
भाई बेनामी जी ...मैं चाहती तो इस बेनामी ऑप्शन या टिपण्णी को हटा सकती थी पर कोई फायदा नही होता,...जवाब सुने, यदि एक लेख लिखने से पाँच -दस साल का बंदोबस्त हो जाता है तो बेरोजगारी के इस युग मैं बड़ी बात है ,तो कयोना दस-बीस लेख लिख लिये जाएँ पूरे कुनबे का जिन्दगी भर की दूध-मलाई का इंतजाम हो जायेगा,...अफसोस आपके -पीछे -पीछे बिना पढ़े दो नामी भाई और आगये ...जवाब देने का मन तो नही था,लेकिन आज फिर आपने किसी ब्लॉग पर टिपण्णी की ये दुघ मलाई वाली कुठा क्यों है आपको किसी के बारे मैं विचार बनाने और उस पर लिखने से पहले उसे जानना होता है आप लिखिए ना ,,,भला -बुरा,मख्खन मलाई, गुड -इमली ,...अंगूर खट्टे हों खम्बा उंचा हो तो सर नोचने से कोई फायदा?स्याही को नसीब बना लेंगेतो आगे की जिन्दगी का क्या होगा,लड़ना पेशा नही, मेरा लिखना है ,मेरी समझ नही आता मौसम बदलते ही कुछ लोगों को बुखार क्यों आजाता है छींके क्यों आने लगती है ,हर जगह वो अपशुकन करने लगते हैं,थोडा भी बर्दास्त नही करते, क्या औरतें बस उलुल-जुलूल कविता-कहानी प्रेम पर ही लिखती रहें राजनेतिक सामजिक सरोकारों पर उनकी दखल से आपके अहं को चोट पहुँचती है और वह आपकी ,हाँ मैं हाँ मिलाती जिधर हांक दे चली जाएँ नकवी की भाषा मैं लिपस्टिक दूध-मलाई आयं-बायं जो मन आए कह जाए ...आप जैसे लोग ही स्त्री-पुरूष समानता मैं एक पहाड़ हैं .आपको उन गरीबों पर ज़रा भी दया नही आती जिनकी मुश्किलें दूर करने मैं पहली बार ये सरकार कामयाब रही है ..खासकर स्त्री के चेहरे पर एक मुस्कान तो आई है ,थोडा अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर सोचें अपने मैं तबदीली लायें भरम और झूट से बचें,जिन्दगी मैं कामयाब लोगों से कामयाबी के गुर सीखें सब्र करना और आत्मविश्लेषण करना भी ...१३ को शिव सरकार शपथ लेगी तब भी एक पोस्ट लिखूंगी ,,,इमानदारी से नामी-गिरामी होकर टिपण्णी देन,ताकि शुभकामनाओं के साथ कटोरा भर दूध-मलाई भी पोस्ट की जा सके.