे होंगे ,सोचती हूँ तय तो  था तुमसे बिछुड़ना भी बिना मिले ही ---उन घुमाव दार सड़कों की  स्मृतियों में ,उनके हर मोड़ पर ठन्डे पहाड़ों की निर्मल गुनगुन थी कौन सुनता होगा जिन्हे पहाड़ सुनना/सुनाना  चाहे उसे ही ना ?जो सुनना चाहे --तब लौटना, लौटना नहीं था लेकिन पीछे मुड़कर देखना सच था पहाड़ मुस्कुराते हुए बिना चले ही साथ चल पड़े थे दूर तक ,बिदा देते से -समूचे पहाड़ आँखों में भर लाई  हूँ ---अब लौटी हूँ तो रोना चाहती हूँ ,कितने शिकवे थे इस दुनियावी लोगों के ,--इस तपते शहर के सुर्खरू गुलमोहर मुँह चिढ़ाते हैं ,कहते हैं तुम लौट आई --रोका नहीं तुम्हे किसी ने तुमसे अनुनय नहीं की ?किसी ने ----क्या कहती इन सर चढ़े गुलमोहर से --सनातन जिंदगी कम मौके देती है मनमुताबिक जीने के, एक की लापरवाही दूसरे के दुःख का सबब  बन जाती है अनजाने ,तय था ये सब भी जिसे तय किया था किसी ओर  पल ने --उस शाम वेज लजीज मोमोज़ खाते बारिश हुई --और भीग गई उसी सड़क पर जिसका नाम मुझे बाद में पता चला ,तुम्हारी ताक़ीद को सुना था,जानते हो  सालों से एक सफ़ेद ट्रांसपेरेंट छाता  खरीदना तय था--हर बारिश में सफेद छाता ढूँढ़ते जाने कितने हरे नील पीले छाते इकठ्ठा होते गए नीली पीली स्मृतियों संग --सफेद छाता उस दिन भी नहीं मिला, मिलता तो बारिश बादल एक साथ देख लेती ऊपर सर उठाकर ---फिर एक बमुश्किल हरा छाता  पसंद आया --जो उस दिन जाने कितनी ह्री पहाड़ी  यादों संग बारिश से भर गया --सोचती तो हूँ सोचने से ही इच्छाएं पूरी हो जाती तो ?--पर नहीं जो इच्छाएं पूरी नहीं होती दुःख देती हैं ---जानते हो ना दुःख अलाव है हरदम जलाता है,जिस होटल में रुकी थी वहां विंडो कर्टेंस एकदम नीरस रूखे बूढ़े भूरे रंग के थे उन्हें देखना गवारा नहीं था क पल भी , तो बस जब तक वहाँ होती पीछे बालकनी से पहाड़ की ऊंचाई में बसी घनी हरियाली गर्म कॉफी की प्याली हाथ लिए निहारती रहती ,मेरा बस चलता   तो आकाश की नीलाई और पहाड़ों की हरियाली खींच लाती और पर्दों  पर स्प्रेड कर  देती --
ब लौटकर जब एक पूरा दिन बीत गया है तो दूर तक पसरी इच्छाएं पहाड़ों की शाममें टिमटिम जगमग हो उन जगहों पर  उदास मुस्कान लिए सामने आती है रुलाई आँखों में भरभराई हुई  है --पेड़ों के चेहरे साफ़ दिखलाई पड़ते हैं पत्ते अब भी उड़ते हुए दुपट्टे में पनाह लेते से हैं अनाम फूलों की खुशबू तरबतर करती है कुछ भी नहीं भूल पाती हूँ सनातन --जिंदगी अक्सर तेज़ चलने के बावजूद पीछे धकेलती है --आगे उनींदे दिन बीतेंगे जानती हूँ बेबसियों की उदासी भरी शामें आँखे नम करती रहेंगी --इस अभेद में भेद को जान लेना तुम, पहाड़ों पर बारिशों के बाद जब कांस के फूल खिलेंगे तुम खुश  होना-- इस बरस साल भर इकठ्ठा करुँगी आम नीम गुलमोहर,आकाश चमेली चम्पा  जामुन अमरुद के बीज और उन्हें बिखेर  दूँगी तुम्हारी मनपसंद  पहाड़ों की घाटियों में कुछ तो लगेंगे ,फलेंगे उम्मीद से ज्यादा उम्मीद रखती हूँ जीवन रहा तो देखूंगी कभी उन्हें बढ़ते खिलते फूलते संग संग तुम संग वो ख़ुशी कितनी मीठी होगी सनातन --कोई नहीं जान पायेगा इस गोपनीय ख़ुशी को --
-मन कसकता रहेगा फिर भी -- क्योंकि में बुरांश से भरी पहाड़ी देखना चाहती थी ,बुरांश के गहरे  लाल गुलाबी फूलों को बालों में सजाना चाहती थी -तुम्हारी आँखों में झांकते हुए-चेलिया गाँव के नुक्कड़ पर बनी  किसी गुमठी की  चाय पीना चाहती थी --पहाड़ी आलू का देशज परांठा खाना चाहती थी --और बुरांश की चाय पिलाने  का तो वादा है ही --भूल मत जाना --उस कच्ची पुलिया के कांधों पर गहरी आसक्ति में डूबे झुके उस अनाम पेड़ के कानो में तुम्हारा नाम --सनातन कह आई हूँ कभी गुजरो तो वो आवाज़ लगाएगा --सुन लेना जानते हो पेड़ बहुत जल्दी बुरा मान जाते हैं और फिर उदास भी  हो जाते हैं , बस पेड़ों की उदासी में बर्दाश्त नहीं कर पाती हूँ ,मेरी ख़ुशी इतनी ही है इसलिए  ख्याल ---रखना 
अपना भी 
-इसी बरस जब बुरांश के फूलों का मौसम आएगा और टोकरा भर बुरांश लिए तुम मेरा इन्तजार करोगे किसी बुरांश के पेड़ों और फूलों से लदी भरी पहाड़ी के किनारेअपनी  मनपसंद पुलिया   पर 
जल्दी ही -में उस पुलिया के[कि]नार मिलूंगी ----
# पहाड़ भर यादें --पहाड़ों की- 9 / 6/ 2018 
[पहाड़ों की यातनाएं हमारे पीछे हेँ ..मैदानों की यातनाएं हमारे आगे हेँ [ब्रेतोल्ट ब्रेख्त ].