सोमवार, 17 नवंबर 2008

क्या राजनीति की अपनी मजबूरियाँ होती हैं,?भा ज पा का घोषणा पत्र

मध्यप्रदेश मैं बी.जे पी ने अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है जिसमे प्रमुखता से २००३ के घोषणा पत्र मैं किए गए वादों को पूरा करने की बात भी कही गई है.और नए वादों मैं वह गांवों मैं २४ घंटे पानी,बिजली ,प्रदेश को जैविक प्रदेश बनाने कृषि ऋण घटाने अपराध पर अंकुश,गरीब को २ रूपया गेहूं और २५पैसाकिलो नमक देने का वादा कर रही है हैरानी की बात है की औरतों के लिए बहुत कुछ करने कहने और -बखान करने वाली सरकार के एजेंडे मैं औरत नाम तक नही आया .....अनुभव बताता है की शीर्षस्थ व्यक्ति को शीर्ष पर समय तक बने रहने के लिए अन्तिम व्यक्ति को याद रखना होगाबिना भेदभाव के,ताकि एक विशिष्ट चेतना के बल पर समय समाज और राजनीति kआ,वो ठीक ठाक मूल्यांकन कर सके ,और युक्तियुक्त ढंग से भरसक क्षमता विशवास मुठ्ठीभर स्नेह उन्हें भी दे सके जिनके वे हकदार हैं......सरकारें आती हैं जाती हैं वोट बैंक बढतें हैं और वहीसबकुछहोता है जिसकी जनता को आदत हो चुकीं है,इस चरमराती राजनेतिक और सामजिक व्यवस्था मैं एक धुंधलका है,रतन्तु नेतिकता-नेतिकता करते आकंठ भ्रष्टाचार मैं डूब जातें हैं,आमजन अपनी असहायता पर सर पीटकर रह जातें हैं,बस अभी अभी लीलाधर मंडलोई की कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ गई ,तुमने एक बूढे के पाँव छुए ,और बटुआ टटोला,तुमने एक औरत की तारीफ़ की और उसकी देह से जा सटे,तुमने एक बच्चे को चूमा और उसे चाकलेट देना भूल गए,तुमने सितार पर बंदिश सुनी और भोजन को सराहा,तुमने शक्ति केन्द्रों पर धोक दी और आलोचकों को याद किया,यह सब करते हुए तुम पहचान लिए गए,.....इन शब्दों के नेपथ्य मैं एक सच टटोला जा सकता है जिसके सहारे आम आदमी मैं भ्रष्ट ताकतों के खिलाफ लड्ने का होंसला ईमान दारी से विकसित किया जा सके ३ साल पहले जब शिव सरकार बनी उसके सामने भी चुनौतियां ज्यादा थी कुछ घोष नाएँ की गई, नवीन महिला नीतिउसका क्रियान्वयन ,महिला हितेषी बातें,जिनमें लाडली लक्ष्मी योजना, कन्यादान, अन्नप्राशन जैसी योजनाये शामिल हैं ,ये सफल जरूर हुई,लेकिन इसी के साथ कुपोषण और मातृत्व पर्तिशत घट गया यधपि सरकार का दावा है की उसने राज्य को बीमारू राज्य की श्रेणी से उबार लिया है ,जो अब गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को, २ रुपया किलो गेहूं और २५ पैसा किलो नमक शायद आयोडीन रहित देगी ,इस पत्र मैं २४ घंटे बिजली प्रदेश के सभी गांवों और शहरों मैं देने कीभी बात है,जो थोडी थोथी किंतु लुभाती है,नए उधोग-धंधों को बढ़ावा बिजली के डिमांड और सप्लाई मैं अन्तर बिजली जर्नेट करने और नए थर्मल यूनिट लगाने और बिजली का एक समय अवधि के बाद उत्पादन होना फिलवक्त कोल का कोटा फिक्स होना जैसे तथ्य सोचने पर मजबूर करतें हैं क्या येसप्लाई सचमुच होपाएगी,....सड़कों का नेटवर्क जरूर सशक्त हुआ है,१८ से १९ पर्तिशत तक सड़कें,२००७ तक दूरदराज के गांवों मंडियों तक जोड़ी जा चुकी हैं लकिन बुनियादी इन्फ्रा स्ट्रक्चर कमजोर हुआ है ,और अभी तक इसीलिए बड़े उधमियों को म प्र मैं सरकार लाने मैं असफल रही है,...पानी कीस्थिति भोपाल शहर मैं एक दिन छोड़कर दी जारही है पानी के मामलें मैं प्रदेश अभी भी दुसरे राज्यों के मुकाबलें मैं धनी और भाग्यवान है,लेकिन पानी के अपने भौगलिक उतार चढाव हैं बस निर्भरता नेचरल पानी पर है ७० पर्तिशत जल स्त्रोत अनुपयोगी पड़े हैं पानी रोको ,जल ही जीवन जैसे स्लोगन दम तोड़ चुकें हैं वाटर हार्वेस्टिंग निल है ना यहाँ बड़े डेम बन पाये ना हमने कलटिवेतेद एरिया बढाया ना जमीनी पानी को उंचा कर पाये इसके लिए बस सरकारें और सरकारें जिम्मेदार हैं ,....इसके अलावा भूख प्यास भ्रष्टाचार नक्सली,सम्प्रदायवाद, आतंकवाद महिलाओं की सुरक्षा जैसी और भी बातें हैं ...यदि ये सरकार दुबारा सत्ता मैं लौटती है तो पिछली सरकार की तरह जनता बेहाल ना हो ,क्योंकि सत्ता मैं रहकर भ्रष्ट होना ही होता है राजनीति की अपनी मजबूरियाँ और जरूरतें होती होंगी की वे शासक को शासक नही रहने देती इसलिए याद यही रखा जाए की कभी कभी वयवस्था बनाने के लिए कुछ चीजें छोड़ना पड़ती है और कहीं मूल स्थिति को बनाय रखना होता है

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