,हर स्त्री के भीतर उपजा एक नायक होता है ,मन का साथी,वो आपकी काबलियत और इच्छानुसार ही व्यवहार करता है मेरा सनातन अमर नायक है ,मेरे ब्लॉग की हर पोस्ट का जो मुझे अज्ञात सुख देता है और इस भौतिक दुनिया का कोई सशरीर मनुष्य किसी स्त्री के मन का साथी नही हो सकता ,शरीर से एक स्त्री को गुलाम बना लेने वाला नायक कैसे हो सकता है, में स्वप्नजीवी हूँ और मेरी खुशी इस दुनियावी लोगों से बिलकुल अलग है ,तुम ध्यान से पढ़ोगी तो पहाड़ से मेरा नाता प्रेम का है --आत्मिक प्रेम दैहिक से कितना अलग है, जिसमे इस दुनिया का कोई प्रपंच नही, जब करोगी तो जानोगी, बाकि सब झूट है ---तो पुरूष पति किस चिड़िया का नाम है,तुम्हे इस प्रेम में पति /साथी का ना होना अखर रहा है ,तो जान लो पति को दोस्त बना लेना आसान नहीं है ,और हद्द दर्ज़े तक में ऐसा कर भी पाई हूँ फिर भी मेरे सपनो से छेड़ छाड़ का अधिकार मैंने नहीं दिया उन्हें --मेरा अपना स्पेस है स्त्री होने के नाते ,मुझे पत्नी या जीवन साथी की फ्रेम से बाहर निकाल कर देखो --तुम कहती हो तुमने प्रेम किया ,इस दुनिया में एकाध ही अभागा मनुष्य हुआ होगा जिसे प्रेम नहीं मिला होगा मानती हूँ पर प्रेम को आत्मिक और मानसिक स्तर जीना ये ताक़त सबको नहीं मिलती -मेरे घर में हम दो स्वतंत्र प्राणी है में पति को अपने दोस्तों पर नहीं लादती ना वो ऐसा करते हैं समय समय पर परिवार के फोटो शेयर करना अच्छा होता है ,हाँ में स्वतंत्र हूँ अपनी बात अपनी फोटो शेयर करने को ---और कौनसा पति होगा जो हफ्ते भर जब बाहर आफिस बाजार को निकलो तो बड़े प्यार से पत्नी की फोटो खींच दे --वरना कितनी सेल्फियों वाली दोस्त हैं यहाँ -मेरे तो पासवर्ड भी साझा हैं --सही पत्नी के क्या मायने --मेरा ए टी एम् हसबेंड के पास है --मुझे कभी किसी चीज के लिए मन नहीं मारना पड़ता जब जो चाहिए मिल जाता है और ये स्वतंत्रता मैंने कमाई है --स्वतंत्रता कामना हंसी खेल नहीं है कोई किसी को चाहे --और पति प्राणी के लिए कितने रात और दिन उसके परिवार के लिए तन मन से झोंके होंगे तुम जान नहीं सकती -गृहस्थी का पहाड़ अटल रखते हुए --तो अब आकर इस मुकाम पर हूँ जिंदगी क्या इतने लेखक लेखिकाएं हैं जिनके दर्ज़नो उपन्यास कहानियां होती हैं सबके वो नायक नायिका होते हैं ,अजब है तुम्हारी बात में फिर कहती हूँ किसी स्त्री का पति उसके भीतर का नायक नहीं हो सकता जो ऐसा कहती हैं वो झूटी हैं --हाँ साथी आपकी प्रेरणा हो सकता है मेरे ब्लॉग में ,ज़ेब्रा क्रॉसिंग ,एक लम्बी कहानी है 5 किश्तों में--उसका नायक सनातन दुनियावी प्रेमी है ---मेरी जन्म कुंडली में लिखा है एक दिन में सन्यासिनी हो जाउंगी ---शायद पहाड़ की ये दूसरी यात्रा ,पहली उत्तराखंड की थी --तीसरी बार उस संन्यास की शायद लौ जग जाए
मेरे प्रिय लेखक नरेश मेहता कहते हैं --मनुष्य भोगता व्यक्ति की भांति है मगर अभिव्यक्ति कलाकार की भांति करता है , और लेखक को हर हाल अपने इसी अच्युत पद की रक्षा करना पढ़ता है,
मुझे नही समझ आता , पति को कैसे अपने लेखन में ले आऊं प्रेम और कर्तव्य एक ही मुहाने पर है जिसे लिखती हूँ उसे जीती हूँ, और जिसे नही लिखती उसके लिए दिन रात बरस दर बरस जिए हैं ,वो तो भीतर है उसके लिए भीतर क्या है ये बताना लिखना छिछलापन है ,उसके दुख सुख के लिए भीतर माँ बहन बेटी दोस्त प्रेमिका एक साथ है, और मेरे ड्रीम नायक सनातन के लिए में अकेली पिछले साल पति को डेथ बेड से बचा लाई जब डॉ जवाब दे चुके थे तब मेरे भीतर के सनातन ने ही मुझे स्ट्रेंथ दी --मैंने उससे कहाथा क्या ईश्वर मुझसे मेरे साथी को छीन कर मुझे भिखारी बना देगा --तब सनातन ने ही कहा नहीं, मेरे पेड़ पौधों ने कहा नहीं -दिल ने कहा नहीं और आज में धनवान हूँ -
