देला वाढी के जंगलों से गुजरते हुए देखती हूँ
घुमाव दार सड़कें ,बेनाम पेड़ ,
जंगली हवा तिलिस्मी धूप... ,
जंगली हवा तिलिस्मी धूप... ,
मुरझाये बूढे सूखे,लाल और पीले पत्ते ,
कांपती जुबाने लिए बतियाते,इन जंगलों मैं
अट जातें हैं ,किसी जादुई गिरफ्त से
आते-जाते आंखों मैं ,ओझल होता है ,
शाम का सूरज ,पहाडियों के पार,
इन जंगलों से शायद कल फिर गुजरना पड़े ,
तो भी रहेंगे जंगल बेखबर,
दुनिया कहेगी मुझे उजालों का देवता,मैं उस मुकाम पर हूँ जहाँ रौशनी सी है जफर सिरोंजवी
भोपाल से ६५ किलोमीटर दूर एक पिकनिक स्पॉट ,देला वाढी से लौटकर..