बुधवार, 14 अप्रैल 2010

वो चीजें जिनके बीच ठिकाने बनाए गए उन चीजों के बीच चीजें द्रश्य रचती है, और पिघलती है .इक्छाओं के उच्त्तम तापमान पर , मौसम यूँ चीजों की शिनाख्त करता है//-



वो चीजें जिनके बीच ठिकाने बनाए गए
उन चीजों के बीच चीजें द्रश्य रचती है,
और पिघलती है .इक्छाओं के उच्त्तम तापमान पर ,
मौसम यूँ चीजों की शिनाख्त करता है ,
और बुरा है यूँ उनकी पवित्रता भंग करना ,
दुर्दिनो में बेतरतीब सा है चीजों का चरित्र ,
बेमतलब रुझानो में बदलता, बेवजह जगह घेरता ,
अकल्पनीय-अविश्वसनीय ,अपनी अनुपस्थिति में भी ...
चीजों के बीच निर्विकार चुपचाप बैठा वक्त ,...
एक मुकम्मिल ग्राफ पूरा करता है ,
और पार करता है अपना वक़्त चीजों के बीच ,
सतह से उठता ,नीचे गिरता, बढ़ता..अंत में जिग -जैग सा,
कभी-कभी मियादी बुखार सा
कभी -कभी चीजें एक दूसरे की तमाशाई हो जाती हेँ
और हंसी आ जाती है एक सुनहरी बूँद आंसू भी,
कुछ बातें रुकते-रुकते भी हो जाती है
जब कुछ नहीं था हमारे पास तुम्हे देने को, सिवाय अपने,
.किसी नदी के गहरे जीवन में उतर जाने की मानिंद
चीजों के बीच बहुत सी चीजें जमती जाती है, पर्त दर पर्त,
जिनमे शामिल है, उस छोर तक चलना-आकाश को छूना
चीजों से संवाद---चीजों से प्रेम,
सिर्फ वहाँ चीजें नहीं है ,ना थी
घर ,टेबिल दीवान कुशन पर्दे दीवार से सटी मूर्तियाँ ,
हवा में तैरता एक अहसास
हाय- ब्रीड चम्पा के सफेद फूलों से भरा गुलदान,
चाय के खाली कप ,मुग़ल पेंटिंग,और वो चौकोर आइना ,
जिसमे ठीक पीछे कोई दूसरी शक्ल उभर कर ठिठक गई है
संवाद की अंतिम सीढ़ी पर
अनुभव हीन ,वहाँ सिर्फ चीजें नहीं थी ,
आजकल इंस्टेंट --जहाँ ..वो चीजें लगातार ,
जल्दी-जल्दी खानाबदोश शक्लों में बदलती जा रही है

जब कोई मिलता है तो अपना पता पूछता हूँ .. में तेरी खोज में तुझसे भी परे जा निकला... (मुज्जफर वार्सी)