एक थरथराती गंध के साथ हथेलियों से आंखों तक फैली हेरानी,उतेजनाओं के साथ वो मुलाक़ात पहली ,फिर तो मुलाकातों के कई शेड्स....नई आस्थाओं के साथ पुराने लड़े गए युद्ध ,मुक्ति की प्रार्थना तक,इतिहास मैं शामिल होने को तैयार उन क्षणों पर आत्म मुग्ध..दग्ध..हताश होने के अलावा कुछ हो ही नही सकता था उसकी निश्छल साफगोई का कायल होना जरूरी हो गया था ,लेकिन चीजों को तह करना उसे खूब आता था,एक ऊंचाई पर जाकर अपने को नीचे गिरते हुए देखना वहम ही होगा, लेकिन लाइलाज ,जैसे लिफ्ट मैं अकेले होना लन्दन आय मैं बेठना ..हो या हंस प्लाजा की अठाहरवीं फ्लोर पर होना, एक मूर्खता भरी सोच देहली की उस बे मौसमी बारिश मैं किसी का याद आना,उसकी मुश्किलों से बेखबर ,उसकी रूममेट का ही प्रस्ताव था रूफ टॉप पर जाकर टहला जाए ,एक वर्कशॉप अटेंड करने एक ही शहर से दोनों साथ थी जहाँ उनके साथ हमपेशा कई विदेशी महिलायें भी थी प्रोग्राम कोआर्दिनेटर ने वैसे तो डिनर प्रगति मैदान के होटल बलूची मैं रखा था,लौटते वक्त भी हलकी बारिश थी सड़कें गीली और नम थी ,थोडी ठंडक भी थी ,,,उस सनातन मूर्खता भरे प्रेम का कोई सिरा क्या अब खोजने पर भी मिलेगा ?उसे काल करना ,उत्तर मिला निस्संग व्यस्त हूँ कई क्षण आए किसी की जिन्दगी मैं बिना दखल दिए उसे लगा उसकी हेसियत सिफर है ....बाद मैं कई तार्किक शिकायतों का रिजल्ट भी सिफर ही रहा ,एक भरथरी गायकी का विलाप अन्दर ही अन्दर गूंजता रहा ..देर रात शौक से पहनी पोचमपल्ली सिल्क की गहरी नीली कथई हरे ,काले और मस्टर्ड ,मिक्स रंगों वाली वो खुबसूरत साड़ी सलवटों भरी उस शाम के बाद फिर ना पहनी जा सकी ,एहसास की गहराई का इतना उथला होना बुलंद सोच का भरभरा कर गिरना और मुग्धा होने के कारण ...केया गंध मैं गुथा हुआ साथ जरूर था जाने क्या हुआ , उन दिनों ....कई दफे सोच और समय समाप्त हो जाता है फिर भी रास्ते बाकी रहतें हैं, एक चुप्पी के साथ उदासी वहीँ आकर ठहर जाती है ,निशब्द चीजें इतनी तरतीबी से कैसे रह सकती है , जी सकती हैं बावजूद अपमानित -आहात होने के इतने कारण उसके हिस्से ही क्यों आए ?कोई निहत्था हो तो भीतरी आस्था ही तो बचेगी दूसरी लडाइयों के लिए, दर्ज चीजे अनुपस्थिति मैं उपस्थित ,किनारों से पानी सूखने की कगार के साथ मौसम बदलने और प्रवासी परिंदों की उड़ान के साथ भी एक इनटूशं न रहा होगा जब वो एक तंग गली से गुज़र रही थी...
उन्होंने चिंदी -चिंदी किया प्रेम ,ताकि सुख से नफरत कर सके उन्होंने धज्जियाँ उडाई जीवन की ताकि सुख से मर सके