बुधवार, 19 नवंबर 2008

एक शब्द जो...हवा मैं रह गया,...दोस्त के नाम ...

इतना लिखा,
इतना लिखा
पहाड़ भर यादें,
समुद्र भर दुःख
आसमान भर सपने,
रात भर आवाजें,
दिन भर बातें,
धरती भर प्रेम,
फिर भी, फिर भी
कितना रीता रह गया,
दोस्त के नाम लिफाफा ...
(आज सुबह बारिश होने के बाद मेरे शहर में)
यह अंश डायरी के पन्नों से - धर्मेन्द्र पारे की कविता से...


6 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर रचना।

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

इतना लिखा,
इतना लिखा
पहाड़ भर यादें,
समुद्र भर दुःख
आसमान भर सपने,
रात भर
सुंदर रचना।

अमिताभ मीत ने कहा…

फिर भी
कितना रीता रह गया,
दोस्त के नाम लिफाफा ...

सही है ... सुंदर.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

विलक्षण रचना...और चित्र...अद्भुत...वाह...
नीरज

राज भाटिय़ा ने कहा…

क्या बात है, एक अति सुंदर रचना.
धन्यवाद

संगीता-जीवन सफ़र ने कहा…

बहुत सुंदर !