#पहले से अधिक शब्दों के बीच,
संपन्नता से छुपते हैं ,
केसरिया धब्बों की तरह तुम्हारे मौन के शब्द
मेरे मौन में--लेकिन
देर तक रहते हैं देह में,देह की धमनियों में बजते से
देर से अँधेरा है,यहाँ
दूर तक बिजली/रौशनी नही
जिसने यकायक पहुंचा दिया है,
इस गोपन आत्मा को, तुम तक
और मैंने अभी अभी रोना स्थगित कर
दौड़ के अंतिम लक्ष्य तक,
बूँद भर से राफ्फू गिराई की महा समुद्र की
मुठ्ठी में भर लिया ब्रह्मांड,को
सोचा --
कब से मिलना नही हुआ तुमसे,
कितने लंबे समय से,नही देखा तुम्हे
इस लेखे को भी फाड़ दिया आज रत्ती रत्ती,
बहुत तपने के बाद हुई आज बारिश में
मौलश्री के वृक्षों का रंग गहरा हरा है आज
सड़के काली नदी सी, जिन पर
मेरी राह ठुमकती है ,तुम तक आने को
रक रसता की ऊब से उठकर
एक मौलश्री का पेड़ उग आता है मेरी नाभि तक
कालसर्प योग से छीजती देह में -
एक फूल धंसता है नाभि तक
और सारी देह आहिस्ता से मौलश्री के गोल छोटे तेज फूलों की खुशबू से भर उठती है
जानते हो बिछुड़ कर जीने का संघर्ष कैसा होता है
इसे लिखकर नही बताया जा सकता
बस दौड़कर आतुरता में
जीती हूँ ,ठहरकर
खुश्बू से तरबतर,तुम्हारे लिए
सोचने से ना बचते हुए
अनंत तक ,इस अँधेरे में रात -बिरात
जानते हो ना मौलश्री का एक बोन्साई भी तो है मेरे पास
इस बार सहेज लूंगी कुछ फूल तुम्हारे लिए
( बुकुल की याद में *बकुल मौलश्री के फूल का नाम )