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तुम नही चाहोगे तो भी
बदलेंगे .मौसम
घूमेगी..धरती
बरसेंगे बादल और आएँगे ,याद हम
और वे लौटेंगी तितलियाँ ..
बेहिचक तुम्हे छू कर,
जिनके पंखों पर लिक्खी
समय ने कदाचित्
एक इंद्रधनुषी इबारत
तुम नही चाहोगे --तो भी,
इस ब्रह्मांड के ख़त्म
होने से पहले देखोगे -निर्विकार
अपने को दोहराए जाते
वक़्त की तरल -सघन रफ़्तार में
तुम नही चाहोगे तो भी
पानी में घुली मिठास सा
पुरइतमीनान समय
करेगा निरस्त -सारी दलीलें को
निश्चित नतीजों की तरह
तुम नही चाहोगे तो भी
आदि- उत्सव की सुगंध सी प्रतिज्ञाएँ
रहेंगी हमारे साथ,
इच्छाओं की एक छूटी हुई
अधूरी फेहरिशत में
हमारे नमकअश्रु के
प्रार्थनाओं के जलतीर्थ में
तुम चाहो तो भी
ना चाहो तो भी...
"एक ही शख्स था, एहसास के आईने में... कभी शबनम, कभी खुशबु, कभी पत्थर निकला..." - तालिब जैदी (अपनी डायरी की शायरी से...)