मुझे नही समझ आता , पति को कैसे अपने लेखन में ले आऊं प्रेम और कर्तव्य एक ही मुहाने पर है जिसे लिखती हूँ उसे जीती हूँ, और जिसे नही लिखती उसके लिए दिन रात बरस दर बरस जिए हैं ,वो तो भीतर है उसके लिए भीतर क्या है ये बताना लिखना छिछलापन है ,उसके दुख सुख के लिए भीतर माँ बहन बेटी दोस्त प्रेमिका एक साथ है, और मेरे ड्रीम नायक सनातन के लिए में अकेली पिछले साल पति को डेथ बेड से बचा लाई जब डॉ जवाब दे चुके थे तब मेरे भीतर के सनातन ने ही मुझे स्ट्रेंथ दी --मैंने उससे कहाथा क्या ईश्वर मुझसे मेरे साथी को छीन कर मुझे भिखारी बना देगा --तब सनातन ने ही कहा नहीं, मेरे पेड़ पौधों ने कहा नहीं -दिल ने कहा नहीं और आज में धनवान हूँ -
तो डियर असल जिंदगी से अलग स्वप्न सनातन है ,कहीं ज़िंदा भी तो क्या में उससे मिल पाऊँगी नहीं जानती अगर मिली तो मेरा प्रेम दुगुना ही होगा जानती हूँ इस भीतरी प्रेम के बदौलत ही मेरे साथ ,मेरे आस पास इतनी ख़ूबसूरती है ,एक इनर ताक़त है जो मुझे झूट बोलने से हमेशा रोकती रही है --तो मेरा प्रेम गलत दिशा में कहाँ ---में रास्ते चलते जमीन पर पड़े पत्ते में भी ख़ूबसूरती देख लेती हूँ --लोग भोपाल आते हैं मुझसे मिलना चाहते हैं --जो मिलकर गए उनसे पूछो -मैंने कभी नहीं कहा मेरे पास समय नहीं --मुझे जो ईश्वर ने दिया है ,मुझे गर्व है और माँ की कुछ सीखें सौगाते हैं क्या में खूबसूरत हूँ नहीं ,बहुत नहीं साधारण स्त्री हूँ लेकिन में खूबसूरत होने के मायने जानती हूँ -ख़ूबसूरती से जीती हूँ मेरा मूलस्वर प्रेम है जिसके भीतर दुःख है और दुःख ही मेरी दूसरी ताक़त है जिससे में इस फरेबी दुनिया को जान पाती हूँ -उनसे निबटने उपाय जानती हूँ -किसी का मोहताज़ नहीं रक्खा मुझे ईश्वर ने -मेरी हर बात हर दुआ कबूल की लेकिन उसके पहले मेरी परीक्षा भी ली --क्या में कम उम्र युवती हूँ ,जो छल कपट नहीं जानती होंगी --पर बात यही है कि पास आकर झूट कपट भी मुझसे दूर भाग जाते हैं। तो शुक्रगुजार हूँ नेचर की जो मुझे बुरे लोगों से बचाय रखता है -मेरी दिशा को प्रेम की और बढ़ाये रखता है
जब में दुबई गई थी तो जो पॉयलट उड़ाकर कर ले गया था उसका नाम मुस्तफा था , मैंने उस पर एक पोस्ट लिखी थी जिससे में ना तब ना आज तक मिली, तब भी वो मेरा नायक था, भीतर बुद्धत्व का उपजना क्या होता है नही जानती मगर अभिनेता गुरुदत्त मेरे ड्रीम नायक हैं ,तो जंगल भी तो पहाड़ भी तो---
जब में दुबई गई थी तो जो पॉयलट उड़ाकर कर ले गया था उसका नाम मुस्तफा था , मैंने उस पर एक पोस्ट लिखी थी जिससे में ना तब ना आज तक मिली, तब भी वो मेरा नायक था, भीतर बुद्धत्व का उपजना क्या होता है नही जानती मगर अभिनेता गुरुदत्त मेरे ड्रीम नायक हैं ,तो जंगल भी तो पहाड़ भी तो---
पत्रकारिता में संघर्ष गृहस्थी बच्ची लेखन परिवार माँ पिता के बिना का जीवन क्या आसान होगा - स्त्री का व्यवहार ही उसका हथियार होता है --जिस आधार पर वो जीतती या हारती है ---
ये लिखना क्या यूं ही है , मेरे पति की क्वालिटी 10 %पुरुष में भी ना होगी, और उन जैसी जिद्द भी नही ,एक जिंदगी बतौर मेरे मानवीय मनुष्य होने के नाते इन सबसे परे हैं ----मेरा स्त्री होना ही शुभ है सार्थक है --हर नजरिये से ,समझती हूँ --जिनमें अधिसंख्य पुरुष मित्र पति और मेरे साझे हैं जिन्होंने हमेशा मुझे आदर सम्मान प्रेम दिया ---
मेरे प्रेम को में खिचड़ी बनाने से परहेज रखती हूं ,और उसकी नजर उतारती हूँ
इतवार की शुभकामनाएं तुम्हे
ये लिखना क्या यूं ही है , मेरे पति की क्वालिटी 10 %पुरुष में भी ना होगी, और उन जैसी जिद्द भी नही ,एक जिंदगी बतौर मेरे मानवीय मनुष्य होने के नाते इन सबसे परे हैं ----मेरा स्त्री होना ही शुभ है सार्थक है --हर नजरिये से ,समझती हूँ --जिनमें अधिसंख्य पुरुष मित्र पति और मेरे साझे हैं जिन्होंने हमेशा मुझे आदर सम्मान प्रेम दिया ---
मेरे प्रेम को में खिचड़ी बनाने से परहेज रखती हूं ,और उसकी नजर उतारती हूँ
इतवार की शुभकामनाएं तुम्हे
इस पोस्ट पर हार्दिक स्वागत है उन पुरुष स्त्री मित्रों का जो मेरी बात से सहमत भी हैं और उसे विस्तार भी दे सकें