पहली बारिश थी ,
बह गया टुकड़ों में ,
छोटी-छोटी नावों की शक्ल में ,
बहता-बहता गल गया होगा
आगे जाकर.या दूर जाकर ,
रूक गया होगा ,
कहीं किसी मुहाने पर जंगल के
बहुत कुछ छूट जाता है,
अक्सर ऐसे ही,बेरहमी से
इस जिन्दगी में
अपने बेगाने
जो लिखा था वो मिट गया
कुछ जिये कुछ शेष रहे .. ,
अकस्मात कुछ आहिस्ता
लेकिन छूटे जो छूट गये
२४ जून २००६ को नई देहली की एक उमस भरी दोपहर --के बाद ----उसी रात कुछ महिला पत्रकारों के साथ हमारी फ्लाईट जर्मनी के लिए थी ..पहले ब्रुसेल्स फिर बाद में बर्लिन तब वहां विश्व फूटबाल मैच हो रहे थे ,तब ये शब्द ख्यालों में थे ----उसी शाम देहली में धूप वाली छिटपुट बारिश भी हुई थी जहाँ में कई सालों बाद अपनी एक बेहद नफासत पसंद दोस्त से मिली थी ...