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- सुनो प्रेम तुम भीतर उतरते हो तो में आसमान होती हूँ ## पुराने निशानों के सहारे चलते जाना -और एक निर्धारित जगह से लौटना कभी कभी धोखा दे जाते है, पुराने निशानों की याद के बावजूद आप रास्ते भूलते जाते हो और भौच्चक किसी चौराहे पे दायें बाएं ,नाक की सीध में या कि पीछे पलटे संशय होता है ,बहुत से निशाँ बरगलाते है --अन्धेरा आजकल जल्दी घिर आता है,शाम से पहले रात ,रात से पहले रात होती है, बस वही नही होता जिसे वक़्त से पहले होना चाहये-और वक़्त से पहले वक़्त की गुहार--हमेशा कारगर नहीं होती --तब समय रेंगता है जब उसे दौड़ना हो वो घिसटता है और वो धीरे धीरे सरकते हुए -बाहर पसर जाता है यहां वहां टुकड़ों में --शाम की हल्की ठंडक धड़कती नब्ज पर पलकों और हाथों पे महसूस होती है और आँखों में उस ठंडक का उतरना महसूस होना एक जरूरी सोच के साथ प्रकम्पित करता कुछ बातों वातों के साथ ठगता है, तभी उस यात्रा पर जाना ,जहां जाना अनेकों बार स्थगित हो चुका हो --एक लम्बे अंतराल के बाद कोई तलाशता है मुझे, में चकित हूँ --मुझे अपने को संशोधित करने की जरूरत है --क्या ? देर तक सवाल का उत्तर नहीं मिलता -फूलों के -रंगो में ,तितलियों के पंखों में ,सौंदर्य के अर्थों में ,प्रेमियों के एकांत में ,ऊँची घास के मैदानों में ,जोर से कहना --सुनो प्रेम तुम भीतर उतरते हो तो में आसमान होती हूँ --एक जादू असर के साथ बातों का बेहिसाब होना --कहीं पहुँचने से बेखबर -- एक लॉन्ग ड्राइव पे निकल जाना ,दिल में हजार हजार ख्वाहिशों के दृश्य लिए-एक खनक -एक गमक ठुमकती है राग द्वेष से परे --कभी कभी हम अपनी प्रार्थनाओं-कामनाओं में खाली हो जाते हैं --फिर से भर जाने को
- --तभी चीजों को भीतर की तरफ देखना कारगार होता है --सूखे फूल एक विस्मृत गंध ,मुड़े हुए मोर पंख ,और पाजेब सी झंकृत होती स्मृतियाँ ----देर तक विस्मृति में रहने के बाद एक रास्ता जंगल नदी की और मुडत्ता है,घर लौटने से बेहतर , विभ्रम से दूर,नदी के उस छोर तक चलते जाना जहां से लौटने की कोई जल्दी नही होती सूखे पीले पत्तों कुछ जंगली फूलों सूखी टहनियों का, पारदर्शी नदी जल में बहना और उस ठंडे जल में अपना गीला चेहरा देखना आहा फिरअपने ही ,चेहरे का लहरों में गुम हो जाना ---तुम कहां हो ---पर जिस जगह तुम नही हो वो जगह अनायास अपरिचित और बेस्वाद लगने लगती है मुझे - लौटना होगा अपने को कहना --अपनी सीध से ठीक उल्ट ,और वो अपनी ब्लेक पश्मीना में कढ़े गुलाबी गुलाबों को बाहों में जकड़े लौटना चाहती है --जाने कितने तमाम सफर जाने कितने छूटे शहरों-जंगल को सोचती हुए ये छूटना भी तय है --दोपहर की धूप में ,नदी जल में एक भीगी जंगली चिड़िया का सूखी टहनी पे बैठ पंख झाड़ना बार -बार काश तुम, मुझ संग देख पाते, नदी की रेतीली दोमट मिटटी वाले कच्चे रास्ते से लौटते हुए अपने कानों पे हाथ रख जोर से कहना सुनो इस बार हम **'सायमा' झील के किनारे मिलेंगे सुना तुमने ----
- [ एक रात की नींद ---बारह हजार दिन के सपने -- मन की रिपोतार्ज कथा ]
- [** सायमा झील --फिनलैंड की सबसे बड़ी सबसे सुंदर झील ]