खिलंदड़ी --गिलहरियां बहुत आसानी से
पीछा करती हें --एक दूसरे का
--वहाँ प्रतियोगिता नहीं है /उनकी बेहिसाब दौड़ती-फुदकती दुनिया में /-
-एक आरामदायक सुरक्षा है /उजली सुबहों में घास के बीज कुतरती गिलहरियां मुझे पसंद हें /-बेहद पसंद है
-उतरती दोपहर और शुरू होती शामों से पहले वाले सन्नाटे में /--
पत्तों की हरी रौशनी में झुरमुटों के बीच /उनका होना एक हलचल है /-
-पत्तों के गिरते रहने में भी /
--तब भी ,जब सुकमा की झीरम घाटी में विस्फोट होता है /
और पत्तों की नमी यकायक सूख जाती है
/--भरभराकर टूटते शब्द बौने होते जाते हें /
तब कड़क और कलफदार चेहरों वाली इस दुनिया को /-
-अपनी गोल किन्तु छोटी और चमकदार आँखों से ,
चौकन्ने कानों से, पंजो के बल /पेड़ के तने को नन्हे पंजों से थामे / -खड़ी हो देखती है
,झांकती ,सुनती है गिलहरियां- अगल बगल -
---मेरी समझ से---लचीली गिलहरियां दुःख ताप ईर्ष्या से परे
दुनियावी चीजों को एक से ,दूसरे सिरे तक देखती मिलेंगी /-
-एक लम्बे विलाप को पूर्ण विराम देती सी /
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-बांस की दो चिपटियों के बीच दबकर निकलती सी उनकी आवाज़ की मिठास /-
-किसी लोकवाद्य यंत्र की तरह बजती हुई निष्कपट /
उस-- इस समय में /-जिनमे दर्ज है हमारा प्रेम /-
-प्रेम के उत्सव की तरह ,मंगलगीत गाती बीतती है /
--फिर आना तुम याद बहुत कहती--/शर्माती शाख की सबसे ऊँची फुनगी तक दौड़ जाती है
और तमाम तरक्कियों के बावजूद बदत्तर होती जाती इस दुनिया में /
-बचे हुए खूबसूरत प्रेम की मानिंद / हर सुबह -हर दिन
घास के एक नन्हे तिनके के सहारे थाम लेती है, पूरा आकाश /-
उन्ही बहादुर गिलहरियों से मुझे बेहद प्रेम है
---बेहद