सोमवार, 10 जुलाई 2023

क्या हम पशु हैं ?

 #एक अखबार ने लिखा है ,"क्या हम पशु हैं" 

घटना यूं है कि एक कार्यक्रम के  दौरान सीधी जिला जनपद (मध्यप्रदेश )  में  भाजपा के विधयाक प्रतिनिधि आरोपी प्रवेश शुक्ला ने फुटपाथ पर  बैठे कोल आदिवासी युवक पर पेशाब कर दी ,इस घटना का वीडियो वायरल होने पर मुख्यमंत्री ने आरोपी को एन एस ए के तहत कार्रवाई के निर्देश दिए हैं ,हालांकि आरोपी भारतीय जनता युवा मोर्चे का प्रतिनिधि रह चुका है 

अब आते हैं इस वाक्य पर कि "क्या हम पशु हैं" जवाब होगा नही ,लेकिन हम पशु से बद्दतर है क्योंकि किसी राह चलते या बैठे व्यक्ति पर कभी कोई पशु पेशाब नही करता, ना करी होगी 

 9 अगस्त को हम विश्व आदिवासी दिवस मनाते हैं 9 अगस्त 1982 को  UNO ने इसकी घोषणा की थी जिसके अंतर्गत आदिवासियों के मानवाधिकारों को लागू करने उनके संरक्षण के लिए आदिवासी दिवस मनाने की अपील की गई थी उस समय संयुक्त राष्ट्र महासभा के घोषणापत्र में अदिवासियों के  अधिकारों के विषय में घोषणा की गई 

इसके अनुच्छेद 7 के पैरा 2 में कहा गया है

आदिवासियों को विशिष्ट व्यक्तियों की तरह ही स्वतंत्रता शांति सुरक्षा के साथ जीने का सामूहिक / एकल अधिकार होगा और उनके प्रति किसी भी तरह का नरसंहार या हिंसक कार्यवाही नही की जा सकेगी, यह एक ऐसी घटना है जिसने सभ्य कहलाने वाले हमारे समाज पर कस कर तमाचा जड़ा है

मनोविज्ञान कहता है ऐसे  व्यक्ति किसी  विकृति के कारण ऐसे आचरण करते हैं ,तो सवाल है ऐसे तथाकथित सभ्य समाज में पैदा कैसे हो जाते हैं , और जनता के प्रतिनिधि तक बन जाते हैं,यदि  होते हैं तो उनकी परवरिश में क्या कमी रह जाती है बहुत सारे सवाल उठ खड़े हुए हैं,क्या हम 16 वी सदी में आ खड़े हुए हैं - क्या आज़ादी के बाद हम रोटी कपड़ा मकान के आगे नही बढ़ पाये शिक्षा या उच्च शिक्षा के साथ बुनियादी शिक्षा में पिछड़ गए ,क्या कानून के लिए कानून बनाकर अपने समाज के पिछड़े दलित,गरीब कमजोर को हमने बेसहारा नही छोड़ दिया, कोई पावर फुल नेता / आदमी है क्या इन लोगों के लिए, लचर कानून और न्याय व्यवस्था के बीच लंबी खाई है,इस घटना ने साबित कर दिया है गरीबों के लिए मान  सम्मान के कोई मायने नही --आप उनके लिए योजनाएँ  बनायें ,उन्हें पैसा बांटे उन्हें रोटी कपड़ा और मकान दे दें ,फिर उन पर यह अमानवीय कुकृत्य करें ,शर्मनाक है यह

इस घटना के बाद में उस वीडियो को यहाँ शो करना असभ्यता समझती हूँ , आप तय करिये ऐसे नारकीय लोगों की सज़ा क्या हो, क्या उन्हें आदिवासी अधिकारों के तहत सज़ा देकर  आपका कर्त्तव्य पूरा हो जायेगा ? या कोई और सज़ा होनी चाहिए ?

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